वर्ष 2016 के व्रत एवं त्यौहार

नई दिल्ली: प्रत्येक वर्ष की तरह हम अपने पाठकों की सुविधा के लिए वर्ष 2016 के व्रत व त्यौहार की विषय सूची हर माह के रुप में दे रहे हैं। इसमें जनवरी 2016 से लेकर दिसंबर 2016 तक के सभी व्रत व त्यौहारो का वर्णन है। आइये जानें वर्ष 2016 के सम्पूर्ण व्रत एवं त्योहार –

जनवरी 2016

● 1 जनवरी (शुक्रवार) – नव वर्ष प्रारम्भ
● 5 जनवरी (मंगलवार) – सफला एकादशी व्रत
● 7 जनवरी (गुरुवार) – प्रदोष व्रत
● 8 जनवरी (शुक्रवार) – मासिक शिवरात्रि
● 9 जनवरी (शनिवार) – देवकार्ये अमावस्या
● 12 जनवरी (मंगलवार) – स्वामी विवेकानन्द जयंती
● 13 जनवरी (बुधवार) – लोहड़ी पर्व
● 14 जनवरी (गुरुवार) – मकर संक्रान्ति
● 16 जनवरी (शनिवार) – गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती
● 20 जनवरी (बुधवार) – पुत्रदा एकादशी व्रत
● 21 जनवरी (गुरुवार) – प्रदोष व्रत
● 23 जनवरी (शनिवार) – नेताजी सुभाष जयन्ती
● 26 जनवरी (मंगलवार) – गणतंत्र दिवस
● 27 जनवरी (बुधवार) – तिलकुटा (सकट) चौथ

फरवरी 2016

● 1 फरवरी (सोमवार) – कालाष्टमी
● 4 फरवरी (गुरुवार) – षट्तिला एकादशी व्रत
● 6 फरवरी (शनिवार) – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत
● 8 फरवरी (सोमवार) – सोमवती अमावस्या, देव पितृ अमावस्या
● 11 फरवरी (गुरुवार) – तिल चौथ
● 13 फरवरी (शनिवार) – बसन्त पंचमी, कुंभ संक्रान्ति
● 14 फरवरी (रविवार) – रथ सप्तमी
● 15 फरवरी (सोमवार) – भीष्माष्टमी
● 18 फरवरी (गुरुवार) – जया एकादशी व्रत
● 19 फरवरी (शुक्रवार) – भीष्म द्वादशी
● 20 फरवरी (शनिवार) – प्रदोष ब्रत
● 22 फरवरी (सोमवार) – माघी पूर्णिमा, रविदास जयन्ती
● 26 फरवरी (शुक्रवार) – चतुर्थी व्रत

मार्च 2016

● 2 मार्च (बुधवार) – जानकी जयंती
● 3 मार्च (गुरुवार) – समर्थ गुरु रामदास जयन्ती
● 4 मार्च (शुक्रवार) – महर्षि दयानंद सरस्वती जयन्ती
● 5 मार्च (शनिवार) – विजया एकादशी व्रत
● 6 मार्च (रविवार) – प्रदोष व्रत
● 7 मार्च (सोमवार) – महाशिवरात्रि व्रत
● 8 मार्च (मंगलवार) – पितृ कार्ये अमावस्या
● 9 मार्च (बुधवार) – देव कार्ये अमावस्या
● 10 मार्च (गुरुवार) – फुलैरा दूज, रामकृष्ण परमहंस जयंती
● 12 मार्च (शनिवार) – गणेश चतुर्थी
● 13 मार्च (रविवार) – याज्ञवल्क्य जयन्ती
● 14 मार्च (सोमवार) – मीन संक्रान्ति
● 16 मार्च (बुधवार) – होलाष्टकारंभ
● 19 मार्च (शनिवार) – आमलकी एकादशी
● 20 मार्च (रविवार) – प्रदोष व्रत
● 23 मार्च (बुधवार) – होलिका दहन
● 24 मार्च (गुरुवार) – धूलैंडी
● 28 मार्च (सोमवार) – रंग पंचमी
● 29 मार्च (मंगलवार) – एकनाथ षष्ठी व्रत
● 31 मार्च (गुरुवार) – शीतला अष्टमी

अप्रैल 2016

● 3 अप्रैल (रविवार) – पापमोचनी एकादशी व्रत
● 5 अप्रैल (मंगलवार) – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत
● 7 अप्रैल (गुरुवार) – देवपितृ कार्ये अमावस्या
● 8 अप्रैल (शुक्रवार) – नवरात्रारंभ, झूलेलाल जयन्ती
● 9 अप्रैल (शनिवार) – मत्स्य जयन्ती, गणगोरी पूजा
● 12 अप्रैल (मंगलवार) – स्कंद षष्ठी
● 13 अप्रैल (बुधवार) – मेष संक्रान्ति 19/14
● 15 अप्रैल (शुक्रवार) – श्री राम नवमी
● 17 अप्रैल (रविवार) – कामदा एकादशी
● 19 अप्रैल (मंगलवार) – प्रदोष व्रत, महावीर जयन्ती
● 21 अप्रैल (गुरुवार) – पूर्णिमा व्रत
● 22 अप्रैल (शुक्रवार) – हनुमान जयंती
● 25 अप्रैल (सोमवार) – चतुर्थी व्रत
● 26 अप्रैल (मंगलवार) – अनुसूया जयन्ती

मई 2016

● 1 मई (रविवार) – मजदूर दिवस
● 3 मई (मंगलवार) – वरूथिनी एकादशी व्रत
● 4 मई (बुधवार) – प्रदोष व्रत
● 5 मई (गुरुवार) – मासिक शिवरात्रि व्रत
● 6 मई (शुक्रवार) – देवपितृ कार्ये अमावस्या
● 7 मई (शनिवार) – टैगोर जयन्ती
● 8 मई (रविवार) – शिवाजी जयंती, परशुराम जयंती
● 9 मई (सोमवार) – अक्षय तृतीया
● 11 मई (बुधवार) – आघ शंकराचार्य जयंती
● 12 मई (गुरुवार) – गंगोत्पत्ति, श्रीरामानुज जयंती
● 14 मई (शनिवार) – वृष संक्रान्ति
● 15 मई (रविवार) – सीमा नवमी
● 17 मई (मंगलवार) – मोहनी एकादशी व्रत
● 19 मई (गुरुवार) – प्रदोष व्रत
● 20 मई (शुक्रवार) – नृसिंह जयंती
● 21 मई (शनिवार) – कूर्म जयंती, बुद्ध पूर्णिमा
● 23 मई (सोमवार) – नारद जयन्ती
● 25 मई (बुधवार) – चतुर्थी व्रत चन्द्रोदय 22/16

जून 2016

● 1 जून (बुधवार) – अपरा एकादशी व्रत
● 2 जून (गुरुवार) – प्रदोष व्रत
● 3 जून (शुक्रवार) – मासिक शिव रात्रि व्रत
● 4 जून (शनिवार) – शनिश्चर जयन्ती, पितृ कार्ये अमावस्या, वट सावित्री व्रत
● 5 जून (रविवार) – देवकार्ये अमावस्या
● 7 जून (मंगलवार) – रमजान प्रारम्भ
● 12 जून (रविवार) – दुर्गाष्टमी, धूमावती जयन्ती
● 14 जून (मंगलवार) – मिथुन संक्रान्ति
● 15 जून (बुधवार) – गंगा दशहरा
● 16 जून (गुरुवार) – निर्जला एकादशी व्रत
● 17 जून (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत
● 20 जून (सोमवार) – कबीर जयन्ती
● 23 जून (गुरुवार) – चतुर्थी व्रत
● 30 जून (गुरुवार) – योगिनी एकादशी व्रत

जुलाई 2016

● 2 जुलाई (शनिवार) – प्रदोष व्रत
● 4 जुलाई (सोमवार) – सोमवती अमावस्या
● 6 जुलाई (बुधवार) – श्री जगदीश रथ यात्रा
● 10 जुलाई (रविवार) – स्कंध षष्ठी
● 13 जुलाई (बुधवार) – भड्डली नवमी
● 15 जुलाई (शुक्रवार) – देवशयनी एकादशी व्रत
● 16 जुलाई (शनिवार) – कर्क संक्रान्ति
● 17 जुलाई (रविवार) – प्रदोष व्रत
● 19 जुलाई (मंगलवार) – गुरु पूर्णिमा
● 24 जुलाई (रविवार) – नाग पंचमी
● 30 जुलाई (शनिवार) – कामिका एकादशी व्रत
● 31 जुलाई (रविवार) – प्रदोष व्रत

अगस्त 2016

● 1 अगस्त (सोमवार) – मासिक शिवरात्रि व्रत
● 2 अगस्त (मंगलवार) – देवपितृ कार्ये अमावस्या
● 5 अगस्त (शुक्रवार) – हरियाली तीज
● 6 अगस्त (शनिवार) – वरदचतुर्थी व्रत
● 7 अगस्त (रविवार) – नाग पंचमी
● 8 अगस्त (सोमवार) – कल्कि जयन्ती
● 9 अगस्त (मंगलवार) – शीतला षष्ठी,
● 10 अगस्त (बुधवार) – गोस्वामी तुलसीदास जयंती
● 14 अगस्त (रविवार) – पवित्रा एकादशी व्रत
● 15 अगस्त (सोमवार) – प्रदोष व्रत
● 18 अगस्त (गुरुवार) – पूर्णिमा व्रत, रक्षाबन्धन
● 23 अगस्त (मंगलवार) – हल षष्ठी
● 25 अगस्त (गुरुवार) – जन्माष्टमी व्रत
● 26 अगस्त (शुक्रवार) – गोगा नवमी
● 27 अगस्त (शनिवार) – अजा एकादशी व्रत
● 29 अगस्त (सोमवार) – प्रदोष व्रत

सितम्बर 2016

● 1 सितम्बर (गुरुवार) – देवपितृ कार्ये अमावस्या
● 4 सितम्बर (रविवार) – वाराहजयन्ती, हरतालिका तीज
● 5 सितम्बर (सोमवार) – गणेश चतुर्थी व्रत
● 6 सितम्बर (मंगलवार) – ऋषि पंचमी
● 7 सितम्बर (बुधवार) – सूर्य षष्ठी व्रत
● 8 सितम्बर (गुरुवार) – सन्तान सप्तमी
● 9 सितम्बर (शुक्रवार) – श्रीराधा अष्टमी
● 13 सितम्बर (मंगलवार) – जलझूलनी एकादशी व्रत
● 14 सितम्बर (बुधवार) – प्रदोष व्रत
● 15 सितम्बर (गुरुवार) – अनंत चतुर्दशी व्रत
● 16 सितम्बर (शुक्रवार) – पूर्णिमा व्रत
● 17 सितम्बर (शनिवार) – विश्वकर्मा पूजा
● 19 सितम्बर (सोमवार) – चतुर्थी व्रत
● 23 सितम्बर (शुक्रवार) – महालक्ष्मी व्रत
● 26 सितम्बर (सोमवार) – इन्दिरा एकादशी व्रत
● 28 सितम्बर (बुधवार) – प्रदोष व्रत
● 30 सितम्बर (शुक्रवार) – सर्वपितृ अमावस्या

अक्टूबर 2016

● 1 अक्टूबर (शनिवार) – नवरात्रारंभ, अग्रेसन जयंती
● 2 अक्टूबर (रविवार) – गांधी, शास्त्री जयंती
● 9 अक्टूबर (रविवार) – महाष्टमी
● 11 अक्टूबर (मंगलवार) – विजय दशमी
● 12 अक्टूबर (बुधवार) – पापांकुशा एकादशी व्रत
● 14 अक्टूबर (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत
● 15 अक्टूबर (शनिवार) – शरद् पूर्णिमा
● 19 अक्टूबर (बुधवार) – करवा चौथ
● 21 अक्टूबर (शुक्रवार) – स्कंद षष्ठी
● 23 अक्टूबर (रविवार) – अहोई आठें
● 26 अक्टूबर (बुधवार) – रमा एकादशी व्रत
● 28 अक्टूबर (शुक्रवार) – धनतेरस, प्रदोष व्रत
● 29 अक्टूबर (शनिवार) – नरक चतुर्दशी
● 30 अक्टूबर (रविवार) – महालक्ष्मी पूजा
● 31 अक्टूबर (सोमवार) – गोवर्धन पूजा (अन्नकूट)

नवम्बर 2016

● 1 नवम्बर (मंगलवार) – भैया दूज (यमद्वितीय)
● 5 नवम्बर (शनिवार) – सौभाग्य पंचमी
● 8 नवम्बर (मंगलवार) – गोपाष्टमी
● 9 नवम्बर (बुधवार) – अक्षय नवमी
● 11 नवम्बर (शुक्रवार) – प्रबोधिनी एकादशी व्रत
● 12 नवम्बर (शनिवार) – प्रदोष व्रत
● 14 नवम्बर (सोमवार) – पूर्णिमा व्रत, गुरु नानक जयंती
● 17 नवम्बर (गुरुवार) – चतुर्थी व्रत
● 21 नवम्बर (सोमवार) – काल भैरवाष्टमी
● 25 नवम्बर (शुक्रवार) – उत्पत्ति एकादशी व्रत
● 26 नवम्बर (शनिवार) – प्रदोष व्रत
● 29 नवम्बर (मंगलवार) – देवपितृ अमावस्या

दिसम्बर 2016

● 5 दिसम्बर (सोमवार) – स्कंद षष्ठी
● 10 दिसम्बर (शनिवार) – मोक्षदा एकादर्शी व्रत
● 11 दिसम्बर (रविवार) – प्रदोष व्रत
● 13 दिसम्बर (मंगलवार) – दत्रात्रेय जयंती, पूर्णिमा व्रत
● 15 दिसम्बर (गुरुवार) – धनु संक्रान्ति
● 17 दिसम्बर (शनिवार) – चतुर्थी व्रत
● 24 दिसम्बर (शनिवार) – सफलता एकादशी व्रत
● 25 दिसम्बर (रविवार) – क्रिसमस डे (बड़ा दिन)
● 26 दिसम्बर (सोमवार) – प्रदोष व्रत
● 28 दिसम्बर (बुधवार) – पितृकार्ये अमावस्या
● 29 दिसम्बर (गुरुवार) – देवकार्ये अमावस्या

…यहाँ पेड़ पर उगते हैं पैसे!

