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मुस्लिमों को लुभाने के लिए सपा का ट्रंप कार्ड

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में मुसलमान मतदाताओं को अपने पाले में करने की खींचतान के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) ने ट्रंप कार्ड चल दिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की सरकार ने सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का निर्णय किया है। सरकार की इस निर्णय को मुसलमान मतदाताओं को लुभाने के कदम के रूप में देखा जा रहा है। 

बीते सप्ताह सपा सरकार ने राज्य सरकार द्वारा संचालित 30 विभागों की 85 योजनाओं में अल्पसंख्यकों को 20 प्रतिशत आरक्षण देने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तरफ से इस निर्णय के पीछे तर्क दिया गया कि अल्पसंख्यक वर्ग को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए शैक्षिक, आर्थिक व सामाजिक दूष्टि से विभिन्न आयोगों द्वारा विचार किया गया। यह आवश्यकता अनुभव की जा रही थी कि उन्हें भी समाज के अन्य वर्गो की भांति अवसर उपलब्ध कराते हुए सभी प्रकार की सुविधाएं इस प्रकार सुलभ कराई जाएं कि इन समुदायों को भी पिछड़ेपन से मुक्त करते हुए समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके।

उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक आबादी करीब 19 प्रतिशत है, जिसमें से करीब 16 प्रतिशत मुसलमान हैं। राज्य की करीब 30 लोकसभा सीटें ऐसी जहां पर मुसलमान नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में सपा उन्हें अपने पाले में रखना चाहती है। कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, बिजली संकट, बाढ़ जैसे तमाम मुद्दों पर घिरी अखिलेश सरकार का ये कदम आगामी लोकसभा चुनाव में अल्संख्यकों, खासकर मुसलमानों को खुश करने के रूप में देखा जा रहा है।

दरअसल, सपा को अंदेशा है कि विधानसभा चुनाव में सपा को वोट देने वाले मुस्लिम मतदाता का मूड लोकसभा चुनाव के समय बदल सकता है। वे सपा को अनदेखा कर कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं, इसलिए सपा नेतृत्व ने आरक्षण का निर्णय लेकर बड़ा ट्रंप कार्ड खेला है।

सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि यह किसी का तुष्टीकरण नहीं, बल्कि समाज के पिछड़ों और वंचितों को विशेष अवसर देने के राम मनोहर लोहिया के सिद्धांत को अमली जामा पहनाने का प्रयास है। इसे वोट बैंक की राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।

वह कहते हैं कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने शासनकाल में मुस्लिमों का इस्तेमाल सिर्फ वोट बैंक की तरह किया और भाजपा का तो मुस्लिम विरोध जगजाहिर है। ताजा राजनीतिक हालात में पार्टी नेतृत्व को लगता है कि अगर मुसलमान और पिछड़ा वर्ग सपा के साथ रहा तो लोकसभा सीटें जीतने में उसकी स्थिति नंबर एक पर रहेगी। अखिलेश द्वारा हाल में पिछड़े वर्ग के चार नेताओं को कैबिनेट मंत्री का पद देने से ऐसे संकेत मिलते हैं। 

उधर, कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि अल्पसंख्यक समुदाय में सरकार के विरुद्ध बढ़ती हुई नाराजगी और आने वाले लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोटों के खिसकने के डर से सपा सरकार ने 20 प्रतिशत भागीदारी देने के नाम पर प्रदेश के अल्पसंख्यक समाज पर डोरा डाला है।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मारूफ खान कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में सपा ने अपने घोषणापत्र में मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी जिसे पूरा न किए जाने से मुसलमानों में बढ़ती नाराजगी और अल्पसंख्यक हितों से जुड़े तमाम मुद्दों से अल्पसंख्यक समुदाय का ध्यान हटाने के लिए यह सिर्फ एक शिगूफा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि सपा अल्पसंख्यकों के हित के नाम पर केवल मुस्लिम वर्ग को लाभ पहुंचाकर तुष्टीकरण की नीति पर काम कर रही है। उसका मकसद मुसलमानों का भला नहीं, बल्कि उनका वोट लेना है।

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राम की अयोध्या बनी सियासत का कुरूक्षेत्र!

