उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा के बाद चारों तरफ बने अविश्वास
के माहौल के बीच कवाल गांव में दोनों समुदाय के लोगों ने परंपरागत रामलीला
का आयोजन करने का फैसला किया है। इसका मकसद समाज को यह संदेश देना है कि
नफरत की आग में झुलसने के बाद भी उनका आपसी विश्वास पहले की तरह अटूट है।
कवाल गांव की रामलीला पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मशहूर है। करीब 66 साल से यहां दोनों समुदाय के लोग मिलकर रामलीला का आयोजन करते आ रहे हैं। हिंसा भड़कने के बाद इलाके में बने माहौल के बीच सवाल उठ रहे थे कि इस वर्ष रामलीला का आयोजन हो सकेगा या नहीं और यदि होगा भी तो इसमें पहले की तरह मुस्लिम समुदाय के लोग शिरकत करेंगे या नहीं।
लगभग 12 हजार की मिश्रित आबादी वाले कवाल गांव के प्रधान एवं रामलीला आयोजन समिति के सदस्य महेंद्र सिंह सैनी कहते हैं, "माहौल थोड़ा सामान्य होने के बाद जब मैंने मुस्लिम भाइयों से रामलीला के आयोजन और उनकी सहभागिता को लेकर बातचीत की तो उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि आपके मन में सहभागिता को लेकर संशय कैसे पैदा हुआ। यह बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू भर आए।"
कवाल वही गांव है, जो हिंसा का वजह बना। इसी गांव में छेड़खानी की घटना को लेकर हुए विवाद में तीन हत्याएं होने के मामले के तूल पकड़ने के बाद जिले भर में हिंसा भड़की और लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। हिंसा में 47 लोगों की जानें चली गईं, हजारों लोग बेघर हो गए।
सैनी ने कहा, "हम लोग आज भी उस काले दिन को सोच कर सहम उठते हैं, जब हमारे गांव से उठी चिंगारी ने पूरे जिले और प्रदेश को झुलसा दिया। लेकिन हम सभी मानते हैं कि सियासतदानों ने अपने मुनाफे के लिए विवाद को तूल देकर नफरत की आग फैलाई और दो भाइयों को आपस में लड़ाया। इस तरह की साजिशें हमारे आपसी प्रेम और सद्भाव को कम नहीं कर पाएंगी।"
सैनी ने कहा, "हमारी रामलीला दोनों वर्गो के सहयोग से होती है। यह हमारे आपसी भाईचारे का जीता-जागता प्रतीक है। गुजरे वर्षो की तरह इस वर्ष भी दोनों समुदाय के लोग मिलकर रामलीला का आयोजन करेंगे। यह हिंसा हमारे बीच के विश्वास की दीवार नहीं तोड़ पाएगी।" कवाल की रामलीला में विभिन्न पात्रों की अदायगी हिंदू समुदाय के लोग करते हैं, और साजो-सामान, प्रकाश एवं ध्वनि व्यवस्था और वाद्य यंत्रों को बजाने का जिम्मा मुस्लिम समुदाय के लोग निभाते आए हैं।
रामलीला के दौरान ढोलक बजाने वाले निजामुद्दीन ने कहा, "हम मिलजुल कर रामलीला का आयोजन करके लोगों का मनोरंजन करने के साथ कौमी एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश भी देते हैं।" छह अक्टूबर से शुरू होने वाली रामलीला के लिए सभी पात्रों ने रिहर्सल शुरू कर दी है। लक्ष्मण का करदार निभाने वाले जगपाल ने कहा, "हम मानते हैं कि हिंसा के बाद जिले में लोगों के मन में जो तनाव और अविश्वास पैदा हुआ है, हमारी रामलीला उसे समाप्त करके प्रेम और सद्भाव लाने में मदद करेगी।"
कवाल गांव की रामलीला पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मशहूर है। करीब 66 साल से यहां दोनों समुदाय के लोग मिलकर रामलीला का आयोजन करते आ रहे हैं। हिंसा भड़कने के बाद इलाके में बने माहौल के बीच सवाल उठ रहे थे कि इस वर्ष रामलीला का आयोजन हो सकेगा या नहीं और यदि होगा भी तो इसमें पहले की तरह मुस्लिम समुदाय के लोग शिरकत करेंगे या नहीं।
लगभग 12 हजार की मिश्रित आबादी वाले कवाल गांव के प्रधान एवं रामलीला आयोजन समिति के सदस्य महेंद्र सिंह सैनी कहते हैं, "माहौल थोड़ा सामान्य होने के बाद जब मैंने मुस्लिम भाइयों से रामलीला के आयोजन और उनकी सहभागिता को लेकर बातचीत की तो उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि आपके मन में सहभागिता को लेकर संशय कैसे पैदा हुआ। यह बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू भर आए।"
कवाल वही गांव है, जो हिंसा का वजह बना। इसी गांव में छेड़खानी की घटना को लेकर हुए विवाद में तीन हत्याएं होने के मामले के तूल पकड़ने के बाद जिले भर में हिंसा भड़की और लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। हिंसा में 47 लोगों की जानें चली गईं, हजारों लोग बेघर हो गए।
सैनी ने कहा, "हम लोग आज भी उस काले दिन को सोच कर सहम उठते हैं, जब हमारे गांव से उठी चिंगारी ने पूरे जिले और प्रदेश को झुलसा दिया। लेकिन हम सभी मानते हैं कि सियासतदानों ने अपने मुनाफे के लिए विवाद को तूल देकर नफरत की आग फैलाई और दो भाइयों को आपस में लड़ाया। इस तरह की साजिशें हमारे आपसी प्रेम और सद्भाव को कम नहीं कर पाएंगी।"
सैनी ने कहा, "हमारी रामलीला दोनों वर्गो के सहयोग से होती है। यह हमारे आपसी भाईचारे का जीता-जागता प्रतीक है। गुजरे वर्षो की तरह इस वर्ष भी दोनों समुदाय के लोग मिलकर रामलीला का आयोजन करेंगे। यह हिंसा हमारे बीच के विश्वास की दीवार नहीं तोड़ पाएगी।" कवाल की रामलीला में विभिन्न पात्रों की अदायगी हिंदू समुदाय के लोग करते हैं, और साजो-सामान, प्रकाश एवं ध्वनि व्यवस्था और वाद्य यंत्रों को बजाने का जिम्मा मुस्लिम समुदाय के लोग निभाते आए हैं।
रामलीला के दौरान ढोलक बजाने वाले निजामुद्दीन ने कहा, "हम मिलजुल कर रामलीला का आयोजन करके लोगों का मनोरंजन करने के साथ कौमी एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश भी देते हैं।" छह अक्टूबर से शुरू होने वाली रामलीला के लिए सभी पात्रों ने रिहर्सल शुरू कर दी है। लक्ष्मण का करदार निभाने वाले जगपाल ने कहा, "हम मानते हैं कि हिंसा के बाद जिले में लोगों के मन में जो तनाव और अविश्वास पैदा हुआ है, हमारी रामलीला उसे समाप्त करके प्रेम और सद्भाव लाने में मदद करेगी।"
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