लंदन: अभी तक आपने दादी-नानी से पेड़ पर पैसे उगने के किस्से खूब सुने होंगे लेकिन क्या कभी देखा है पैसों का पेड़। शायद नहीं न लेकिन यदि आपको पैसों का पेड़ देखना है तो बस इंग्लैण्ड आ जाइए और देखिए यहाँ पैसों का पेड़।

इंगलैंड में पैसों का एक पेड़ है जिसमें लोग सदियों से सिक्के गाड़ रहे हैं। इस पेड़ में करीब लाखों सिक्के लगे हुए हैं। अपनी इच्छाओं की पूर्ती के लिए ब्रिटेनवासी इस पेड़ में पैसे डालते थे। इस पेड़ की कहानी की शुरुआत सन 1700 से हुई। इसमें कई और दिलचस्प पहलू हैं।

इंगलैंड के स्कॉटिश द्वीप के पीक जिले में यह पेड़ स्थित है। गुड लक पाने की लालसा में लोग इस पेड़ के दर्शन करने आते हैं। एक मान्यता के अनुसार- त्यौहार एवं ख़ुशियों के मौके पर लोग इसमें सिक्के डालते थे ताकि मन की मुराद पूरी हो सके। क्रिसमस एवं अन्य बड़े मौकों पर लोग यहां अपनी खुशी के लिए सिक्के लाते हैं।

इस पेड़ में कई बहुमूल्य सिक्के भी है, जिनकी कीमत वर्तमान में अरबों रुपए हैं। इसमें कई देशों के सिक्के देखने को मिल जाएंगे। एक मान्यता के अनुसार इस पेड़ में देवों का वास है। इंगलैंड के अलावा अमेरिकियों को भी इस पेड़ के प्रति काफ़ी श्रद्धा है।

...यहां गिरा था देवी सती का दायां वक्ष (स्तन)

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं।

51 शक्तिपीठों के सन्दर्भ में जो कथा है वह यह है राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने जन्म लिया| एक बार राजा प्रजापति दक्ष एक समूह यज्ञ करवा रहे थे| इस यज्ञ में सभी देवताओं व ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया गया था| जब राजा दक्ष आये तो सभी देवता उनके सम्मान में खड़े हो गए लेकिन भगवान शंकर बैठे रहे| यह देखकर राजा दक्ष क्रोधित हो गए| उसके बाद एक बार फिर से राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया इसमें सभी देवताओं को बुलाया गया, लेकिन अपने दामाद व भगवान शिव को यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा| जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए।

नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।

भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा।

सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। माना जाता जाता है शक्तिपीठ में देवी सदैव विराजमान रहती हैं। जो भी इन स्थानों पर मॉ की पूजा अर्चना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा का बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मां का एक ऐसा धाम है जहां पहुंच कर भक्तों का हर दुख उनकी तकलीफ मां की एक झलक भर देखने से दूर हो जाती है। यह 52 शक्तिपीठों में से मां का वो शक्तिपीठ है जहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था और जहां तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में मां की तीन पिंडियों की पूजा होती है। मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए बज्रेश्वरी शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है। माता बज्रेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठा और विशेष है क्योंकि यहां मात्र हिंदू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते है। आ

ज कांगड़ा की प्रसिद्धि यहां स्थित बज्रेश्वरी देवी के मंदिर के कारण अधिक है। जिसे नगरकोट कांगड़े वाली देवी भी कहा जाता है। हजार वर्ष पूर्व यहां भी बड़ा ही भव्य और समृद्ध मंदिर था। मंदिर की हीरे-मोती, सोने-चांदी की संपदा की ख्याति दूर तक फैली थी। किंतु 1009 में महमूद गजनवी, 1337 में मुहम्मद बिन तुगलक तथा 1420 के आसपास सिकंदर लोदी ने आक्रमण कर यहां की संपदा लूट ली। आक्रांताओं के हर आक्रमण के बाद यह मंदिर पुन: निर्मित हुआ। किंतु भूकंप ने इसे फिर क्षतिग्रस्त कर दिया। उसके बाद 1920 में वर्तमान मंदिर निर्मित किया गया।मंदिर के गर्भगृह में पिंडी के रूप में देवी के दर्शन होते हैं।मान्यता है कि अपने सगे संबंधियों के साथ पीले वस्त्र धारण कर देवी की स्तुति करें तो पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है।

कहते हैं कि जब सतयुग में राक्षसों का वध करके माता विजय प्राप्त करके आई थीं तो सभी देवो ने माता की स्तुति की थी। उस दिन से मकर संक्रांति का पर्व यहां मनाया जाता है। बताते हैं कि जहां-जहां देवी के शरीर पर घाव आए, वहां -वहां देवताओं ने मिलकर घृत का लेप किया। जिससे माता के शरीर पर आए घाव ठीक हो गए थे। आज भी उसी परंपरा को जारी रखते हुए माता की पिंडी पर मक्खन का लेप किया जाता है।

बज्रेश्वरी मंदिर के वरिष्ठ पुजारी कहते हैं कि मंदिर में यह प्रथा आदि काल से चली आ रही है। घृत पर्व का प्रसाद चरम और जोड़ों के दर्द में सहायक होता है। मंदिर में घृत प्रसाद के तौर पर श्रद्धालुओं में बांटा जाता है। मंदिर के इतिहास पर छपी किताब में भी इस परंपरा का जिक्र है। घृत मंडल पर्व पर माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ाने की प्रक्रिया काफी पहले शुरू हो जाती है। स्थानीय और बाहरी लोगों द्वारा मंदिर में दान स्वरूप देसी घी पहुंचाया जाता है।

मंदिर प्रशासन इस घी को 101 बार ठंडे पानी से धोकर मक्खन बनाने के लिए मंदिर के पुजारियों की एक कमेटी का गठन करता है। पुजारियों की यही कमेटी मक्खन की पिन्नियां बनाती है और चौदह जनवरी को देर शाम माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो सुबह तक जारी रहती है।

रावण के वध के पाप से मुक्ति के पाने के लिए भगवान राम ने यहां किया था यज्ञ


अहमदाबाद: गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से करीब 100 किमी की दूरी पर एक ऐसा प्राचीन मंदिर जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने लंकापति रावण के वध के पाप से मुक्ति के पाने के लिए यज्ञ किया था, क्या आपको पता है यदि नहीं तो आज हम आपको उस प्राचीन मंदिर के बारे में बताते हैं| आपको बता दें अहमदाबाद से 100 किमी की दूरी पर मोढेरा में बहुत ही खूबसूरत प्राचीन सूर्य मन्दिर है। इस मन्दिर को 11वीं सदी में राजा भीमदेव सोलंकी ने बनवाया था।

यह सूर्य मंदिर पशुपवती नदी के तट पर स्थित है| इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि इस मंदिर की पवित्रता और भव्यता का वर्णन स्कन्द और ब्रम्ह पुराण में भी देखने को मिलता है| आपको बता दें कि मोढेरा का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। मोढ़ लोग मोढेश्वरी माँ के आनुयाई है जो अंबे माँ के अठारह हाथ वाले स्वरूप की उपासना करते हैं। इस तरह मोढेरा मोढ़ वैश्य व मोढ़ ब्राह्मण की मातृभूमि है। इस स्थान पर बहुत से देवी-देवताओं के चरण पड़े हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर ही यमराज (धर्मराज) ने 1000 साल तक तपस्या की थी जिनका तप देखकर इंद्र को अपने आसन का खतरा महसूस हुआ, लेकिन यमराज ने कहा कि वे तो शिव को प्रसन्न करने के लिए तप कर रहे हैं। शिव ने प्रसन्न होकर यमराज से कहा कि आज से इस स्थान का नाम तुम्हारे नाम यमराज (धर्मराज) पर धर्मारण्य होगा।

स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार भगवान राम भी इस स्थान पर आए थे। मान्यता अनुसार जब भगवान राम इस नगर में यज्ञ करने हेतु आए थे तब एक स्थानीय महिला रो रही थी। सभी ने रोने का कारण जानना चाहा, लेकिन महिला ने कहा कि मैं सिर्फ प्रभु श्रीराम को ही कारण बताऊँगी।

राम को जब यह पता चला तो उन्होंने उस महिला से कारण जानना चाहा। महिला ने बताया कि इस स्थान से यहाँ के मूल निवासी वैश्य, ब्राह्मण आदि पलायन करके चले गए हैं उन्हें वापस लाने का उपाय करें। तब श्रीराम ने इस नगर को पुनः बसाया व सभी पलायन किए हुए लोगों को वापस बुलाया और नगर की रक्षा का भार हनुमानजी को दिया। लेकिन धर्मारण्य की खुशियाँ ज्यादा दिनों तक न रह सकी। कान्यकुब्ज राजा कनोज अमराज ने यहाँ की जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। धर्मारण्य की जनता ने राजा को समझाया कि हनुमानजी इस नगरी के रक्षक है आप उनके प्रकोप से डरें, लेकिन राज ने जनता की बात न मनी। राजा से त्रस्त होकर फिर कुछ लोग कठिन यात्रा कर रामेश्वर पहुँचे। जहाँ हनुमानजी से अनुरोध किया और धर्मारण्य कि रक्षा करने का प्रभु श्रीराम का वचन याद दिलाया। हनुमानजी ने वचन की रक्षा करते हुए राजा को सबक सिखाया और नगर की रक्षा की।

मोढेरा सूर्य मंदिर निर्माण-

यहां के राजा सोलंकी सूर्यवंशी माने जाते थे, जिस कारण उन्होंने यहां पर इस विशाल सूर्य मंदिर की स्थापना की थी सूर्य भगवान इनके कुलदेवता के रूप में पूजे जाते थे यह राजा इस मंदिर में वह अपने आद्य देवता की आराधना किया करते थे| यह मंदिर भारत के प्रमुख सूर्य मंदिरों की श्रेणी में आता है| मोढेरा का यह सूर्य मंदिर शिल्पकला का अदभुत उदाहरण प्रस्तुत करता है इस संपूर्ण मंदिर के निर्माण में अनेक महत्वपूर्ण बातों को देखा जा सकता है|

एक तो इस मंदिर के निर्माण में ईरानी शैली का उपयोग देखा जा सकता है, और दूसरा यह कि राजा भीमदेव ने इस मंदिर को दो हिस्सों में बनवाया था जिसके प्रथम भाग में गर्भगृह तथा द्वितीय भाग में सभामंडप है, मन्दिर का गर्भग्रह काफी बडा है| मंदिर के सभामंडप में 52 स्तंभ हैं जिन पर उत्कृष्ट कारीगरी की गई है इन स्तंभों पर देवी-देवताओं के चित्रों, रामायण, महाभारत के प्रसंगों को उकेरा गया है| इस मन्दिर का स्थापत्य बहुत ही उत्तम है मंदिर का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करती है इस मंदिर में विशाल कुंड स्थित है जिसे सूर्यकुंड तथा रामकुंड कहा जाता है|

संवत् 1356 में गुजरात के अंतिम राजपूत राजा करण देव वाघेला के अलाउदीन खिलजी से हारने के बाद मुगलों ने गुजरात पर कब्जा कर लिया। अलाउदीन खिलजी ने मोढेरा पर भी आक्रमण किया परन्तु यहाँ के उच्च वर्ग के लोग लड़ाई में भी पारंगत थे तो उन्होंने अलाउदिन खिलजी का डट के मुकाबला किया। लेकिन खिलजी के एक षड़यंत्र में वे फँस गए और मोढेरा पर खिलजी ने कब्जा कर नगर व सूर्य मंदिर को क्षति पहुँचाई।

वर्तमान धर्मारण्य (मोढेरा) में मातंगि के विशाल मन्दिर के अलावा कुछ नहीं है यहाँ के मूल निवासी अपना यह मूल स्थान छोड़ कर दूर बस गए हैं। मंदिर जीर्णोद्धार का कार्य माँ के भक्तों के सहयोग से प्रगति पर है। गुजरात के विकास के साथ ही यहाँ की सड़कों का भी विकास हुआ है जिस कारण यहाँ पहुँचना अब सुगम हो गया है।

