नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

सदा दूर रहो गम की परछाइयों से, सामना न हो कभी तनहाइयों से,
हर अरमान हर ख्वाब पूरा हो आपका, यही दुआ है दिल की गहराइयों से!

अच्छी-बुरी यादों और कुछ पूरे कुछ अधूरे लक्ष्यों के बीच वर्ष 2013 को अलविदा कहते हुए हम और आप एक नए साल में प्रवेश कर रहे है| मैं कामना करता हूँ कि वर्ष 2014 आपके करियर के साथ ही व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में सफलता के नए आयाम स्थापित करने वाला साबित हो, ताकि आप सभी देश की तरक्की में अपनी सहभागिता निभा सकें| आशा है कि आप नववर्ष का स्वागत बड़ी ही सादगी से करेंगे शराब और हुड़दंग से नहीं|

मेरी तरफ से सभी मित्रों को परिवार समेत नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, आने वाला नववर्ष आपके लिए नई खुशियां लेकर आये|

विनीत वर्मा "शिब्बू" 
भिलवल हैदरगढ़ बाराबंकी

छोटे पर्दे पर लोकगीतों की सोंधी महक

लोकगीतों की सोंधी महक को समेटे और आल्हा की तान, बिरहा का दर्द, फाग की सुरीली धुन और कजरी की मिठास लिए लोक गायन से सजे लखनऊ दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले 'माटी के बोल' कार्यक्रम को पहली ही कड़ी से खूब सराहा जा रहा है।

लखनऊ दूरदर्शन पर हर सोमवार और मंगलवार शाम 7.30 बजे यह कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है। इस कार्यक्रम को जहां लोकगीतों के पुरोधाओं ने खुलकर सराहा, वहीं उन्होंने उम्मीद भी जताई है कि 'माटी के बोल' उत्तर प्रदेश में लोकगीतों की फसल को सींचेगा और युवा पीढ़ी भी अपनी संस्कृति और उसकी मिठास से वाकिफ होगी।

इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हाल ही में जब मेगाऑडिशन राउंड में उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिभागियों की भीड़ उमड़ पड़ी, तभी से इसकी सफलता की उम्मीद लगाई जाने लगी थी। निर्णायक मंडल में शामिल सुप्रिसद्ध अवधी लोक गायिका कुसुम वर्मा के मुताबिक, लोक संगीत एक ऐसी विधा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण की प्रवृत्ति रखती है, और समाज में व्याप्त रिवाजों और संस्कारों को अनोखा और आकर्षक रूप प्रदान करती है।

लोक गायन के क्षेत्र की बेहद चर्चित हस्तियां और इस कार्यक्रम के दो अन्य निर्णायक जया श्रीवास्तव एवं मनोज मिहिर के मुताबिक, इस तरह के लोकगीतों से जुड़े कार्यक्रमों को सिर्फ एक रियल्टी शो या प्रतियोगिता के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इनका खुले दिल से प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि लोक गायन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत के तौर पर मिलता रहे।

दरअसल, लोक कलाएं संस्कृति की अभिव्यक्ति हैं जो अनंत काल से लोगों के द्वारा गाई जाती रही हैं। खासतौर से भारतीय परिवेश में जहां 'कोस-कोस पे बदले पानी, कोस-कोस पे बानी' की कहावत प्रचलित है वहां लोकगीतों का संसार और भी व्यापक है।

भारतीय समाज में लोक संगीत जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न पहलुओं से जुड़ा हुआ है। लोकगीतों में जीवन के विभिन्न चरणों के लिए विभिन्न अभिव्यक्ति प्रदान करने की अद्भुत क्षमता है, जैसे जन्म संस्कार से लेकर नामकरण, मुंडन, अन्नप्राशन, जनेऊ, विवाह, वर खोजाई, तिलक, बन्ना-बन्नी, सुहाग, कन्यादान, भांवरगीत, विदाई आदि जीवन के हर पड़ाव के लिए लोकगीतों में अनेक विधाओं में गीत सुनने को मिल जाते हैं।

वहीं बुंदेलखंड का शौर्यगीत 'आल्हा' आज भी लोगों में जोश और उत्साह पैदा करने वाले गीत के रूप में विश्वविख्यात है। आल्हा की तान के बल पर बुंदेली कलाकार पूरी दुनिया में अपनी ओजपूर्ण शैली का डंका पीटते आए हैं। इसी तरह लोक गायन की अहम विधा बिरहा, जब श्रीकृष्ण विकल गोपियों को छोड़कर ब्रज से चले गए तो उनके दुख को अभिव्यक्त करने के लिए गाया गया।

वहीं काठ के घोड़े पर सवार और रंग-बिरंगे परिधानों से सजे कमर मटकाते कलाकार अपने खास देसी अंदाज में घोबिया गीत की याद दिलाते रहे हैं। इनके अलावा नौटंकी, करमा, पाईडंडा, ऋतु पर्व के गीत, फाग, कजरी, चैती हमारे जीवन से विभिन्न रूपों में जुड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश में पहली बार 'माटी के बोल' जैसा लोकगायन का एक बड़ा रियलिटी शो लाने वाले सिनेक्राफ्ट प्रोडक्शन के कार्यकारी निदेशक विवेक अग्रवाल और क्रिएटिव डायरेक्टर संजय दुबे भी दर्शकों द्वारा कार्यक्रम को पसंद किए जाने पर बेहद उत्साहित हैं। 

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तिरपाल के नीचे ठंड से जूझती जिंदगियां

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में सितंबर में हुई भयानक हिंसा के दंश अभी भी पीड़ितों को झेलने पड़ रहे हैं। दिसंबर की इस हाड़ कंपा देने वाली ठंड में शामली जिले के मलकपुर स्थित राहत शिविर में एक तिरपाल के नीचे रहने के लिए लोग मजबूर हैं। मलकपुर राहत शिविर सबसे बड़े राहत शिविरों में से एक है और यहीं से ठंड के कारण बच्चों के मौत की खबरें आ रही हैं।

सितंबर में भड़की हिंसा के कारण करीब 50,000 लोग बेघर हुए थे। इनमें अधिकांश मुस्लिम थे। इनकी जिंदगी अब बहुत कठिन दौर से गुजर रही है। मलकपुर शिविर में 200 परिवार हैं और सभी के लिए केवल एक हैंडपंप है। मलकपुर शिविर में खड़ा एक बड़ा तंबू मस्जिद के रूप में काम कर रहा है और दूसरा स्कूल के रूप में काम कर रहा है। वहां केवल तीन अध्यापक हैं और 200 छात्र हैं।

रहने के लिए खड़े किए गए प्रत्येक कुछ तंबुओं के लिए लगभग दो वर्गफुट की जगह को कपड़ों से घेरकर स्नानागार की शक्ल दी गई है। वहां पर कुछ निर्माण कार्य भी हुए हैं। उपयुक्त सेप्टिक टैंक के साथ कुछ शौचालय भी बने हैं। लेकिन इन निर्माणों के भी गिराए जाने का खतरा है, क्योंकि यह जगह उत्तर प्रदेश वन विभाग की है।

इसी शिविर से पिछले कुछ दिनों से 30 बच्चों के मरने की खबरें आई हैं। इस शिविर को देखने से साफ पता चलता है कि कैसे इन शिविरों में कुछ स्वंयसेवी संस्थाओं की मदद मिली है। कुछ तंबुओं पर तैयब मस्जिद और कुछ पर ह्यूमनिटी ट्रस्ट लिखा है। वहां पर ऑक्सफेम का भी एक बड़ा टेंट है।

राज्य प्रशासन प्रयास कर रहा है कि लोग अब अपने घरों को वापस लौट जाएं। अधिकारियों का दावा है कि मुआवजे का वितरण अब पूरा हो चुका है और बेघर लोगों को वापस लौट जाना चाहिए। कई लोग अपने घरों को इसलिए वापस नहीं लौटना चाहते क्योंकि उन्हें अपने जानमाल पर खतरा महसूस होता है।

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राजेश खन्ना: जिसने जिंदगी को अपनी शर्तो पर जिया

बॉलीवुड में सुपरस्टार का दर्जा सबसे पहले पाने वाले राजेश खन्ना का नाम जब भी लिया जाएगा तब एक ऐसे शख्स की छवि उभरेगी, जिसने जिंदगी को अपनी शर्तो पर जिया।

कहा जाता है कि देव आनंद के बाद अगर किसी ने फिल्म के सफल होने की 'गारंटी' दी तो वह थे सबके चहेते 'काका' यानी राजेश खन्ना।

29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर (पंजाब) में जन्मे जतिन खन्ना बाद में फिल्मी दुनिया में राजेश खन्ना के नाम से मशहूर हुए। उनका अभिनय करियर शुरुआती नाकामियों के बाद इतनी तेजी से परवान चढ़ा कि ऐसी मिसाल विरले ही मिलती है।

खन्ना का लालन-पालन चुन्नीलाल और लीलावती ने किया। उनके वास्तविक माता-पिता लाला हीराचंद और चांदरानी खन्ना थे।

किशोर राजेश ने धीरे-धीरे रंगमंच में दिलचस्पी लेनी शुरू की और स्कूल में बहुत से नाटकों में भाग लिया। उन्होंने 1962 में 'अंधा युग' नाटक में एक घायल, गूंगे सैनिक की भूमिका निभाई और अपने बेजोड़ अभिनय से मुख्य अतिथि को प्रभावित किया।

रूमानी अंदाज और स्वाभाविक अभिनय के धनी राजेश खन्ना ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1966 में फिल्म 'आखिरी खत' से की।

वर्ष 1969 में आई फिल्म 'आराधना' ने उनके करियर को उड़ान दी और देखते ही देखते वह युवा दिलों की धड़कन बन गए। इस फिल्म ने राजेश खन्ना की किस्मत के दरवाजे खोल दिए। इसके बाद उन्होंने अगले चार साल के दौरान लगातार 15 सफल फिल्में देकर समकालीन और अगली पीढ़ी के अभिनेताओं के लिए मील का पत्थर कायम किया।

वर्ष 1970 में बनी फिल्म 'सच्चा झूठा' के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड मिला।

तीन दशकों के अपने लंबे करियर में 'बाबू मोशाय' ने 180 फिल्मों में अभिनय किया। इस दौरान उन्होंने तीन बार 'फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड' जीते और इसके लिए 14 बार नामांकित भी हुए। सबसे अधिक बार 'अवार्डस फॉर बेस्ट एक्टर' (4) पाने का सौभाग्य भी सिर्फ उन्हीं को मिला है। वह इसके लिए 25 दफा नामित भी हुए।

वर्ष 1971 खन्ना के करियर का सबसे यादगार साल रहा। इस वर्ष उन्होंने 'कटी पतंग', 'आनंद', 'आन मिलो सजना', 'महबूब की मेहंदी', 'हाथी मेरे साथी' और 'अंदाज' जैसी अति सफल फिल्में दीं। उन्होंने 'दो रास्ते', 'दुश्मन', 'बावर्ची', 'मेरे जीवन साथी', 'जोरू का गुलाम', 'अनुराग', 'दाग', 'नमक हराम' और 'हमशक्ल' सरीखी हिट फिल्मों के जरिए बॉक्स ऑफिस को कई वर्षो तक गुलजार रखा।

भावपूर्ण दृश्यों में उनके सटीक अभिनय को आज भी याद किया जाता है। फिल्म 'आनंद' में उनके सशक्त अभिनय को एक उदाहरण माना जाता है।

'काका' को 2005 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।

लंबी बीमारी के बाद 18 जुलाई, 2012 को दुनिया को अलविदा कहने वाले इस सितारे को 30 अप्रैल, 2013 को आधिकारिक तौर पर 'द फर्स्ट सुपरस्टार ऑफ इंडियन सिनेमा' की उपाधि प्रदान की गई।

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अरविंद केजरीवाल : अंदर से कोमल, बाहर से सख्त

कई वर्षो तक वे हाशिए के लोगों और बेआवाजों के अधिकार की लड़ाई लड़ते रहे। पारदर्शिता से लेकर भ्रष्टाचार तक के मुद्दे उठाने के बावजूद वे देश में कोई जाना-पहचाना चेहरा नहीं थे। अरविंद केजरीवाल नाम का यह शख्स वर्ष 2011 में अन्ना हजारे के 12 दिवसीय उपवास के दौरान लोगों के ध्यान में आया और शनिवार को इस आदमी ने दिल्ली के सातवें और कम उम्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

कांग्रेस को ध्वस्त कर देने वाली और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विजय रथ का पहिया थाम देने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के धूमकेतु की तरह उदित होने के पीछे मजबूत इरादे वाला यह आदमी खड़ा है जिसके नस-नस में राजनीति बसी हुई है। यह इसी आदमी का करिश्मा है जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को महज दो वर्षो के भीतर एक सफल राजनीतिक दल में बदल कर रख दिया।

दिल्ली पर हुकूमत करने जा रहे केजरीवाल (45) अभी तक एकमात्र ऐसे प्रहरी बने हुए हैं जो कांग्रेस के साथ रोटी साझा करने के लिए तैयार नहीं है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पर तीखा प्रहार करने से बाज नहीं आने वाले अरविंद की अल्पमत की सरकार उसी पार्टी के बाहरी समर्थन पर टिकी रहेगी।