उत्तर प्रदेश में राम की नगरी अयोध्या एक बार सियासत का कुरूक्षेत्र बन गयी है। सियासत की इस अयोध्या रूपी बिसात पर विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) जहां अपनी 84 कोसी परिक्रमा को लेकर अडिग है वहीं राज्य सरकार ने भी इस परिक्रमा को रोकने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। 

विहिप और राज्य सरकार के टकराव के बीच अब इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भी कूद पड़ा है तो भारतीय जनता पार्टी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। आरएसएस के प्रवक्ता राम माधव ने इलाहाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान खुलेआम यह घोषणा कर दि कि आरएसएस भी संतों का पूरा सहयोग करेगा। संघ सूत्रों के मुताबिक 84 कोसी परिक्रमा जिन छह जिलों से गुजरनी है वहां संघ ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राम माधव ने कहा, राज्य सरकार यदि संतों से टकराएगी तो उसका सत्तामद चूर-चूर हो जाएगा।

माधव के बयान से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि विहिप के साथ ही संघ भी 84 कोसी परिक्रमा के बहाने अपनी खोई हुई जमीन हासिल करना चाहता है। संघ सूत्रों ने बताया कि संघ की शाखाएं पहले गांवों में खूब लगा करती थीं लेकिन बीते एक दशक में इतनी भारी कमी आयी है। संघ की पकड़ जैसे जैसे गावों से ढीली हुई वैसे-वैसे भाजपा का जनाधार भी घटता चला गया। 

विहिप के सूत्र बताते हैं कि 84 कोसी परिक्रमा पर प्रतिबंध लगने के बावजूद विहिप ने संतों की भीड़ जुटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। अयोध्या में लगने वाले सावन मेले में करीब 5 हजार से अधिक संत अन्य राज्यों से यहां आए हुए हैं। विहिप की रणनीति बाहर से आए उन संतांे को मठों में रोकना और परिक्रमा में शामिल होने का निवेदन करना है।

विहिप के प्रांतीय प्रवक्ता शरद शर्मा भी यह स्वीकार करते हैं कि मठ-मंदिरों में जाकर अयोध्या में होने वाली 84 कोसी परिक्रमा में शामिल होने का निवेदन किया जाएगा। उनके रहने का इंतजाम अलग अलग जगहों पर गांवों में किया जाएगा। लोग भी संतो के ठहरने की सूचना से काफी खुश हैं। इस बीच विहिप की रणनीति को भांपते हुए प्रशासन ने भी अयोध्या में लगे सावन मेले के समाप्त होने के साथ ही बाहर से आए साधु संतों को वापस भेजने की रणनीति तैयार कर रहा है। 

अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक स्थानीय प्रशासन इस दिशा में पहल कर रहा है और उसने कई टीमें गठित करने का फैसला किया है जो अलग अलग मठों में जाकर बाहर से आए संतों को वापस जाने का निवेदन करेगी। प्रशासन को भी इस बात का अंदाजा है कि बाहर से आए हजारों संत विहिप की ताकत बन सकते हैं।

सूत्रों ने यह भी बताया कि प्रशासन की ओर से खुफिया विभाग को भी भीड़ पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंपी है और अधिकारियों द्वारा उन जगहों को चिन्हित किया जा रहा है जहां आवश्यकता पड़ने पर अस्थायी जेलें बनायी जा सकें। इधर, 84 कोसी परिक्रमा को लेकर भाजपा ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा की तरफ से यही कहा जा रहा है कि परिक्रमा पर सरकार लोग नहीं सकती। विहिप का साथ देने के सवाल पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं, सरकार कुतर्कों के सहारे संतों की यात्रा रोक रही है। सरकार को संतों को परिक्रमा करने की इजाजत देनी चाहिए और सरकार को यात्रा की सुरक्षा का प्रबंध करना चाहिए ताकि सौहार्दपूर्ण वातावरण में यात्रा सम्पन्न हो सके।

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उप्र में बालू का अवैध खनन फायदे का धंधा क्यों?


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा ग्रेटर नोएडा की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन से राजनीतिक एजेंटों, बालू खनन माफिया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिले में सक्रिय रीअल इस्टेट कारोबारियों के बीच सांठगांठ उजागर हुआ है। दुर्गा का निलंबन सही काम करने वाले अधिकारी पर हमला है, इसी कारण इसकी व्यापक निंदा हो रही है, मगर यह कोई पहला मामला नहीं है।

पूर्व में एक अनुमंडल दंडाधिकारी (एसडीएम) विशाल सिंह पर कातिलाना हमला हो चुका है। पुलिस में शिकायत दर्ज हुई, लेकिन कुछ नहीं हुआ और विशाल सिंह को नेपथ्य में भेज दिया गया। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद जिलों में चल रहे निर्माण कार्यो के लिए बालू की मांग में हो रही निरंतर ने वृद्धि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यमुना और हिंडन नदियों से बालू उत्खनन बढ़ावा दिया है।

