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कैराना के बाद अब कांधला से हिन्दुओं का पलायन, क्या है सच?

शामली। उत्तर प्रदेश के कैराना में 346 हिंदू परिवारों के पलायन करने की सूची जारी कर सूबे की राजनीति में भूचाल लाने वाले भारतीय जनता पार्टी के सांसद हुकुम सिंह ने अब कांधला कस्बे के 63 परिवारों के पलायन की सूची जारी की है। हुकुम सिंह ने यहां पत्रकारों से कहा कि कैराना की तरह कांधला में भी रंगदारी और हत्या की घटनाओं से दहशत के चलते 63 परिवारों को घर बार छोड़ कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ा है। भाजपा सांसद ने इसके लिए उत्तर प्रदेश में बदहाल कानून व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की। इससे पहले उन्होंने कैराना कस्बे में बदमाशों द्वारा व्यापारियों से मांगी जा रही रंगदारी व न देने पर हत्या करने, वर्ग विशेष के लोगों द्वारा हिंदू परिवारों को धमकी देने के चलते 346 परिवारों के पलायन की सूची जारी की थी। हुकुम सिंह का कहना है कि यहां से पलायन करने वाले अब दूसरे शहरों में अपना रोजगार चला रहे हैं।

सांसद ने कहा कि इस बारे में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भी बताया गया है। उन्होंने कहा कि राजनाथ सिंह जून के अंतिम सप्ताह में कैराना आएंगे। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के नेता का नाम सामने आया था। इस नेता को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने बराबर में बैठाकर उनसे सलाह लेते हैं, आज तक उस नेता पर सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की। इस संबंध में मुख्यमंत्री से कई बार मांग की गई लेकिन आज तक भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। आबादी के अनुपात में लगातार घट रही हिंदुओं की संख्या इस तथ्य को साबित कर रही है। यहां के लोगं का कहना है कि कांधला और कैराना को बचाना है तो यहां पैरामिलेट्री फोर्स का बेस कैंप स्थापित करना होगा। सूत्रों की माने तो उनका कहना है कि सरावज्ञान, कानूनगोयान, शेखजादगान व शांतिनगर जैसे मुहल्लों से हिंदुओं का अपनी संपत्ति बेचने का सिलसिला जारी है। सुभाष जैन, राजू कंसल, दीपक चौहान, तरस चंद जैन, विकास सैनी, राजबीर मलिक और योगेंद्र सेठी जैसे लोग अपनी जन्म और कर्म भूमि को अलविदा कह चुके हैं। सतेंद्र जैन, रविंद्र कुमार और विजेंद्र मलिक जैसे अनेक लोग महफूज ठिकानों की तलाश में है। घरों व दुकानों पर लटकी बिकाऊ है जैसी सूचनाएं प्रशासन को मुंह चिढ़ा रही हैं। असंतुलित होती आबादी के आकड़े भी पलायन की टीस उजागर करते हैं।

कैराना से महज 12 किलोमीटर दूर बसे कांधला में कैराना की ही तरह असुरक्षा सबसे बड़ी समस्या है जो दिनों दिन बड़ा आकार लेती जा रही है। मेन बाजार में बीज विक्रेता तरुण सैनी यहां व्याप्त आतंक का शिकार हो चुके हैं। वर्ग विशेष की बढ़ती दबंगई के आगे पुलिस-प्रशासन के नतमस्तक होने का आरोप लगाते हुए तरुण के भाई आदेश का कहना है कि करीब दो साल पहले उनकी दुकान पर आए आधा दर्जन हथियारबंद बदमाशों ने उनसे पांच लाख रुपये रंगदारी मांगी और शहर छोड़कर चले जाने की धमकी दी। पुलिस को सीसी टीवी कैमरे की फुटेज उपलब्ध करा दी गयी परंतु कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। तब से हम सैनी समाज की सुरक्षा की चिंता में जी रहे हैं। प्रशासन से पिस्टल का लाइसेंस मांगा परंतु फाइल अटकी है, कोई सुनवाई नहीं होती। कभी देश भर को गुड़ की जरूरतें पूरा करने वाली मंडी में आज सन्नाटा है। कभी यहां गुड के लदान के लिए रेलवे ने विशेष ट्रैक तक की व्यवस्था की थी। व्यापारी विष्णु गोयल का कहना है कि अनाज मंडी भी उजड़ चुकी है। सब्जी मंडी को छोड़ दें तो बाकी बड़ा कारोबार अब ठप है। इस गन्ना बेल्ट की चार खांडसारी इकाइयां बंद हो चुकी हैं। अब तो हालात उलट हैं, आतंक और रंगदारी की वजह से यहां कोई कारोबार नहीं करना चाहता। पांच साल में सराफा कारोबार साठ प्रतिशत कम होने का दावा करते हुए सराफा एसोसिएशन के महामंत्री सतवीर वर्मा का कहना है कि हालात ऐसे ही बने रहें तो हम भी परिवार पालने के लिए मजबूरन कस्बा छोड़ जाएंगे।

