हिन्दू धर्म में हनुमान जी को कष्ट विनाशक और भय नाशक देवता के रूप में जाना जाता है| बजरंगबली अपनी भक्ति और शक्ति के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| सारे पापों से मुक्त करने और हर तरह से सुख-आनंद एवं शांति प्रदान करने वाले हनुमान जी की उपासना लाभकारी एवं सुगम मानी गयी है। हनुमान जी ऐसे देवता है जो हर युग में किसी न किसी रूप, शक्ति और गुणों के साथ जगत के लिए संकटमोचक बनकर मौजूद रहते हैं। हनुमान जी के बारे में यह कहा जाता है कि एक बार हनुमाना जी ने पंचमुखी रूप धारण किया| अब सवाल यह उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि हनुमान जी को पंचमुखी रूप धारण करना पड़ा?
भगवान श्रीराम और लंकापति रावण युद्ध में भाई रावण की मदद के लिए अहिरावण ने ऐसी माया रची कि सारी सेना गहरी निद्रा में सो गई। तब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में पाताल लोक ले गया। इस विपदा के समय में सभी ने संकट मोचन हनुमानजी का स्मरण किया। हनुमान जी तुरंत पाताल लोक पहुंचे और द्वार पर रक्षक के रूप में तैनात मकरध्वज से युद्घ कर उसे परास्त किया। जब हनुमानजी पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम और लक्ष्मण बंधक अवस्था में थे। वहा पांच दीपक पांच दिशाओ में मिले जो माँ भवानी के लिए अहिरावन में जलाये थे | इन पांचो दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जायेगा इसी कारण वश हनुमान जी पञ्च मुखी रूप धरा | उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिम्ह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया | और फिर राम और लश्मन को मुक्त करवाया |
एक अन्य कथा के अनुसार मरियल नाम का दानव एक बार विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र चुरा ले जाता है | हनुमानजी को जब यह पता चलता है तो वो संकल्प लेते है की वो पुनः चक्र प्राप्त कर के भगवान् विष्णु को सौफ देंगे | मरियल दानव इच्छाअनुसार रूप बदलने में माहिर था अत: विष्णु भगवान हनुमानजी को आशीर्वाद दिया, साथ ही इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिम्ह-मुख तथा हयग्रीव एवं वराह मुख प्रदान किया। पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया। यह आशीर्वाद एवं इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मायिल पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी मान्यता प्राप्त हुई।
हनुमान जी का पांच मुख वाला विराट रूप पांच दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक स्वरूप में एक मुख, त्रिनेत्र और दो भुजाएं हैं। इन पांच मुखों में नरसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह रूप हैं। इनके पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रधान माने जाते हैं। पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं। जिसकी प्रभा करोडों सूर्यो के तेज समान हैं। इनका पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है। पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं। जो भक्तिप्रद, संकट निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह इनको भी अजर-अमर माना जाता हैं। उत्तर की ओर मुख शूकर का है। इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति, ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं। दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है। जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं। श्री हनुमान का ऊर्ध्वमुख घोडे के समान हैं। इनका यह स्वरुप ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था। मान्यता है कि हयग्रीवदैत्य का संहार करने के लिए वे अवतरित हुए। ऐसे पंचमुखी हनुमान रुद्र कहलाने वाले बडे कृपालु और दयालु हैं।