सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी।
उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के
रूप में हुआ।काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह
रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस
प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम
की यह पवित्र कथा 'अध्यात्म रामायण' के नाम से विख्यात है।लोमश ऋषि के शाप
के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मुक्त होने के लिए
उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप मंं ही
उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि
ने रामायण गिद्धराज गरुड़ को सुना दी थी।जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने
श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि
नारद के कहने पर गिद्धराज गरुड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम
को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था।
भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर
गरुड़ को संदेह हो गया।गरुड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें
ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते
हैं। भगवान शंकर ने भी गरुड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी के
पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा
सुनाकर गरुड़ के संदेह को दूर किया। वैदिक साहित्य के बाद जो रामकथाएं लिखी
गईं, उनमें वाल्मीकि रामायण सर्वोपरि है। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे
और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका
था। एक दिन वे वन में ऋषि भारद्वाज के साथ घूम रहे थे और उन्होंने एक
व्याघ द्वारा क्रौंच पक्षी को मारे जाने की हृदयविदारक घटना देखी और तभी
उनके मन से एक श्लोक फूट पड़ा। बस यहीं से इस कथा को लिखने की प्रेरणा
मिली। यह इसी कल्प की कथा है और यही प्रामाणिक है। वाल्मीकि ने राम से
संबंधित घटनाचक्र को अपने जीवनकाल में स्वयं देखा या सुना था इसलिए उनकी
रामायण सत्य के काफी निकट है, लेकिन उनकी रामायण के सिर्फ 6 ही कांड थे।
उत्तरकांड को बौद्धकाल में जोड़ा गया। उत्तरकांड क्यों नहीं लिखा वाल्मीकि
ने? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है।
राम कथा के प्रणेता के रूप में वाल्मीकि रामायण का नाम सर्वप्रथम लिया जाता
है। वाल्मीकि रामयाण को स्मृत ग्रंथ माना गया है इस ग्रंथ की रचना माता
सरस्वती की कृपा से हुई थी| इस ग्रंथ को ॠतम्भरा प्रज्ञा की देन बताया जाता
है। रामायण की रचना संस्कृत भाषा में हुई है। वाल्मीकि रामायण के अलावा भी
कई रामायणे लिखी गईं हैं| श्री रामचरित मानस की रचना गोस्वामी तुसलीदास
द्वारा संवत 1633 में सम्पन्न हुई थी। अवधी भाषा में रचित इस महाकाव्य की
रचना दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन लगे थे। इस ग्रंथ में बालकाण्ड, आयोध्या
कांड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुन्दरकाड, लंकाकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड
के रूप में सात काण्ड है। इन सात काण्डों में ही श्रीराम के सम्पूर्ण
चरित्रको समाहित किया गया है।
आध्यात्म रामायण की रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई है। ब्राह्मण्ड
पुराण के उत्तरखण्ड के अंतर्गत एक आख्ययान के रूप में इसकी रचना हुई है।
इसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई है। प्रस्तु ग्रंथ में भगवान श्री राम को
आध्यात्मिक तत्व माना गया है। आनन्द रामायण महर्षि वाल्मीकि की ही रचना
है। इस रामायण को भी सारकाण्ड, जन्म काण्ड, मनोहर काण्ड, राज्य काण्ड आदि
काण्डों में बांटा गया है।संस्कृत भाषा में रचित इस रामायण में राजनैतिक,
धार्मिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व के साथ ही श्री राम के
मर्यादा पुरूषत्व की नींव को सुदृढ़ बनाया है। कृति वास रामायण की रचना
गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म से लगभग सौ वर्ष पूर्व हुई थी। इस रामायण की