स्कूली बच्चों के लिए अच्छे स्कूलों का संकट भी कम नहीं है। करीब दो दर्जन बसें स्कूली बच्चों को लेकर सुरक्षाकर्मी के साथ 14 किलोमीटर दूर शामली आना-जाना करती हैं। लोगों का कहना है कि बच्चों को पढ़ाने की मजबूरी के चलते हम ये बड़ा जोखिम उठाने को मजबूर हैं। सैनी समाज के संयोजक नरेश सैनी का कहना है कि छेड़छाड़ की घटनाओं ने कई वर्षों में ऐसा माहौल बना दिया है कि बहन-बेटियों का देर शाम घरों से निकलना बंद है। दिव्यप्रकाश का कहना है कि कांधला के बिगड़े वातावरण से रोजगार के बचे-खुचे अवसर ही खत्म नहीं हो रहे वरन शादी में भी दिक्कतें आ रही हैं। कोई भी परिवार अपनी बेटी कांधला में ब्याहने के लिए आसानी से राजी नहीं होता। आतंक के चलते औने-पौने दाम में अपनी संपत्ति बेचने की मजबूरी जता रहे सुभाष बंसल का कहना है कि कभी कस्बे की शान रही रहतू मल की हवेली मात्र 15 लाख रुपये में बिक गयी, जबकि उसकी कीमत लोग एक करोड़ रुपये आंकी गई थी। जाट कालोनी में मकान व दुकान तेजी से बिकने का दावा करते सतीश पंवार का कहना है कि भू-माफिया सक्रिय हो चुके हैं और आतंक फैलाने में उनका योगदान भी कम नहीं। पुलिस भी इनकी मदद में खड़ी दिखती है। पलायन करने वालों की सूची में अभी इजाफा होगा, क्योंकि बहुत से लोगों को अपनी संपत्ति बेचने के लिए सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। एडवोकेट बीरसेन का कहना है कि कुछ व्यापारी अपना कारोबार समेटने से पहले उधार में गए धन को बटोरने में जुटे हैं। कई पीढ़ी से लोहे के व्यापारी 71 वर्षीय सतेंद्र जैन बुझे मन से कहते हैं कि अपने पौत्रों का एडमिशन इस बार देहरादून करा दिया है, उधारी सिमटते ही कांधला छोड़कर चले जाएंगे।

यह मामला उठने के बाद सियासी दल अपना गुणा भाग लगाने में जुट गए हैं। मुद्दा भाजपा ने उठाया, तो सियासी हलकों में हलचल मच गई। हर राजनीतिक दल अपने हिसाब से पलायन की परिभाषा तय कर रहा है। भाजपा इसे भुनाने में जुट गई है, तो सपा, बसपा और रालोद इसे चुनावी स्टंट बता रहे हैं। पलायन प्रकरण से आखिर किसका फायदा होगा और किसका होगा नुकसान। राजनीतिक दल भी इसकी गुणा भाग करने में लगे हुए हैं। खास बात यह है कि मुद्दा भले ही कैराना से शुरू हुआ, मगर अब कांधला भी पहुंच गया। भाजपा सांसद ने कांधला की सूची जारी कर नई बहस छेड़ दी, जिसके बाद सपा नेता इसकी खिलाफत में उतर आए और कहने लगे कि भाजपा सांसद वोटों की राजनीति में क्षेत्र का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। क्या वास्तव में पलायन प्रकरण आगामी विधानसभा चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब होगा। क्योंकि शामली जिले की व्यवस्था पर गौर करें, तो यहां चुनावी समीकरण एकदम अलग रहा है। जिले की कैराना, शामली और थानाभवन विधानसभा सीटों पर अलग ही समीकरण बनता है।