आप ने न केवल 28 सीटें बटोर कर राजनीतिक सनसनी पैदा कर दी, बल्कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 25000 से ज्यादा मतों से पराजित कर केजरीवाल देश में एक प्रमुख राजनीतिक हैसियत भी बनाने में कामयाब रहे। आप को 28 सीटें मिली जबकि कांग्रेस 8 पर सिमट गई और भाजपा का रथ 31 पर जाकर अटक गया।

दिल्ली 70 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के अभाव में उनकी एक वर्ष पुरानी पार्टी की कुछ अपनी बंदिशें होंगी। लेकिन केजरीवाल और उनके दोस्तों का कहना है कि वे हमेशा से लड़ाके रहे हैं। हरियाणा के सिवान गांव में 16 अगस्त 1968 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे केजरीवाल की प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम के मिशनरी स्कूल में हुई।

परिवारवाले केजरीवाल को चिकित्सक बनते देखना चाहते थे, लेकिन परिवार की मर्जी के खिलाफ उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में दाखिला लिया और वहां से उन्होंने यांत्रिक अभियंत्रण की पढ़ाई पूरी की।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे भारतीय राजस्व सेवा में आए और भ्रष्टाचार के लिए सर्वाधिक बदनाम माने जाने वाले आयकर विभाग में अधिकारी नियुक्त हुए। राजस्व सेवा की नौकरी छोड़ सामाजिक बदलाव के लिए उतरे केजरीवाल को वर्ष 2006 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

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2013 में खोई ताकत पाने में जुटी रही बसपा

उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) वर्ष 2013 में पूरे साल सियासी नक्शे पर अपनी खोई ताकत पाने की कोशिश में जुटी रही। पार्टी ने कभी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को फिर से आगे बढ़ाया, तो कभी रैली में भारी भीड़ जुटाकर विरोधी दलों को परेशान किया। 

 इन प्रयासों के बीच उसे कोई सफलता तो हाथ नहीं लगी, लेकिन वर्ष बीतते-बीतते मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान व दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उसको जरूर झटका दे दिया। इसके साथ ही भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों को लेकर बसपा के कई नेताओं को जूझते रहना पड़ा।

करीब डेढ़ दशक के लंबे अंतराल बाद प्रदेश में पहली पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा को वर्ष 2012 में राज्य की सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इस पराजय ने बसपा को जो दर्द दिया, उससे उबरने की कोशिशों में वर्ष भर जुटी रही।

वर्ष के शुरू में रसोई गैस सिलेंडर, पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों तथा रिटेल में एफडीआई को मंजूरी जैसे मुद्दों पर केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को समर्थन पर पुर्नविचार का ऐलान करके बसपा प्रमुख मायावती ने देश की सियासत में अचानक गरमाहट पैदा कर लोगों का ध्यान खींचा था।

इस मुद्दे पर राजधानी लखनऊ में आयोजित रैली में भारी भीड़ जुटाकर उसने राज्य की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी (सपा) को सोचने को मजबूर कर दिया था। लेकिन इन सबका बसपा के राजनीतिक कद पर कोई असर नहीं पड़ सका। सोशल इंजीनियरिंग के जिस उपाय पर बसपा ने प्रदेश में बहुमत की सरकार बनाई थी, उसी फार्मूले पर फिर से लौटने का बसपा प्रमुख मायावती ने फैसला लिया है।

राज्य में लोकसभा चुनाव की मजबूत जमीन तैयार करने के लिए प्रदेश के तमाम जिलों में ब्राह्मण सम्मेलनों की बड़ी श्रंखला का आयोजन किया गया। जिला स्तर के सम्मेलनों के बाद राजधानी लखनऊ में आयोजित ब्राह्मण महासम्मेलन की मुख्य अतिथि मायावती रहीं।

उन्होंने ब्राह्मणों के साथ-साथ अन्य अगरों को भी पार्टी से जोड़ने का ऐलान किया। इसके लिए मायावती ने ब्राह्मण सम्मेलनों की तरह अन्य जातियों के भी सम्मेलन आयोजित करने की बात कही। इस बीच अदालत द्वारा जाति सम्मेलनों पर रोक लगा दिये जाने के कारण बसपा को अपने कदम वापस खींचने पड़े।

इतना ही नहीं, अदालत के निर्देशों को गंभीरता से लेते हुए मायावती ने आपसी भाईचारा कमेटियों को खत्म करने और उन्हें पार्टी संगठन में विलय करने तक का फरमान जारी कर दिया था, लेकिन बाद में अदालत के निर्णय का मंथन करने के बाद भाईचारा कमेटियों को समाप्त किए जाने के फैसले को अमलीजामा नहीं पहनाया गया।

अपनी राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करने के लिए परेशान मायावती लोकसभा उम्मीदवारों के चयन को लेकर बेहद सतर्क रहीं और प्रत्याशी के रिपोर्ट कार्ड में गड़बड़ी नजर आने पर उन्हे बदलने में जरा भी देर नहीं की।

रायबरेली, एटा, कन्नौज, आगरा, बहराइच, कैराना, अलीगढ़, हमीरपुर, सलेमपुर, देवरिया, गोरखपुर सहित डेढ़ दर्जन सीटों पर उम्मीदवारों को बदला गया। नौकरानी की हत्या की साजिश में फंसे पार्टी के बाहुबली सांसद धनंजय सिंह की उम्मीदवारी को भी साल जाते-जाते पार्टी को वापस लेनी पड़ी।

राज्यों के निराशाजनक चुनावी नतीजों के बाद बसपा प्रमुख ने अपने जन्मदिन 15 जनवरी 2014 को बड़ी रैली का ऐलान करके पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की है, ताकि लोकसभा चुनाव में खोई ताकत वापस लाई जा सके। 

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स्वेटर का विकल्प 'सलूका' अब कहां!

बुंदेलखंड में कभी ठंड से बचाव के लिए ग्रामीण महिलाएं पुराने कपड़ों से बने 'सलूका' से तन ढककर तड़के ही चूल्हा-चौका और फिर खेती-बारी के काम में जुट जाया करती थीं, लेकिन अब गांव-देहात के दर्जी न तो इसकी सिलाई करते हैं और न ही महिलाएं इससे तन ढकने को तैयार हैं। बदलते समय के साथ गरीबों का स्वेटर कहा जाने वाला सलूका जाने कहां गायब हो गया है।

बुंदेलखंड में आर्थिक तंगी जूझते भूमिहीन लोगों की आजीविका का साधन लंबरदारों के घर 'बनी-मजूरी' करना था। इस वर्ग को लंबरदार 'जन' कहकर पुकारा करते थे। डेढ़ सेर अनाज की मिली 'बनी' से परिवार के पेट की आग बुझाना उनका एक मात्र उद्देश्य हुआ करता था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिनको दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भारी पड़ता रहा हो, वह ठंड से बचाव के लिए स्वेटर या गर्म कपड़े का इंतजाम कैसे कर सकता है?

लिहाजा, लंबरदारों के तन के उतरन से खुद के तन को ढकना गरीबों की मजबूरी हुआ करती थी। उतरन में मिले कपड़ों को घर का मुखिया गांव के दर्जी से सलूका सिलवाकर महिलाओं को दिया करते थे। लेकिन अब इस वर्ग की हालत में कुछ सुधार हुआ है। जहां मजदूरी में इजाफा हुआ है, वहीं बाजारों में सस्ते दामों में बिकने वाले रेडीमेड गर्म कपड़े गरीबों को ठंड से बचाने में सहायक हैं।

बांदा जिले के तेंदुरा गांव के बुजुर्ग जगदेउना मेहतर (85) का कहना है कि बड़े लोगों के घर अच्छी मेहनत करने पर डेढ़ सेर अनाज की बनी के साथ बख्शीश में पुराने कपड़े मिल जाया करते थे। गांव के दर्जी इन कपड़ों से महिलाओं के लिए सलूका और पुरुषों के लिए गंजी सिल दिया करते थे।

जगदेउना बताते हैं कि पहले कमाई-धमाई थी नहीं, सो स्वेटर या गर्म कपड़ा बाजार से खरीदने की कूबत ही नहीं थी। ठंड के मौसम में घर की महिलाएं सलूका पहनकर तड़के से चूल्हा-चौका और खेती-किसानी का काम किया करती थीं।

बकौल जगदेउना, अब उनके लड़के बड़े हो गए हैं, वे परदेस में कमाते हैं और इधर मजदूरी भी बढ़ी है, जिससे बाजार में सस्ते दामों में मिलने वाले गर्म कपड़े वे आसानी से खरीद लेते हैं। इसी गांव की बुजुर्ग महिला दसिया बताती हैं कि उन्होंने पूरी उम्र में सलूका पहनकर ही ठंड काटी है, मगर करीब दस साल से उनका नाती बाजार से गर्म कपड़े खरीदकर पहना रहा है। वह यह भी बताती हैं कि अबकी बहुएं सलूका जानती भी नहीं हैं। अगर सिलवाकर दे भी दिया जाए तो वह पहनने को तैयार नहीं हैं।

इसी गांव में दर्जी का काम करने वाले बुजुर्ग बउरा ने बताया, "मुझे याद है कि करीब 12 साल पहले मइयादीन रैदास एक पुराने पैंट का सलूका सिलवाकर ले गया गया था, उसके बाद से अब तक सलूका का कोई नाम ही नहीं ले रहा है।" इसे आधुनिकता का प्रभाव मानें या ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार का नतीजा कि अब ग्रामीण क्षेत्र में ठंड के मौसम में कोई भी महिला सलूका पहनना पसंद नहीं करतीं। ऐसे में सलूका शब्द अपना अर्थ खोने लगा है।

सफला एकादशी व्रत से मिलता है हजारों यज्ञों का फल

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। पद्मपुराण के अनुसार, पौष मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला नामक एकादशी के नाम से जाना जाता है| इस बार यह व्रत 28 दिसंबर को मनाया जायेगा| सफला एकादशी के विषय में कहा गया है, कि यह एकादशी व्यक्ति को सहस्त्र वर्ष तपस्या करने से जिस पुण्य की प्रप्ति होती है| वह पुण्य भक्ति पूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है| मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत करने से कई पीढियों के पाप दूर होते है| 

सफला एकादशी की व्रत विधि-

सफला एकादशी के व्रत में देव श्री विष्णु का पूजन किया जाता है| जिस व्यक्ति को सफला एकाद्शी का व्रत करना हो व इस व्रत का संकल्प करके इस व्रत का आरंभ नियम दशमी तिथि से ही प्रारम्भ करे| व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए| इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए| भोजन में उसे नमक का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए| इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर माथे पर श्रीखंड चंदन अथवा गोपी चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें और और भगवान को भोग लगायें| इस दिन भगवान नारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है| ब्राह्मणों तथा गरीबों, को भोजन अथवा दान देना चाहिए| इस व्रत में रात्रि जागरण का बहुत ही महत्व है इसलिए व्रती को चाहिए कि वह रात्रि में कीर्तन पाठ आदि करे| यह एकादशी व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता प्रदान कराती है| 

सफला एकादशी की कथा-


एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा: प्रभु! पौष मास के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है? यह बताइये ।

भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा: राजन सुनो! बड़ी बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। पौष मास के कृष्णपक्ष में ‘सफला’ नाम की एकादशी होती है। उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है।

राजन् ! ‘सफला एकादशी’ को नाम मंत्रों का उच्चारण करके नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा तथा जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों और धूप दीप से श्रीहरि का पूजन करे। ‘सफला एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है। रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता।

नृपश्रेष्ठ ! अब ‘सफला एकादशी’ की शुभकारिणी कथा सुनो। चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी । राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे । उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था । परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था । उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया । वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था । अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया । लुम्भक गहन वन में चला गया । वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया । किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा । उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था । उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था । पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।

एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया । पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा । उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला । वह निष्प्राण सा हो रहा था । सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया । वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था । राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया| उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार ! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता ।

राजन् ! इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है । संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है । महाराज! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है ।

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....यहां से कोई भी शनि भक्त नहीं लौटता निराश!

