केन्द्रीय योजना आयोग द्वारा गरीबी का ‘बेतुका’ मानक तय करने के बाद भर पेट भोजन को लेकर देश भर में हायतौबा मची है, लेकिन एक सरकारी सच जानकार आप परेशान हो जाएंगे। भले ही बढ़ती मंहगाई के बीच देश के किसी हिस्से में बारह रुपये, पांच रुपये या एक रुपये में भर पेट भोजन न मिलता हो, पर उत्तर प्रदेश की पुलिस अपनी हिरासत में लिए गए व्यक्ति को एक दशक से ‘पांच रुपये’ में भर पेट ‘भोजन’ करा रही है।
हाल ही में केन्द्रीय योजना आयोग द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में 27 रुपये और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये रोजाना खर्च करने वाले को ‘अमीर’ का दर्जा दिए जाने का ‘बेतुका’ मानक तय करने के बाद कांग्रेसी नेताओं राज बब्बर के 12 रुपये, रशीद मसूद के पांच रुपये और केन्द्रीय मंत्री फारुक अब्दुल्ला के एक रुपये में भर पेट भोजन मिलने के बयानों के बाद समूचे देश में ‘भोजन’ को लेकर ‘गरीबी’ और ‘अमीरी’ को परिभाषित करने की जबर्दस्त बहस छिड़ गई है। कांग्रेसी नेता रोजाना कितने रुपये के भोजन से अपना पेट भरते हैं, यह तो वह खुद जानते होंगे, पर तल्खसच्चाई है कि देश के किसी भी हिस्से में नेताओं के रेट पर भर पेट भोजन नहीं मिलता और उत्तर प्रदेश की पुलिस पिछले एक दशक से अपनी हिरासत में लिए गए व्यक्ति को ‘पांच रुपये’ के सरकारी मानक में भर पेट भोजन करा रही है और इसी मानक के अनुसार सूबे की सरकार भुगतान भी करती आयी है, हालांकि अमानवीय हरकत के लिए बदनाम उत्तर प्रदेश की पुलिस इस पांच रुपये में भी ‘खेल’ कर रही है। ज्यादातर थानों के लाकप में बंद व्यक्ति के भोजन का इंतजाम उसके परिजन ही करते हैं, मगर यह छोटी सी रकम भी पुलिस डकार रही है।
बांदा के अपर पुलिस अधीक्षक स्वामी प्रसाद की मानें तो एक दशक पूर्व हिरासत में लिए गए व्यक्ति के भोजन के लिए शासन से सिर्फ दो रुपए प्रति खुराक के हिसाब से भुगतान किए जाने का प्राविधान था, बाद में शासन स्तर से मंहगाई को देखते हुए यह रकम बढ़ा कर पांच रुपये कर दी गई है जो थानेवार थाना प्रभारियों को उपलब्ध करा दी जाती है। अपर पुलिस अधीक्षक स्वामी प्रसाद कहते हैं कि ‘आज आसमान छू रही मंहगाई को देखते हुए यह धनराशि ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है, लेकिन एक दशक से इस धनराशि में कोई इजाफा नहीं किया गया।’ वह स्वीकार करते हैं कि ‘होटल से पांच रुपये में अच्छी चाय भी नहीं मिल पाती, किन्तु ‘शासन की मंशा के अनुरूप’ पुलिस किस तरह भर पेट भोजन उपलब्ध कराती होगी? आप अंदाजा लगा सकते हैं।’ बिसंड़ा के थानाध्यक्ष पंकज तिवारी का कहना है कि ‘वैसे तो हिरासत में लिए गए आस-पास के गांवों के व्यक्तियों के भोजन का इंतजाम उनके परिजन ही करते हैं, यदि दूर-दराज का व्यक्ति पकड़ा गया तो सिपाहियों का पेट काट भोजन दिया जाना मजबूरी है।’ वह बताते हैं कि ‘जिले के अधिकारी उसी व्यक्ति के नाम का भुगतान करते हैं, जिन्हें न्यायालय में पेश किया जाता है। अक्सर ऐसे भी हिरासत में ले लिए जाते हैं, जिन्हें जेल नहीं भेजा जा सकता और उनके पेट का प्रबंध अपनी जेब से करना पड़ता है।’
पुलिस हिरासत के दौरान भोजन दिए जाने की हकीकत जानने के लिए जब हमारे संवाददाता ने बांदा जेल से रिहा हुए तेन्दुरा गांव के युवक रिंकू उर्फ संकल्प से मुलाकात की। उसने बताया कि ‘उसे जेल भेजने से पूर्व चार दिन तक नरैनी पुलिस के लाकप में रहना पड़ा था, एक भी दिन पुलिस ने खाना नहीं दिया। तीसरे दिन उसके परिजन खाना लेकर गए, तब कहीं भूख मिटी।’ मुकदमा अपराध संख्या-149/20013 में गिरफ्तार किए गए इस युवक के नाम भुगतान की गई धनराशि के बारे में पुलिस लाइन बांदा में तैनात प्रतिसार निरीक्षक (आरआई) ने बताया कि ‘नरैनी पुलिस को तीन खुराक के हिसाब से केवल 15 रुपये का भुगतान किया गया है।’ इस युवक के मामले से साफ जाहिर होता है कि स्थानीय पुलिस ने उसे एक भी बार भोजन नहीं दिया और उसके नाम पर मिले 15 रुपये भी हजम करने से परहेज नहीं किया गया। यह तो सिर्फ बानगी है, ऐसा किया जाना पुलिस के लिए आम बात है।
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