ऐसे में हर राजनीतिक दल अपने जनाधार को बनाए रखने के प्रयास में है, तो भाजपा हिंदुओं को लामबंद कर सकती है। सीटवार अलग समीकरण हैं, जिसमें सपा गुर्जर और मुसलिम गठजोड़ को बनाकर रखना चाहती है। लब्बो लुआब यही है कि पलायन प्रकरण पर हर राजनीतिक दल की नजर लगी हुई है। उधर, विधायक सुरेश राण नें प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को साम्प्रदायिकता का आरोपी बताया। उन्होंने कहा कि वो गोल टोपी लगाकर आते हैं वो इस बात से आखिर क्या जताना चाहते हैं। विधायक सुरेश राणा ने कहा कि सपा सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में 450 दंगे कराये हैं और दंगे कराने में गोल्ड मेडलिस्ट हो गई है सपा सरकार।

अब सवाल यह आखिर शामली प्रशासन ने अपने स्तर पर कोई जांच करने की जहमत क्यों नहीं उठाई? क्या बंद घरों-दुकानों के ताले भी सवालों का जवाब देने में सक्षम हैं? क्या ताले ही यह बता रहे हैं कि हमारे मालिक इस-इस कारण अन्य कहीं जा बसे हैं? सवाल और भी हैं। क्या शामली प्रशासन ने कैराना से अन्यत्र जा बसे लोगों से बात की? क्या किसी ने यह जानने की कोशिश की कि जो लोग कैराना में रहकर ही ठीक-ठाक कमाई कर रहे थे उन्हें दूसरे शहर जाकर कारोबार करने की जरूरत क्यों पड़ी? बेहतर आय और जीवन की लालसा में गांव से कस्बे और फिर वहां से पड़ोस के बड़े शहर जाने की प्रवृत्ति नई नहीं है। ऐसा हर कहीं होता है, लेकिन इस क्रम में मोहल्ले वीरान नहीं होते। लगता है कि कैराना में कुछ अस्वाभाविक हुआ है। चूंकि यह अस्वाभाविक घटनाक्रम कथित सेक्युलर दलों और उनके जैसी प्रवृत्ति वालों के एजेंडे के अनुरूप नहीं इसलिए उनके पास सबसे मजबूत तर्क यही है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव करीब आ रहे हैं इसलिए भाजपा यही सब तो करेगी ही। इसमें दोराय नहीं कि भाजपा कैराना सरीखे मसलों पर विशेष ध्यान देती है, लेकिन क्या ऐसे मसलों पर अन्य किसी राजनीतिक दल को ध्यान नहीं देना चाहिए? नि:संदेह कैराना कश्मीर नहीं है, लेकिन इन दिनों कश्मीरी पंडितों की वापसी के सवाल को लेकर भाजपा पर खूब कटाक्ष हो रहे हैं?



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किसान के बेटे शिवराज का मुख्यमंत्री पद तक का सफर

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के जैत गांव के एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे शिवराज सिंह चौहान ने क्षमता और राजनीतिक कौशल के बल पर अपने नेतृत्व में लगातार दूसरी जीत दिलाकर पार्टी की जीत की हैट्रिक बनाई है।

चौहान ने विदिशा संसदीय क्षेत्र से पांच बार चुनाव लड़ा और हर बार जीत उनके खाते में आई। वर्ष 2005 में उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी गई। तब से लेकर वे आज तक इस पद पर हैं। पार्टी ने वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव उमा भारती के नेतृत्व में जीता था तो वर्ष 2008 और 2013 के चुनाव चौहान की अगुवाई में जीते गए हैं।

चौहान के राजनीतिक जीवन पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि उन्होंने छात्र जीवन में ही राजनीति का ककहरा सीखना शुरू कर दिया था। वर्ष 1975 में वे भोपाल के एक विद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। देश में 1975 में आपातकाल लागू होने पर वे भूमिगत रहकर सक्रिय रहे और बाद में एक वर्ष तक जेल में रहे।