शनि एक ऐसा नाम है जिसे पढ़ते-सुनते ही लोगों के मन में भय उत्पन्न हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शनि की कुद्रष्टि जिस पर पड़ जाए वह रातो-रात राजा से भिखारी हो जाता है और वहीं शनि की कृपा से भिखारी भी राजा के समान सुख प्राप्त करता है। यदि किसी व्यक्ति ने कोई बुरा कर्म किया है तो वह शनि के प्रकोप से नहीं बच सकता है। लेकिन अभी स्थान बताने जा रहा हूँ वहाँ पहुंचकर यदि कच्चा धागा बाँधा जाए तो शनि के प्रकोप से तो बच ही सकते हैं साथ साथ शनि महाराज का वरदान भी प्राप्त कर सकते हैं|

आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के महाकाल मंदिर में शनिदेव का ऐसा मंदिर है, जहां खंभों पर कच्चा धागा बांध दिया जाए तो न केलव शनि प्रकोप कट जाता है बल्कि विपरीत ग्रह स्थिति से भी मुक्ति मिल जाती है| हिमाचल प्रदेश के महाकाल गांव में बने शनिदेव के मंदिर में हर राशि का एक खंभा है| मान्यता है कि कोई भी भक्त सच्चे दिल से यदि इन खम्भों पर कच्चा धागा बांधकर कामना मांगता है तो उसे शनिदेव कभी भी निराश नहीं लौटाते हैं| 

कहते हैं इसी मंदिर में आकर शनि ने महाकाल की आराधना कर उनसे शक्तिशाली होने का वरदान पाया था| यहीं पर शनिदेव की इच्छा पूरी हुई थी, इसलिए यहां शनिदेव भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं| भक्तों को यकीन है कि मंदिर में पूजा करने और शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाने से सात हफ्तों में साढ़ेसाती से छुटकारा मिल जाता है| यही नहीं ग्रहों की टेढ़ी चाल से भी मुक्ति मिलती है| लेकिन जिस ग्रह की टेढ़ी चाल से छुटकारा पाना हो उस राशि के दिन आकर कच्चा धागा बांधना होता है, फिर शनि के साथ ग्रहों की बिगड़ी चाल का भी निवारण हो जाता है|

शनिदेव सूर्य और छाया के पुत्र हैं, लेकिन रंग-रूप बिल्कुल अलग| सूर्य एकदम चमकते-दमकते वहीँ शनि एकदम काले उसपर उनका क्रोधी स्वभाव| सूर्यदेव को संदेह हो गया कि क्या वाकई शनि उनके पुत्र हैं, उनके इस शक को देवताओं ने और बढ़ाने का काम किया| पति के इस आरोप से छाया व्यथित हो उठीं| सूर्यदेव ने पुत्र सहित छाया का त्याग कर दिया| कहते हैं बड़े होने पर जब शनि ने मां से अपने पिता के बारे में पूछा तो छाया ने पूरी कहानी बताई|

शनि के लिए ये एक ऐसी मुश्किल की घड़ी थी, जिसका समाधान करना उनके जीवन का सबसे बड़ा मकसद बन गया| कहते हैं जब शनिदेव ने हिमाचल प्रदेश के इसी महाकाल मंदिर में आकर शिव की आराधना की और घनघोर तप किया| शनि की पूजा और आंसुओं ने महाकाल को पिघला दिया| महाकाल के आशीर्वाद ने शनिदेव को इतना शक्तिशाली बना दिया कि इंसान क्या देवता भी उनसे खौंफ खाते हैं| इतना ही नहीं महाकाल ने सूर्य देव को भी ये विश्वास दिला दिया कि शनि उन्हीं के पुत्र हैं| उसी दिन से इस धाम में शिव और शनिदेव की एक साथ पूजा की जाती है|

वहीँ, यदि मध्य प्रदेश के इंदौर में शनिदेव मंदिर की बात करें तो यहाँ पर तेल नहीं बल्कि दूध चढ़ाया जाता है| यह सुनकर आपको अचम्भा जरुर लगा होगा लेकिन यह सौ फीसदी सच है| इंदौर के जूना में एक शनिदेव का ऐसा मंदिर है जहाँ शनि को तेल नहीं बल्कि उनका दुग्धाभिषेक किया जाता है| इतना ही नहीं यहां शनि देव को सुंदर वस्त्रों एवं मालाओं से भी सजाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। 

स्थानीय लोगों का मानना है कि यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है। इस मंदिर में शनि देव की प्रतिमा के विषय में कथा है कि, शनि देव ने एक अंधे व्यक्ति को सपने में आकर अपनी प्रतिमा के विषय में बताया। जब वह व्यक्ति शनि देव द्वारा बताये गये स्थान पर पहुंचा तब उसकी आंखों की रोशनी लौट आयी और गांव वालों की मदद से प्रतिमा को मंदिर में लाया गया। 

वही स्थानीय लोग शनिदेव का दूसरा चमत्कार यह बताते हैं कि प्रतिमा मंदिर में स्थापित करने के कुछ दिनों बाद शनि जयंती के दिन यह प्रतिमा अपने स्थान से हटकर दूसरे स्थान पर पहुंच गयी। वर्तमान में यह प्रतिमा उसी स्थान पर है। जहां पहले शनि की प्रतिमा स्थापित की गयी थी उस स्थान पर अब राम जी की प्रतिमा स्थापित है। 

यहाँ के एक व्यक्ति ने बताया है कि इस मंदिर में प्रत्येक शनिवार, अमवस्या, ग्रहण और शनि जयंती के दिन बड़ी संख्या में लोग शनि देव के दर्शनों के लिए आते हैं। शनि जयंती के अवसर पर यहां एक हफ्ते का मेला लगता है और लोग शनि देव की पूजा अर्चना करके शनि दोष से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

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2013: बॉलीवुड अभिनेत्रियां जिन्होंने अपनी प्रस्तुतियों से पर्दे पर फैला दी सनसनी

लोग कहते हैं कि बॉलीवुड पुरुषों की दुनिया है| लेकिन इस साल दीपिका पादुकोण और सोनम कपूर सरीखी अभिनेत्रियों ने अपनी प्रस्तुतियों से पर्दे पर सनसनी फैला दी| वहीं, निमरत कौर और हुमा कुरैशी सरीखी अन्य अदाकाराओं ने नॉन-कॉमर्शियल फिल्मों में अपने अभिनय कौशल से प्रभावित किया|

वर्ष 2013 में अपनी भूमिकाओं से प्रभावित करने वाली ऐसी ही बॉलीवुड अभिनेत्रियों को सूचीबद्ध किया है|

दीपिका पादुकोण : वर्ष 2013 में दीपिका ने एक के बाद एक चार सफल फिल्में दीं. उनकी 'रेस 2', 'ये जवानी है दीवानी', 'चेन्नई एक्सप्रेस' और 'गोलियों की रासलीला राम-लीला' एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा थीं| इन फिल्मों ने न केवल इस अभिनेत्री की बहुमुखी प्रतिभा को साबित किया, बल्कि हिंदी फिल्मोद्योग में उनके पैर भी जमा दिए| इस साल उनकी सभी फिल्मों ने 100 करोड़ (रुपये) क्लब में जगह बनाई|

सोनम कपूर : 'रांझणा' और 'भाग मिल्खा भाग' से सोनम ने अभिनय में कुशलता को साबित कर दिखाया है| 'रांझणा' में उनके अभिनय कौशल की तारीफ की गई, वहीं 'भाग मिल्खा भाग' में भी वह अपनी भूमिका से प्रभावित करने में कामयाब रहीं|

दिव्या दत्ता : यह एक ऐसी अभिनेत्री हैं जिनकी आभा सितारों से परिपूर्ण किसी भी फिल्म में स्वयं ही उभरकर सामने आ जाती है. फिर चाहे वह 'भाग मिल्खा भाग' हो 'जिला गाजियाबाद' हो या 'लुटेरा' ही हो. दिव्या ने अपनी सहायक भूमिकाओं से ही नाम बना लिया|

हुमा कुरैशी : वर्ष 2012 में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने के बाद हुमा ने फिल्म दर फिल्म अभिनय का लोहा मनवाया. इस साल उन्होंने दर्शकों को 'एक थी डायन' में अपने अलौकिक अवतार से लुभाया. वहीं, 'डी-डे' में एक साहसिक विस्फोटक विशेषज्ञ की भूमिका निभाई|

कंगना रनौत : फिल्म में भूमिकाएं चुनने के मामले में कंगना हमेशा से ही साहसी रही हैं. यह बात उन्होंने रोमांच से भरपूर फिल्म 'क्रिश 3' में 'काया' और 'रज्जो' में एक नर्तकी की भूमिका निभा साबित कर दी है. उन्होंने 'शूटआउट एट वडाला' में भी अपनी छाप छोड़ी|

निमरत कौर: 'द लंचबॉक्स' में उन्होंने क्या रहस्योद्घाटन किया. इस अद्वितीय पटकथा वाली फिल्म में उन्होंने एक ऐसी महिला की भूमिका निभाई जिसे अधिकांश अभिनेत्रियां करने से कतराएंगी|

ऋचा चड्ढा : इस 'भोली पंजाबन' ने इस साल 'फुकरे', 'शॉर्ट्स' और 'गोलियों की रासलीला राम-लीला' सरीखी फिल्मों से दर्शकों और फिल्म समीक्षकों से खूब तारीफें बटोरीं|

शिल्पा शुक्ला : शिल्पा बड़े पर्दे पर मजबूत पकड़ बना सकती हैं और यह बात उन्होंने फिल्म 'चक दे इंडिया' में स्वयं साबित कर दी. इस साल उन्होंने 'बी.ए. पास' में विवाहेतर संबंध रखने वाली एक गृहिणी की भूमिका निभाई|

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जाने मेष राशि के जातकों के लिए कैसा रहेगा वर्ष 2014

मेष का अर्थ है मेंडा (नर भेड़) इस राशि के तारों को मिलाकर यदि काल्पनिक रेखाएं खिंची जाएँ तो मेंढे का रूप बनता है| इसलिए इसका नाम मेष है | यह काल पुरुष का मस्तक है| मेष राशि वाले जन्म से ही भाग्यशाली होते हैं क्योंकि इनकी राशि में शुक्र ग्रह धन का नैसर्गिक स्वामी है, सूर्य, शिक्षा का स्वामी है, बृहस्पति भाग्य का स्वामी और शनि व्यवसाय और लाभ स्थान का स्वामी है| आप शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत रहेंगे, लेकिन आपने जो हासिल किया है उससे आप थोड़े बेचैन और असंतुष्ट भी हो सकते हैं| आप अधिकतर बेहतरीन और साहसिक अवसरों की तलाश में रहेंगे| अपने बुद्धिबल और सूझबूझ के चलते कुछ भाग्यवर्धक घटनाएं मेष राशि को उत्साहित करेंगी। आपकी राशि में अष्टम भाव का स्वामी भी मंगल है जिस कारण आप अत्यधिक क्रोधित स्वभाव के हो सकते हैं| बुध आपकी राशि में स्थित होकर आपके व्यक्तित्व पर कम से कम प्रभाव डालता है, जिस कारण आप स्वभाव से स्पष्टवादी होंगे तथा धूर्तता से बचेंगे| वर्ष 2014 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ हम लाए है आपका “राशिफल 2014”। यद्यपि कहा गया है समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। लेकिन यदि हम यह पहले से जान लें हमारे साथ यह सुखद घटना घटने वाली है तो उसके स्वागत की तैयारियां करके उस घटना को और बेहतरीन बना सकते हैं वहीं यदि हमारे साथ कोई अप्रिय घटना घटने वाली हो और हम इस बारे में पहले से जान जाएं तो उसके बचाव का उपाय करके कम से कम हम उस घटना की परिधि को तो कम कर ही सकते हैं। और इस काम में राशिफल का बहुत बड़ा योगदान देखा गया है। इसीलिए हम लाए हैं आपके लिए राशिफल 2014। तो आइए जानते हैं कि यह वर्ष आपके लिए क्या कुछ लाया है। और सबसे पहले बात करते हैं मेष राशि के जातकों की 

मेष राशिफल के जातकों के लिए पारिवारिक मामलों के लिए यह साल मिला जुला रहेगा। साल के पहले भाग में अधिक भाग दौड़ के कारण आप परिजनों को अधिक समय नहीं दे पाएंगे। साथ ही सप्तम भाव में स्थित राहु और शनि निजी जीवन में कुछ हद तक कटुता घोलने का प्रयास कर सकते हैं। ऐसे में संयम और समझदारी से काम लेकर आप परेशानियों को टाल सकते हैं। कुछ पारिवारिक कार्य ऐसे भी होंगे जिन्हें करेगें तो आप लेकिन श्रेय किसी और को मिल सकता है। इस समय आत्म निर्भरता बहुत जरूरी होगी क्योंकि मित्र और सहयोगी जन आपको उतना समय नहीं दे पाएंगे जितना आप उम्मीद कर रहे हैं। हो सकता है कि आप किसी पारिवारिक व्यक्ति के बर्ताव में कुछ अंतर महसूस करें। अत: आत्म निर्भर रहना ही ठीक होगा।

