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अपने देश में बेगाना: भारत-बांग्लादेश सीमा के निवासियों की व्यथा

भारत में पैदा हुए हजारों लोगों को सरकार भारतीय नागरिक स्वीकार नहीं करती और उन्हें बांग्लादेशी मानती है। क्योंकि इनके पास अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। ऐसे ही एक मामले में एक व्यक्ति पिछले एक वर्ष से अवैध रूप से बांग्लादेश में रहने को विवश है।

भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा समझौते से करीब 50,000 लोग ऐसे ही स्थिति का सामना कर रहे हैं। हजारों गरीब और अनपढ़ लोगों की तरह पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में पैदा हुए रूहुल अमीन शेख (32) को अब भारतीय अधिकारियों के कारण बांग्लादेश में अवैध रूप से अपनी चाची के घर में रहना पड़ रहा है। भारतीय अधिकारियों ने उन्हें विदेशी ठहराकर देश से बाहर निकाल दिया।

अमीन की परेशानी तब शुरू हुई, जब उनकी सात वर्षीय बेटी ने दुर्गापूजा पर एक नई पोशाक की मांग की। इसके बाद शेख एक निर्माण क्षेत्र के एक मजदूर के तौर पर नई दिल्ली चले आए। एक अवैध बांग्लादेशी होने के आरोप में शेख को 26 बार 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में रखा गया। इसके बाद उन्हें देश से बाहर निकाल दिया गया।

एन्क्लेव में पैदा हुए अन्य लोगों की तरह अमीन के पास अपनी भारतीय पहचान को स्थापित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। वह शिक्षा, बिजली और अन्य मूल जरूरतों के अभाव में पले-बढ़े हैं। एन्क्लेव में रहने वालों की समस्याओं पर काम करने वाले एक स्वयंसेवी संगठन भारत-बांग्लादेश एन्क्लेव विनिमय समन्वय समिति (बीबीईईसीसी) ने कहा कि अमीन को दिल्ली से अगस्त के शुरू में लाया गया और अवैध रूप से पुलिस ने उन्हें भारत से बाहर निकाल दिया।

बीबीईईसीसी के समन्वयक दीप्तिमान सेनगुप्ता ने कहा, "अमीन को बांग्लादेश के उच्चायुक्त को सूचना दिए बगैर ही बांग्लादेश में धकेल दिया गया जो अवैध है। अमीन को 2011 की जनगणना में मोसलडंगा का निवासी बताया गया है। इसलिए वह आप्रवासी कैसे हो सकता है?" 

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