चौहान वर्ष 1977 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक बने और आगे चलकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। उसके बाद उनका नाता भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़ा। इसके वे अनेक पदों पर रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष बने। उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव 1990-91 में बुदनी से लड़ा और जीते। पार्टी के निर्देश पर 1991 में लोकसभा चुनाव लड़ा और लगातार पांच बार विदिशा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। सांसद के तौर पर चौहान कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे।

पार्टी ने चौहान की क्षमता और राजनीतिक समझ के मद्देनजर उन्हें भाजयुमो का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और वे 2000 से 2003 तक इस पद पर रहे। भाजपा ने 2005 में उन्हें भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया। उसके बाद बदले राजनीतिक हालातों ने चौहान को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया और उन्होंने 29 नवंबर 2005 को इस पद की जिम्मेदारी संभाली। चौहान ने बुदनी से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीते।

चौहान राज्य में गैर भाजपा शासित सरकार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें राज्य में यह जिम्मेदारी संभाले आठ वर्ष से ज्यादा वक्त बीत गया है। इतना ही नहीं पार्टी ने एक बार फिर उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर चुनाव लड़ा है, इस चुनाव में भाजपा को जीत भी मिली है।

भाजपा के भीतर और बाहर चौहान के प्रशंसकों की कमी नहीं हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से लेकर सुषमा स्वराज तक उनके कायल हैं। यही कारण है कि ये नेता गाहे-बगाहे पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोंदी से भी उनकी तुलना करने से नहीं चूकते हैं। कांग्रेस भी चाहकर सीधे तौर पर चौहान पर हमला करने का मौका आसानी से नहीं ढूंढ पाती है, यही कारण है कि उनके परिजनों या आसपास रहने वालों के जरिए उन पर निशाना साधती नजर आती है। 

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कानपुर की गलियों में मोदी के स्विस कॉटेज के चर्चे

उत्तर प्रदेश में चुनावी रैली के लिए कानपुर आ रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के लिए बनाए गए स्विस कॉटेज के चर्चे कानपुर के आम लोग के बीच भी हो रहे हैं। आधुनिकतम सुख सुविधाओं से लैस इस कॉटेज में भाजपाईयों ने मोदी के लिए गुजराती व्यंजनों का भी इंतजाम किया है, ताकि फुरसत के क्षणों में मोदी इसका लुत्फ उठा सकें।

कानपुर में मोदी का स्वागत गुजराती खानपान के साथ होगा। मोदी के आने के पहले ही उनके लिए तैयार हो रहे स्विस कॉटेज में सभी व्यवस्थाएं कर दी जाएंगी। यह स्विस कॉटेज मंच के ठीक पीछे तैयार किया जा रहा है, जो पूरी तरह से वातानुकूलित होगा। इसमें श्नानागार, सोफा, बिस्तर, सेंट्रल टेबल की व्यवस्था होगी। स्वागत सत्कार के लिए मशहूर राज्य उत्तर प्रदेश के नेता उनके खान पान में किसी भी तरह की कमी नहीं होने देना चाहते।

भाजपा के जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र मैथानी ने मोदी के लिए गुजरात से विशेष नमकीन, ढोकला और फाफड़ा मंगवाया है जो कि मोदी के आने के पहले ही रैली स्थल पर आ जाएगा। भाजपा के एक पदाधिकारी ने बताया कि यह व्यवस्था उनकी तरफ से की जा रही है। यदि प्रोटोकॉल के तहत कोई मांग या किसी सामग्री को हटाने के लिए कहा जाएगा तो उसे तुरंत बदलवा दिया जाएगा। साथ ही मोदी के लिए ठंडा व गरम दोनों तरह के पानी का प्रबंध किया जा रहा है।

एक सुरक्षा अधिकारी के मुताबिक, स्विस कॉटेज से लेकर मंच तक अत्यंत खास लोगों को ही पूरी तरह से प्रवेश करने दिया जाएगा, वह भी जिन्हें मोदी बुलाएंगे। खाने पीने का सारा सामान पहले तीन लोग जांचेंगे। इसके बाद ही खाने का सामान मोदी के सामने रखा जाएगा।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि किसी भी वीआईपी गतिविधि के दौरान एक सुरक्षित स्थान बनाया जाता है, ताकि आने वाले व्यक्ति को जरूरत पड़ने पर वहां ठहराया जा सके। इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए इसे भी तैयार किया गया है। 

