भारत में शिक्षक दिवस के मौके पर राष्ट्रपति और राज्यपाल बेहतर अध्यापन के लिए कई शिक्षकों का सम्मान करती है, ताकि शिक्षक और भी अच्छे ढंग से बच्चों को ज्ञान प्रदान कर सकें, लेकिन शिक्षक दिवस पर मिलने वाले केंद्र सरकार और राज्य सरकार से सम्मान के लिए उच्चाधिकारियों के समक्ष अपनी उपलब्लियां गिनवाना आज शिक्षकों की मजबूरी बन गई है। अच्छे शिक्षक होने के बावजूद भी बिना सोर्स के सम्मानित हो पाना बहुत ही मुश्किल है|
शिक्षक वो होता है जो हमें ज्ञान प्रदान कर एक काबिल इंसान बना देता है| इनको धन्यवाद देने के लिए एक दिन है, जो 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में जाना जाता है। दरअसल, भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति 1952-1962 तथा द्वितीय राष्ट्रपति 13 मई 1962 से 13 मई 1967 तक रहे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन से एक बार उनके शिष्यों ने उनका जन्मदिन मनाने की अनुमति मांगी, तो उन्होंने कहा कि मुझे ख़ुशी होगी यदि आप 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाएं|
शिक्षक दिवस’ कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन इसका महत्त्व बहुत कम ही लोग समझते हैं| शिक्षक दिवस का मतलब यह नहीं कि साल में एक दिन बच्चों के द्वारा अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या कोई भी उपहार हो और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है। वास्तव में शिक्षक दिवस मानने का मूल मकसद शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरुकता लाना है।
हर साल शिक्षक दिवस आते ही राष्ट्रपति या राज्यपाल से सम्मान पाने के लिए शिक्षकों में उम्मीदें जग जाती हैं। भारत देश में सम्मान के लिए शिक्षकों को खुद ही अपनी उपलब्धियों को विभागीय अधिकारियों के सामने गिनवाना पड़ता है| ऐसा इसलिए शासन अपने अधिकारियों की नजरों को योग्य-अयोग्य शिक्षकों का चयन करने के काबिल नहीं मानता| शिक्षकों को उपलब्धियां गिनवाकर सम्मान की दौड़ में शामिल होना पड़ता है, जिससे वह सम्मान किसी अपमान से कम नहीं लगता।शायद इसीलिए कई बार शिक्षक की छोटी-मोटी गलती होने पर अधिकारी उन पर तुरंत कार्रवाई कर देते हैं|
अगर देखा जाये तो शिक्षकों के ऊपर घर-घर जाकर जनगणना, मलेरिया, कुष्ट और अन्य बीमारियों के रोगियों को खोजने की जिम्मेदारी भी शिक्षकों के कंधे डाल दी जाती है। क्या वास्तव में शिक्षकों की नियुक्ति इन्ही कार्यो के लिए हुई है|
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