द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक झारखंड के देवघर जिला स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में जो कांवड़िया जलाभिषेक करने आते हैं, वे वासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक करना नहीं भूलते। मान्यता है कि जब तक नागराज वासुकी के नाम से प्रसिद्घ वासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक नहीं किया जाता तब तक बाबा बैद्यानाथ धाम की पूजा अधूरी मानी जाती है।
बाबा बैद्यनाथ धाम से करीब 42 किलोमीटर दूर दुमका जिला में स्थित है वासुकीनाथ मंदिर। बाबा वैद्यनाथ मंदिर स्थित कामना लिंग पर जलाभिषेक करने आए कांवड़िये अपनी पूजा को पूर्ण करने के लिए वासुकीनाथ मंदिर में जलभिषेक करना नहीं भूलते। कांवड़िये अपने कांवड़ में सुल्तानगंज के गंगा नदी से जो दो पात्रों में जल लाते हैं, उसमें से एक बाबा बैद्यनाथ में चढ़ाते हैं तो एक बाबा वासुकीनाथ में।
ये अलग बात है कि कामना लिंग में जलाभिषेक के बाद कई कांवड़िये तो पैदल ही वासुकीनाथ धाम की यात्रा करते हैं, परंतु अधिकांश कांवड़िये फिर वाहनों द्वारा यहां तक की यात्रा करते हैं।
किवदंतियों के मुताबिक प्राचीन समय में वासुकी नाम का एक किसान जमीन पर हल चला रहा था तभी उसके हल का फाल किसी पत्थर के टुकड़े से टकरा गया और वहां दूध बहने लगा। इसे देखकर वासुकी भागने लगा तब यह आकाशवाणी हुई कि तुम भागो नहीं मैं शिव हूं। मेरी पूजा करो। तब ही से यहां पूजा होने लगी। कहा जाता है कि उसी वासुकी के नाम पर इस मंदिर का नाम वासुकीनाथ धाम पड़ा।
श्रद्घालुओं की मान्यता है कि बाबा बैद्यनाथ के दरबार में अगर दीवानी मुकदमों की सुनवाई होती है, तो वासुकीनाथ में फौजदारी मुकदमे की सुनवाई होती है। मंदिर के पास ही वाणगंगा नाम का एक तालाब है, जिसके पवित्र जल में स्नान कर भक्त वासुकीनाथ की पूजा करते हैं। यहां पूजा करने के बाद ही बाबा बैद्यनाथ धाम की यात्रा पूर्ण होती है।
वासुकीनाथ मंदिर के पुजारी पंडा रामेश्वर के मुताबिक वासुकीनाथ में शिव का रूप नागेश का है। वे बताते हैं कि यहां पूजा में अन्य सामग्रियां तो चढ़ाई ही जाती हैं, परंतु यहां दूध से पूजा करने का काफी महत्व है। मान्यता है कि नागेश के रूप के कारण दूध से पूजा करने से भगवान शिव खुश रहते हैं।
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