‏إظهار الرسائل ذات التسميات जयंती. إظهار كافة الرسائل
‏إظهار الرسائل ذات التسميات जयंती. إظهار كافة الرسائل

निर्धनता की आग में झुलस कर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले शास्त्री जी के जन्मदिन पर शत-शत नमन

आज का दिन भारतवासियों के लिए काफी खास होता है क्योंकि हमारे राष्ट्रपिता के जन्मदिवस के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्म दिवस है। लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर सन्‌ 1904 ई.में वाराणसी जिले के एक गांव मुगलसराय में हुआ था। इनके पिता शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे। मात्र डेढ़ वर्ष की आयु में इनके सर से पिता का साया उठ गया। माता श्रीमती रामदुलारी ने बड़ी कठिनाईयों के साथ इनका लालन-पालन किया। 

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन एक साधारण व्यक्ति से असाधारण बनने की सीख देती है। निर्धनता की आग में झुलस कर भी उन्होंने अपने जीवन में अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया। उन्होंने बड़ी निर्धन एवं कठिन परिस्थितियों में इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण की। उसके बाद में वाराणसी स्थित हरिश्चन्द्र स्कूल में प्रवेश लिया। सन् 1921 में वाराणसी आकर जब गांधी जी ने राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए नवयुवकों का आह्वान किया, तो उनका आह्वान सुनकर मात्र सत्रह वर्षीय शास्त्री ने भरी सभा में खड़े होकर अपने को राष्ट्रहित में समर्पित करने की घोषणा की।

काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री ने अपने नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया। उन्होंने मरो नहीं, मारो का नारा दिया, जिसने एक क्रांति को पूरे देश में उग्र कर दिया। उनका दिया हुआ एक और नारा जय जवान-जय किसान आज भी लोगों की जुबान पर है। शिक्षा छोड़ राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े और पहली बार ढाई वर्ष के लिए जेल में बंद कर दिए गए।जेल से छूटने के बाद उन्होंने शिक्षा पूरी की । 

शिक्षा समाप्त कर शास्त्री जी लोक सेवक संघ के सदस्य बनकर उन्होंने अपना जीवन जन सेवा और राष्ट्र को समर्पित कर दिया। अपने कार्यों के फलस्वरूप बाद के इलाहाबाद नगर पालिका एवं इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के क्रमशः सात और चार वर्षों तक सदस्य बने रहे। बाद में उन्हें इलाहाबाद जिला कांग्रेस का महासचिव, तदुपरांत अध्यक्ष तक मनोनीत किया गया। प्रत्येक पद का निर्वाह इन्होंने बड़ी योग्यता और लगन के साथ निःस्वार्थ भाव से किया। वो सबके चहेते बन गए। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव बनाये गए। वो गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहांत हो जाने के बाद, शास्त्री जी ने 9 जून 1964 को प्रधान मंत्री बनाये गए। उस समय राजनीति में उथल-पुथल मची थी पाकिस्तान और चीन भारतीय सीमाओं पर तांडव कर रहे थे। 

देश भी आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था। शास्त्री जी सूझ बुझ के साथ समस्याओं का निपटारा करते रहे। 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान से समझौता करने के बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गयी। लाल बहादुर शास्त्री आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। देश के लिए किये गए उनके कार्य उनके बलिदान स्मरणीय है। इसलिए तो देश का हर व्यक्ति शास्त्री को उनकी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए आज भी श्रद्धापूर्वक याद करता है।