खुले आसमां तले ठिठुर रही आशियाने से महरूम गरीबी


लखनऊ: दिसंबर का चौथा सप्ताह शुरू हो गया है। रात में सर्द हवाएं कंपकपी पैदा करने लगी हैं। लाखों रुपये होने के बावजूद भी गरीब ठिठुर रहे है। आशियाने से महरूम गरीबी खुले आसमां तले ठिठुर रही है। इसके बावजूद अब तक जिलों में कंबल की खरीद पूरी नहीं हो सकी है। चौराहों पर अभी अलाव जलना भी शुरू नहीं हुए। ऐसे में इस ठंड में गरीबों की मौत से अफसर खेलने पर अमादा हैं। यह हालत तब है जब राहत आयुक्त कार्यालय से मुख्य सचिव आलोक रंजन के निर्देश पर 18 करोड़ 75 लाख रुपए जारी किए जा चुके हैं।

मुख्य सचिव आलोक रंजन ने अभी हाल ही में कहा है कि कि यह अधिकारि‍यों की घोर लापरवाही है। ठंड शुरू हो गई है और अगर किसी भी जिले में निर्देश के बावजूद कंबल नहीं बंटे हैं और अलाव नहीं जल रहे हैं तो इसके लि‍ए अधि‍कारी सीधे तौर पर जि‍म्‍मेदार हैं। इसके लिए उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। राज्य आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि बीते 4 नवंबर को ही 18 करोड़ 75 लाख रुपए सभी जिलों के लिए जारी कर दिए गए हैं। इसमें से कंबल के लिए प्रत्येक तहसील के लिए 5 लाख रुपए आवंटित किए गए हैं। इस राशि से जहां कंबल वितरण का काम पूरा करना है वहीं 50 हजार रुपए अलाव के लिए भी जारी किए गए हैं।

कई दिनों से पड़ रहा घना कोहरा प्रशासन की आंख नहीं खोल पा रहा है। इस घने कोहरे के कारण लोगोें का घरों से निकलना मुश्किल हो चला है। कोहरे के बीच स्टेशन रोड पर फुटपाथ किनारे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक दुबके नजर आए। बस इसी कशमकश के साथ इन गरीबों की सर्द रातें गुजर रही हैं। रोडवेज के आगे भी फुटपाथ पर बने टीन शैड पर कुछ ऐसा ही नजारा दिखाई देता है। वहीं पेट की आग बुझाने निकले रिक्शा चालक पूस की रात के हल्कू की तरह सवारी ढोने के बजाए सुलगती आग छोड़ने को तैयार नजर नहीं आए।

गरीब व बुजुर्ग लोग पूरी रात सर्द हवाओं में ठिठुरते नजर आते है, लेकिन प्रशासन को गरीब जनता की ओर कोई ध्यान नहीं है। बस तो अपने नियम पूरे करने के बाद ही कंबलों का वितरण करना है। चाहे फिर किसी की जान पर बन जाए। गरीबों का इंतजार है कि जाने कब प्रशासन उन्हें कंबल देगा। लेकिन अभी तक कई जनपदों में यह फाइनल तक ही नहीं किया कि उन्हें कंबल कब बांटने है। गरीब प्रशासन द्वारा दिए जाने वाले कंबल के लिए इंतजार में बैठे हुए है और सोच रहे है कि उन्हें वह कंबल जल्दी से देंगे, ताकि उनकी ठंड उनके कंबलों के सहारे से गुजर सके।

आपको बता दें कि 4 नवम्बर को ही राजस्व विभाग ने प्रत्येक तहसील 5 लाख रूपए कम्बल और 50 हजार रूपए अलाव के लिए रिलीज़ कर दिए थे। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि राजधानी लखनऊ समेत गोरखपुर, उन्नाव, जालौन, कन्नौज, मिर्जापुर, रायबरेली, अमेठी, कौशांबी और अन्य जिलों में लोग रातों को महज प्लास्टिक की बोरी ओढ़कर सो रहे हैं। अब देख कर तो यही लगता है कि कम्बल की खरीद ठंड खत्म होने के बाद ही हो सकेगी।

चाहते हैं रोगों से मुक्ति तो आज करें सूर्य नारायण की पूजा

भारतीय संस्कृति में मार्गशीर्ष मास का अपना एक विशेष महत्व होता है। इस मास में सांसारिक विषयों से ध्यान हटाकर आध्यात्मिक से रिश्ता जोडा जाता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विष्णु सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत किया जाता है। इस बार विष्णु सप्तमी 18 दिसंबर दिन शुक्रवार को पड़ रही है। मान्यता है कि विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कार्य सफल होते हैं। विष्णु पुराण में शुक्लपक्ष की विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्यदायिनी कहा गया है। इस तिथि में सूर्यनारायण का पूजन करने से रोग-मुक्ति मिलती है।

इस व्रत को रखने वाले सप्तमी का व्रत करने वाले को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृत होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद प्रात:काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए। और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए। सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है। पूजा पाठ करने के बाद इस व्रत की कथा सुननी चाहिए। व्रत की कथा सुनने के बाद सांय काल में भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप, फल, फूल और सुगन्ध से करते हुए नैवैध का भोग भगवान को लगाना चाहिए। और भगवान की आरती करनी चाहिए।

भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं सर्वव्यापक भगवान श्री विष्णु समस्त संसार में व्याप्त हैं कण-कण में उन्हीं का वास है उन्हीं से जीवन का संचार संभव हो पाता है संपूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं। अत: विष्णु सप्तमी व्रत करते हुए जो भी प्रभु विष्णु का ध्यान मन करता है वह समस्त भव सागरों को पार करके विष्णु धाम को पाता है।

मादा को आकर्षित करने के लिए रुमानी गीत गाते हैं नर चमगादड़

नर चमगादड़ पशु-पक्षियों की दुनिया में सबसे रुमानी गायक होते हैं। वे मादा चमगादड़ को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए खास तरह का स्वर निकालते हैं और अपने स्वर बदलकर मादा चमगादड़ के मनोरंजन के लिए ब्यूह रचते हैं। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। नया अध्ययन टेक्सास ए एंड एम विश्वविद्यालय में किया गया है। फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान के प्रोफेसर और चमगादड़ के व्यवहार के जाने-माने ज्ञाता माइक स्मोदरमैन ने चमगादड़ की स्वर ध्वनियों और गायन पर यह अध्ययन किया। यह अध्ययन ‘एनिमल विहैवियर’ में प्रकाशित हुआ है।

पिछले तीन सालों में उनकी टीम ने बिना पूंछ वाले हजारों मैक्सिकन चमगादड़ों पर टेक्सास में अध्ययन किया, जिसके परिणामस्वरुप नर चमगादड़ के गायक होने का पता चला है। उन्होंने पाया कि खास समय में नर चमगादड़, मादा चमगादड़ को आकर्षित करने के लिए गीत गाते हैं। वे ऐसा जल्दी-जल्दी करते हैं क्योंकि उन्हें जल्दी उड़ना होता है।

स्मोदरमैन के अनुसार, ये चमगादड़ बहुत तीव्र, 30 फीट प्रति सेकेंड के हिसाब से उड़ते हैं। उनके पास मादा को आकर्षित करने लिए एक सेकेंड का केवल दसवां हिस्सा रहता है। जैसे ही मादा चमगादड़ अपने बसेरे से उड़ती है, वे खास अंदाज में मादा का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं और फिर देर तक उसका मनोरंजन करते हैं।

उनका कहना है कि चमगादड़ के गाने में मुहावरे और शब्दांश होते हैं। बिना पूंछ वाले चमगादड़ खास होते हैं और तेजी से अपने मुहावरों को पहचान लेते हैं। नर अपने गाने में बहुत ही रचनात्मक होते हैं। केवल ये चमगादड़ ही नहीं हैं, जो प्रेम गीत गाते हैं। कुछ अन्य पक्षी भी हैं जो सुरीली आवाज निकालते हैं लेकिन स्तनधारी पशुओं में यह नहीं देखा जाता।

ज्यादातर पशु अपने साथी को आकर्षित करने के लिए अलग-अलग हाव-भाव पैदा करते हैं। इस तरह के पक्षी चमकदार रूपक (शरीर से भाव-भंगिमा) बनाते हैं, जबकि चमगादड़ अन्य जानवरों की तुलना में गीत ज्यादा गाते हैं।

16 दिसंबर एक वो था जिसने दुनिया का नक्शा बदला, एक आज है जिसने बेटियों की सोच बदली


16 दिसंबर को भारत की लौह महिला कही जाने वाली इंदिरा गांधी ने देश की मुक्ति वाहिनी भारतीय सेना की जीत से पाकिस्तान के कब्जे से पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त करा दिया था। इस पूरे युद्ध ,में करीब 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना ने आत्मसमर्पण करने के लिये मजबूर कर दिया। 1971 की लड़ाई के बाद 16 दिसंबर की तारीख इतिहास में अमर हो गई| साथ ही भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी एक मजबूत इरादों वाली महिला के तौर पर पूरे विश्व में जाना जाने लगा।

1971 का 16 दिसम्बर जहाँ भारतीय सेना और इंदिरा गांधी को तारीख में अमर कर गया| वही 2012 का 16 दिसंबर भारत में महिलाओं के प्रति समाज की सोच को बदलने वाला साबित हुआ। 16 दिसंबर 2012 को देश की अति सुरक्षित मानी जाने वाली राजधानी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती एक बस में मानवता को शर्मशार करने वाला वो चेहरा सामने आया जिसने हमें ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम किस समाज में रह रहे है और कैसे लोग हमारे इर्द गिर्द विचरते है।

दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती एक बस में कुछ दरिंदो ने एक लड़की के साथ वो क्रूकृत्य किया जिसने हमारे समाज को सोचने और बदलने पर मजबूर कर दिया। उस घटना ने जहाँ देश को झकझोर दिया वहीँ, देश की उस सोच को बदलने पर भी मजबूर किया कि हम जिस समाज में रहते है उस समाज की पुरुष मानसिकता को बदलने की जरुरत है। देश में निर्भया काण्ड के तौर पर मशहूर हुये इस काण्ड ने बलात्कारियों और महिलाओं के प्रति गन्दी सोच रखने वालों के लिये एक सख्त कानून बनाये जाने की जरुरत को उजागर कर दिया।

निर्भया काण्ड ने देश के युवाओ में उबाल ला दिया था, देश के सभी प्रांतो और शहरो में इस काण्ड को लेकर आक्रोश था| वहीँ, लोग बाल्त्कारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाने के लिये सड़कों पर थे। आधुनिक भारत में ऐसा दूसरी बार हुआ था जब किसी मुद्दे को लेकर युवा और अनुभवी लोग कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन और विरोध दोनों एक साथ कर रहे थे। अन्ना आंदोलन जो भ्रष्टाचार को लेकर एक मजबूत लोकपाल बिल लाने के लिये शुरू हुआ था जिसको लेकर देश कि राजधानी दिल्ली से लेकर दूर सिक्किम में भी आंदोलन हुआ| ऐसा ही आंदोलन 16 दिसंबर की घटना के बाद हुआ जिसने बलात्कारियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए हुआ।

इन्ही आंदोलन की आग कहे या लोगो का गुस्सा आज दिल्ली ने आम आदमी पार्टी को इतना मजबूत कर दिया की आज वो दिल्ली में सरकार बनाने की दौड़ में शामिल हो गई। लोगो के गुस्से ने बलात्कार के क़ानून में भी संशोधनकरा दिया जिसे उसी लड़की को समर्पित किया गया। आज देश में महिला अधिकारों के लिए जमकर बहस हो रही है। निर्भया काण्ड ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान दिया। सरकार ने दिवंगत न्यायमूर्ति जे एस वर्मा के नेतृतव में जिस कानून की नीव रखी उस क़ानून का असर भी देश में दिखाई पड़ने लगा है| आज बड़े से बड़ा आदमी भी उस कानून के चंगुल में फंस कर कराह रहा है जिसका ताज़ा तरीन मामला है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुद्धिजीवियों की जमात में शामिल देश के धुरंधर पत्रकार तरुण तेजपाल प्रकरण| वहीँ, कथा वाचक आसाराम बापू और उसके बेटे नारायण स्वामी का कानून के फंदे में फसना।

इन सबके बीच एक बात बुरी हुई कि देश में बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी दर्ज की गई। राजधानी दिल्ली में 2013 में 1121 मामले दर्ज हुये जो बीते वर्ष से दोगुने थे। वहीँ, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का हाल भी बुरा रहा| नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिलायें और प्रांतो से ज्यादा असुरक्षित है। 2012 में प्रदेश में 23 हज़ार 569 मामले दर्ज हुये जो करीब देश में दर्ज मामलों का 10 % है। वही पश्चिम बंगाल जो महिला सशक्तिकरण वाला प्रदेश माना जाता है वहाँ सबसे ज्यादा 30 हज़ार 942 और आंध्र प्रदेश में 28 हज़ार 171 मामले दर्ज हुये। देश के इन तीन बड़े प्रांतों में ही महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले आये। वहीँ, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2012 में 5959 मामले दर्ज हुये थे। दिल्ली पुलिस का बलात्कार मामलों में दर्ज हो रहे केस में बढ़ोतरी पर मानना है कि अब लड़कियों की ऐसे मामलों में शर्मसार होने के दिन खत्म हो गये महिलाओं ने झिझक छोड़कर पुलिस थानो का रुख कर लिया है।

