हिंदू धर्म में सांप को दूध पिलाने का प्रचलन है जो कि पूरी तरह से गलत है। जीव विज्ञान के अनुसार सांप पूरी तरह से मांसाहारी जीव है, ये मेंढक, चूहा, पक्षियों के अंडे व अन्य छोटे-छोटे जीवों को खाकर अपना पेट भरते हैं। इनके शरीर को अतिरिक्त पानी की आवश्यकता नहीं होती है। इनके शरीर को जितने पानी की आवश्यकता होती है, उसकी पूर्ति ये अपने शिकार के शरीर में मौजूद पानी से कर लेते हैं। दूध इनका प्राकृति आहार नहीं है। नागपंचमी के दिन कुछ लोग नाग को दूध पिलाने के नाम पर इन पर अत्याचार करते हैं क्योंकि इसके पहले ये लोग सांपों को कुछ खाने-पीने को नहीं देते। भूखा-प्यासा सांप दूध को पी तो लेता है लेकिन कई बार दूध सांप के फेफड़ों में घुस जाता है जिससे उसे निमोनिया हो जाता है और इसके कारण सांप की मौत भी हो जाती है।
वहीँ, सर्प विशेषज्ञ मोहम्मद सलीम बताते हैं कि सपेरे नाग पंचमी से पहले कोबरा सांपों को पकड़कर उनके दांत तोड़ देते हैं और जहर की थैली निकाल लेते हैं। इससे सांप के मुहं में घाव हो जाता है। इसके बाद सपेरे सांप को करीब 15 दिनों तक भूखा रखते हैं। नागपंचमी के दिन वे घूम-घूमकर इसे दूध पिलाते हैं। दरअसल, सांप दूध नहीं पीता, वह तो मांसाहारी जीव है। भूखा सांप दूध को पानी समझकर पीता है। सांप जाे दूध पानी समझकर पीता है, उससे पहले से बने घाव में मवाद बन जाता है और पंद्रह दिन के अंदर उसकी मौत हो जाती है।
यानी कि जो व्यक्ति किसी भी बहाने से सांप को दूध्ा पिला रहा है, वह पुण्य का काम नहीं कर रहा, बल्कि मृत्यु का कारक बन रहा है। इसके साथ ही वह संपेरों को अवैध रूप से सांपों को पकड़ने और प्रताणित करने के लिए प्रेरित कर रहा है। इसलिए यदि आप सांपों के वास्तव में हितैषी हैं, तो उन्हें दूध नहीं पिलाएं बल्कि उन्हें उनके मुक्त आवास तक पहुंचाने में मदद करें। ऐसा करके आप वास्तव में पुण्य का काम करेंगे और एक अच्छे इंसान ही नहीं जीव प्रेमी के रूप में भी जाने जाएंगे।