नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन
माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रुप में मनाया जाता है। इस
दिन भगवान भोलेनाथ के साथ साथ उनके गले के श्रृंगार नागदेवता की भी पूजा
होती है| उत्तर भारत में नाग पंचमी के दिन मनसा देवी की पूजा करने का भी
विधान है| देवी मनसा को नागों की देवी माना गया है, इसलिये बंगाल, उडिसा और
अन्य क्षेत्रों में मनसा देवी के दर्शन व उपासना का कार्य किया जाता है|
इस वर्ष नाग पंचमी का पर्व 19 अगस्त दिन बुधवार को मनाया जाएगा| इस वर्ष
नाग पंचमी पर 13 वर्षो के बाद दुलर्भ संयोग बन रहा है।
नाग पंचमी के दिन सूर्य और वृहस्पति सिंह राशि में और चंद्रमा कन्या राशि
में होंगे। नाग पंचमी पर होगा सूर्य गुरु यूति संयोग ऐसा संयोग 13 वर्षों
के बाद आ रहा है। यह संयोग सुख शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला है। नाग
पंचमी के दिन विधिवत शिव पूजा करने से जिसकी कुंडली में काल सर्प दोष के
कारण जीवन में अनके प्रकार की परेशानियां आती हों, नौकरी और व्यापार में
रुकावट हो, राहु के महादशा में केतु का अंतरदशा और केतु के महादशा में राहु
की अंतरदशा हो, इसके कारण दुर्घटना, पति- पत्नी में वियोग में विशेष लाभ
मिलेगा|
नाग पंचमी की पूजन विधि-
नाग पंचमी के दिन प्रातःकाल उठकर घर की सफाई कर नित्यकर्म से निवृत्त हो
जाएँ। उसके बाद स्नान कर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजन के लिए
सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएँ। कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन भोजन
बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी खाना खाया जाता है। इसके
बाद दीवाल पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर कच्चे दूध में
कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवाल पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक
नागदेवों की आकृति बनाते हैं। कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की
कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के
दोनों बगलों में पाँच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजते हैं।
सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ा आते हैं। और फिर दीवाल पर
बनाए गए नागदेवता की दूध, दूब, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध,
रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं।फिर
कथा सुनकर आरती करते हैं|
नागदेवता की नाग स्त्रोत या निम्न मंत्र का जाप करें-
" ऊँ कुरुकुल्ये हुँ फट स्वाहा"
इस मंत्र की तीन माला जप करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं| नाग देवता को
चंदन की सुगंध विशेष प्रिय होती है| इसलिये पूजा में चंदन का प्रयोग करना
चाहिए| इस दिन की पूजा में सफेद कमल का प्रयोग किया जाता है| उपरोक्त मंत्र
का जाप करने से "कालसर्प योग' के अशुभ प्रभाव में कमी आती है|
नागपंचमी की कथा-
एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के
विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और
सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था। एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली
मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया और खुरपी
लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से
मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? इस
बेचारे का क्या अपराध है' यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक
ओर जा बैठा। इसपर छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आते हैं तुम यहां से
जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में
फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।
उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस
स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह
चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे
अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब
सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो
मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू
मेरा भाई बन गया।
कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि
'मेरी बहन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला-
मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके
विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग
में बताया कि 'मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में
कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार
वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- 'मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने
भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला
दिया, जिसमें उसका मुख बुरी तरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत
क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहन को
अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना,
चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-आभूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है,
तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ
सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- 'इन्हें झाड़ने की झाड़ू
भी सोने की होनी चाहिए'। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी। सर्प ने
छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की
रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना
चाहिए।' राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित
हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि 'महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी,
वह उससे लेकर मुझे दे दो'। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे
दिया।
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने
पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब
वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे
तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने
हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।
यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठ जी
डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित
हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड
दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन! क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले
में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह
सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने
जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।
यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे
बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी बहू अपने हार सहित घर लौट आई।
उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी
बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर
कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।
तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी बहन के आचरण पर संदेह प्रकट
करेगा तो मैं उसे डस लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और
उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्यौहार
मनाया जाता है और स्त्रियाँ सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।
वहीँ, एक अन्य कथा के अनुसार, किसी नगर में एक किसान अपने परिवार सहित रहता
था। उसके तीन बच्चे थे-दो लड़के और एक लड़की। एक दिन जब वह हल चला रहा था
तो उसके हल के फल में बिंधकर सांप के तीन बच्चे मर गए। बच्चों के मर जाने
पर मां नागिन विलाप करने लगी और फिर उसने अपने बच्चों को मारने वाले से
बदला लेने का प्रण किया। एक रात्रि को जब किसान अपने बच्चों के साथ सो रहा
था तो नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को डस लिया। दूसरे
दिन जब नागिन किसान की पुत्री की डसने आई तो उस कन्या ने डरकर नागिन के
सामने दूध का कटोरा रख दिया और हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। उस दिन
नागपंचमी थी।
नागिन ने प्रसन्न होकर कन्या से वर मांगने को कहा। लड़की बोली-'मेरे
माता-पिता और भाई जीवित हो जाएं और आज के दिन जो भी नागों की पूजा करे उसे
नाग कभी न डसे। नागिन तथास्तु कहकर चली गई और किसान का परिवार जीवित हो
गया। उस दिन से नागपंचमी को खेत में हल चलाना और साग काटना निषिद्ध हो गया।
जानिए नाग पंचमी को क्यों पीटी जाती हैं गुड़िया-
तक्षक नाग के बारे में आपने कई धार्मिक पुस्तकों में पढ़ा होगा| माना जाता
है कि तक्षक नाग काफी जहरीला था| इसमें इतनी शक्ति थी कि अपने विष से
हरे-भरे वृक्ष को भी सूखा सकता था| कहा जाता है कि एक बार महाराज परीक्षित
को एक ऋषि ने शाप दे दिया कि तक्षक तुम्हें डसेगा जिससे तुम्हारी मृत्यु हो
जाएगी| ऋषि के श्राप से तक्षक ने नियत समय पर परीक्षित को डस लिया| इससे
परीक्षित की मृत्यु हो गयी|
धीरे- धीरे समय बीतता गया और तक्षक की चौथी पीढी में कन्या का विवाह राजा
परीक्षित की चौथी पीढी में हुआ| उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह
रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने के लिए कहा| कहते हैं
कि औरतों के बात हजम नहीं होती और उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता
दी और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे
यह बात पूरे नगर में फैल गई।
तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों
को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से
क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है। तभी से
नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है।
वहीं एक दूसरी कथा के मुताबिक, किसी नगर में एक भाई अपनी बहन के साथ रहता
था| दोनों भाई बहन एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे| भाई, भगवान भोलेनाथ और
मां काली का भक्त था। वह प्रतिदिन भगवान् भोलेनाथ के मंदिर जाता था जहाँ
उसे एक नागदेवता के दर्शन होते थे| वह लड़का रोजाना उस नाग को दूध पिलाने
लगा| धीरे- धीर दोनों में प्रेम बढ़ने लगा| लड़के को देखते ही सांप अपनी
मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट जाता था।
एक बार सावन का महीना था। बहन, भाई के साथ सज धजकर मंदिर जाने के लिए तैयार
हुई। नये गेहूं और चने की मीठी खीर, फल, फूल लेकर भाई संग मंदिर गयी। वहां
रोज की तरह सांप अपनी मणि छोड़कर भाई के पैरों मे लिपट गया। बहन को लगा कि
सांप भाई को डस रहा है। इस पर ने वह दलीय सांप पर दे मारी और उसे पीट-
पीटकर मर डाला| भाई ने जब अपनी बहन को पुरी बात बताई तो वह रोने लगी और
पश्चाताप करने लगी| लोगों ने कहा कि सांप देवता का रूप होते हैं इसलिए बहन
को दंड और पूजा जरूरी है। पर बहन ने भाई की जान बचाने के लिए सांप को मारा
है। इसलिए बहन के रूप में यानी गुड़िया को हर काल में दंड भुगतना पड़ेगा|
तभी से गुडिया का यह पर्व मनाया जाने लगा|