बिल्डरों के करीबी सूत्रों ने बताया कि सबको सस्ते बालू की तलाश रहती है। यह बालू हिंडन, यमुना और गंगा नदियों में गैरकानूनी तरीके से खुदाई करने वाले माफिया से प्राप्त होता है। एक लाइसेंसधारी आपूर्तिकर्ता राज्य को रायल्टी चुकाने के बाद ऊंची कीमत, करीब 20,000 रुपये प्रति डंपर के हिसाब से बालू बेचता है। इतना ही बालू एक गैरकानूनी आपूर्तिकर्ता 8000 रुपये में ट्रांसपोर्टरों को मुहैया कराता है जो भवन निर्माताओं को 10,000 रुपये में बेचते हैं।

गैरकानूनी खनन के बारे में प्रशासन को कई बार सूचना देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व नेता दुष्यंत नागर ने कहा, "एसडीएम नागपाल के निलंबन के पीछे केवल बालू खनन माफिया ही नहीं हैं, बिल्डरों की लॉबी का भी इस प्रकरण में प्रभावी भूमिका है। असल में उनकी भूमिका बड़ी है।"

उत्तर प्रदेश सरकार ने हालांकि यह दलील दी है कि नागपाल के निलंबन के पीछे बालू खनन नहीं है, बल्कि उनका एक धार्मिक स्थल की दीवार गिराने का आदेश है। भारतीय प्रशासनिक सेवा में उनके साथियों ने निलंबन पर एकजुटता दिखाई है और केंद्र सरकार से मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। बिल्डरों की संभावित भूमिका को स्पष्ट करते हुए नागर ने कहा, "गैरकानूनी बालू खनन से सबसे ज्यादा लाभ बिल्डर ही उठाते हैं, क्योंकि माफिया उन्हीं के लिए काम करते हैं।"

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नागपाल के निलंबन पर सियासत गरमाई

उत्तर प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को लेकर शुक्रवार को एक वीडियो सामने आने के बाद पहले से ही इस मामले में फजीहत झेल रही राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं, जिसमें समाजवादी पार्टी (सपा) के एक नेता को यह कहते दिखाया गया है कि नागपाल का निलंबन उन्होंने 41 मिनट के भीतर करवाया। यह वीडियो सामने आने के बाद विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तेवर और तल्ख हो गए हैं। उसने राज्य की सपा सरकार पर तीखे हमले किए हैं।

यह वीडियो, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उस बयान के बाद सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि नागपाल का निलंबन इसलिए किया गया, क्योंकि उन्होंने बिना-सोचे समझे इस तरह का कदम उठाया जिससे सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ सकता था। उन्होंने अधिकारी का निलंबन वापस लेने से भी इंकार किया। वीडियो में सपा नेता व उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष नरेंद्र भाटी को ग्रेटर नोएडा में समर्थकों से यह कहते दिखाया गया है कि उन्होंने सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सुबह करीब 10.30 बजे फोन किया और पूर्वाह्न् 11.11 बजे नागपाल के निलंबन का आदेश आ गया।

भाटी को उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के नाते राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है और वह आगामी लोकसभा चुनाव में गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट से सपा के उम्मीदवार हैं। भाटी के उक्त बयान के बाद इस मुद्दे पर पहले से ही आक्रामक भाजपा के तेवर अधिक तल्ख हो गए हैं। नोएडा से भाजपा विधायक महेश शर्मा ने आरोप लगाया है कि भाटी खनन माफिया से मिले हुए हैं। उन्होंने खनन माफियाओं से भाटी के संबंधों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से करवाने की मांग की है।

भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि मुख्यमंत्री का झूठ पकड़ा गया है। कल तक मुख्यमंत्री कह रहे थे कि आईएएस अधिकारी का निलंबन एक प्रशासनिक फैसला था। अब यह स्पष्ट हो गया है कि इसके पीछे राजनीतिक मकसद था। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने भी इस बात से सहमति जताई कि भाटी का वीडियो सामने आने के बाद सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब तक सरकार कहती आ रही थी कि उनका निलंबन मस्जिद परिसर की दीवार गिराने का आदेश देने के कारण हुआ, जिससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता था। लेकिन सरकार का यह दावा भी विवादों में घिर गया है, क्योंकि इस मामले में सरकार को भेजी गई जिलाधिकारी की रिपोर्ट में इससे इंकार किया गया है।

जिलाधिकारी की रिपोर्ट के मुताबिक, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के तौर पर तैनात नागपाल ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया था, बल्कि निर्माण के अवैध होने की जानकारी मिलने के बाद ग्रामीणों ने स्वयं उसे ढहा दिया। 

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