‏إظهار الرسائل ذات التسميات भानगढ़ किला. إظهار كافة الرسائل
‏إظهار الرسائل ذات التسميات भानगढ़ किला. إظهار كافة الرسائل

भानगढ़ किला : देश की सबसे डरावनी जगह!



हममें से कितने लोग भूतों में विश्वास करते हैं? क्या भूत वाकई में होते हैं? क्या भूतों को देखा जा सकता है? भूतों को मानने वाले तो इन प्रश्नों का जवाब हां में देंगे, मगर न मानने वाले इस धारणा को खारिज कर देंगे। लेकिन भूतों के ठिकाने देखना हर कोई चाहेगा और भानगढ़ जाना कुछ ऐसा ही है। इसे देश का सर्वाधिक डरावना स्थल माना जाता है। 

दिल्ली से 300 किलोमीटर दूर स्थित होने के बावजूद चंद लोग ही इस जगह के बारे में जानते हैं। हम सुबह तड़के भानगढ़ के लिए अपनी कार से चले, और उम्मीद थी कि यात्रा चार घंटे से ज्यादा की नहीं होगी। चूंकि लोगों का यहां ज्यादा आना-जाना कम होता है, लिहाजा हमारे पास कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी और हमने इंटरनेट पर उपलब्ध एक नक्शे और दूरी से मदद ली। 

गुड़गांव से आगे बढ़ने के बाद हम भिवाड़ी की ओर बढ़े और राजस्थान के अलवर पहुंचे। इस स्थान तक हमें कोई समस्या नहीं हुई। यहां तक की यात्रा अच्छी रही और हमें इस बात की बिल्कुल चिंता नहीं थी कि किले में हमें किसी समस्या का सामना करना पड़ेगा। अलवर से जैसे ही हम सरिस्का अभयारण्य पार किए, मौसम बदल गया। आसमान बिल्कुल काला, और अपराह्न् में लगता था जैसे शाम के सात बज गए हों। काले बादल अरावली के पर्वत पर बरसने लगे। 

अजबगढ़ से आगे बढ़ने के बाद हम भानगढ़ के इलाके में प्रवेश किए। वर्षा तेज हो गई। सौभाग्यवश हमारे पास छाते थे। इसलिए समय बर्बाद किए बगैर हम तुरंत कार से बाहर निकले और हमने किले में प्रवेश किया। किले के अंदर हरी-हरी घास और इसके आसपास के क्षेत्र को देख हम चकित रह गए। ऐसा नहीं लग रहा था कि यह राजस्थान में कोई जगह है। वहां कई स्थानीय पर्यटक थे, ज्यादातर युवा थे। किले का भग्नावशेष हमारे स्वागत में खड़ा था।

बाबूलाल नामक एक युवा पर्यटक ने कहा, "हम सभी यहां भूत बंगला देखने आए हैं। हमने इस स्थान के बारे में बहुत सुना था और इसलिए हमने यहां एक बार आने का सोचा।" अंदर जाने के बाद हमने नर्तकियों की हवेली और जौहरी बाजार देखा। आज सबकुछ भग्न हो चुका है, लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि रात को इन स्थानों पर असाधारण गतिविधियां देखने को मिलती हैं। इमारतों और किले की वास्तुकला देखकर तत्कालीन शासक भगवंत दास के समय के लोगों की प्रतिभा और कौशल की क्षमता का अंदाजा लगता है, जिन्होंने इस नगर का 1573 में निर्माण कराया था।


भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने किले के द्वार पर एक बोर्ड लगा रखा है। इस पर लिखा है कि सूर्यास्त के बाद से लेकर सूर्योदय तक किले के अंदर पर्यटकों के रुकने पर मनाही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस भी व्यक्ति ने सूर्यास्त के बाद अंदर रुकने की कोशिश की है, वह लापता हो गया है। लिहाजा मन में कई सारे अनुत्तरित सवालों के साथ अन्य लोगों की तरह हमने भी सूर्यास्त से पहले उस स्थान को छोड़ दिया।

pardaphash