मेष राशि वाले जातकों का कैसा रहेगा जनवरी से मार्च तक सफ़र- 

इस राशि के जातकों के लिए प्रथम तिमाही अनुकूल फल देने वाली है| आपके प्रयासों में भी तेजी बनी रह सकती है| इस अवधि के दौरान आपको अपने संबंधियों से भी आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं| पिता की ओर से अथवा संतान पक्ष की ओर से भी धन की आमद बनी रह सकती है| अपने काम में आपको कुछ अच्छे लाभ मिल सकते हैं या अचानक से कुछ धन की प्राप्ति भी हो सकती है| यदि आपका कोई काम विदेशों से जुडा़ हुआ है तो आप को बाहरी स्त्रोतों से भी धन की प्राप्ति हो सकती है पर तिमाही के अंत में आपके कार्यों में कुछ सुस्ती आ सकती है या हो सकता है कि आपके प्रतिद्वंदी आपको परेशान करने का प्रयास करें इसलिए आपको सचेत रहने की आवश्यकता है| मेष राशि के जातकों के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से यह तिमाही अनुकूलता में कमी लाने वाली रह सकती है. इस समय के दौरान आपको स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से होकर गुजरना पड़ सकता है क्योंकि आपके राशि स्वामी मंगल छठे भाव में गोचर कर रहे हैं| बीमारी के संदर्भ में कुछ अनिश्चितता की स्थिति भी बनी रह सकती है| हो सकता है कि रोग पकड़ में न आ पाए इसलिए आपको अन्य चिकित्सक से भी परामर्श ले लेना चाहिए| वहीँ, विद्यार्थियों के लिए यह तिमाही सामान्य ही बनी रह सकती है. शिक्षा द्वारा आप अपने कार्यों को उच्च स्तर का रूप देंगे| आपके लिए तिमाही का आरंभ पढा़ई के क्षेत्र में काफी कुछ बेहतर रहने वाला है| अपनी पढाई में आप पूर्ण मन लगाकर ध्यान देंगे. आप यदि किसी प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं तो आपको अच्छे फल मिलने की संभावना बनती है. तिमाही मध्य के दौरान एकाग्रता में कमी आ सकती है जिस कारण भटकाव की स्थिति उभर सकती है| व्यापार से जुडे़ लोगों के लिए यह समय अनुकूल नहीं है. इस समय आपको अपने काम पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता रहेगी| आप अपने प्रयासों में भी कुछ कमी का अनुभव कर सकते हैं| तिमाही के आरंभ में आप अपने व्यवसाय में कुछ कुचालें भी चल सकते हैं कूटनीति के साथ काम ले सकते हैं| तिमाही मध्य में साझेदारी में व्यवसाय करने पर आपको अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होगी क्योंकि इस समय आपको साझेदारी में घाटा उठाना पड़ सकता है या आप पर कोई लांछन भी लगा सकता है|

मेष राशि वाले जातकों का कैसा रहेगा अप्रैल से जून तक का सफ़र-


मेष राशि के जातकों के लिए यह तिमाही आर्थिक दृष्टिकोण से मिले जुले फल देने वाली रह सकती है| इस तिमाही के आरंभ में अपको लाभ के साथ साथ खर्चों की स्थिति का सामना भी करना पड़ सकता है| आप के लिए धन दायक स्थिति बन रही है जिससे आपकी योजनाएं पूर्ण हो सकेंगी| इस समय आपको परिवार की ओर से कुछ धन लाभ हो सकता है या कोई सहायता प्राप्त हो सकती है| इस समय जीवन साथी का सहयोग आपकी आर्थिक स्थिति के लिए सहायक होगा| परिवार मे मांगलिक कार्य सम्पन्न होने का पूर्ण योग है। आडम्बर विहीन धार्मिक आस्था के पक्षधर होंगे। जीवन साथी से बातचीत के दौरान सतर्क रहकर पारिवारिक जीवन संभाल सकते हैं। चोट-चपेट से सजग रहें। इसके अलावा आय और व्यय का असन्तुलन मानसिक तनाव की रुपरेखा निर्धारित करेगा। रचनात्मक दिशा मे किये गये प्रयास सार्थक सिद्ध होंगे| तिमाही का मध्य भाग आपके खर्चों में वृद्धि करने वाला रह सकता है| आप अपने घर की साज सज्जा पर कुछ धन खर्च कर सकते हैं| इसके अतिरिक्त आपका जीवन साथी भी अपने लिए कीमती वस्तुओं की खरीद कर सकता है और अपने लिए सौंदर्य प्रसाधनों की चाह रहेगा जिसके लिए कुछ धन का व्यय बना रहेगा| अप्रिय बचन बोलने से परहेज करना आपको पारिवारिक कठिनाइयों से बचा सकता है। खान-पान मे तीखे, कसैले पदार्थ ही रुचिकर प्रतीत होंगे। मेष राशि के जातकों के लिए यह तिमाही का समय कैरियर की दृष्टि से साधारण ही बना रहेगा. इस समय आप अपने काम में कुछ नई योजनाएं बना सकते हैं. आप इस समय के दौरान अपनी वाक पटुता द्वारा कुछ परेशानी का सामना भी कर सकते हैं| इस समय आपको चाहिए कि आप जो भी काम करें उसे सोच विचार करके ही आगे बढ़े क्योंकि जल्दबाजी मे लिए गए फैसले आपको भ्रमित भी कर सकते हैं. आपको चाहिए की आप अपने कार्यक्षेत्र में किसी से व्यर्थ की तकरार न करें और मतभेदों को पनपने का मौका न दें अन्यथा आपको उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है| वहीँ, शिक्षार्थियों के लिए तिमाही का आरंभ भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने वाला रह सकता है. बच्चों में अपनी पढाई को लेकर एकाग्रता में कमी आ सकती है| मौज मस्ती में इनका मन अधिक लगेगा| बुध के नीच राशि में होने के कारण शिक्षा की ओर से ध्यान हटने की संभावनाएं प्रबल बन रही हैं. यदि आपने कुछ सुधार करने की कोशिश नहीं की तो आपके परिणाम भी प्रभावित होंगे|

मेष राशि वाले जातकों का कैसा रहेगा जुलाई से सितम्बर तक का सफ़र-


इस राशि के जातकों के लिए आर्थिक दृष्टि से यह तिमाही अनुकूल फल देने वाली कही जा सकती है| इस समय आपकी आय के स्तोत्र बढ़ने की संभावना बनती है| वहीँ, तिमाही के मध्य भाग में आप अपने भाई बहनों की सहायता भी कर सकते हैं या उनके लिए आपको कुछ धन खर्च करना पड़ सकता है| इस समय आपके शत्रु भी आपको इस ओर से परेशान करने की कोशिशों में लगे रह सकते हैं| वहीँ तिमाही के अंत में आपके भाई-बहन भी आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं ओर यह लाभ किसी भी रुप में आपके लिए उपयोगी हो सकता है| यदि आप विदेशों से जुड़े हैं तो इस समय आपको वहां से लाभ की प्राप्ति हो सकती है| वहीँ कैरियर के दृष्टिकोण से यह तिमाही आपके लिए अनुकूल हो सकती है| तिमाही का आरम्भ समय आपको अपने काम में जो भी रूकावटें आ रही थीं वह अब काफी हद तक समाप्ति की ओर अग्रसर रहेंगी. पहले वाली निराशा अब ओर अधिक परेशान नहीं कर पाएगी तथा आप अपनी मेहनत द्वारा सफल रहेंगे| व्यापार से जुड़े लोगों के लिए यह समय खूब मेहनत करने का है जिससे उन्हें आगे अच्छे फल मिल सकेंगे| इस समय साझेदारी में काम करने का यदि विचार है तो सर्वप्रथम आप सभी बातों का पूर्ण रूप से ध्यान रखें. आपको अपने साथी से भी इस समय काम में मदद मिल सकती है जिससे कि आप आगे बढ़ सकें| कैरियर के दृष्टिकोण से यह तिमाही अनुकूल हो सकती है| तिमाही का आरम्भ समय आपको अपने काम में जो भी रूकावटें आ रही थीं| वह अब काफी हद तक समाप्ति की ओर अग्रसर रहेंगी| पहले वाली निराशा अब ओर अधिक परेशान नहीं कर पाएगी तथा आप अपनी मेहनत द्वारा सफल रहेंगे| इस अवधि के दौरान आपको अपने प्रतिद्वंद्वियों द्वारा रूकावटों का सामना भी करना पड़ सकता है| स्वास्थ्य की दृष्टि से यह तिमाही आपके लिए मिलेजुले फल देने वाली रह सकती है| अत्यधिक भागदौड़ होने के कारण आपको थकावट का अनुभव हो सकता है जिस कारण आपका मन भी उचाट रह सकता है इसलिए काम के दौरान अपनी सेहत की अवहेलना न करें| राहु और मंगल की स्थिति तिमाही के आरंभ में आपके स्वभाव में क्रोध की अधिकता दे सकती है इसलिए आपको चाहिए की व्यर्थ में क्रोध न करें और स्वयं को शांत रखने का प्रयास करें| आपके स्वभाव में आया चिड़्चिडा़पन दूसरों को आपसे दूर कर सकता है| यह तिमाही परिवार के लिए सामान्य रह सकता है| भाई-बहनों के साथ आपके संबंध अनुकूल रह सकते हैं तथा आप उनकी सहायता के लिए पूर्ण तत्पर बने रहेंगे| आपको इस समय अपने पिता द्वारा प्रेम की प्राप्ति हो सकती है माता का सहयोग भी आपके लिए बना रहेगा| किसी न किसी रूप से आपको अपनी पैतृक संपत्ति से भी कुछ लाभ की प्राप्ति हो सकती है मध्य भाग में घर पर कोई कार्यक्रम आयोजित हो सकता है अथवा घर पर धार्मिक गतिविधियां तेज हो सकती है. जिन लोगों के विवाह के विषय में कोई चर्चा हो रही हो तो उन्हें उसमें कुछ हद तक सफलता मिल सकती है| तिमाही का आरंभ यात्राओं में लगा रह सकता है. इस समय आप अपने काम के सिलसिले में या अन्य किसी प्रयोजन के निमित्त यात्राएं कर सकते हैं तिमाही के मध्य के दौरान आप अपने परिवार के साथ कहीं धर्म स्थल की यात्राओं पर जा सकते हैं. इस समय आपका रूझान भी इस ओर लगा रह सकता है|

मेष राशि वाले जातकों का कैसा रहेगा अक्टूबर से दिसम्बर तक का सफ़र-


मेष राशि के जातकों के लिए तिमाही की शुरूआत अच्छी ना रहने के योग बन रहे हैं| इस समय पैसों के मामले में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है| आपका धन आपके गलत प्रयासों में व्यर्थ हो सकता है| इस समय आपके खर्चे बने रहेंगे इसलिए इस समय आपको अत्यधिक सचेत रहने की आवश्यकता है| आप अपने शत्रुओं से घाटा उठा सकते हैं या आपके पैसे किसी प्रकार के जुए इत्यादि में भी लग सकते हैं इस तिमाही में जीवन साथी का सहयोग और सानिध्य से ग्रहस्थ जीवन बेहतर प्रतीत होगा। विरोधियों पर आप द्वारा दमनात्मक कार्यवाही बेहद कारगर सिद्ध हो सकती है। भोजन व्यवस्था मे विधिवता के साथ विस्तार भी होगा। संतान पक्ष की जरुरते चिन्ता बढ़ा सकती है। तिमाही के पहले सप्ताह मे व्यापारिक कार्यक्रमो मे आपेक्षित प्रगति होगी। आपकी जीवन साथी की स्वच्छ सोच और निर्मल मानसिकता के चलते आपका पारिवारिक जीवन बचा रहेगा। विरोधियों की सक्रियता आपको मानसिक रुप से परेशान कर सकती है। इसके अलावा दिसंबर ममह में प्रबल धार्मिकता का वातावरण बनता प्रतीत होगा। तिमाही भाग के मध्य समय में आपको अपने जीवनसाथी की ओर से कुछ सहायता प्राप्त हो सकती है परंतु यह राहत अधिक देर तक आपके लिए शायद न रह पाए क्योंकि ग्रहों की स्थिति के अनुरूप आप किसी बुरी आदतों के कारण भी अपना धन व्यर्थ में गंवा सकते हैं. आपका अधिकतर धन अनैतिक कार्यों की ओर भी लग सकता है| आप जुआ, सट्टा अथवा नशीले पदार्थों की ओर भी आकर्षित होकर अपना समय और धन दोनों ही खराब कर सकते हैं. परंतु आपका साथी आपके लिए सहारा बनकर उभर सकता है| इस तिमाही मानसिक परेशानी तो आपको बनी ही रह सकती है| इस व्यर्थ की परेशानी से आप स्वयं को दूर ही रखे तो अच्छा होगा. मध्य भाग में आपका मनोबल ऊँचा रह सकता है और मानसिक परेशानियाँ भी दूर रह सकती हैं| अपने प्रयासों को करते रहना चाहिए| जिनके व्यवसाय का संबंध विदेशों से है उन्हें लाभ मिल सकता है| प्रेम संबंध के लिए यह समय मिले-जुले फल देने वाला रह सकता है. इस समय आपको अपने प्रेमी का पूर्ण साथ नही मिलेगा या उसके साथ में कमी का अनुभव हो सकता है. आप संबंधों के टूटने का दर्द भी सह सकते हैं| तिमाही के मध्य भाग में जो आपने गलतियां की हैं अथवा प्रेम की कमी सही है उसमें यह समय कुछ राहत देने वाला रह सकता है| स्वास्थ्य के नजरिये से इस तिमाही में सेहत पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है| आपको चाहिए कि आप किसी भी बुरी लत से दूर रहें और किसी भी प्रकार के नशे को अपना साथी न बनने दें क्योंकि तिमाही के शुरूआती दौर में आप कुछ मादक द्रव्यों के सेवन की लत से परेशान हो सकते हैं और यह कारण आपकी सेहत के लिए बहुत खराब रह सकता है| आपको मानसिक चिंता और अवसाद की शिकायत रह सकती है| नौकरी पेशा लोगों के लिए यह तिमाही का आरंभिक दौर परेशानियों वाला रह सकता है| इस समय नीच के शुक्र के साथ सूर्य और राहु की स्थिति काम काज में व्यवधान देने वाली रह सकती है| सहयोगियों का आपको अधिक साथ नही मिलेगा या वह किसी न किसी प्रकार से आपके लिए समस्याएं पैदा कर सकते हैं| आप शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत रहेंगे, लेकिन आपने जो हासिल किया है उससे आप थोड़े बेचैन और असंतुष्ट भी हो सकते हैं|