देश में बढ़ रहे मामलों में भले ही समाज और सरकार को नहीं जगाया लेकिन देश की बेटियों को मजबूर से मजबूत बना दिया और बेटियां अपने साथ हुये कुकर्म को दुनिया के सामने लाने लगी। आज देश की महिलाओं ने समाज के दरिंदो को सबक सिखाने के लिये उसी कानून का सहारा लेना मुनासिब समझा जो उनकी दोस्त सहेली निर्भया मर कर उन्हें दे गई। महिलाओं ने आगे बढ़कर सिस्टम और सरकार के प्रति अपना गुस्सा भी दिखाया जिसका सबसे बड़ा परिणाम है दिल्ली में शीला की सल्तनत की विदाई| दिल्ली कि जनता ने अपनी गुस्से को उस पार्टी के हक़ में जाहिर कर दिया जो उसी आंदोलन के बाद निकली थी।

आज भी महिलाओं के प्रति समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरुरत है नहीं तो आने वाले समय में समाज को ऐसे असामाजिक तत्तवों से बचाने के लिये किसी इंदिरा गांधी जैसी मजबूत इरादों वाली महिला या ऐसी सैकड़ो निर्भयाओं की जरुरत पड़ेगी जो इस कुत्सित सोच को बदलने के लिये सड़कों पर निकलेंगी।

‘द ग्रेट खली’ को भी पीछे छोड़ दिया इस महाबली कांस्टेबल ने, जानिए कैसे


वर्ष 2006 में अंडर टेकर को पराजित कर विश्व कुश्ती मुकाबलों में तहलका मचाने वाले ‘द ग्रेट खली’ का नाम कौन नहीं जानता। खली रोजाना 15 से 20 अंडे, चिकन, 1 किलो दूध, केले, सेब और कई तरह के फल और सब्जियां खाते हैं, लेकिन खली की तरह दिखने वाले हरियाणा के अंबाला जिले के गांव दनौरा निवासी 7 फीट 4 इंच लम्बे युवक राजेश कुमार उर्फ महाबली भीम 4 लीटर दूध, 4 किलो चिकन, 5 किलो फल, 40 अंडे, लगभग 40 चपाती रोजाना खाते हैं और हर दो-ढाई घंटे के बाद उन्हें डाइट की जरूरत पड़ती है। 7.4 फीट लंबे राजेश भी खली की तरह ही प्रतिदिन 6 घंटे एक्सरसाइज करते हैं।

आठ भाई-बहनों में राजेश से इतनी ज्यादा ऊंचाई किसी की नहीं है। राजेश की लंबाई उनके लिए फायदेमंद साबित हो रही है। कुछ समय पहले हरियाणा सरकार ने उन्हें पुलिस में नौकरी दी। दावा किया जा रहा है कि भारत में राजेश की लंबाई तीसरे नंबर पर है तथा पंजाब-हरियाणा का सबसे लंबा व्यक्ति है। 38 साल के राजेश 3 साल से यूएसए की WWE रेसलिंग की तैयारी कर रहे हैं। जालंधर से वह इसकी कोचिंग ले रहे थे। करीब एक साल पहले उन्हें हरियाणा पुलिस में कॉन्स्टेबल की जॉब मिल गई। 20 जनवरी को उन्हें हरियाणा पुलिस में एक साल पूरा हो जाएगा। फिलहाल वह ट्रेनिंग के साथ प्रैक्टिस भी कर रहे हैं।

दावा किया जा रहा है कि भारत में राजेश की लंबाई तीसरे नंबर पर है तथा पंजाब-हरियाणा का वह सबसे लंबा व्यक्ति है। राजेश बताते हैं कि महाबली खली उर्फ दलीप सिंह राणा को नाहन में मिलने के बाद उनकी रेसलिंग में जाने की दिलचस्पी बढ़ी। खुराक का खर्च वो अपनी नौकरी और जमीन से होने वाली आय से खुद उठाते हैं। राजेश का बेटा 10वीं क्लास में पढ़ता है और बेटी 7वीं क्लास में पढ़ती है। लंबाई की वजह से राजेश आम लोगों के बीच बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं। यही देख कर उसकी ड्यूटी आम लोगों के बीच जागरूकता लाने वाले कैंपेन में ज्यादा लगाई जाती है, ताकि लोग उसे देखकर रुकें और उसकी बात सुनें। इन दिनों उनकी ड्यूटी हेल्मेट पहनने और सुरक्षित ड्राइविंग के प्रति लोगों को जागरूक करने की लगाई गई है।

'चुड़ैलों' का गांव

यूं तो आपने अंधविश्वास से जुड़े बहुत सारे अजीबो-गरीब किस्से सुने होंगे लेकिन एक ऐसा मामला सच में सकते में डालने वाला है। क्या आपने चुड़ैलों के गांव के बारे में कभी सुना है? अगर नहीं सुना तो बता दें कि अफ्रीकी देश घाना में इस तरह के 6 गांव हैं, जो चुड़ैलों के गांव के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन गांवों में ऐसी महिलाएं रहती हैं, जिन्हें डायन या चुड़ैल कहकर समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है।

इन औरतों को चुड़ैल या डायन घोषित करने की वजह भी बड़ी ही अजीब है। सांप काटने से किसी की मौत किसी व्यक्ति के नदी में डूबकर मर जाने की वजह से कई औरतों को चुड़ैल घोषित कर दिया गया। वह अंधविश्वास के कारण महिलाओं को चुड़ैल घोषित कर देते हैं। उन्हें जिंदा जला दिया जाता है और मानसिक और शरीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। इन सबसे बचने के लिए अपना गांव छोड़कर कहीं दूर चली जाती है।

हाल ही में म्यूनिख की फोटोग्राफर एन क्रिस्टिने वोएहर्ल ने इनकी कुछ तस्वीरें ली है। उनका कहना हैं कि चुड़ैलों के गांव में ये औरतें झोपड़ियां बना कर रहती हैं और आस-पास के खेतों में काम कर खाने का इंतजाम करती हैं। चुड़ैल घोषित की जा चुकी महिलाएं अगर जिंदा बच जाती हैं तो उन्हें अपना घर छोड़कर घाना में मौजूद चुड़ैलों के गांवों में जाना होता है।

आपको बता दें कि करीब-करीब पूरे पश्चिमी अफ्रीका में लोग जादू और चुड़ैलों पर विश्वास करते हैं। हर धर्म, हर जाति, शहर, गांव कहीं के भी हों, इन पर उनका विश्वास है। घाना में इस तरह के 6 गांव हैं, जिनमें गांबागा और गुशीगू प्रमुख हैं। गांव-परिवार छोड़कर चुड़ैलों के गांव में रहने वाली ये महिलाएं अपनी पहचान खो चुकी होती हैं। उनके परिवारिक सदस्य भी उनसे कोई रिश्ता नहीं रखते। वह समाज से पूरी तरह से अलग हो जाती है। इनकी संख्या 1500 के आसपास है।

इंडिया के सबसे एडवांस कमांडो, हाथ पैर बंधे होने पर भी तैर जाते हैं ये


भारतीय नौसेना के स्पेशल कमांडोज जिन्हें आम नज़रों से बचा कर रखा गया है। मार्कोस को जल, थल और हवा में लड़ने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। समुद्री मिशन को अंजाम देने के लिए इन्हें महारत है। मार्कोस को दुनिया के बेहतरीन यूएस नेवी सील्स की तर्ज पर ट्रेंड किया जाता है। मार्कोस कमांडो बनने के लिए कड़े मुकाबले से गुजरना होता है। 20 साल उम्र वाले प्रति 10 हजार युवा सैनिकों में एक का सिलेक्शन मार्कोस के लिए होता है।

जानिए कैसे हुई इस कमांडो यूनिट की स्थापना


पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध के बाद नौसेना में ऐसे कमांडो यूनिट की आवश्यकता महसूस की गई और तब नेवी ने कुछ खास अधिकारियों को इंडियन आर्मी और सिक्‍योरिटी फोर्सेज की ओर से शुरूआती ट्रेनिंग दिलवाई।1986 में नेवी ने एक मैरीटाइम स्‍पेशल फोर्स की योजना शुरू की। इसके बाद तीन आॅफिसर्स को पहले यूएस नेवी सील्‍स कमांडो और फिर ब्रिटिश स्‍पेशल एयर सर्विस के पास एक विशेष कार्यक्रम के तहत ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। इंडियन मैरिटाइम स्‍पेशल फोर्स की स्‍थापना फरवरी 1987 में हुई। इसका नाम वर्ष 1991 में आईएमएसएफ से बदलकर एमसीएफ कर दिया गया। मार्कोस अक्सर विषम परिस्थितियों में हीं बुलाये जाते हैं। मार्कोस कमांडो बनने के लिये 20 साल के युवा सैनिको को चुना जाता है जिन्हे कड़े परीक्षण से गुजरना होता है। करगिल युद्ध में भी मार्कोस कमांडो ने पाकिस्तान को बहुत नुकसान पहुंचाया था।

हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में होते हैं माहिर-


मार्कोस भारतीय नौसेना के स्पेशल मरीन कमांडोज हैं। स्‍पेशल ऑपरेशन के लिए इंडियन नेवी के इन कमांडोज को बुलाया जाता है। ये कमांडो हमेशा आम नज़रों से बचकर रहते हैं। मार्कोस हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में माहिर होते हैं। नौसेना के सीनियर अफसर की मानें तो परिवार वालों को भी उनके कमांडो होने का पता नहीं होता है। मार्कोस का मकसद आतंकियों को उन्हीं के तरीके से मारना, जवाबी कार्रवाई, मुश्किल हालात में युद्ध करना, लोगों को बंधकों से मुक्त कराना जैसे खास ऑपरेशनों को पूरा करना है।

ऐसा मक़बरा जहां जूते मारकर जियारत करते हैं लोग

वैसे किसी व्‍यक्ति के मरने के बाद चाहे वह अच्‍छा हो या बुरा, लोग उसे श्रद्धांजलि देने के लिए फूल ही चढ़ाते हैं, लेकिन उत्‍तर प्रदेश के इटावा जनपद में एक ऐसा भी शख्‍स हुआ है जिसकी कब्र पर फूल नहीं चढ़ाए जाते। बल्कि उसे जूते मारते हैं| यह सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन यह सच है| ये कब्र भोलू सैय्यद की। यहां लोग फूल, अगरबत्‍ती से नहीं बल्कि जूतों से जियारत करते हैं और कब्र को जूतों से पीटकर मन्‍नत पूरी करते हैं।

इटावा से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर इटावा-बरेली राजमार्ग पर है भोलू सैय्यद का यह 500 साल पुराना मकबरा। यहाँ के निवासियों का कहना है कि एक बार इटावा के बादशाह ने अटेरी के राजा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। युद्ध के बाद में इटावा के बादशाह को पता चला कि इस युद्ध के लिए उसका दरबारी भोलू सैय्यद जिम्मेदार था।

इससे नाराज बादशाह ने ऐलान किया कि सैय्यद को इस दगाबाजी के लिए तब तक जूतों से पीटा जाए जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। सैय्यद की मौत के बाद से ही उसकी कब्र पर जूते मारने की परंपरा चली आ रही है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इटावा-बरेली मार्ग पर अपनी तथा परिवार की सुरक्षित यात्रा के लिए सैय्यद की कब्र पर कम से कम पांच जूते मारना जरूरी है।

... इस तरह मोर पंख में समाहित हो गईं 33 करोड़ देवी-देवताओं की शक्तियां


मोर संसार का सबसे सुन्दर पक्षी माना जाता है। सनातन धर्म में मोर पंख को बहुत आदरणीय स्थान प्राप्त है। भारतीय संस्कृति में उसके महत्व को देखते हुए ही भारत सरकार ने भारतीय वन्य परिषद की अनुशंसा पर सन् 1962 में इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। सभी शास्त्रों व ग्रंथो तथा वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र में मोर के पंखों का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है.मोर के पंख घर में रखने का बहुत महत्त्व है इसका धार्मिक प्रयोग भी है, इसे भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुकुट पर स्थान दे कर सम्मान दिया| शास्त्रों के अनुसार मोर के पंखों में सभी देवी-देवताओं और सभी नौ ग्रहों का वास होता है। ऐसा क्यों होता है इसकी हमारे धर्म ग्रंथों में कथा है जो इस प्रकार है -

प्रचलित कथाओं के अनुसार, आदिकाल में संध्यासुर का नाम का एक दैत्य था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। उसने शिव से अतिवीर होने का वरदान भी लिया था। वर पाने के बाद उसे इतना अहंकार हुआ कि उसने विष्णु भक्तों को ही परेशान करना शुरु कर दिया और कई देवताओं को बंदी बना लिया। उसने भक्ति से इतनी शक्ति प्राप्त कर ली थी कि भगवान विष्णु भी उसका वध करने में समर्थ नहीं थे। कहते हैं जब देवतागण, दैत्यासुर के अत्याचार से बहुत दुःखी हो गए तो उन्होंने योगमाया को सहायता के लिए पुकारा योगमाया ने नवग्रहों और देवताओं के तेज से एक पक्षी की रचना की जिसे नाम दिया गया 'मोर'। इस 'दिव्य मोर' के पंखों में छिपकर अपनी शक्तियां बढ़ाईं और एक दिन मोर के साथ असुर पर आक्रमण कर दिया। संध्यासुर मोर के आगे टिक नहीं पाया और मोर के सामने घुटने टेक दिए। तभी से मोर पंख में नवग्रहों और तैंतीस करोड़ देवी देवताओं की शक्ति समाहित हो गई।