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कानपुर के लिए आकर्षण बना मोदी का मंच

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैली को लेकर लोगों के भीतर गजब का उत्साह देखा जा रहा है। मोदी के साथ खड़े होकर तस्वीर खिंचवाने की तमन्ना भले ही पूरी न हो लेकिन मोदी के आने से पहले ही उनके लिए बने भव्य मंच के सामने ही फोटो खिंचवाकर लोग खुश दिखाई दे रहे हैं।

भाजपा की विजय शंखनाद रैली के लिए तैयार किया गया मंच काफी भव्य है। काफी दिनों से इसे सजाने संवारने का काम चल रहा था, लेकिन शुक्रवार को कानपुरवासियों ने इसका दीदार किया। लोगों के बीच उत्सव सरीखा माहौल दिखाई दिया। शुक्रवार देर रात तक लोग परिवार सहित मोदी के रैली स्थल को देखने पहुंचे।

रैली स्थल की सैर करने पहुंचे लोगों ने भी जमकर अपनी इच्छा पूरी की। मोदी के लिए बनाए गए भव्य मंच के सामने खड़े होकर फोटो खिंचवाने का सिलसिला घंटों तक चलता रहा। मोदी के मंच की निगरानी और आसपास की सुरक्षा का जिम्मा गुजरात से आए हुए अधिकारियों ने अपने हाथों में ले लिया है। मोदी के खास और करीबी माने जाने वाले इन अधिकारियों के सुझावों के आधार पर ही भाजपा के पदाधिकारियों ने मंच को अंतिम रूप दिया है।

देशभर में अब तक हुई मोदी की हर रैली में अपेक्षा से अधिक भीड़ जुट चुकी है। प्रदेश में पहली रैली कानपुर में होने से भाजपाइयों को भीड़ का अनुमान भी कुछ बढ़ गया है। रैली में आने वाला कोई भी व्यक्ति बगैर मोदी को सुने व देखे न जाए इसके लिए भी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। इंदिरा नगर में बुद्धापार्क के सामने खाली पड़े मैदान के 1.08 लाख वर्ग मीटर स्थान का प्रयोग रैली के लिए किया जा रहा है। रैली में तीन से साढ़े तीन लाख लोगों के जुटने का अनुमान लगाया जा रहा है।

भीड़ की वजह से कोई भी व्यक्ति रैली में मोदी को देखे बिना न लौटे, इसके लिए भाजपाइयों ने रैली स्थल से दो किलोमीटर की परिधि में मोदी को देखने और उनके भाषण को सुनने का प्रबंध किया है। मैदान के अंदर 10 और दो किलोमीटर परिधि में 17 एलसीडी स्क्रीन लगाई गई है। जाम या अन्य कारण से रैली स्थल तक न पहुंचने वाले लोगों को भी मोदी स्पष्ट आवाज के साथ एलसीडी स्क्रीन पर दिखाई देंगे। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष शुक्ला ने बताया कि बेहतर प्रसारण के लिए 17 एलसीडी स्क्रीन वाले टेलीविजन लगाए गए हैं। मोदी की रैली को ऐतिहासिक माना जा रहा है। 

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नरेंद्र मोदी: चाय विक्रेता से प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी

गुजरात के एक रेलवे स्टेशन पर कभी चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति में धूमकेतु की तरह आगे बढ़े हैं। वर्ष 2001 में मुख्यमंत्री बनने के बाद सुर्खियों में आए मोदी महज 12 वर्षो में पार्टी की ओर से देश की सरकार के शीर्ष पद के प्रत्याशी बनाए गए हैं।

धुर हिंदूवादी या हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा के पैरोकार मोदी (62) जनभावनाओं को उभारने में अपनी पार्टी के किसी भी नेता से आगे माने जाते हैं। उनके साथियों का कहना है कि सदैव लक्ष्य पर निगाह टिकाए रखने वाले मोदी हर विपरीत परिस्थिति को अवसर में बदलने में दक्ष हैं।

गुजरात का मुख्यमंत्री चयनित होने से पहले मोदी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे और जिस समय देश के सर्वाधिक विकसित राज्य की उन्हें कमान सौंपी गई थी उस समय तक उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था।