स्वास्थ्य की दृष्टि से कैसा रहेगा वर्ष 2014 


मेष राशि के जातको के प्रथम भाव में स्थित केतू जुलाई के महीने तक बीच-बीच में आपके स्वास्थ्य को नरम-गरम रख सकता है अत: खान-पान पर संयम रखना बहुत जरूरी होगा क्योकि आपके स्वास्थ्य को सबसे ज्यादा खतरा फूड पाइजनिंग के कारण होगा। हालांकि जुलाई से लग्न पर से राहु केतु का प्रभाव समाप्त होने वाला है अत: आपके स्वास्थ्य में बेहतरी आएगी। राशिफल 2014 के अनुसार फिर भी शनि की सप्तम में उपस्थिति को देखते हुए संयमित दिनचर्या जरूरी होगी और स्वास्थ्य को स्वस्थ बनाए रखने के लिए जहां तक सम्भव हो गैर जरूरी यात्राओं से बचें। वहीँ आर्थिक स्थिति के तौर पर आपका यह साल देखा जाए तो सामान्य तौर पर इस वर्ष आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहने वाली है। बचत करने में भी आप सफल रहेंगे। अप्रत्यासित ढंग से भी धन की प्राप्ति हो सकती है। लेकिन यदि आप जुआं, लाटरी आदि के माध्यम से कमाई करते हैं तो इनमें बडा निवेश करने से बचें। साथ ही पैसों की सुरक्षा को लेकर चिंतन करें अन्यथा कुछ धन व्यर्थ में खर्च हो सकता है या खो सकता है। कुछ घरेलू सामानों जैसे कि वाशिंग मसीन और फ़्रीज आदि की खरीददारी में भी धन खर्च हो सकता है। फ़िर भी आर्थिक मामलों के लिए वर्ष शुभ कहा जाएगा।

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार 

बांके बिहारी को सर्दी न लग जाए इसलिए हो रही हिना और केसर की मालिश

जहाँ एक ओर भगवान श्रीराम की नगरी आयोध्या से खबर मिल रही है कि भगवान को ठंड से बचाने के लिए दिन में गर्म साल व रात में रेशमी रजाई ओढ़ाई जा रही है इसके अलावा भगवान को गर्म पानी से नहलाया जा रहा है| वहीँ दूसरी ओर वृन्दावन से भी खबर आ रही है ठाकुर बांके बिहारी को सर्दी न लग जाए इसलिए हर दिन इत्र मिलाकर हिना और केसर की मालिश हो रही है। नमी वाले फूलों को दूर रखा जाता है। बांके बिहारी ने गले में माला पहनना भी बंद कर दिया है।

सेवायत शालू गोस्वामी ने बताया कि होली के बाद फुलैरा दूज तक ठाकुर जी को गुलाब, कमल जैसे ज्यादा नमी वाले फूलों से बचाया जाता है। दीपावली के बाद जब तक गर्मी का प्रभाव न बढ़ जाए, तब तक उनको नम फूलों की माला नहीं पहनाई जाती, और न फूल चढ़ते हैं। सेवायतों के अनुसार ठाकुरजी को अर्पित करने के लिए अमेरिका, कनाडा, नेपाल, हांगकांग और सिंगापुर से गुलदार, अष्टर, वेगवेल, सोनार, कुंडेस के फूल मंगाए जाते हैं। 

बांके बिहारी मंदिर के वरिष्ठ सेवायत स्वामी अनिल गोस्वामी ने बताया कि पांच दशक पुरानी परंपरा के अनुसार बिहारी बगीचा से फूल चुनकर बेरीवाला परिवार के सदस्य गुंजा बनाकर रोजाना भेजते हैं। वहीं गर्मी के मौसम में ठाकुरजी को यह सुबह और शाम चढ़ाया जाता है। जाड़े के मौसम में गुंजा बंद कर दिया जाता है। शीतऋतु में चरणों और देहरी पर चढ़ते पुष्प और तुलसी दल।

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ओलम्पिक के सत्ताकेंद्र में बड़ा बदलाव

वर्ष 2013 में खेल जगत में अनेक बदलाव देखने के मिले, लेकिन सबसे बड़ा बदलाव ओलम्पिक में देखने को मिला। लगभग एक दशक बाद ओलम्पिक की सत्ता में तब बदलाव देखने को मिला जब थॉमस बाख को अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) का नया अध्यक्ष चुना गया। बाख ने जैक्स रोगे की जगह ली। जर्मनी के 59 वर्षीय बाख ने सितंबर में ब्यूनस आयर्स में हुए गुप्त मतदान में पांच प्रत्याशियों के बीच भारी अंतर से जीत दर्ज की। बाख के चुनाव ने विश्व खेल जगत को यह संदेश दिया कि रोगे के पिछले 12 वर्षो के कार्यकाल के दौरान जिस तरह ओलम्पिक विश्व का शीर्ष खेल संगठन रहा, उसी तरह आगे भी यह बना रहेगा और इसीलिए सदस्यों ने ओलम्पिक की सत्ता सुरक्षित हाथों में सौंपी।

2001 में जुआन एंटोनियो समारांच की जगह ओलम्पिक समित के अध्यक्ष बने रोगे ने वोट के लिए रिश्वत मामला प्रकाश में आने के बाद धूमिल हुई ओलम्पिक की गरिमा को 2002 में साल्ट लेक सिटी में हुए ओलम्पिक तक फिर से बहाल करने का कार्य किया। इस विवाद के कारण ही समारांच को ओलम्पिक अध्यक्ष पद गंवानी पड़ी। रोगे ने खेल में डोपिंग और खेल की आचार संहिता के उल्लंघन पर सख्ती बरती, तथा 2010 में यूथ ओलिम्पक की शुरुआत की। रोगे ने ओलम्पिक की वित्तीय स्थिति में भी सुधार किया।

रोगे के मार्गदर्शन में आईओसी ने नए मेजबान को ओलम्पिक आयोजन करने का मौका दिया, जिसमें ओलम्पिक-2016 की मेजबानी रियो डी जनेरियो को दिया जाना भी शामिल है। बेल्जियम के रोगे ने ओलम्पिक को काफी मजबूत स्थिति में ला दिया है, लेकिन नौंवे अध्यक्ष बाख के लिए करने को बहुत कुछ बाकी है।

बाख के लिए अभी अगले वर्ष फरवरी में होने वाले सोची ओलम्पिक को सफलतापूर्वक संपन्न कराना प्राथमिकता में सबसे ऊपर होगा। हालांकि रूस में हाल ही में नाबालिगों के बीच समलैंगिकता का प्रचार करने पर लगाए गए प्रतिबंध को लेकर ओलम्पिक समिति को पश्चिमी देशों की आलोचना झेलनी पड़ी। पश्चिमी देशों को इससे ओलम्पिक के दौरान समलैंगिक खिलाड़ियों एवं दर्शकों के प्रभावित होने की आशंका है।

आईओसी ने हालांकि कहा है कि उसने रूस सरकार से यह आश्वासन ले लिया है कि वह ओलम्पिक चार्टर का सम्मान करेगा तथा ओलम्पिक के दौरान सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों के विशेष जोन स्थापित करेगा। बाख ने कहा, "हम इसका स्वागत करते हैं। यह एक ऐसा जरिया है जो लोगों को अपने विचार स्वतंत्रतापूर्वक प्रकट करने का अवसर देता है।"

दूसरी ओर रियो ओलम्पिक की तैयारियों में तीन वर्ष शेष रह गए हैं और इस दौरान ओलम्पिक आयोजन स्थलों के तैयार होने में हो रही देरी, ब्राजील के पर्यावरण से खिलाड़ियों एवं दर्शकों को होने वाली परेशानी एवं वित्तीय असंतुलन के बावजूद रियो ओलम्पिक की तैयारी समय पर पूरा कर लेने पर अडिग है।

बाख ने इस बीच चेतावनी भरे लहजे में कहा, "ब्राजील के पास ढील बरतने का अब समय नहीं रह गया है।" बाख ने कहा है कि वह अगले कुछ महीनों में ओलम्पिक की तैयारियों को लेकर ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा रोसेफ और रीयो ओलम्पिक के आयोजकों से मुलाकात करेंगे।

ओलम्पिक को लेकर हालांकि दूसरी दीर्घकालिक मुश्किलें भी हैं। आईओसी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती ओलम्पिक कार्यक्रमों में सुधार लाने, मेजबानों के लिए इसके आयोजन को सहज बनाने के साथ ही ओलम्पिक की आय को बरकरार रखने की है। इसके अलावा खेलों में डोपिंग एवं अन्य भ्रष्ट आचरणों पर लगाम लगाना भी आईओसी के लिए बड़ी चुनौती है।

रोगे ने ओलम्पिक रीव्यू के जुलाई-सितंबर संस्करण में हालांकि कहा था कि ओलम्पिक में अपनी पारंपरिकता को बरकरार रखने के साथ-साथ नए बदलाव के अनुकूल ढलने की क्षमता है। रोगे ने जोर देते हुए कहा था कि बदलावों को स्वीकार किए बगैर कोई भी संगठन अपना अस्तित्व बचाए नहीं रख सकता।

बाख ने अध्यक्ष बनने के लिए रखे गए अपने घोषणापत्र में कहा था कि अधिक से अधिक देशों को ओलम्पिक की मेजबानी में आगे आने के लिए आकर्षित करने के लिए वह ओलम्पिक कार्यक्रम और दावेदारी प्रक्रिया में बदलाव करेंगे।

इस दिशा में हालांकि तब वैश्विक खेल जगत में खलबली मच गई जब आईओसी ने बीते फरवरी में टोक्यो ओलम्पिक-2020 से कुश्ती को हटाने का फैसला ले लिया। हालांकि कुश्ती को सितंबर में दोबारा ओलम्पिक में शामिल कर लिया गया, लेकिन इसके स्वरूप में फिला को काफी परिवर्तन करने पड़े।

बाख ने अध्यक्ष बनने के बाद मेजबान शहर को अधिक सहूलियत देने, ओलम्पिक आयोजन का खर्च कम किए जाने और ओलम्पिक कार्यक्रम को अधिक रचनात्मक बनाए जाने के लिए पिछले सप्ताह ही आईओसी के सदस्यों के साथ 'ओलम्पिक एजेंडा-2020' पर विचार विमर्श किया। कुल मिलाकर ओलम्पिक के सत्ता परिवर्तन वाला यह वर्ष ओलम्पिक खेलों के लिए काफी विचार मंथन और बदलाव वाला साबित हो सकता है।

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ओबामा के लिए उथल-पुथल भरा रहा वर्ष 2013

भारत-अमेरिका संबंधों की ही तरह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए भी यह एक उथल-पुथल भरा साल रहा है। उन्होंने देश के बाहर कुछ सफलताएं जरूर हासिल की, लेकिन अपना महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य देखभाल कानून लागू नहीं करा पाए। 

ओबामा हालांकि यह स्वीकार नहीं करेंगे कि 2013 उनके कार्यकाल के लिए बुरा वर्ष था, क्योंकि वह परिवार के साथ हवाई में वार्षिक छुट्टियां मनाने चले गए हैं और उनके काम की सूची में शामिल आव्रजन सुधार से लेकर रोजगार और कर सुधार से लेकर बंदूक नियंत्रण जैसी योजनाएं फिलहाल ठंडे बस्ते में हैं।

यदि ओबामाकेयर की वेबसाइट का संकट खुद द्वारा पैदा किया गया था, तो वर्षात में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी को लेकर भारत के साथ पैदा हुए कूटनीतिक विवाद के कारण दोनों देशों के संबंधों को खतरा पैदा हो गया है, जिसे ओबामा ने 21वीं सदी की एक निर्णायक साझेदारी करार दिया है।

ओबामा ने जनवरी महीने में जब अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया था तो उस समय 55 प्रतिशत लोग उनके समर्थक थे, लेकिन सीएनएन/ओआरसी के एक नए अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण में आज उनकी लोक प्रियता में तीव्र गिरावट आई है और उनके समर्थकों की संख्या 41 प्रतिशत हो गई है। समर्थकों का मौजूदा प्रतिशत उनके पूर्ववर्ती जॉर्ज बुश के साथ मेल खाता है। 

