देश के परिवर्तनकारी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया की आज 47वीं पुण्यतिथि है| समाजवाद को एक नयी परिभाषा देने वाले लोहिया ने ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए भारत में 23 मार्च, 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में अकबरपुर नाम के गांव में जन्म लिया था|
समाजवाद की नयी परिभाषा देने वाले लोहिया ने भविष्य को ध्यान में रखते हुए कहा था- ''मुझे खतरा लगता है कि कहीं सोशलिस्ट पार्टी की हुकूमत में भी ऐसा ना हो जाये कि लड़ने वालों का तो एक गिरोह बने और जब हुकूमत का काम चलाने का वक़्त आये तब दूसरा गिरोह आ जाये|'' उनके इन वाक्यों को पढ़कर ऐसा लगता है कि उन्हें भविष्य की राजनीति का पूर्वाभास हो गया था|
प्रारंभिक जीवन
लोहिया के पिता का नाम हीरालाल व माता का नाम चन्दा देवी था| जब लोहिया ढाई वर्ष के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया| लोहिया के पिता महात्मा गांधी के अनुयायी थे। जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे| इसके कारण गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ|
लोहिया ने शुरूआती पढाई टंडन पाठशाला से की जिसके बाद वह विश्वेश्वरनाथ हाईस्कूल में दाखिल हुए| उन्होंने इंटरमीडीयेट की पढ़ाई बनारस के काशी विश्वविद्यालय से की| 1927 में इंटर पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता के विद्यासागर कॉलेज में दाखिला लिया|
जर्मनी से पीएचडी की उपाधि लेने वाले लोहिया ने देश से अंग्रेजी हटाने का जो आह्वान किया| उन्होंने कहा, "मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें| इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें जिनके मां बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं|’’
स्वतंत्रता संग्राम में दिया योगदान
भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी राममनोहर लोहिया, महात्मा गांधी से प्रेरित थे| उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रीय भूमिका निभाई| सिर्फ इतना है नहीं, भारत छोड़ो आन्दोलन में भी उनके महत्वपूर्ण योगदान को भुलाया नहीं जा सकता| लोहिया ने लोकमान्य तिलक के निधन पर छोटी हड़ताल आयोजित कर स्वतंत्रता आंदोलन में अपना पहला योगदान दिया| वह महज दस साल की उम्र में गांधीजी के सत्याग्रह से जुड़े|
लोहिया ने जिनिवा में लीग ऑफ नेशंस सभा में भारत का प्रतिनिधित्व ब्रिटिश राज के सहयोगी बीकानेर के महाराजा द्वारा किए जाने पर कड़ी आपत्ति जतायी| अपने इस विरोध का स्पष्टीकरण देने के लिए अखबारों और पत्रिकाओं में उन्होंने कई पत्र भेजे| इस पूरी प्रतिक्रिया के दौरान लोहिया रातोंरात चर्चा में आ गए|
वर्ष 1940 में उन्होंने ‘सत्याग्रह अब ’ आलेख लिखा और उसके छह दिन बाद उन्हें दो साल की कैद की सजा हो गयी| ख़ास बात थी मजिस्ट्रेट ने उन्हें सजा सुनाने के दौरान उनकी खूब सराहना की| जेल में उन्हें खूब यातना दी गयी| दिसंबर, 1941 में वह रिहा कर दिए गए|
9 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी व अन्य कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिए जाने के बाद लोहिया ने भूमिगत रहकर 'भारत छोड़ो आंदोलन' को पूरे देश में फैलाया| लोहिया ने भूमिगत रहते हुए 'जंग जू आगे बढ़ो, क्रांति की तैयारी करो, आजाद राज्य कैसे बने' जैसी पुस्तिकाएं लिखीं| इसके बाद 20 मई, 1944 को लोहिया को बंबई में गिरफ्तार कर लिया गया| बचपन में पिता से मिले आदर्शों व देशभक्ति के जज्बे ने स्वतंत्रता संग्राम के समय खूब रंग दिखाया| हालांकि, स्वतंत्रता के बाद हुए देश के विभाजन ने लोहिया को कहीं न कहीं झकझोर कर रख दिया|
रखी समाजवाद की नींव
लोहिया ने स्वतंत्रता के नाम पर सत्ता मोह का खुला खेल अपनी नंगी आंखों से देखा था और इसीलिए स्वतंत्रता के बाद की कांग्रेस पार्टी और कांग्रेसियों के प्रति उनमें बहुत नाराजगी थी| लोहिया सही मायनों में गैर-कांग्रेसवाद के शिल्पी थे| भारत विभाजन में कांग्रेस के विचारों ने उन्हें बहुत ठेस पंहुचाई, जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस से दुरी बनाते हुए समाजवाद को अपना ध्येय बना लिया|
लोहिया ने कहा, "हिंदुस्तान की राजनीति में तब सफाई और भलाई आएगी जब किसी पार्टी के खराब काम की निंदा उसी पार्टी के लोग करें और मैं यह याद दिला दूं कि मुझे यह कहने का हक है कि हम ही हिंदुस्तान में एक राजनीतिक पार्टी हैं जिन्होंने अपनी सरकार की भी निंदा की थी और सिर्फ निंदा ही नहीं की बल्कि एक मायने में उसको इतना तंग किया कि उसे हट जाना पडा़|"
लोहिया व्यवस्था परिवर्तन के हिमायती थे| समाज के निचले पायदान पर रह गये वंचितों की गैर-बराबरी के खात्मे के हिमायती तथा मानव के द्वारा मानव के शोषण की खिलाफत करने में लोहिया ने कोई कसर नहीं रखी| उन्होंने आगे चलकर विश्व विकास परिषद बनायी| जीवन के अंतिम वर्षों में वह राजनीति के अलावा साहित्य से लेकर राजनीति एवं कला पर युवाओं से संवाद करते रहे| 12 अक्तूबर, 1967 को लोहिया का देहांत हो गया|
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