घर में मोर पंख को रखने से शुभता का संचार होता है तथा सुख-समृद्धि और लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है। घर के वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं और सकारात्मक शक्तियां सक्रिय होती हैं। सांप मोर पंख से भय खाते हैं क्योंकि मोर का प्रिय आहार है सांप। अत: सांप उस स्थान में नहीं जाते जहां उन्हें मोर या मोर पंख दिखाई देते हैं। जो व्यक्ति सदैव अपने पास मोर पंख रखता है उस पर कोई अमंगल नहीं मंडराता। मोर पंख से बने पंखे को घर के अंदर ऊपर से नीचे फहराने से घर की आसपास की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। मोर पंख को सिर पर धारण करने से विद्या लाभ प्राप्त होता है।

काल-सर्प के दोष को भी दूर करने की इस मोर के पंख में अद्भुत क्षमता है। काल-सर्प वाले व्यक्ति को अपने तकिये के खौल के अंदर 7 मोर के पंख सोमवार रात्री काल में डालें तथा प्रतिदिन इसी तकिये का प्रयोग करे। और अपने बैड रूम की पश्चिम दीवार पर मोर के पंख का पंखा जिसमे कम से कम 11 मोर के पंख तो हों लगा देने से काल सर्प दोष के कारण आयी बाधा दूर होती है। बच्चा जिद्दी हो तो इसे छत के पंखे के पंखों पर लगा दे ताकि पंखा चलने पर मोर के पंखो की भी हवा बच्चे को लगे धीरे-धीरे हठ व जिद्द कम होती जायेगी।

जहां साक्षात रूप में मदिरा पान करते है भगवान काल भैरव

उज्जैन: हमारे देश में अनेक ऐसे मंदिर है जिनके रहस्य आज तक अनसुलझे है। महाकाल की नगरी उज्जैन में भी एक ऐसा ही मंदिर है काल भैरव मंदिर| इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहाँ पर भगवान काल भैरव साक्षात रूप में मदिरा पान करते है। इस मंदिर में जैसे ही शराब से भरे प्याले काल भैरव की मूर्ति के मुंह से लगाते है तो देखते ही देखते वो शराब के प्याले खाली हो जाते है। यह मंदिर सदियों पुराना है लेकिन इसका जीर्णोद्धार करीब 1000 वर्ष पहले परमार कालीन राजाओं ने करवाया था। यहां होने वाली इस चमत्कारिक घटना को देखने देश-विदेश से भक्त आते हैं।

बताया जाता है कि कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों में माँस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्राचीन समय में यहाँ सिर्फ तांत्रिको को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहाँ तांत्रिक क्रियाएँ करते थे। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया। कुछ सालो पहले तक यहाँ पर जानवरों की बलि भी चढ़ाई जाती थी। लेकिन अब यह प्रथा बंद कर दी गई है। पहले बलि के बाद भगवान को बलि का मांस प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता था लेकिन केवल भगवान भैरव को केवल मदिरा का भोग लगाया जाता है। काल भैरव को मदिरा पिलाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। यह कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, यह कोई नहीं जानता।

मंदिर में काल भैरव की मूर्ति के सामने झूलें में बटुक भैरव की मूर्ति भी विराजमान है। बाहरी दिवरों पर अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित है। सभागृह के उत्तर की ओर एक पाताल भैरवी नाम की एक छोटी सी गुफा भी है| कहते है की बहुत सालो पहले एक अंग्रेज अधिकारी ने इस बात की गहन तहकीकात करवाई थी की आखिर शराब जाती कहां है। इसके लिए उसने प्रतिमा के आसपास काफी गहराई तक खुदाई भी करवाई थी। लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। उसके बाद वो अंग्रेज भी काल भैरव का भक्त बन गया।

स्कंद पुराण में इस जगह के धार्मिक महत्व का जिक्र है। इसके अनुसार, चारों वेदों के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया, तो उन्हें इस काम से रोकने के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए। ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी। इस पर शिवजी ने क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया। इस उग्र स्वभाव के बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी का पांचवां मस्तक काट दिया। इससे लगे ब्रह्म हत्या के पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है।

दुनिया के प्रसिद्ध अंडरवाटर होटल

आप दुनिया के बहुत से होटलों व रिजॉर्ट्स में ठहर चुके होंगे, जहां सारी आधुनिक सुविधाएं मौजूद होती हैं। लेकिन आज हम आपको दुनिया के कुछ ऐसे होटलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो समुद्र के अंदर बने हुए हैं। समुद्र के अंदर बने ये होटल अपने-आप में बेहद खास हैं। प्रकृति प्रेमियों को ये होटल पसंद आ सकते हैं। यहां समुद्र के अंदर जिंदगी का मजा लिया जा सकता है। यहां ठहरना किसी रोमांच से कम नहीं हो सकता।

1. मान्टा रिजॉर्ट (The Manta Resort, Pemba Island, Zanzibar)

मान्टा रिजॉर्ट समुद्र में कई फीट अंदर बना हुआ है। यह अफ्रीका का पहला अंडरवाटर होटल। तीन मंजिला ये होटल किसी आइलैंड से कम नहीं लगता। कई सारी सुविधाओं से लैस इस होटल के कमरे छोटे-छोटे हैं। इस होटल में खूबसूरत मछलियों, वाटर डेक के साथ रात रात गुजारने का मौका मिलता है होटल के कमरे से समुद्र के अंदर का नजारा ठहरने वालों को बेहद आकर्षित करता है। इसकी गहराई 13 फीट है।

2. पोजेडॉन अंडरवाटर, फिजी (The Poseidon Underwater Resort, Fiji)

इस होटल की गहराई 40 फीट है। फिजी के इस खूबसूरत से अंडरवाटर होटल में कुल 22 गेस्ट रूम, एक रेस्टोरेंट और बार भी है। इसके अलावा लाइब्रेरी, कॉन्फ्रेंस रूम, बैंकेट हॉल और स्पा की भी सुविधा मौजूद है। होटल के बाहर के नेचर पर्यटकों को खासतौर से पसंद आता है। ये होटल पांच हजार एकड़ के क्षेत्र में पानी से घिरा है। होटल के रूम के बाहर ब्लू व्हेल्स, बॉटल नोज डॉल्फिन्स और रंग-बिरंगी क्लाउनफिश देखने को मिल सकती है।

3. क्रिसेंट हाइड्रोपोलिस, दुबई( Crescent Hydropolis, Dubai)

क्रिसेंट हाइड्रोपोलिस बहुत ही महंगा और कई सारी सुविधाओं से लैस दुबई का मशहूर अंडरवाटर होटल है। जहां ज्यादातर सेलिब्रिटीज और शाही परिवार ही ठहरते हैं। कमरों से लेकर डाइनिंग एरिया, मीटिंग हॉल और इनडोर गेमिंग एरिया तक सभी कुछ ग्लास से बना हुआ है। इसी कारण समुद्र के अंदर मौजूद मछलियों और अन्य जीवों को आसानी से देखा जा सकता है। हरे कुछए और हॉक्सबिल भी देखने को मिल सकते हैं।

4. द शिमाओ वंडरलैंड, चीन (The Shimao Wonderland, China)

इसे गुफा होटल भी कहा जाता है। इसे ब्रिटेन की डिजाइनिंग फर्म एटकिन्स ने डिजाइन किया है। ये होटल चीन की सोंगजियांग में थियानमेंशन पहाड़ों के बीच स्थित है। 19 मंजिला यह होटल पानी के 100 मीटर अंदर मौजूद है। इसमें 380 कमरे हैं।

5. हुवाफेन फुशी (Huvafen Fushi)

पानी के अंदर बने इस होटल से समुद्र का नजारा बहुत ही खूबसूरत दिखता है। हुवाफेन फुशी मालदीव का मशहूर होटल है। इस होटल की खास बात ये है कि इसका निर्माण पानी के अंदर बेहद खूबसूरत तरीके से किया गया है। इतना ही नहीं, इस होटल के बाहरी हिस्से को भी बेहतरीन तरीके से डिजाइन किया गया है। होटल में इनडोर स्टेडियम से लेकर स्पा तक की सुविधाएं मौजूद हैं।

भोपाल गैस त्रासदी: अपनों को अंतिम विदाई तक नहीं दे सके कई परिवार

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहने वाली कुसुम बाई की आंखें अपने दिवंगत पति जयराम को याद कर आज भी डबडबा जाती हैं। यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी गैस ने उन पर ऐसा कहर ढाया कि उन्हें पति का शव तक नहीं मिला। वह जयराम की तस्वीर निहारते सिर्फ यादों के सहारे जी रही हैं। गैस त्रासदी की ऐसी पीड़िताएं और भी हैं।

जहरीली गैस से अपनों को खोने वाले हजारों परिवार हैं, जिन्हें अपनों के शव तक नसीब नहीं हुए। भोपाल में दो-तीन दिसंबर 1984 की रात काल बनकर आई थी। यूनियन कार्बाइड संयंत्र से मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक) गैस रिसी और वह जिस ओर बढ़ी, वहां तबाही मचाती रही। कुसुम बाई बताती हैं कि वह हादसे की रात सो रही थीं, उनके पति ने उन्हें जगाया और कहा, “पूरा भोपाल भागा जा रहा है और तुम हो कि सो रही हो।”

कुसुम ने जैसे ही पति की बात सुनी, वह भी घर से निकल पड़ी। वह बताती हैं कि जहरीली गैस के कारण उनकी आंखों में जलन हो रही थी, फिर भी भागे जा रही थीं। उस रात जिसे जहां रास्ता दिख रहा था, वह भागे जा रहा था। सड़कों पर लोग गिरे हुए थे। बच्चों और महिलाओं की चीख-पुकार से पूरा माहौल मातमी हो गया था। उसी भगदड़ में कुसुम पति से बिछुड़ गईं। काफी खोजा, मगर पति कहीं नहीं मिले।

कुछ ऐसा ही दुख मेवा बाई का है। उसने भी अपने पति किशन को हादसे की रात खो दिया। वह बताती हैं कि उनके पति स्टेशन के पास फर्नीचर बनाने का काम करते थे। जब गैस रिसी तब वह दुकान पर थे। उन्होंने अपनी जान बचाने की बजाय घर आकर उन्हें जगाया। मेवा बाई जागीं और अपने बच्चों के साथ सुरक्षित स्थान की तलाश में भागीं। इसी दौरान वह पति बिछुड़ गईं।

उनके पति का आज तक कहीं कोई सुराग नहीं लगा है। भोपाल ग्रुप फॉर इंफोरमेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा बताती हैं कि प्रशासनिक आंकड़ा हकीकत से मेल नहीं खाता। बताया गया कि हादसे की रात ढाई से तीन हजार लोगों की मौत हुई, लेकिन यह सच्चाई से कहीं दूर है। पहले सात दिन तो हाल यह रहा कि प्रशासन अनगिनत शवों का अंतिम संस्कार करने की स्थिति में नहीं था। आखिरकार शवों की सामूहिक अंत्येष्टि करनी पड़ी और सैकड़ों शव नर्मदा नदी में बहा दिए गए। यही कारण रहा कि हजारों लोगों को अपने परिजनों के शव नसीब नहीं हो सके।

हर धर्म में अंतिम संस्कार का विधान है, मगर गैस पीड़ित हजारों परिवार ऐसे हैं जो अपनों को अंतिम विदाई तक नहीं दे सके। उन्हें 30 वर्ष बाद भी इस बात का मलाल है।

भोपाल गैस त्रासदी: ऐसा दर्द जिसको याद कर कांप जाती है रूह

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड संयंत्र के आसपास की बस्तियों में अब भी हादसे के जख्म बरकरार हैं, हर घर से मरीज के कराहने की आवाज आसानी से सुनी जा सकती है मगर यहां की महिलाएं उस दर्द को सह रही हैं, जिसे वे बयां तक नहीं कर सकती। भोपाल में अब से 30 वर्ष पहले दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड संयंत्र से मिथाइल आइसो सायनाइड (मिक) गैस रिसी थी, इस गैस से हजारों लोग मौत की आगोश में समा गए थे। बीमारियों की वजह से मौत का सिलसिला तो अब भी जारी है।

गैस पीड़ितों में सबसे ज्यादा मरीज आंख, गुर्दे, हृदय, कैंसर, ट्यूमर, त्वचा के हैं। केंद्र सरकार के अधीन आने वाले भोपाल स्मारक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र के अलावा राज्य सरकार के छह अस्पतालों में आने वाले ज्यादातर मरीज इन्हीं रोगों से संबंधित होते हैं। इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है। गैस पीड़ितों की बस्ती में ऐसे घरों की कमी नहीं है जहां महिलाएं बीमारियों के साथ उस दर्द को झेल रही हैं जो उन्हें अपनों को मिली बीमारियों के चलते है। वे इस दर्द को बयां नहीं करती, इसे तो सिर्फ उनके चेहरे पर छाई उदासी से पढ़ा जा सकता है। वे आंसू भी अकेले में बहा देती हैं क्योंकि वे नहीं चाहती कि उनके इस दर्द का कोई भागीदार बने।