ओबामाकेयर को लेकर हुई फजीहत के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के एडवर्ड स्नोडेन का मामला ओबामा के लिए एक दूसरा झटका रहा, जिसने देश-विदेश में अमेरिका की पोल खोलकर रख दी। बजट के मुद्दे पर सरकार की 16 दिनों की बंदी के बाद रिपब्लिकन पर जीत और रासायनिक हथियारों को नष्ट करने को लेकर सीरिया के साथ समझौता और परमाणु कार्यक्रम रोकने को लेकर ईरान के साथ समझौते से ओबामा अपनी पीठ थपथपा सकते हैं।

लेकिन अपने घरेलू एजेंडे को बचाने की कोशिश में भारत के साथ ओबामा के संबंध खराब हो गए। व्हाइट हाउस द्वारा समर्थित आव्रजन सुधार विधेयक को भारतीय आईटी कंपनियों के लिए स्पष्टरूप से भेदभावपूर्ण माना जा रहा है। इसके अलावा ईरानी प्रतिबंधों के कारण भी भारत प्रभावित हुआ है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सितंबर में ओबामा के साथ पाकिस्तान से पैदा हो रहे आतंकवाद पर हुई तीसरी शिखर बैठक, प्रथम व्यावसायिक ठेके के साथ भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते की सुरक्षा और रक्षा सहयोग को अग्रिम मोर्चे पर लाने से अच्छे दिन की आशाएं दोबारा जगीं। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। भारतीय विदेश सचिव सुजाता सिंह अमेरिका का अत्यंत उपयोगी और फलदायी दौरा पूरा कर लौटी ही थीं कि न्यूयार्क में एक दूसरी घटना घट गई।

मजेदार बात यह कि इस घटना के पीछे और कोई नहीं बल्कि भारत में पैदा हुए वाल स्ट्रीट के शेरिफ प्रीत भरारा थे। उन्होंने अगले ही दिन वीजा धोखाधड़ी और घरेलू नौकरानी को कम वेतन देने का आरोप लगाते हुए भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी करवा दी। इस घटना को लेकर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक विवाद पैदा हो गया, जो अभी तक सुलझ नहीं पाया है।

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कला उद्योग के लिए उतार-चढ़ाव वाला रहा वर्ष 2013

यह वर्ष अपने आखिरी पड़ाव पर है, तथा भारतीय कला जगत एवं उद्योग के लिए काफी उतार-चढ़ाव वाला साबित हुआ। वर्ष की शुरुआत भारतीय कला मेला (आईएएफ) के जरिए कला जगत के लिए सकारात्मक रही, और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खरीदारों से इसे काफी सराहना भी मिली। 

वर्ष के मध्य में रुपये की कीमत में डॉलर के मुकाबले आई भारी गिरावट के चलते कला उद्योग में भी गिरावट देखने को मिली, लेकिन बाद में इसे जबरदस्त बढ़त भी मिली। विश्वविख्यात नीलामीकर्ता 'क्रिस्टी' ने पहली बार भारत में कदम रखा और पहले ही नीलामी सत्र में एस. गायतोंडे की 1979 में बनाई गई पेंटिंग 23.7 करोड़ रुपये में खरीदी गई, जिसने भारतीय कला उद्योग में सकारात्मक रुझान बने रहने का संकेत दिया।

लंदन की इस नीलामी कंपनी का भारत में पदार्पण वास्तव में भारतीय कला जगत के लिए वर्ष की सबसे बड़ी घटना रही, तथा कंपनी के पहले नीलामी सत्र में आशा से दोगुनी कीमत (96.6 करोड़ रुपये) की कलाकृतियां बिकीं। क्रिस्टी के एशियाई कला जगत के अंतर्राष्ट्रीय निदेशक ह्यूगो वी ने बताया, "पिछले 10 वर्षो में हमारे भारतीय खरीदारों की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है। भारतीय खरीदारों ने विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों में रुचि दिखाई है। कला जगत में अन्य तेजी से विकास कर रहे बाजारों की ही भांति भारतीय कलाकृतियों की खरीदारी में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, लेकिन इस बार इसमें इसके अतिरिक्त भी वृद्धि देखी गई।"

वी ने आगे बताया, "हम मानते हैं कि भारत में कला बाजार तेजी से विकास कर रहा है, तथा यहां काफी संभावनाएं हैं। इसके अलावा हमें पूरा विश्वास है कि भारत, भारतीय संग्रहकर्ता और भारतीय कलाकृतियां बहुत जल्द अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे विकास में महत्वपूर्ण भागीदार बनेंगे।" एक तरफ भारतीय कला उद्योग में इस वृद्धि ने सकारात्मकता कायम रखी तो दूसरी ओर लंदन के कला उद्योग क्षेत्र में शोध करने वाली स्वतंत्र एजेंसी 'आर्टटैक्टिक' के निष्कर्ष इससे अलग हैं।

आर्टटैक्टिक के अनुसार, "भारतीय कला बाजार में पिछले छह महीने में आत्मविश्वास संकेतक में 13.6 फीसदी की कमी आई है। यह कमी पिछले 18 महीनों से लगातार सकारात्मक रुख बने रहने के बाद देखी गई।"

दिल्ली और लंदन में स्थित कला वीथिका संचालक कंपनी 'वढेरा आर्ट गैलरी' (वीएजी) के निदेशक अरुण वढेरा ने लेकिन उम्मीदें नहीं छोड़ी हैं। उनका कहना है कि वर्तमान भारतीय कला बाजार 65 अरब डॉलर के वैश्विक बाजार की तुलना में 40 करोड़ डॉलर वार्षिक का है। वढेरा ने बताया, "रुपये के कमजोर होने का भारतीय कला बाजार पर कोई असर नहीं पड़ा है। यह बहुत अलग बाजार है, जिसकी पूंजी इसका जुनून है। इसीलिए यहां बाहरी प्रभावों ने संग्रहकर्ताओं को प्रभावित नहीं किया।"

भारतीय कला मेला की संस्थापक निदेशक नेहा किरपाल ने कहा, "पिछले तीन वर्षो से लोगों में भारतीय कला बाजार को लेकर उम्मीदें बढ़ी हैं, तथा यह बहुत ही सकारात्मक है। जो भारतीय समकालीन कला बाजार के लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है।" युनाइटेड आर्ट फेयर के लिए यह वर्ष उतना भाग्यशाली नहीं रहा। 2.5 करोड़ रुपयों की कलाकृतियों से सजे इस कला मेला से सिर्फ 15 लाख रुपये कीमत की कलाकृतियां ही बिक सकीं।

युनाइटेड आर्ट फेयर के निदेशक अनुराग शर्मा ने बताया, "लोगों में थोड़ी हिचक थी। शायद गिरती अर्थव्यवस्था ने लोगों को कलाकृतियों के संग्रह से रोका। मुझे इस संदर्भ में कोई अंदाजा नहीं है। मेले में बिक्री बहुत कम रही।" क्रिस्टी के भारत में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद हालांकिभारतीय कला बाजार के ऊपर छाए सारे काले बादल छंट गए। वढेरा का कहना है कि कुल मिलाकर यह वर्ष भारतीय कला बाजार के लिए बहुत अच्छा रहा, तथा क्रिस्टी के पदार्पण से भारत के घरेलू बाजार को काफी प्रोत्साहन मिला है।

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विहंगावलोकन 2013: टीवी पर नायिकाओं का फैशनेबल रुझान

छोटे पर्दे की कुछ अभिनेत्रियां ऐसी हैं जो जिनका नाम टीवी की सबसे स्टाइलिश अभिनेत्रियों में शुमार है लेकिन उन्होंने ज्यादा श्रृंगार को नजरअंदाज किया और अपने स्टाइलिश वार्डरोब के जरिए टीवी पर नया चलन लेकर आईं। 

2013 के ऐसे 10 चेहरों को चुना है जो लंबे समय तक बड़े पर्दे पर हावी रहीं और अपनी विशिष्ट शैली से सभी को प्रभावित किया। * 'कुबूल है' में जोया के किरदार में सुरभि ज्योति : जोया बनी सुरभि शो में जींस, टकइन टॉप, जैकेट के साथ छोटी कुर्तियां पहनती हैं। उनका जटिल कढ़ाई वाला शरारा, बैकलेस ब्लाउज या फूलों वाले स्कार्फ के साथ अनारकली सूट भी दिलकश हैं। 

* 'बड़े अच्छे लगते हैं' की नताशा और 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' में कपिल की बीवी बनी समोना चक्रबर्ती : 'बड़े अच्छे..' की नताशा बनकर समोना ने सेक्वीन टॉप, शॉर्ट स्कर्ट और स्लिंग बैग, लाल लिपिस्टक और फ्रिंग कट हेयर स्टाइल में सबको मोह लिया। वहीं 'कॉमेडी नाइट्स' में गहरे गले और बिना अस्तीनों वाले ब्लाउज और साथ साड़ी में नजर आईं।

* 'प्यार का दर्द है' में अवंतिका के किरदार में मानसी साल्वी : शो में शादीशुदा बेटे की मां के किरदार में अवंतिका ने चीनी कॉलर या वेलवेट के ब्लाउज के साथ साड़ी पहनी है। उनके स्टाइलिश आभूषण उसमें चार चांद लगा देते हैं। 

* 'कुछ तो लोग कहेंगे' में डॉक्टर निधि के किरदार में कृतिका कामरा : किसी सामान्य लड़की की तरह कृतिका अधिकतर छोटे कुर्ते औ चूड़ीदार पायजामे में दिखी। 

* 'सवरीन गुग्गल टॉपर ऑफ द इयर' में सवरीन गुग्गल के किरदार में स्मृति कालरा : कालेज की लड़की के किरदार में साधारण टॉप और टाइट फिटिंग जींस और रंगीन पतलून के साथ सादी चूड़ियों और हेयरबैंड में स्मृति स्मार्ट लुक में नजर आईं।

* 'क्या हुआ तेरा वादा' में अनुष्का सरकार के किरदार में मौली गांगुली : व्यवसायी महिला के किरदार में मौली ने चलन वाले औपाचारिक परिधानों से लेकर ट्रैकसूट तक पहने। 

* 'बिग बॉस साथ 7' में गौहर खान : 'बिग बॉस साथ 7' के घर में गौहर स्टाइल आइकॉन के तौर पर नजर आईं। फूलों के डिजाइन वाले परिधान हो ,जंपसूट या गाउन, हर परिधान में वह फैशनेबल नजर आईं।

* 'बड़े अच्छे लगते हैं' में प्रिया के किरदार में साक्षी तंवर : प्रिया के किरदार में साक्षी जींस- टॉप से लेकर सूट और साड़ी तक पहनी और हर पोशाक में वह बेहतरीन लगीं।

* 'बड़े अच्छे लगते हैं' में कृष्णा अमरनाथ कपूर के किरदार में मधु राजा : नायक राम कपूर की मां का किरदार निभा रहीं मधु की साड़ियां, हेयर स्टाइल और मेकअप हर किसी को आकर्षित करता है।

* 'कबूल है' में दिलशाद के किरदार में शालिनी कपूर : गौरवाशाली मुस्लिम महिला दिलशाद के किरदार में शालिनी अधितकतर स्टाइलिश कट कुर्तो के साथ पैंट सलवार और दुपट्टे में नजर आती हैं।

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दिन में ऊनी साल तो रात में रेशमी रजाई ओढ़ रहे हैं भगवान

ठंड का असर केवल आम लोगों को ही नहीं बल्कि भगवान को भी होता है| यह सुनने में थोड़ा अटपटा जरुर लग रहा होगा लेकिन यह सच है| भगवान राम की नगरी अयोध्या में ठंड व कोहरे के बढ़ने से अधिग्रहीत परिसर के अस्थाई मंदिर में विराजमान रामलला सहित अन्य मंदिरों में विराजमान भगवान की मूर्तियों को भी रजाई ओढ़ाई जाने लगी है। इतना ही नहीं ठंड के बढ़ने से भगवान की सेवा भी बदल गई है| अब फूलों की जगह देशी घी की बत्ती से आरती की जा रही है।

जहाँ रामलला को गर्मी में ठंडक पहुंचाने के लिए फूलों से आरती किए जाने की परंपरा है। वहीँ, ठंड से बचाने के लिए भगवान को पुष्पहार की बजाय कृत्रिम हार पहनाया जा रहा है। गर्भगृह में आग जलाकर अंगीठी रखी जा रही है। प्रात:काल अभिषेक के लिए अर्चकों द्वारा गर्म जल का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अलावा रामलला को रेशमी रजाई ओढ़ाई जा रही है| 

रामलला के मुख्य अर्चक सत्येंद्र दास ने बताया कि मौसम के बदलने के साथ भगवान को हिना, कस्तूरी, केसर, जूही व रातरानी की सुगंध लगायी जा रही है। देव विग्रहों को गर्म कपड़ों के अलावा दिन में ऊनी शाल व रात में रजाई अथवा कंबल ओढ़ाया जा रहा है। कनक भवन, मणिराम दास जी की छावनी, रामवल्लभाकुंज, कालेराम मंदिर, रामहर्षणकुंज, जानकी महल ट्रस्ट, दशरथ महल, रंगमहल, लक्ष्मण किला, सियाराम किला, कोसलेश सदन, अशर्फी भवन, उत्तर तोताद्रि मठ, दंतधावन कुंड, रामकथा कुंज, हनुमत निवास, हनुमत सदन, विजय राघव मंदिर नई छावनी आदि मंदिरों में भगवान को ठंड से बचाने की व्यवस्था आरंभ कर दी गई है।

जानकी महल स्थित गणेश जी को पुजारी द्वारा कंबल ओढ़ाया जा रहा है। रामनगरी के सिद्ध संतों की श्रृंखला के सुमेरु स्वामी रामवल्लभाशरण की तपोस्थली रामवल्लभाकुंज में भगवान की सेवा के विविध उपाय किए जा रहे हैं। पीठ के अधिकारी राजकुमार दास ने बताया कि भगवान राम-जानकी के सामने गर्भगृह में आग की अंगीठी दोनों समय रखी जा रही है। भगवान के अभिषेक के लिए मुख्य अर्चक रामाभिषेक दास द्वारा गर्म जल, कस्तूरी, जूही आदि सुगंध का प्रयोग कर ऊनी वस्त्र पहनाए जा रहे हैं। इतना ही सभी मंदिरों में भगवान के जागरण व शयन का समय भी मौसम के अनुरूप बदल चुका है।

अधिकांश मंदिरों में प्रात: सात बजे भगवान के पट खुलने के साथ-साथ रात्रि नौ बजे शयन कराया जा रहा है। अलग-अलग मंदिरों का यह समय भिन्न-भिन्न है। नागेश्वरनाथ मंदिर में भगवान महादेव के लिए शयन आरती के बाद बाकायदा बिस्तर लगाकर रजाई आदि से सेवा की जा रही है।

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जानिए भोजन से पहले क्यों लगाते हैं भगवान को भोग?