तीव्र गति से आगे बढ़ते जाने वाले मोदी पर उनके आलोचकों का आरोप है कि शिखर चढ़ने में मददगार रहे लोगों को ही वे ठिकाने लगाते रहे हैं। इस सूची में सबसे ताजा नाम भाजपा के कद्दावर नेता और कभी उनके (मोदी के) संरक्षक रहे लालकृष्ण आडवाणी का भी नाम जुड़ गया है। आडवाणी तब मोदी के मार्गदर्शक थे जब उन्हें कोई जानता तक नहीं था।

मोदी को गहरे रूप से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक जी. वी. एल. नरसिम्हा राव ने कहा, "वे प्रतिबद्ध व्यक्ति हैं। वे अत्यंत इमानदार और परिश्रमी हैं। चाहे जैसी भी परिस्थिति हो वे समझौता नहीं करते। और यहां तक कि मोदी एक अस्थायी विजय के लिए कभी नहीं झुकेंगे।" आज के मुकाबले मोदी का शुरुआती जीवन बेहद गौण रहा है।

गुजरात के मेहसाणा जिले के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में 17 सितंबर 1950 को जन्मे मोदी अपने माता-पिता की चार संतानों में तीसरे हैं। उनके पिता दामोदरदास चाय की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। गुजरात के वादनगर रेलवे स्टेशन पर उनके बेटे केतली में चाय लेकर रेलगाड़ियों में बेचा करते थे।

इस परिवार का घर ऐसा था जिसमें खिड़कियों से पर्याप्त रोशनी भी नहीं पहुंचती थी। किरासन तेल पर जलनेवाली एकमात्र चिमनी धुआं और कालिख उगलती रहती थी। जो लोग मोदी को जानते हैं वे बताते हैं कि वे एक औसत दर्जे के छात्र थे। खुद उनके मुताबिक वे एक समर्पित हिंदू हैं। चार दशक तक उन्होंने नवरात्रि के दौरान केवल जल के सहारे उपवास रखते रहे।

मोदी के जीवनीलेखक नीलांजन मुखोपाध्याय के मुताबिक, युवावस्था में ही मोदी की शादी हुई, लेकिन वह निभ नहीं सकी। प्रचारक बनने के लिए उन्होंने अपने विवाहित होने के सच को छिपाए रखा। इस सच के सामने आने पर अति शुद्धतावादी संघ का प्रचारक बनना मुश्किल था।

स्कूली जीवन से ही मोदी अच्छे वक्ता रहे हैं। वे अक्सर महीनों अपने परिवार से गायब रहा करते थे। वे एकांत में रुकते या हिमालय में भटका करते थे। एक बार वे गिर के जंगलों में एक छोटे से मंदिर में ठहरे थे। 1967 में उन्होंने अपने परिवार से नाता तोड़ लिया।

मोदी संघ में औपचारिक रूप से 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शमिल हुए। वे दिल्ली के संघ कार्यालय में रहे जहां उनकी दिनचर्या कुछ इस तरह की थी। सुबह 4 बजे जगने के बाद पूरे कार्यालय में झाडूबुहारू करना, वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के लिए चाय के साथ-साथ नाश्ता और शाम का नाश्ता बनाना और पत्रों का उत्तर देना उनका काम था। वे बर्तन भी साफ करते थे और पूरे भवन की साफ सफाई करते थे।

मोदी अपना कपड़ा भी खुद धोते थे। जब इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोपा था तब मोदी दिल्ली से गुजरात जा कर भूमिगत हो गए। एक बजाज स्कूटर पर अनवरत इधर-उधर घूमते रहते और कभी-कभी गुप्तरूप से और छपे हुए केंद्र सरकार विरोधी पर्चे बांटा करते थे। राजनीति को अंगीकार करने वाले मोदी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक और गुजरात विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की है।

अपने परिश्रम के दम पर मोदी ने वरिष्ठों का ध्यान खींचा और उन्हें 1987-88 में भाजपा की गुजरात इकाई में संगठन मंत्री की कमान सौंपी गई। यहीं से उनके राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत हुई।

मोदी ने आहिस्ता-आहिस्ता भाजपा पर नियंत्रण पाया और कार्यकर्ताओं के बीच पैठ बनाई। उन्होंने 1990 में तब महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जब आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली थी। इसी रथ यात्रा ने भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज कराने में मदद दिलाई।