भाषा बंगला है। बंग्लादेश स्थित मनीषी कवि कृतिवास द्वारा रचित इस रामायण
में भी बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धा काण्ड,उत्तरकाण्ड
इत्यादि है । इस रामायण में भी सात काण्ड है। पवार छन्दों में पांचाली गान
के रूप में रचित इस ग्रंथ में श्रीराम के उदार चरित्रों का बखान किया गया
है।
अदभुत रामायण की रचना भी संस्कृत भाषा में की गई है। इस रामायण की रचना भी
महर्षि वाल्मिकी द्वारा ही की गयी है। इस रामायण में सत्ताईस सर्ग के
अंतर्गत लगभग चौदह हजार श्लोक है। इस रामायण में भगवती सीता के महात्म्य को
विशेष रूप से दर्शाया गया है। इस रामायण के अनुसार सहस्रसुख का भी रावण था
जो दशमुख रावण का अग्रज था। सीता ने महाकाली का रूप धारण करके सहस्रसुख
रावण का वध कर दिया था। रंगनाथ रामायण की रचना द्रविड़ भाषा में (तेलगु) में
श्री मोनबुध्द राज द्वारा देशज छन्दों में 1380 ई. के आसपास की गई । इस
रामायण में युध्दकाण्ड के माध्यम से श्रीराम को महाप्रतापी बताया गया है।
रावण के कुकृत्यों की निन्दा के साथ ही उसके गुणों की भी इसमें मुक्तकण्ठ
से प्रशंसा की गई है।
कश्मीरी रामायण की रचना दिवाकर प्रकाश भट्ट द्वारा कश्मीरी भाषा में की गई
है। इस रामायण को रामावतार चरित्र के नाम से भी जाना जाता है । इसका एक नाम
प्रकाश रामायण भी है। काशुर रामायण के नाम से इसका हिन्दी रूपान्तर भी
प्राप्त है। इस रामायण में भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य की त्रिवेणी प्रवाहित
होती दिखाई देती है। प्रियंका रामायण की रचना उड़िया भाषा में आदिकवि श्री
शरलादास द्वारा की गई है। यह रामायण पूर्वकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड के रूप में
थी तथा दो खण्डों में है। शिव पार्वती के संवाद के रूप में रचित यह रामायण
भगवती महिषासुर मर्दिनी की वन्दना से प्रारंभ है। योगवशिष्ठ - रामायण की
रचना भी महर्षि वाल्मीकि द्वारा संपन्न हुई है। इसे महारामायण, आर्य रामायण
(आर्ष रामायण), वशिष्ठ रामायण, ज्ञान वशिष्ठ रामायण के नामों से भी जाना
जाता है। यह ग्रंथवैराग्य प्रकरण, मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण, उत्तप्ति
प्रकरण, स्थिति प्रकरण, उपशम प्रकरण तथा निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध एवं
उत्तरार्ध) के रूप में श्रीराम के चरित्र को छ: प्रकरणों में विभक्त किया
गया है। संस्कृत भाषा में रचित इस रामायण में श्रीराम के मानवीय चरित्र के
पक्ष में विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है।
उपरोक्त रामायणों के अतिरिक्त विष्णु प्रताप रामायण, मैथिली रामायण, दिनकर
रामायण, शंकर रामायण, जगमोहन रामायण, शर्मा नारायण, ताराचंद रामायम, अमर
रामायण, प्रेम रामायण, कम्बा रामायण, तोखे रामायण, गड़बड़ रामायण नेपाली
रामायण, विचित्र रामायण मंत्र रामायण तिब्बती रामायण, राधेश्याम रामायण,
चरित्र रामायण, कर्कविन रामायण जावी रामायम, जानकी रामायण आदि अनेक रामायण
की रचना सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी की गई है।
अगर हम भाषाओं पर जाएं तो अन्नामी, बाली, बांग्ला, कम्बोडियाई, चीनी,
गुजराती, जावाई, कन्नड़, कश्मीरी, खोटानी, लाओसी, मलेशियाई, मराठी, ओड़िया,
प्राकृत, संस्कृत, संथाली, सिंहली, तमिल, तेलुगू, थाई, तिब्बती, कावी आदि
भाषाओं में लिखी गई है रामायण। अभी तक बहुत सारी रामायण लिखी जा चुकी हैं।
विदेशों में जो रामायणे लिखी गईं हैं उनमें किंरस-पुंस-पा की 'काव्यदर्श'
(तिब्बती), रामायण काकावीन (इंडोनेशियाई कावी), हिकायत सेरीराम (मलेशियाई
भाषा), रामवत्थु (बर्मा), रामकेर्ति-रिआमकेर (कंपूचिया खमेर), तैरानो
यसुयोरी की 'होबुत्सुशू' (जापानी), फ्रलक-फ्रलाम-रामजातक (लाओस), भानुभक्त
कृत रामायण (नेपाल), अद्भुत रामायण, रामकियेन (थाईलैंड), खोतानी रामायण
(तुर्किस्तान), जीवक जातक (मंगोलियाई भाषा), मसीही रामायण (फारसी), शेख
सादी मसीह की 'दास्ताने राम व सीता'।, महालादिया लाबन (मारनव भाषा,
फिलीपींस), दशरथ कथानम (चीन), हनुमन्नाटक (हृदयराम-1623) इसके साथ-साथ अभी
भी खोज निरंतर जारी है।