जेपी नगर में रहने वाली हाजरा बी अब लगभग 60 वर्ष की हो गई हैं, मगर गैस हादसे की रात को याद कर रो पड़ती हैं। वह कहती हैं कि उनकी तो खुशहाल दुनिया ही उस रात उजड़ गई। तीन बच्चे हैं जो बीमारी का शिकार हैं, पति भी चल बसा, एक नातिन जो सात वर्ष की है, अपंग है। उन्हें सांस की बीमारी है और आंखों के ऑपरेशन के बाद भी साफ दिखाई नहीं देता। वह बताती हैं कि उन्हें गैस हादसे ने वह दर्द दिया है, जिसकी याद कर उनकी रूह कांप जाती है, मगर किसी से कह नहीं सकती। अकेले में रो लेतीं हैं और उस घड़ी को कोसती हैं जब यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से गैस रिसी थी।

गैस हादसे ने शीला देवी की जिंदगी को भी जख्मों से भर दिया। वह खुद सांस की रोगी हैं और उनकी एक बेटी ज्योति तो कई बीमारियों से जूझ रही है। वह बताती है कि 45 वर्ष की ज्योति का शरीर फूल जाता है और उसे खून की कमी है। वह अस्पतालों के चक्कर लगाती रहती हैं, मगर कोई सुधार नहीं हो रहा है। वह ज्योति की शादी करना चाहती थी, मगर गैस के चलते मिली बीमारियों से वे उसका घर नहीं बसा पाई। भोपाल ग्रुप फॉर इन्फार्मेशन एण्ड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा कहती हैं कि गैस के दुष्प्रभाव ने महिलाओं को बीमारियां दी हैं मगर उसके बावजूद वे अपनी जिम्मेदारी व जवाबदारी को निभाने में पीछे नहीं रहती हैं।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार का कहना है कि गैस के दुष्प्रभाव ने महिलाओं को ऐसे रोग दिए हैं, जिसने उनकी जिंदगी को बेरंग कर दिया है। महिलाओं को कैंसर, सांस, ट्यूमर जैसी घातक बीमारियां हैं और उन्हें वह इलाज नहीं मिल पा रहा है जिसकी उन्हें जरुरत है। वे मरीजों का वर्गीकरण न होने पर भी चिंता जताते हैं। भोपाल गैस राहत व पुनर्वास विभाग के आयुक्त आर.ए. खंडेलवाल का कहना है कि राज्य सरकार हर वर्ष गैस पीड़ितों के उपचार पर 90 करोड़ रुपये खर्च करती है। हर वर्ग के बेहतर इलाज के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए गए हैं। केंद्र सरकार के बीएमएचआरसी में तीन लाख 86 हजार गैस पीड़ितों के स्मार्ट कार्ड बनाए जा चुके हैं। राज्य सरकार के अस्पतालों का भी कंप्यूटराईजेशन किया जा चुका है, लिहाजा मरीजों को बिना परेशानी के इलाज मिल रहा है।

खंडेलवाल बताते हैं कि राज्य सरकार के गैस पीड़ितों के अस्पतालों में प्रतिदिन लगभग चार हजार मरीज आते हैं, उनका बेहतर इलाज मुहैया कराया जाता है। सामान्य और गंभीर मरीजों को उनकी जरूरत के मुताबिक सुविधाएं इन अस्पतालों में उपलब्ध है। भोपाल गैस हादसे ने हजारों परिवारों के जीवन को मुसीबतों से भर दिया है और इन मुसीबतों का पहाड़ अगर किसी पर टूट है तो उनमें महिलाएं कहीं ज्यादा है।

…यहाँ झूले पर झूलती हैं मां

अभी तक आपने कई मंदिरों के दर्शन किये होंगे लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के दर्शन कराने जा रहे हैं जहाँ झूले में झूलती हैं मां| उत्तराखंड के रानीखेत माल रोड में घने जंगल के बीच सुरम्य स्थल पर स्थित मां झूला देवी का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केन्द्र है। मान्यता है कि झूला देवी मां के आशीर्वाद कई लोगों के लिए बेहतर फलीभूत हुआ है। मंदिर की स्थापना करीब 700 साल पहले मानी जाती है।

जनश्रुतियों के अनुसार, लगभग 700 साल पहले चौबटिया क्षेत्र के घनघोर जंगल में बड़ी संख्या में चीते, बाघ, शेर व अन्य जंगली जानवरों का वास था। उस दौर में क्षेत्र के ग्रामीण इनके आतंक से बेहद दुखी हो गए। ग्रामीणों व उनके मवेशियों पर आए दिन हमला होने लगा। इसके बाद दुखी ग्रामीणों ने मां की भक्ति की। इस भक्ति से खुश होकर मां देवी ने पिलखोली निवासी एक व्यक्ति को सपने में दर्शन दिए और दबी मूर्ति के बारे में बताया। उस जगह खुदाई में ग्रामीणों को आकर्षक मूर्ति मिली। उसी स्थान पर मां का मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित की गई और कहते हैं कि तब से पूजा-अर्चना शुरू हुई, तो जंगली जानवरों के आतंक से ग्रामीण मुक्त हुए।

झूले के पीछे मान्यता है कि एक बार सावन माह में मां ने एक व्यक्ति को फिर स्वप्न में बच्चों की भांति झूले में झूलने की इच्छा जताई। तो ग्रामीणों ने एक झूला तैयार कर मां की मूर्ति उसमें स्थापित कर दी। तभी से मंदिर झूला देवी मां के नाम से विख्यात हो गया। मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि यह मंदिर लगभग 14वीं सदी का है। आज भी रात को बाघ व गुलदार मंदिर के इर्द-गिर्द विचरण करते हैं, किंतु माता की कृपा से कोई नुकसान नहीं पहुंचाते।

कितने जागरूक हैं हम?

‘एक्वायर्ड इम्युनो डेफिशियेन्सी सिन्ड्रोम’ (एड्स) के बारे में आज शायद ही ऐसा कोई होगा जो इससे अनभिज्ञ हो| एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सरकार और समाजसेवी संस्था समय-समय पर इससे सम्बंधित अभियान चला रही हैं, लेकिन जो सबसे दुःख की बात है वह यह है कि सरकार व समाजसेवी संस्थाओं द्वारा चलाये गए इन अभियानों के बाद भी लोग अनजान बने हुए हैं| हर साल की तरह आज (1 दिसंबर 2015) भी ‘विश्व एड्स दिवस’ दुनियाभर में मनाया जा रहा है|

‘विश्व एड्स दिवस’ के अवसर पर सरकार विभिन्न स्थानों पर समारोह आयोजित कर लोगों में जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रही है| लेकिन अगर देखा जाये तो एक सच ये भी है कि आज भी हमारे देश में, हमारे शहर में और हमारे गाँव में एड्स के चक्रवात में फँसे लोगों की स्थिति बेहतर नहीं है|

आखिर क्यों कतराते हैं लोग

हमारे देश में जो लोग एड्स से पीड़ित हैं वह इस बात को स्वीकार करने से कतराते हैं| जिसका मुख्य कारण है ‘भेदभाव’| कहीं न कहीं, आज भी एचआईवी पॉजीटिव व्यक्तियों के प्रति भेदभाव की भावना रखी जाती है| अगर एड्स पीड़ित व्यक्ति के प्रति सद्भावना का भाव रखा जाये तो इस स्थिति में सुधार लाया जा सकता है| लेकिन ये तभी हो सकता है जब देश का हर नागरिक इसके प्रति जागरूक हो और अपना अहम योगदान देने के लिए तात्पर्य हो|

निम्न वर्ग में एड्स पीड़ितों की संख्या अधिक

बात अगर जागरूकता की करे तो ये कहना गलत नहीं होगा कि उच्च वर्ग की अपेक्षा निम्न वर्ग में इसके प्रति लोग कम जागरूक हैं| निम्न वर्ग के लोगों में अभी भी जानकारी का अभाव है| इसलिए भी इस वर्ग में ‘एचआईवी पॉजीटिव’ लोगों की संख्या अधिक है| जबकि बहुत सी संस्थाएँ निम्न वर्ग के लोगों में इस बात के प्रति जागरूकता अभियान चला रही हैं|

कई बार ऐसा होता है कि लोगों को इस बारे में जानकारी होती है लेकिन वह किसी तरह की कोई सावधानी नहीं बरतना चाहते| जिन कारणों से ‘एड्स’ होता है उससे बचने के बजाए अनदेखा कर जाते हैं| वहीँ कई लोग असुरक्षित यौन संबंध और संक्रमित रक्त के कारण एड्स की चपेट में आते हैं|

एड्स के खिलाफ कार्य कर रही कई सरकारी संस्थाएँ

‘एड्स’ के खिलाफ आज देश में कई समाज सेवी और सरकारी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं| इनका उद्देश्य लोगों को जागरूक करना, एड्स से पीड़ित लोगों को समाज में उचित स्थान दिलाना व उनका उपचार कराना है| इन संस्थानों में से कुछ ‘फेमेली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया’, ‘विश्वास’, ‘भारतीय ग्रामीण महिला संघ’ और ‘मध्यप्रदेश वॉलेन्ट्री हेल्थ एसोसिएशन आदि है| इन संस्थानों का मुख्य उद्देश्य ‘एचआईवी मुक्त समाज’ का निर्माण करना है| संस्थानों का मानना है कि एड्स की वजह से फैले भेदभाव को कम करने के लिए ‘एचआईवी कानून’ की बेहद जरुरी है|

जीत हार के तंज कसने पर प्रधान समर्थकों में चली लाठियां, हुआ पथराव

हैदरगढ़: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के लोनीकटरा थाना क्षेत्र के अंतर्गत इलियासपुर गांव में चुनावी रंजिश के चलते दो प्रत्याशियों के समर्थक के बीच जमकर लाठी-डंडे चले। मारपीट में तीन लोग जख्मी हो गए। घायल तीन समर्थकों को गंभीर अवस्था में जिला चिकित्सालय रेफर किया गया है। पुलिस ने दोनों पक्ष की शिकायत पर तेरह के खिलाफ शांति भंग की धाराओं में कार्रवाई की है।

लोनीकटरा थाना क्षेत्र के ग्राम इलियासपुर मौजूदा प्रधान नन्हा प्रसाद वर्मा इस बार फिर मैदान में वहीं उनके खिलाफ भगौती वर्मा ने भी प्रधानी के लिए नामांकन कर दावेदारी ठोंकी है। मंगलवार देर रात भगौती प्रसाद वर्मा के समर्थक अंकित पुत्र अमर सिंह, ललित वर्मा, देशबंधु, रज्जन लाल, गिरिजा शंकर, राम कुमार आदि अपने पक्ष में वोट मांग रहे थे। इसी दौरान नन्हा प्रसाद वर्मा के समर्थक भी वहां वोट मांगने पहुंचे। एक दूसरे पर हारने और जीतने की बात को लेकर छींटा कसी शुरू हो गई। देखते ही देखते दोनों पक्षों में संघर्ष शुरू हो गया। दोनों पक्षों से लाठियां चलीं तो जमकर पथराव हुआ।

इस वारदात में भगौती प्रसाद वर्मा के समर्थक अंकित व ललित गंभीर रूप से घायल हो गए। वहीं नन्हा प्रसाद वर्मा के समर्थक प्रदीप व अवधेश घायल हुए। मामला थाने पहुंचा तो पुलिस ने घायलों को उपचार के लिए भेजा जहां से अंकित व ललित को सीएचसी से जिला अस्पताल रेफर किया गया है।

थानाध्यक्ष अरूण द्विवेदी ने बताया कि घायल अंकित के पिता अमर सिंह की तहरीर पर अमरदीप वर्मा, धीरज कुमार, जगन्नाथ, अवधेश, चंद्र नारायण और प्रदीप पटवा पर मारपीट का मुकदमा दर्ज किया गया है। वहीं दूसरे पक्ष से प्रदीप की तहरीर पर अमर सिंह, अंकित, देशबंधु, तेज बहादुर, गिरजाशंकर, सार्जन लाल व राम कुमार के खिलाफ भी इसी धारा में मुकदमा दर्ज किया गया है। द्विवेदी ने कहा सभी 13 ग्रामीणों के खिलाफ शांति भंग की धाराओं में कार्रवाई की गई है और मौके की जांच कर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

बिहार का सोनपुर का मेला, इससे बड़ा नहीं है पशु बाजार

प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लगने वाला सोनपुर पशु मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है| यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है लेकिन इस मेले की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां सूई से लेकर हाथी तक की खरीदारी की जा सकती है| इस वर्ष यह मेला 23 नवम्बर से शुरू होगा और 24 दिसम्बर को खत्म होगा| 

बिहार के सारण और वैशाली जिले की सीमा पर गंगा और गंडक नदी के संगम पर ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व वाले सोनपुर में विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला (हरिहर क्षेत्र मेला) शुरू हो गया। एक महीने तक चलने वाले इस मेले की पहचान ऐसे तो सबसे बड़े पशु मेले की रही है, परंतु मेले में आमतौर पर सभी प्रकार के सामान मिलते हैं। मेले में जहां देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग पशुओं के क्रय-विक्रय के लिए पहुंचते हैं, वहीं विदेशी सैलानी भी यहां खिंचे चले आते हैं।