आपने देखा होगा कि कुछ लोग भोजन करने से पहले थोड़ा भोजन थाली से बाहर रखकर नैवैद्य रुप में अर्पित करते हैं और हाथ जोड़कर प्रणाम करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं| क्या आपको पता है इसके पीछे क्या धार्मिक कारण है? यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं कि इसके पीछे धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक कारण भी है| 

तो आइये जानते हैं इसके पीछे क्या धार्मिक कारण है| आपको बता दें कि श्रीमद भगवद गीता के तीसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति बिना यज्ञ किए भोजन करता है वह चोरी का अन्न खाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यकि भगवान को अर्पित किए बिना भोजन करता है वह अन्न देने वाले भगवान से अन्न की चोरी करता है। ऐसे व्यक्ति को उसी प्रकार का दंड मिलता है जैसे किसी की वस्तु को चुराने वाले को सजा मिलती है।

इतना ही नहीं, ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी लिखा है कि "अन्न विष्टा, जलं मूत्रं, यद् विष्णोर निवेदितम्। यानी भगवान को बिना भोग लगाया हुआ अन्न विष्टा के समान और जल मूत्र के तुल्य है। ऐसा भोजन करने से शरीर में विकार उत्पन्न होता है और विभिन्न प्रकार के रोग होते हैं।

वहीँ, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है तो आइये जाने वैज्ञानिक कारण क्या हैं? वैज्ञानिक दृष्टि से स्वस्थ रहने के लिए भोजन करते समय मन को शांत और निर्मल रखना चाहिए। अशांत मन से किया गया भोजन पचने में कठिन होता है। इससे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए मन की शांति के लिए भोजन से पहले अन्न का कुछ भाग भगवान को अर्पित करके ईश्वर का ध्यान करने की सलाह वेद और पुराणों में दी गई है।

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2013 में उबाऊ टीवी कार्यक्रमों की कोई जगह नहीं मिली

छोटे पर्दे के ठेठ सास-बहू या पारिवारिक कार्यक्रमों ने बहुत लंबी जिंदगी जी ली है! 'छनछन' और 'दिल की नजर से खूबसूरत' सरीखे टीवी कार्यक्रम की असफलता ने साफ संदेश दिया है कि दर्शक अब कुछ नई और मौलिक सामग्री चाहते हैं। 

रोमांचक कार्यक्रम '24' और 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' के जादू से घिरे हिंदी मनोरंजक चैनलों के प्रशंसकों ने अब पुरानी और उबाऊ सास-बहू कहानियों को ठेंगा दिखा दिया है। कार्यक्रम खंड में उन्होंने दो मुस्लिम परिवारों की कहानी 'कबूल है' और शरतचंद्र चट्टोपध्याय के उपन्यास नाबा बिधान पर आधारित 'तुम्हारी पाखी' को सराहा। ऐसे कार्यक्रमों को सूचीबद्ध किया है जिनकी शुरुआत तो दमदार रही, लेकिन वह जल्द असफल साबित हुए।

छनछन : दिलचस्प ट्रीजर और जबर्दस्त विपणन के साथ शुरू हुए सोनी के कार्यक्रम 'छनछन' ने आम सास-बहू धारावाहिकों में एक सुखद बदलाव लाने का वादा किया। लेकिन यह निर्थक निकला। इसकी विषयवस्तु नई बोतल में पुरानी शराब सरीखी निकली। यह शो 25 मार्च से प्रसारित हुआ और 19 सितंबर को बंद हो गया। 

सावित्री : सब कुछ अलौकिक देखने योग्य नहीं होता। 'सावित्री' की असफलता यह बात सिद्ध करती है। लाइफ ओके चैनल के इस कार्यक्रम की विषयवस्तु आकर्षक थी। कार्यक्रम में एक गृहिणी (रिद्धी डोगरा) अपने पति (यश पंडित) को बुरे मनुष्य राहुकाल से बचाने के लिए लड़ती है। लेकिन कार्यक्रम को दर्शकों से अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिलीं। कार्यक्रम फरवरी में प्रसारित होना शुरू हुआ और सिर्फ अक्टूबर तक ही चल सका।

मिसेज पम्मी प्यारेलाल : इस गुदगुदाते कार्यक्रम ने शुरुआत में काफी दर्शक पाए। लेकिन पुरुष पात्र गौरव गेरा का महिला रूप लेना और पम्मी बनना दर्शकों को ज्यादा दिन नहीं लुभा सका। जुलाई में कलर्स चैनल पर शुरू हुआ यह कार्यक्रम चार माह के भीतर ही हवा हो गया। 

दिल की नजर से खूबसूरत : आमतौर पर खूबसूरती और जंगलीपन की अवधारणा काम करती है, लेकिन धमाकेदार शुरुआत करने वाला कार्यक्रम 'दिल की नजर से खूबसूरत' रिरियाहट के साथ बंद हुआ। सौम्या सेठ, रोहित खुराना और सचिन श्राफ अभिनीत यह कार्यक्रम फरवरी में प्रसारित होना शुरू हुआ, लेकिन दर्शकों के कम झुकाव के चलते जुलाई में बंद कर दिया गया।

पुनर्विवाह..एक नई उम्मीद : पहले भाग की सफलता के बाद 'पुनर्विवाह' अपने दूसरे भाग 'पुनर्विवाह..एक नई उम्मीद' के साथ आया। इसका पहला भाग मनोरंजक और दिलचस्प था। गुरमीत चौधरी और कृतिका सेंगर के बीच की केमिस्ट्री से छोटा पर्दा सुलग उठा। लेकिन दूसरे भाग में करन ग्रोवर, सृष्टि रोडे और रूबीना दिलक की त्रिकोणीय प्रेमकहानी विषयवस्तु को मसालेदार बनाने में असफल रही। दूसरे भाग ने दर्शकों को निराश किया। जी टीवी पर प्रसारित होने वाला यह कार्यक्रम अपनी शुरुआत के छह माह बाद (नवंबर में) वापस खींच लिया गया।
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इस साल बॉलीवुड ने रचे कई नए कीर्तिमान

वर्ष 2013 में अपने 100वें साल में कदम रख चुके भारतीय फिल्मोद्योग ने इस साल में कुछ सुनहरे अवसर देखे हैं। चाहे फिल्म 'धूम 3' का महज तीन दिनों में सर्वाधिक तेजी से 100 करोड़ रुपये कमाना हो या 'चेन्नई एक्सप्रेस' का 216 करोड़ रुपये बटोरना हो या अमिताभ बच्चन का हॉलीवुड में पहला कदम रखना हो। 

बॉलीवुड के इस साल के कुछ ऐसे ही सुनहरे क्षणों की सूची बनाई है, जो निम्न प्रकार है।

- नए बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड: करीब 2013 के मध्य में शाहरुख खान ने अपनी फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' से साबित कर दिया कि उन्हें बॉलीवुड का बादशाह क्यों कहा जाता है। उनकी यह फिल्म तेजी से 216 करोड़ रुपये कमाने वाली फिल्म बन गई है।

- सबसे तेजी से 100 करोड़ की कमाई : आमिर खान दिसंबर में 'धूम 3' लेकर आए और तेजी से 'चेन्नई एक्सप्रेस' से आगे निकल गए हैं। इस फिल्म ने प्रदर्शन के पहले तीन दिनों में ही 107 करोड़ रुपये की कमाई कर ली है।

- नए बाजार: हिन्दी फिल्मों ने पेरू, पनामा और मोरक्को सरीखे गैर परंपरागत बाजारों का रुख किया है। 'चेन्नई एक्सप्रेस' सात नए अंतर्राष्ट्रीय स्थलों पर प्रदर्शित की गई थी। अक्षय कुमार अभिनीत 'बॉस', ऋतिक रोशन अभिनीत 'क्रिश 3' और आमिर की 'धूम 3' ने बॉलीवुड को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ा है।

- अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा में कदम: अपने चार दशक से अधिक के अभिनय करियर में अमिताभ बच्चन पहली बार हॉलीवुड फिल्म 'द ग्रेट गैट्बाय' में दिखे। वहीं, अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने एनिमेटेड फिल्म 'प्लेंस' में अपनी आवाज दी। हॉलीवुड की फिल्मों में दिखे अन्य अभिनेताओं में अनुपम खेर भी शामिल हैं। वह ऑस्कर विजेता फिल्म 'सिल्वर लाइनिंग्स प्लेबुक' में देखे गए।

- स्वतंत्र फिल्मों का गर्मजोशी से स्वागत : किसने सोचा था कि प्रेम में ठुकराए गए दो लोगों की कहानी 'द लंचबॉक्स' दर्शकों को इतनी पसंद आएगी। लेकिन 'द लंचबॉक्स' ने ऐसा किया। इसके अलावा फिल्म 'शिप ऑफ थीसिस', 'शाहिद' और 'बी.ए. पास' ने भी अपनी दमदार पटकथा से ऐसा कर दिखाया। 

- देसी फिल्मों में विदेशी चेहरे : इस साल बॉलीवुड फिल्म 'मिकी वायरस', 'यमला पगला दीवाना 2' और 'भाग मिल्खा भाग' में क्रमश: स्वीडिश अभिनेत्री एली आवरम, ऑस्ट्रेलियाई अभिनेत्री क्रिस्टिना अखीवा और रेबेका ब्रीड्स भारतीय दर्शकों से रूबरू हुईं। 

- दक्षिण भारतीय सितारों का तांता : इस साल दक्षिण भारतीय सिनेमा के चमकते सितारे रामचरण तेजा, धनुष, तमन्ना भाटिया और तापसी पन्नू ने बॉलीवुड में कदम रखा। राम चरण 'जंजीर' में दिखे तो धनुष ने 'रांझना' में जबर्दस्त अभिनय किया। तमन्ना 'हिम्मतवाला' में अजय देवगन के साथ दिखीं। जबकि तापसी ने 'चश्मे-बद्दूर' में दर्शकों को खूब गुदगुदाया।
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क्यों करते हो लड़की का अपमान

लड़के लड़की में क्यों होता मतभेद यहाँ,
               क्यों लड़की होना निषेध यहाँ 
 कहते हैं भारत सभ्यताओं का देश है,
               पर यहाँ लड़कियों को मारने का अध्यादेश है,
गर मानते हो भगवान है,
               तो लड़की दुर्गा का अवतार है,,,
उसकी तो महिमा ही अपरंपार है,,
                क्यों करते हो लड़की का अपमान,,,,
वही तो देती है तुम्हें सम्मान,,
                 पूज़तीं है तुम्हें कह-कह के भगवान,,,
और तुम करते हो लड़की का अपमान,,
                  सम्मान करो लड़की का,,,
तो अच्छा ही फल पाओगे,,
                  गर करोगे ज़ुल्म लड़की पर,,,
तो पाप तुम्ही कमाओगे,,
                  जब लड़की का युग आएगा,,,
तो नज़रे मिलाने में शर्म तुम्हे आएगा,,
                   ले लो शपथ आज सभी,,,
नहीं करोगे लड़की का अपमान,,
                    दोगे तुम भी उसे सम्मान,,,
गर ना दे सको सम्मान,,
                    तो फिर ना करो उसका अपमान,,,

दीक्षा पटेल (श्रुति)
सीता बाल विद्या मंदिर इंटर कॉलेज
महमूदाबाद सीतापुर (उत्तर प्रदेश)
 

