क्या कभी आपने जंगली जानवरों को घास खाते हुए देखा है, या मछलियों को पेड़ पर चढ़ते हुए देखा है? यह पढ़कर आप जरूर अचंभित हो रहे होंगे. लेकिन भारत में एक ऐसी जगह है जहां ऐसी ही रहस्यमयी घटनाएं घटती हैं. यह जगह है रण ऑफ कच्छ|
काला डूंगर या ब्लैक हिल गुजरात के कच्छ ज़िले का एक पर्यटन स्थल है। काला डूंगर से रण का का दृश्य देखते ही बनता है तथा पहाड़ी स्थित ‘दत्तात्रेय मंदिर’ से सायंकाल की आरती के बाद पुजारी की आवाज़ पर सैकड़ों की संख्या में सियारों का दौड़ कर आना पर्यटकों को अचंभित करता है।
मान्यता है कि रण ऑफ कच्छ के वीरान पहाड़ काला डूंगर पर घूमते हुए गुरु दत्तात्रेय ने एक सियार को भूख से तड़पते हुए देखा| यह देखकर गुरु ने सियार को 'ले अंग' कहकर स्वयं को भोजन स्वरूप पेश कर दिया| लेकिन आश्चर्यजनक रूप से सियार ने गुरु को खाने से मना कर दिया| इस पर प्रसन्न होकर गुरु ने सियारों को वरदान दिया कि वे अब कभी भी रण ऑफ कच्छ में भूखें नहीं मरेंगे|
गुरु दत्तात्रेय को इस धरती से विचरण किए सैकड़ों साल हो गए हैं लेकिन आज भी गुरु दत्तात्रेय के मंदिर में रोज सुबह हजारों सियार खिचड़ी का भोग लगाने आते हैं| मंदिर में आए भक्तों द्वारा लाल चावल और दूध की खीर को एक नियत जगह पर रख दिया जाता है| इसके बाद जैसे ही 'ले अंग' की आवाज दी जाती है वैसे ही देखते ही देखते एक बड़ी संख्या में सियार लाल चावल खाने आ जाते हैं|
मंदिर प्रशासन के नियमानुसार जब सियारों को खाना दिया जाता है, तब इनके पास लोगों को नहीं जाने दिया जाता। हां, उन्हें मंदिर के पास से देखा जा सकता है। सियार लगभग 10-15 मिनट में खाना खत्म कर वापस जंगल में ओझल हो जाते हैं। इतना ही नहीं, खिचड़ी खाने के लिए यहां कई पक्षी व कुत्ते भी पहुंचते हैं, लेकिन वे सभी सियारों के जाने का इंतजार करते हैं। यानी की उन्हें यह अच्छी तरह से पता है कि मंदिर के इस प्रसाद पर पहला हक सियारों का है।
गुजरात में जहां आज रण ऑफ कच्छ स्थित है वहां हजारों साल पहले एक विशाल समुंदर लहराया करता था| लेकिन एक भूकंप में कच्छ की जमीन ऊपर आ गई और समुद्र पीछे हट गया|