मेला प्रारंभ होते ही देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए पहुंचते हैं। पूरा मेला परिसर सज-धज कर तैयार है। मेले के इतिहास के विषय में बताया जाता है कि इस मेले का प्रारंभ मौर्य काल के समय हुआ था। चंद्रगुप्त मौर्य सेना के लिए हाथी खरीदने के लिए यहां आते थे। स्वतंत्रता आंदोलन में भी सोनपुर मेला क्रांतिकारियों के लिए पशुओं की खरीदारी के लिए पहली पसंद रही।

सोनपुर के बुजुर्गो के अनुसार वीर कुंवर सिंह जनता को अंगेजी हुकूमत से संघर्ष के लिए जागरुक करने के लिए और अपनी सेना की बहाली के लिए यहां आए व यहां से घोड़ों की खरीदारी भी की थी। सोनपुर निवासी 78 वर्षीय बृजनंदन पांडेय कहते हैं कि इस मेले में हाथी, घोड़े, ऊंट, कुत्ते, बिल्लियां और विभिन्न प्रकार के पक्षियों सहित कई दूसरे प्रजातियों के पशु-पक्षियों का बाजार सजता है। यह मेला केवल पशुओं के कारोबार का बाजार ही नहीं, बल्कि परंपरा और आस्था का भी मिलाजुला स्वरूप है।

इस मेले से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के बीच कोनहारा घाट पर संग्राम हुआ था। जब गज कमजोर पड़ने लगा तो उसने अपने अराध्य को पुकारा और भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के बीच युद्ध का अंत किया था।

इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त श्रद्धा से पहुंचते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान राम ने सीता स्वयंवर में जाते समय किया था। बुजुर्ग बताते हैं कि पूर्व में मध्य एशिया से व्यापारी पर्शियन नस्ल के घोड़ों, हाथी और ऊंट के साथ यहां आते थे। इस मेले की विशेषता है कि यहां सभी पशुओं का अलग-अलग बाजार लगता है।

धीरे-धीरे इस मेले में पशुओं की संख्या कम होती जा रही है। बिहार पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव बी़ प्रधान भी कहते हैं कि सोनपुर मेले में पशुओं की संख्या कम होना चिंता का विषय है। पशुओं के प्रति लोगों की दिलचस्पी कम होती जा रही है। इस वजह से पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए प्रशासन भी अपने स्तर से बहुत कुछ नहीं कर पा रहा है। प्रधान कहते हैं कि मेले के इतिहास को जीवित रखने के लिए विभाग ने असम, पश्चिम बंगाल समेत दूसरे राज्यों से पशुओं को मंगवाने की कोशिश की है। वे कहते हैं कि मेले के परंपरागत और ग्रामीण स्वरूप बनाए रखते हुए हर साल इसे आधुनिक और आकर्षक रूप प्रदान करने के प्रयास किए जाते हैं।

मेले की धार्मिक, एतिहासिक और पौराणिक महता को देखते हुए और इसे पर्यटन एवं दुनिया के मानचित्र पर लाने के लिए वेबसाइट के साथ-साथ अन्य प्रचार माध्यमों से प्रचार-प्रसार करवाया जा रहा है। इस मेले में नौटंकी, पारंपरिक संगीत, नाटक, जादू, सर्कस जैसी चीजें भी लोगों के मनोरंजन के लिए होती हैं। सोनपुर बिहार की राजधानी पटना से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सोनपुर पहुंचने के लिए सड़क का जरिया सबसे सुगम माना जाता है। सोनपुर में ठहरने के लिए टूरिस्ट विलेज बने हुए हैं जो उचित दर पर उपलब्ध हैं। 

कार्तिक पूर्णिमा पर लगाए आस्था की डुबकी

कार्तिक का महीना बहुत पवित्र माना गया है। इस माह में की गई भक्ति-आराधना का पुण्य कई जन्मों तक बना रहता है। इस माह में किए गए दान, स्नान, यज्ञ, उपासना से श्रद्धालु को तुरंत ही शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 25 नवम्बर दिन बुधवार को है |

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा शाम भगवान श्रीहरि ने मत्स्यावतार के रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस अवतार की तिथि होने की वजह से आज किए गए दान, जप का पुण्य दस यज्ञों से प्राप्त होने वाले पुण्य के बराबर माना जाता है। पूर्णिमा पर पवित्र नदिनों में दीपदान करने की भी परंपरा हैं। देश की सभी प्रमुख नदियों में श्रद्धालुओं द्वारा दीपदान किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यदि कृतिका नक्षत्र आ रहा हो तो यह महाकार्तिकी होती है। भरणी नक्षत्र होने पर यह विशेष शुभ फल देती है। रोहिणी नक्षत्र हो तो इस दिन किए गए दान-पुण्य से सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति है।

कार्तिक पूर्णिमा की पूजन विधि-

इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर पूरा दिन निराहार रहते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं| श्रद्धालुगण इस दिन गंगा स्नान के लिए भी जाते हैं, जो गंगा स्नान के लिए नहीं जा पाते वह अपने नगर की ही नदी में स्नान करते हैं| भगवान का भजन करते हैं| संध्या समय में मंदिरों, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाते हैं| लम्बे बाँस में लालटेन बाँधकर किसी ऊंवे स्थान में “आकाशी” प्रकाशित करते हैं| इस व्रत को करने में स्त्रियों की संख्या अधिक होती है|

इस दिन कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने वाले व्यक्ति को ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराना चाहिए| भोजन से पूर्व हवन कराएं| संध्या समय में दीपक जलाना चाहिए| अपनी क्षमतानुसार ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देनी चाहिए| कार्तिक पूर्णिमा के दिन रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन करने पर शिवा, प्रीति, संभूति, अनुसूया, क्षमा तथा सन्तति इन छहों कृत्तिकाओं का पूजन करना चाहिए| पूजन तथा व्रत के उपरान्त बैल दान से व्यक्ति को शिवलोक प्राप्त होता है, जो लोग इस दिन गंगा तथा अन्य पवित्र स्थानों पर श्रद्धा – भक्ति से स्नान करते हैं, वह भाग्यशाली होते हैं|

कार्तिक पूर्णिमा की कथा-

प्राचीन समय की बात है, एक नगर में दो व्यक्ति रहते थे| एक नाम लपसी था और दूसरे का नाम तपसी था| तपसी भगवान की तपस्या में लीन रहता था, लेकिन लपसी सवा सेर की लस्सी बनाकर भगवान का भोग लगाता और लोटा हिलाकर जीम स्वयं जीम लेता था| एक दिन दोनों स्वयं को एक-दूसरे से बडा़ मानने के लिए लड़ने लगे| लपसी बोला कि मैं बडा़ हूं और तपसी बोला कि मैं बडा़ हूँ, तभी वहाँ नारद जी आए और पूछने लगे कि तुम दोनों क्यूं लड़ रहे हो? तब लपसी कहता है कि मैं बडा़ हूं और तपसी कहता है कि मैं बडा़ हूँ| दोनों की बात सुनकर नारद जी ने कहा कि मैं तुम्हारा फैसला कर दूंगा|

अगले दिन तपसी नहाकर जब वापिस आ रहा था, तब नारद जी ने उसके सामने सवा करोड़ की अंगूठी फेंक दी| तपसी ने वह अंगूठी अपने नीचे दबा ली और तपस्या करने बैठ गया| लपसी सुबह उठा, फिर नहाया और सवा सेर लस्सी बनाकर भगवान का भोग लगाकर जीमने लगा| तभी नारद जी आते हैं और दोनों को बिठाते हैं| तब दोनों पूछते है कि कौन बडा़ है? तपसी बोला कि मैं बडा़ हूँ| नारद जी बोले – तुम गोडा़ उठाओ और जब गोडा़ उठाया तो सवा करोड़ की अंगूठी निकलती है| नारद जी कहते हैं कि यह अंगूठी तुमने चुराई है| इसलिए तेरी तपस्या भंग हो गई है और लपसी बडा़ है|

सभी बातें सुनने के बाद तपसी नारद जी से बोला कि मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा? तब नारद जी उसे कहते हैं – तुम्हारी तपस्या का फल कार्तिक माह में पवित्र स्नान करने वाले देगें उसके आगे नरद जी कहते हैं कि सारी कहानी कहने के बाद जो तेरी कहानी नहीं सुनाएगा या सुनेगा, उसका कार्तिक का फल खत्म हो जाएगा|

भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व है छठ पूजा



दीपवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने वाले छठ महापर्व का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी का व्रत करने का विधान है। छठ पूजा का आयोजन आज बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के हर कोने में किया जाता है दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई चेन्न्ई जैसे महानगरों में भी समुद्र किनारे जन सैलाब दिखाई देता है| इस पर्व की महत्ता इतनी है कि अगर घर का कोई सदस्य बाहर है तो इस दिन घर पहुँचने का पूरा प्रयास करता है। देश के साथ-साथ अब विदेशों में रहने वाले लोग अपने -अपने स्थान पर इस पर्व को धूम-धाम से मनाते हैं।


बिहार का प्रमुख लोकपर्व छठ इस वर्ष 16 नवम्बर दिन सोमवार को व्रतियों के 'नहाय-खाय' के साथ प्रारंभ होगा। छठ के अवसर पर व्रत रखने वाली महिलाएं जहां महापर्व की तैयारियों में जुट गई हैं वहीं, छठ बाजार भी सजने लगे हैं। बाजार में सूप, दउरा, आम की लकड़ी, चूल्हा और फलों की दुकानें सज चुकी हैं।


व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी खाएंगी। इस दिन खाने में सेंधा नमक का ही प्रयोग किया जाता है। दूसरे दिन सोमवार को कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के मौके पर दिनभर व्रत रखने वाली महिलाएं उपवास कर शाम को विधि विधान से रोटी तथा गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार करेंगी और फिर सूर्य भगवान का स्मरण कर प्रसाद ग्रहण करेंगी। इस पूजा को 'खरना' कहा जाता है।


क्यों मनाते है छठ पूजा-


छठ पूजा का प्रारंभ आज से नहीं बल्कि महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है। यह मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है।


छठ पूजा की विधि-


छठ पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। इसे छठ से दो दिन पहले चौथ के दिन शुरू करते हैं जिसमें दो दिन तक व्रत रखा जाता है। इस पर्व की विशेषता है कि इसे घर का कोई भी सदस्य रख सकता है तथा इसे किसी मन्दिर या धार्मिक स्थान में न मना कर अपने घर में देवकरी ( पूजा-स्थल) व प्राकृतिक जल राशि के समक्ष मनाया जाता है।


तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के लिए महिलाएँ कई दिनों से तैयारी करती हैं, इस अवसर पर घर के सभी सदस्य स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते हैं| जहाँ पूजा स्थल होता है वहाँ नहा धो कर ही जाते हैं| यही नही, तीन दिन तक घर के सभी सदस्य देवकरी के सामने जमीन पर ही सोते हैं।


पर्व के पहले दिन पूजा में चढ़ावे के लिए सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के मौसमी फल, केले की पूरी गौर (गवद), इस पर्व पर खासतौर पर बनाया जाने वाला पकवान ठेकुआ ( बिहार में इसे खजूर भी कहते हैं। यह गेहूं के आटे और गुड़ व तिल से बने हुए पुए जैसा होता है), नारियल, मूली, सुथनी, अखरोट, बादाम, नारियल, इस पर चढ़ाने के लिए लाल/ पीले रंग का कपड़ा, एक बड़ा घड़ा जिस पर बारह दीपक लगे हो गन्ने के बारह पेड़ आदि।


पहले दिन महिलाएँ नहा धो कर अरवा चावल, लौकी और चने की दाल( जिनमे सेंधा नमक ही डाला जाता है) का भोजन करती हैं और देवकरी में पूजा का सारा सामान रख कर दूसरे दिन आने वाले व्रत की तैयारी करती हैं।


छठ पर्व पर दूसरे दिन पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की खीर बनाकर देवकरी में पांच जगह कोशा ( मिट्टी के बर्तन) में खीर रखकर उसी से हवन किया जाता है। बाद में प्रसाद के रूप में खीर का ही भोजन किया जाता है व सगे संबंधियों में इसे बाँटा जाता है।


तीसरे यानी छठ के दिन 24 घंटे का निर्जल व्रत रखा जाता है, सारे दिन पूजा की तैयारी की जाती है और पूजा के लिए एक बांस की बनी हुई बड़ी टोकरी, जिसे दौरी कहते हैं, और सूप में पूजा के सभी सामान डाल कर देवकरी में रख दिया जाता है। देवकरी में गन्ने के पेड़ से एक छत्र बनाकर और उसके नीचे मिट्टी का एक बड़ा बर्तन, दीपक, तथा मिट्टी के हाथी बना कर रखे जाते हैं और उसमें पूजा का सामान भर दिया जाता है। वहाँ पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल कपड़े में लिपटा हुआ नारियल, कम से कम पांच प्रकार के फल, पूजा का अन्य सामान ले कर दौरी में रख कर घर का पुरूष इसे अपने हाथों से उठा कर नदी, समुद्र या पोखर पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो जाए इसलिए इसे सिर के उपर की तरफ रखते हैं। पुरूष, महिलाएँ, बच्चों की टोली एक सैलाब की तरह दिन ढलने से पहले नदी के किनारे सोहर गाते हुए जाते हैं :-