लेकिन राजनीतिक कद बढ़ते जाने के बीच मोदी की अपनी कुछ निजी कमजोरियां भी हैं। 1992 में उन्हें गुजरात भाजपा में दरकिनार कर दिया गया। पहले से जमे केशुभाई पटेल, शंकरसिंह वाघेला और कांशीराम राणा जैसे वरिष्ठ नेताओं को मोदी का 'उदय' नहीं पचा। 

समय बीता। मोदी पर आरोप है कि उन्होंने अपने लाभ के लिए समर्थकों को किनारे लगाने में भी परहेज नहीं किया। वर्ष 2001 में जिस मुख्यमंत्री पटेल की जगह उन्होंने ली कभी मोदी उनके विश्वासपात्र रह चुके थे।

मोदी की आज की पहचान पर 2002 के गुजरात में हुई हिंसा की व्यापक छाया है। उस समय वहां उन्हीं की सरकार थी। उनकी सरकार पर एक समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाने के लिए दूसरे समुदाय को प्रोत्साहन देने का आरोप है।

उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात हिंसा पर गहरी नाराजगी जताई थी। तब मोदी के लिए आडवाणी संकटमोचक बने थे। उसके बाद 2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी विजेता बनकर उभरे और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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नागपाल के निलंबन पर सियासत गरमाई

उत्तर प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को लेकर शुक्रवार को एक वीडियो सामने आने के बाद पहले से ही इस मामले में फजीहत झेल रही राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं, जिसमें समाजवादी पार्टी (सपा) के एक नेता को यह कहते दिखाया गया है कि नागपाल का निलंबन उन्होंने 41 मिनट के भीतर करवाया। यह वीडियो सामने आने के बाद विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तेवर और तल्ख हो गए हैं। उसने राज्य की सपा सरकार पर तीखे हमले किए हैं।

यह वीडियो, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उस बयान के बाद सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि नागपाल का निलंबन इसलिए किया गया, क्योंकि उन्होंने बिना-सोचे समझे इस तरह का कदम उठाया जिससे सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ सकता था। उन्होंने अधिकारी का निलंबन वापस लेने से भी इंकार किया। वीडियो में सपा नेता व उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष नरेंद्र भाटी को ग्रेटर नोएडा में समर्थकों से यह कहते दिखाया गया है कि उन्होंने सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सुबह करीब 10.30 बजे फोन किया और पूर्वाह्न् 11.11 बजे नागपाल के निलंबन का आदेश आ गया।

भाटी को उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के नाते राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है और वह आगामी लोकसभा चुनाव में गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट से सपा के उम्मीदवार हैं। भाटी के उक्त बयान के बाद इस मुद्दे पर पहले से ही आक्रामक भाजपा के तेवर अधिक तल्ख हो गए हैं। नोएडा से भाजपा विधायक महेश शर्मा ने आरोप लगाया है कि भाटी खनन माफिया से मिले हुए हैं। उन्होंने खनन माफियाओं से भाटी के संबंधों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से करवाने की मांग की है।

भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि मुख्यमंत्री का झूठ पकड़ा गया है। कल तक मुख्यमंत्री कह रहे थे कि आईएएस अधिकारी का निलंबन एक प्रशासनिक फैसला था। अब यह स्पष्ट हो गया है कि इसके पीछे राजनीतिक मकसद था। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने भी इस बात से सहमति जताई कि भाटी का वीडियो सामने आने के बाद सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब तक सरकार कहती आ रही थी कि उनका निलंबन मस्जिद परिसर की दीवार गिराने का आदेश देने के कारण हुआ, जिससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता था। लेकिन सरकार का यह दावा भी विवादों में घिर गया है, क्योंकि इस मामले में सरकार को भेजी गई जिलाधिकारी की रिपोर्ट में इससे इंकार किया गया है।

जिलाधिकारी की रिपोर्ट के मुताबिक, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के तौर पर तैनात नागपाल ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया था, बल्कि निर्माण के अवैध होने की जानकारी मिलने के बाद ग्रामीणों ने स्वयं उसे ढहा दिया। 

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