जन्माष्टमी पर 5057 साल बाद दुर्लभ संयोग

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है| मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की भव्य झांकियां सजाई गई हैं। जन्माष्टमी को लेकर बाजारों में भी चहल पहल देखी जा रही है| समूचे ब्रज मंडल में आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम मची हुई है। चारों तरफ श्रद्धालुओं में अपने आराध्य के जन्मोत्सव को लेकर मस्ती का माहौल है। खासकर युवाओं में गजब का उत्साह दिख रहा है। यहाँ के मठ और मंदिरों की विशेष सजावट की गई है। घरों में भी विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जा रहा है।

ब्रज क्षेत्र योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और आस्था के सरोवर में पूरी तरह सराबोर है। यूं तो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व देश भर में उत्साह के साथ मनाया जाता है। लेकिन मथुरा नगरी में इसका अलग ही महत्व है। यह भगवान श्रीकृष्ण की जन्म एवं क्रीड़ास्थली है। इस मौके पर मथुरा में देश के विभिन्न प्रांतों के अलावा विदेशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। 

ज्योतिष के जानकारों की माने तो इस बार 28 अगस्त को मनाई जाने वाली जन्माष्टमी तिथि राशि और नक्षत्र के अनुसार बहुत ही खास है। आज बाल गोपाल 5239 वर्ष के हो जायेंगे| जानकारों के मुताबिक 5057 साल बाद जन्म अष्टमी पर तिथि, वार, नक्षत्र व ग्रहों के अद्भुत मेल का ऐसा संयोग बना है जो श्रीकृष्ण जन्म के समय द्वापर युग में बना था। इस लिहाज से इस बार की जन्माष्टमी विशेष फलदायी होगी। इससे पहले सन 1932 और 2000 में भी बुधवार के दिन जन्म अष्टमी पड़ी थी। उस समय तिथि और नक्षत्र का मेल नहीं था लेकिन इस बार नक्षत्र, दिन, तिथि, लग्न सभी एक साथ विद्यमान रहेंगे। अष्टमी तिथि सूर्योदय से होने के कारण वैष्णव और शैव संप्रदाय इस पर्वको एक ही दिन मनाएंगे। गीता में श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टम तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृषभ के चंद्रमा की मध्य रात्रि में होना बताया गया है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी को अर्द्धरात्रि अष्टमी पड़ रही है। यह तिथि रोहिणी नक्षत्र में है। इसके अलावा वृष राशि पर चंद्रमा का दुर्लभ एवं पुण्य प्रदायक योग बन रहा है। निर्णय सिंधु में लिखा है कि आधी रात के समय रोहिणी में यदि अष्टमी तिथि मिल जाए तो उसमें भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से तीन जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। बुधवार और रोहिणी नक्षत्र का योग हो तो ऐसी जन्माष्टमी पर रखा गया व्रत सौ जन्मों का उद्धार करती है। रोहिणी नक्षत्र और बुधवार एक ही दिन है। इससे जयंती नामक योग बन रहा है। इस योग से हजारों जन्मों का पुण्य संचय हो जाता है।

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1 टिप्पणी:

Vineet Verma ने कहा…

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