काचि ही बांस कै बहन्गिया, बहिंगी लचकत जाय

भरिहवा जै होउं कवनरम, भार घाटे पहुँचाय

बाटै जै पूछेले बटोहिया, ई भार केकरै घरै जाय

आँख तोरे फूटै रे बटोहिया, जंगरा लागै तोरे घूम

छठ मईया बड़ी पुण्यात्मा, ई भार छठी घाटे जाय


नदी किनारे जाकर नदी से मिट्टी निकाल कर छठ माता का चौरा बनाते हैं वहीं पर पूजा का सारा सामान रख कर नारियल चढ़ाते हैं और दीप जलाते हैं। उसके बाद टखने भर पानी में जा कर खड़े होते हैं और सूर्य देव की पूजा के लिए सूप में सारा सामान ले कर पानी से अर्घ्य देते हैं और पाँच बार परिक्रमा करते हैं। सूर्यास्त होने के बाद सारा सामान ले कर सोहर गाते हुए घर आ जाते हैं और देवकरी में रख देते हैं। रात को पूजा करते हैं। कृष्ण पक्ष की रात जब कुछ भी दिखाई नहीं देता श्रद्धालु अलस्सुबह सूर्योदय से दो घंटे पहले सारा नया पूजा का सामान ले कर नदी किनारे जाते हैं। पूजा का सामान फिर उसी प्रकार नदी से मिट्टी निकाल कर चौक बना कर उस पर रखा जाता है और पूजन शुरू होता है।


सूर्य देव की प्रतीक्षा में महिलाएँ हाथ में सामान से भरा सूप ले कर सूर्य देव की आराधना व पूजा नदी में खड़े हो कर करती हैं। जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है सब लोगों के चेहरे पर एक खुशी दिखाई देती है और महिलाएँ अर्घ्य देना शुरू कर देती हैं। शाम को पानी से अर्घ्य देते हैं, लेकिन सुबह दूध से अर्घ्य दिया जाता है। इस समय सभी नदी में नहाते हैं तथा गीत गाते हुए पूजा का सामान ले कर घर आ जाते हैं। घर पहुँच कर देवकरी में पूजा का सामान रख दिया जाता है और महिलाएँ प्रसाद लेकर अपना व्रत खोलती हैं तथा प्रसाद परिवार व सभी परिजनों में बांटा जाता है।


छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए कोशी भरी जाती है इसके लिए छठ पूजन के साथ -साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी का बड़ा घड़ा जिस पर छ: दिए होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है। कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है।


रात छठिया मईया गवनै अईली

आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली

बिलम्बली – बिलम्बली कवन राम के अंगना

जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां,

जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा

उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे तहवां ||

दीपावली कल, इस तरह करें महालक्ष्मी और श्रीगणेश को प्रसन्न

हर वर्ष भारतीय पंचांग के कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इस वर्ष दिपावली, 12 नवम्बर दिन बुधवार को होगी| दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है| कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार के साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार आया| इसके लिये उसने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी| तपस्या पूरी होने पर लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित वरदान दे दिया| वरदान प्राप्त करने के बाद वह साधु राजा के दरबार में पहुंचा और सिंहासन पर चढ कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया|

राजा ने देखा कि मुकुट के अन्दर से एक विषैला सांप निकल कर भागा| यह देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, क्योकि साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की थी| इसी प्रकार एक बार साधु ने सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा, सभी के बाहर जाते ही, राजमहल गिर कर खंडहर में बदल गया| राजा ने फिर उसकी प्रशंसा की, अपनी प्रशंसा सुनकर साधु के मन में अहंकार आने लगा| साधु को अपनी गलती का पता चला, उसने गणपति को प्रसन्न किया, गणपति के प्रसन्न होने पर राजा की नाराजगी दूर हो गई, और साधु को उसका स्थान वापस दे दिया गया| इसी लिए कहा गया है कि धन के लिये बुद्धि का होना आवश्यक है. यही कारण कि दीपावली पर लक्ष्मी व श्री गणेश के रुप में धन व बुद्धि की पूजा की जाती है|

दीपावली यानी दीप पक्तियां, अमावस्या को जब चन्द्रमा और सूर्य दोनों किसी भी एक डिग्री पर होते हैं तो गहन अंधकार को जन्म देते हैं। दीपावली गहन अंधकार में भी प्रकाश फैलने का पर्व है, यह त्योहार हम सभी को प्रेरणा देता है कि अज्ञान रूपी अंधकार में भटकने के बजाय हम अपने जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश से उजाला करें और जगत के कल्याण में सहभागिता करें। कहते हैं कि दीपावली की रात्रि को महालक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति या परिवार पर पड़ जाती है उसे कभी धन का अभाव नहीं होता है और उसके घर में हमेशा सुख-समृद्धि रहती है| दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कुछ पूजा-आराधना इस प्रकार से करनी चाहिये कि पूरे वर्ष धन-धान्य में वृद्धि होकर सुख-समृद्धि बनी रहे और निरन्तर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। रावण के पास जो सोने की लंका थी, कहते हैं वह लंका रावण को महालक्ष्मी की कृपा से ही प्राप्त हुई थी। रावण के भाई कुबेर जो धनाधिपति के रूप में भी जाने जाते हैं, उनके साथ भी लक्ष्मी का शुभ आर्शीवाद ही था। दीपावली के शुभ अवसर पर भगवती महालक्ष्मी जी एवं गणेश जी का ही विशेष पूजन किया जाता है, क्योंकि पूरे वर्ष में एक यही पर्व है जिसमें लक्ष्मी का पूजन भगवान विष्णु के साथ नहीं होता क्योंकि भगवान विष्णु तो चार्तुमास शयन कर रहे हैं इसलिये लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन दीपावली के शुभ अवसर पर किया जाता है|

माँ लक्ष्मी की पूजा के लिये लक्ष्मी-गणेश की नवीन मूर्ति, श्रीयंत्रा, कुबेर मंत्रा, फल-फूल, धूप-दीपक, खील-बतासे, मिठाई, पंचमेवा, दूध, दही, शहद, गंगाजल, रोली, कलावा, कच्चा नारियल, तेल के दीपक, व दीपकों की कतार और एक घी के दीपक जलाएं| पूजन के लिये एक थाली में रोली से ओम और स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गणेश जी व माता लक्ष्मी जी को स्थापित करे। थाली में एक तरफ षोडस् मातृका पूजन के लिये रोली से 16 बिन्दु लगायें। नवग्रह पूजन के लिये रोली से ही खाने बनायें, सर्प आकृति बनायें, एक तरफ अपने पितरों को स्थान दें, अब आप पूर्व की दिशा या उत्तर की दिशा में मुहं कर बैठकर आचमन, पवित्रो-धारण-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर यह मंत्र ( ओइम् अपवित्राः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोडपि वा। य स्मरेत पुण्डरीकाक्षं सः बाह्य अत्यंतरः शुचि।।) पढ़ते हुये गंगाजल छिड़ककर शुद्ध कर लें| तत्पश्चात सभी देवी-देवताओं को गंगाजल छिड़ककर स्नान करायें, स्नान करने के बाद उनको तिलक करें, इसके पश्चात् गंगाजल मिले हुए जल से भरा लोटा या कलश का पूजन करे, डोरी बांधे, रोली से तिलक करे, पुष्प व चावल कलश पर वरूण देवता को नमस्कार करते हुये अर्पित करें। इतना करने के बाद थाली में जो 9 खाने वाली जगह है, उस पर रोली, डोरी, पुष्प, चावल, फल, मिठाई आदि चढ़ाते हुये नवग्रह का ध्यान व प्रणाम करे और प्रार्थना करें कि सभी नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृह॰, शुक्र, शानि, राहू, केतू शान्ति प्रदान करें| इसके पश्चात इस मंत्र के द्वारा कुबेर का ध्यान करें-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च। भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥

इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें और उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज के निमित्त पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 11 नवम्बर मंगलवार को है। नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीयों की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बरात सजायी जाती है।

नरक चतुर्दशी की एक और कथा प्रचलित है| प्राचीन काल की बात है रन्तिदेवी नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था, लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं मतलब मैं नरक में जांऊगा। राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेगा। राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे। राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया।

नरक चतुर्दशी आज, जानिए इसके पीछे की कहानी

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज के निमित्त पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 11 नवम्बर मंगलवार को है। नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीयों की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बरात सजायी जाती है।

नरक चतुर्दशी की एक और कथा प्रचलित है| प्राचीन काल की बात है रन्तिदेवी नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था, लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं मतलब मैं नरक में जांऊगा। राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेगा। राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे। राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया।

कम खर्च में ऐसे मनाएं पर्यावरण अनुकुल दीपावली

दीपावली का त्योहार आते ही सभी घरों में साफ-सफाई व साज सज्जा की शुरूआत हो जाती है। दिवाली का जिक्र होते ही आंखों के सामने दीपों की जगमगाहट और कानों में पटाखे की आवाज गूंज उठती है। जहां सभी चाहते हैं कि उनके घर की सजावट पारंपरिक होने के साथ साथ कुछ अलग हट कर हो, वहीं अधिक खर्च से बजट गड़बड़ा जाने की चिन्ता भी सबको सताती है। ऐसे में कम खर्चे में ही रचनात्मक तरीकों को अपनाकर घर की शोभा बढ़ाई जा सकती है।

दिवाली पर बंदनवार व रंगोली बनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आज बाजार में बहुत प्रकार के बंदनवार उपलब्ध है, लेकिन आप चाहें तो अपने घर पर ही बंदनवार बना सकते हैं जो बजट में कम होने के साथ आर्कषक भी लगेगी और आप अवश्य ही तारीफ की पात्र भी होंगी। पुराने जमाने में लोग अपने घरों के दरवाजों पर रंगीन फूलों, अशोक व आम के पत्तों आदि से बंदनवार सजाते थे, लेकिन इस आधुनिक युग में सबको चलन से हटकर चलना पसंद है इसलिए कुछ नए प्रकार के बंदनवार बनाए जा सकते हैं। इनमें जरी बार्डर बंदनवार बनाने के लिए कोई भी व्यक्ति अपनी पंसद के साइज के बुकरम के दोनों तरफ जरी बार्डर लगा सकता है, फिर उस पर स्टोन व मिरर चिपका दे, अंत में मोती या घुंघरू भी सुई धागे की सहायता से लगाई जा सकती है। इसे अपने दरवाजे पर लगाएं, यह डिजाइनर होने के साथ-साथ पारंपरिक लुक भी देगा।

इसी तरह सुनहरा चमकीला बंदनवार बनाने के लिए बुकरम की चौड़ी पट्टी पर फेविकोल की मदद से सुनहरा रंग चिपकाएं फिर उस पर टिशू का रिबन बनाकर डिजाइन तैयार करें। अब फूल पत्तियां चिपकाएं। फिर सुई-धागे में मोती और सितारे पिरो कर बंदनवार में जगह-जगह लगाएं। इस तरह आकर्षक बंदनवार बनाकर घर सजाया जा सकता है। इसके अलावा दीपावली पर खास महत्व रखने वाले दीयों की जगमगाहट से दीवाली की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं, पर इनके साथ कुछ नए तरीके अपनाकर और भी आकर्षक बनाया जा सकता है। बाजार में उपलब्ध मोमबत्ती जिनके साथ नीचे छोटा स्टैण्ड होता है, उन्हें ले आइए फिर घर में उपलब्ध बहुत सारे कांच के छोटे छोटे व रंगीन जार में इन्हें रखें। यह एक नया ही लुक देगा।

आप चाहें तो इन जारों को एक सपाट आईने पर समूह में सजा कर रख सकते है। कॉफी मग में बहुत सारी लंबी मोमबत्ती को काफी मात्रा में एक साथ रखें और जलाएं, यह बहुत ही खुबसूरत लगता है। बाजार में उपलब्ध डिजाइनर दीये दीवाली की चमक को ओर बढ़ा देते हैं। घर की साज-सजावट के साथ-साथ पूजास्थल की सजावट का भी अपना ही महत्व है। अपने पूजास्थल के आस-पास के क्षेत्र को सजाने के लिए चौड़ी बार्डर वाली बांधनी दुपट्टे या सिल्क साड़ियों का प्रयोग किया जा सकता है। इन्हें झालर के रूप में टेप से चिपकाएं। यह निश्चित रूप से सजावट को नया रूप देगा। रंगोली के बिना दीवाली की सजावट अधूरी ही लगती है। पारंपरिक रंगोली को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए इसमें अलग-अलग रंगों की दालों तथा फूल पत्तियों को प्रयोग कर सकते हंै जो रंगोली को पारंपरिकता के साथ-साथ आधुनिक झलक भी देगा और देखने वाला तारीफ किए बगैर नहीं रह पाएगा।

दीवाली के त्यौहार में इन सबके साथ एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि पर्यावरण और बढ़ते प्रदूषण के प्रति आप कितने जागरूक हैं। दीवाली के धूम धड़ाके में हम यह भूल जाते हैं कि इन पटाखों से हम वातावरण को कितना अधिक प्रदूषित कर रहे हैं। अगर आप दीवाली पर्यावरण के अनुकुल मनाए तो निश्चित ही आप रोशनी के इस त्यौहार पर सभी को एक संदेश देंगे कि प्रकृति की सुरक्षा हम सभी का फर्ज है।