अरविंद केजरीवाल: सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिक सुनामी

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में धमाकेदार और एक लहर की तरह छा जाने वाले अरविंद केजरीवाल वर्षो तक एक गुमनाम सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दिल्ली में रहने वाले निर्धनों के बीच उम्मीद की किरण की तरह काम करते रहे। कल का सामाजिक कार्यकर्ता राजनीति के क्षितिज पर आज जिस तरह खड़ा है उसे राजनीतिक सुनामी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

पहली बार अरविंद के नाम से देश तब वाकिफ हुआ जब वर्ष 2011 में महाराष्ट्र से आए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने 12 दिनों तक भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल विधेयक पारित करने की मांग को लेकर अनशन किया था। उस समय अरविंद अन्ना के प्रवक्ता की भूमिका निभा रहे थे और आंदोलन की पूरी कमान उन्हीं के हाथों में थी।

आंदोलन के इस कुशल प्रबंधक ने अपने मेंटर अन्ना हजारे से भिन्न राह पकड़ते हुए आम आदमी पार्टी के नाम से राजनीतिक दल का गठन किया और दिल्ली विधानसभा चुनाव को लक्ष्य कर काम शुरू किया। उनके प्रबंध कौशल का ही परिणाम है कि महज एक वर्ष पुरानी उनकी पार्टी ने न केवल 15 वर्षो से सत्ता पर काबिज कांग्रेस को उखाड़ फेंका, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता रथ का पहिया भी थाम दिया। 

इतना ही नहीं, दिल्ली में कांग्रेस की छवि मानी जाने वाली शीला दीक्षित को केजरीवाल ने करारी शिकस्त दी और दिल्ली में भाजपा के वोट प्रतिशत को भी कम कर दिया। दिल्ली के नए मुख्यमंत्री अरविंद के सामने कई चुनौतियां हैं। उनकी पहली चुनौती यह है कि 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में उनकी पार्टी के 28 विधायक ही हैं। यानी वह एक अल्पमत सरकार के मुखिया होंगे। यह ऐसी स्थिति है जिसमें सरकार को हर विधायी फैसले के लिए अपने कटु विरोधी दल का मुंह जोहना होगा। 

लेकिन अरविंद के मित्र बताते हैं कि वह हमेशा से योद्धा रहे हैं।

हरियाणा के हिसार जिले के सिवानी गांव में 16 अगस्त 1968 को एक मध्यवर्गीय परिवार में उनका जन्म हुआ था। अंग्रेजी माध्यम के मांटेसरी स्कूल में शिक्षा प्रारंभ करने वाले केजरीवाल को परिवार वाले चिकित्सक बनाने का सपना देखते थे। लेकिन उन्होंने परिवार की मर्जी के खिलाफ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर में दाखिला लिया और वहां उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे भारतीय राजस्व सेवा में आए और भ्रष्टाचार के लिए सर्वाधिक बदनाम माने जाने वाले आयकर विभाग में अधिकारी नियुक्त हुए।

राजस्व सेवा की नौकरी छोड़ सामाजिक बदलाव के लिए सड़क पर उतरे केजरीवाल को वर्ष 2006 में रोमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

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दूरसंचार उद्योग के लिए संक्रमण काल रहा 2013

भारत 2013 में 90 करोड़ टेलीफोन कनेक्शन के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाजार बना रहा और एक साल पहले के उहापोह से बाहर निकल गया, लेकिन अगली पीढ़ी की सेवा को अपनाने की दिशा में कुछ अधिक प्रगति नहीं हुई। 

राष्ट्रीय दूरसंचार नीति (एनटीपी) 2012 के जारी होने से सरकार को हालांकि आगे की दिशा मिल गई, लेकिन 2008 में स्पेक्ट्रम बिक्री से संबंधित मामलों के कारण फैसला लेने की प्रक्रिया कुंठित रही। सरकार ने हालांकि अधिग्रहण और विलय नीति जारी करने और इस क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश को अनुमति देने जैसे कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए।

सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के महानिदेशक राजन एस मैथ्यूज ने आईएएनएस से कहा, "2013 की शुरुआत एनटीपी 2012 जारी करने से हुई, जिससे क्षेत्र में स्थिरता कायम हो सकती है।" उधर दूरसंचार परामर्श कंपनी कॉम फर्स्ट के निदेशक महेश उप्पल ने हालांकि कहा, "एनटीपी 2012 लागू करना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसका तत्काल प्रभाव अधिक नहीं होगा।"

उप्पल ने कहा, "2जी और 3जी पर मौजूदा विवाद का अधिक संबंध नीति से नहीं है, बल्कि प्रक्रिया से है।" क्षेत्र के कारोबारी हालांकि नई अधिग्रहण और विलय नीति से उत्साहित हैं। उप्पल का मानना है कि इससे मध्यम आकार की कंपनियों को फायदा मिलेगा और बड़ी कंपनियों को अधिक विकल्प मिलेंगे।

गार्टनर के प्रमुख शोध विश्लेषक ऋषि तेजपाल ने कहा, "अधिग्रहण और विलय नीति का गहरा प्रभाव होगा। एक बार बाजार में स्थिरता आ जाए, तो यह अपना असर दिखाने लगेगा। स्पष्टता का माहौल बने तो कुछ और विदेशी कंपनियां निवेश कर सकती हैं।"

100 फीसदी विदेशी निवेश से हालांकि विश्लेषकों को अधिक उम्मीद नहीं है। उप्पल ने कहा, "वोडाफोन के अलावा कम ही कंपनियां अधिक उत्सुक हैं। वोडाफोन अपनी हिस्सेदारी 64.38 फीसदी से बढ़ाना चाहती है। इस क्षेत्र के लिए निवेश एक प्राथमिकता है, लेकिन विदेशी निवेश नहीं।"

केपीएमजी के साझेदार जयदीप घोष ने कहा, "कंपनियों ने ग्राहकों की गुणवत्ता पर ध्यान देना शुरू कर दिया है और मोटा डीलर कमिशन तथा प्रमोशनल मिनट देना छोड़ दिया है। 2008 के बाद पहली बार कॉल दर बढ़ी है।"

उन्होंने कहा कि डाटा ग्राहकों की संख्या बढ़ाने के लिए कंपनियों ने 3जी किराया 75-80 फीसदी तक घटाते हुए 2जी के समकक्ष कर दिया है। ग्राहकों के मोर्चे पर 2013 में देश में विकास जारी रहा। 2012 के दिसंबर के आखिर में मोबाइल ग्राहकों की संख्या 86.472 करोड़ थी और बुनियादी तार वाले टेलीफोन कनेक्शन की संख्या 3.079 करोड़ थी। इस तरह तार रहित और तार वाले कुल टेलीफोन कनेक्शन की संख्या 89.551 करोड़ थी।

इस साल अक्टूबर के आखिर तक मोबाइल ग्राहकों की संख्या बढ़कर 87.548 करोड़, तार वाले बुनियादी टेलीफोन कनेक्शन की संख्या घटकर 2.908 करोड़ हो गई और तार युक्त तथा तार रहित सभी तरह के टेलीफोन कनेक्शन की कुल संख्या बढ़कर 90.456 करोड़ हो गई।

समग्र टेलीफोन घनत्व जहां पिछले साल के आखिर में 73.01 थी, वह अक्टूबर आखिर में बढ़कर 73.32 हो गई। विश्लेषकों के मुताबिक तरंगों की नीलामी में अपेक्षा के अनुरूप प्रगति नहीं हो पाई। उनके मुताबिक अत्यधिक ऊंचे रिजर्व मूल्य के कारण मार्च में तरंगों की नीलामी से कोई लाभ नहीं मिला।

अब सभी की निगाहें अगले वर्ष 23 जनवरी से शुरू होने वाली स्पेक्ट्रम की अगले दौर की नीलामी पर टिकी हुई है। सरकार के मुताबिक उसने इस वर्ष रिजर्व मूल्य पहले से कम रखा है और इस नीलामी से करीब 65 करोड़ डॉलर का राजस्व हासिल होगा।

2013 संक्षेप में :

- राष्ट्रीय दूरसंचार नीति-2012 जारी

- दूरसंचार क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी हिस्सेदारी को अनुमति

- वोडाफोन ने भारतीय साझेदार की पूरी हिस्सेदारी खरीदने में रुचि दिखाई

- अधिग्रहण और विलय नीति मंजूर

- टेलीकॉम टॉवर कारोबार को अधोसंरचना का दर्जा

- प्रौद्योगिकी के संदर्भ में एकीकृत दूरसंचार लाइसेंस को मंजूरी

- कुल टेलीफोन कनेक्शन अक्टूबर अंत तक 90.456 करोड़।
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देश की शहरी झुग्गियों में रहते हैं 88 लाख परिवार

देश के 88 लाख परिवार शहरों की झुग्गियों में रहते हैं। यह जानकारी मंगलवार को जारी सरकारी आंकड़ों से मिली। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के शहरों की झुग्गियों में रहने वाले 38 फीसदी परिवार महाराष्ट्र में झुग्गियों में रहते हैं।

इस सूची में दूसरे स्थान पर है हैदराबाद, जहां झुग्गियों में रहने वाले 18 फीसदी परिवार रहते हैं। एनएसएसओ ने एक बयान में कहा कि देश के शहरों में करीब 33,510 झुग्गियों बसी हुई हैं। इनमें से 41 फीसदी अधिसूचित हैं और 59 फीसदी गैर अधिसूचित हैं।

जुलाई से दिसंबर 2012 के बीच महाराष्ट्र में अनुमानित 7,723 झुग्गियां हैं, जो देश में कुल झुग्गियों की संख्या की 23 फीसदी है। इसके बाद आंध्र प्रदेश में 13.5 फीसदी, पश्चिम बंगाल में करीब 12 फीसदी झुग्गियां हैं।

अत्यधिक सघन आबादी, स्वच्छता का अभाव, पेयजल सुविधा का अभाव और मकानों का खराब निर्माण इन झुग्गियों की खासियत हैं। एनएसएसओ के मुताबिक, "अनुमानित 88 लाख परिवार शहरों में स्थित झुग्गियों में रहते हैं, जिनमें से 56 लाख अधिसूचित और 32 लाख गैर-अधिसूचित झुग्गियों में रहते हैं।"

देश की समस्त झुग्गियों में से अधिसूचित झुग्गियों का अनुपात 41 फीसदी है, लेकिन इनमें झुग्गियों में रहने वाले 63 फीसदी परिवार रहते हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक, करीब 56 फीसदी झुग्गियां ऐसे शहरों में हैं, जहां की आबादी 10 लाख से अधिक है।

बॉलीवुड ने दी क्रिसमस की शुभकामनाएं

अभिनेता अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार और फरहान अख्तर सहित हिंदी फिल्म जगत की कई जानी-मानी हस्तियों ने क्रिसमस के मौके पर अपने मित्रों एवं परिवार के सदस्यों के साथ ही पूरी दुनिया को क्रिसमस की शुभकामनाएं दी और प्रार्थना की कि पूरा वर्ष खुशियों से भरा रहे। कुछ ने जहां क्रिसमस के दिन छुट्टी मनाने का फैसला किया है, वहीं कुछ अपने परिवार से साथ त्यौहार का लुत्फ उठा रहे हैं।

बुधवार को कई फिल्मी सितारों ने ट्विटर पर क्रिसमस की शुभकामनाएं दी। अमिताभ बच्चन ने ट्विटर के अपने खाते पर लिखा, "सभी को क्रिसमस की बधाई..ईश्वर करे यह वर्ष सभी के जीवन में खुशियां, आनंद, संतुष्टि, शांति, समझदारी, स्वास्थ्य और परिवार के साथ अधिक से अधिक दिन गुजारने की सौगात लाए..।"

अक्षय कुमार ने कहा, "सभी को क्रिसमस की ढेरों शुभकामनाएं। वर्ष के आखिर में मैं अपने परिवार के साथ छुट्टी मनाऊंगा..और अपने नन्हे बेटे को क्रिसमस की चकाचौंध और बेहतरीन सजावट के प्रति हर्षोल्लास से झूमते देखने का आनंद उठाऊंगा।"

फरहान अख्तर ने ट्वीट किया, "आप सभी को और आपके प्रियजनों को क्रिसमस की शुभकामनाएं।" मनोज वाजपेई ने अपने ट्विटर संदेश में कहा, "क्रिसमस का अपना उपहार और क्रिसमस ट्री मिलने के बाद अपनी बेटी के चेहरे पर आई खुश देखने से ज्यादा मूल्यवान कुछ भी नहीं है। क्रिसमस की शुभकामनाएं।"

नरगिस फाखरी ने कहा, "जिनके दिल में क्रिसमस की खुशी नहीं है, उसे किसी पेड़ के नीचे खुशी नहीं मिल सकती। सभी को क्रिसमस की ढेरों शुभकामनाएं।" अभिषेक बच्चन, कुणाल कपूर, अर्जुन रामपाल, नेहा धूपिया, उदय चोपड़ा और नृत्य निर्देशिका फराह खान ने भी ट्विटर पर क्रिसमस की शुभकामनाएं दी।
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