लखनऊ: दिसंबर का चौथा सप्ताह शुरू हो गया है। रात में सर्द हवाएं कंपकपी पैदा करने लगी हैं। लाखों रुपये होने के बावजूद भी गरीब ठिठुर रहे है। आशियाने से महरूम गरीबी खुले आसमां तले ठिठुर रही है। इसके बावजूद अब तक जिलों में कंबल की खरीद पूरी नहीं हो सकी है। चौराहों पर अभी अलाव जलना भी शुरू नहीं हुए। ऐसे में इस ठंड में गरीबों की मौत से अफसर खेलने पर अमादा हैं। यह हालत तब है जब राहत आयुक्त कार्यालय से मुख्य सचिव आलोक रंजन के निर्देश पर 18 करोड़ 75 लाख रुपए जारी किए जा चुके हैं।
मुख्य सचिव आलोक रंजन ने अभी हाल ही में कहा है कि कि यह अधिकारियों की घोर लापरवाही है। ठंड शुरू हो गई है और अगर किसी भी जिले में निर्देश के बावजूद कंबल नहीं बंटे हैं और अलाव नहीं जल रहे हैं तो इसके लिए अधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। इसके लिए उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। राज्य आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि बीते 4 नवंबर को ही 18 करोड़ 75 लाख रुपए सभी जिलों के लिए जारी कर दिए गए हैं। इसमें से कंबल के लिए प्रत्येक तहसील के लिए 5 लाख रुपए आवंटित किए गए हैं। इस राशि से जहां कंबल वितरण का काम पूरा करना है वहीं 50 हजार रुपए अलाव के लिए भी जारी किए गए हैं।
कई दिनों से पड़ रहा घना कोहरा प्रशासन की आंख नहीं खोल पा रहा है। इस घने कोहरे के कारण लोगोें का घरों से निकलना मुश्किल हो चला है। कोहरे के बीच स्टेशन रोड पर फुटपाथ किनारे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक दुबके नजर आए। बस इसी कशमकश के साथ इन गरीबों की सर्द रातें गुजर रही हैं। रोडवेज के आगे भी फुटपाथ पर बने टीन शैड पर कुछ ऐसा ही नजारा दिखाई देता है। वहीं पेट की आग बुझाने निकले रिक्शा चालक पूस की रात के हल्कू की तरह सवारी ढोने के बजाए सुलगती आग छोड़ने को तैयार नजर नहीं आए।
गरीब व बुजुर्ग लोग पूरी रात सर्द हवाओं में ठिठुरते नजर आते है, लेकिन प्रशासन को गरीब जनता की ओर कोई ध्यान नहीं है। बस तो अपने नियम पूरे करने के बाद ही कंबलों का वितरण करना है। चाहे फिर किसी की जान पर बन जाए। गरीबों का इंतजार है कि जाने कब प्रशासन उन्हें कंबल देगा। लेकिन अभी तक कई जनपदों में यह फाइनल तक ही नहीं किया कि उन्हें कंबल कब बांटने है। गरीब प्रशासन द्वारा दिए जाने वाले कंबल के लिए इंतजार में बैठे हुए है और सोच रहे है कि उन्हें वह कंबल जल्दी से देंगे, ताकि उनकी ठंड उनके कंबलों के सहारे से गुजर सके।
आपको बता दें कि 4 नवम्बर को ही राजस्व विभाग ने प्रत्येक तहसील 5 लाख रूपए कम्बल और 50 हजार रूपए अलाव के लिए रिलीज़ कर दिए थे। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि राजधानी लखनऊ समेत गोरखपुर, उन्नाव, जालौन, कन्नौज, मिर्जापुर, रायबरेली, अमेठी, कौशांबी और अन्य जिलों में लोग रातों को महज प्लास्टिक की बोरी ओढ़कर सो रहे हैं। अब देख कर तो यही लगता है कि कम्बल की खरीद ठंड खत्म होने के बाद ही हो सकेगी।