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प्रेम कहानी की याद में बरसाते हैं पत्थर

 भले ही युग बदल गया हो, मगर परंपराएं अब भी बरकरार हैं। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में लगने वाला गोटमार मेला परंपरा का एक प्रमाण है। एक प्रेम कहानी की याद में लगने वाले इस मेले में लड़के और लड़की पक्ष से नाता रखने वाले गांव के लोग एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं और उन्हें इस पत्थर मार युद्घ में किसी की जान लेने से भी परहेज नहीं होता। 

छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्ना में हर साल पोला त्योहार के बाद गोटमार मेला लगता है। किंवदंती है कि जाम नदी के दोनों ओर बसे पांढुर्ना व सावरगांव के बीच एक प्रेम कहानी को लेकर युद्घ हुआ था। सावरगांव की लड़की को पांढुर्ना के लड़के से मोहब्बत थी। 

किंवदंती के मुताबिक पांढुर्ना का लड़का जब अपनी प्रेमिका को सावरगांव से लेकर लौट रहा था, तभी उस पर सावरगांव के लोगों ने अपनी इज्जत से जोड़कर प्रेमीयुगल पर पत्थरों से हमला कर दिया। प्रेमी जोड़े को जान बचाने के लिए जाम नदी में शरण लेनी पड़ी और पांढुर्ना के लोग अपने गांव के लड़के के बचाव में सामने आकर पत्थर चलाने लगते हैं। बाद में प्रेमी युगल को गंभीर हालत में चंडी के मंदिर में लाकर विवाह कराया जाता है। इसी कहानी की याद में हर साल पोला के अगले दिन गोटमार मेला लगता है। 

इस मेले के दौरान जाम नदी के बीच में एक झंडा लगाया जाता है और सावरगांव व पांढुर्ना के लोग नदी के दोनों ओर जमा होकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। जो झंडे पर कब्जा कर लेता है, उसे ही विजेता माना जाता है। पिछले सालों में इस पत्थरबाजी में कई लोगों की जान भी जा चुकी है। क्षेत्रीय जानकार अनंत जोशी बताते है कि यह परंपरा वषरें से चली आ रही है और इसको लेकर किंवदंती भी है। कहा जाता है कि एक प्रेम कहानी को लेकर पत्थर युद्घ हुआ था, यह कब हुआ था इसका कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं है। प्रशासन ने इसे रोकने की भी कोशिश की मगर लोगों की अस्था से जुड़ा मामला होने के कारण इस पर रोक नहीं लग पाई है। 

इस गोटमार मेले में कम से कम लोग आहत हों इसके लिए जिला प्रशाासन ने कई बार कोशिश की। एक बार तो मेला स्थल के इर्द गिर्द से पत्थरों को भी हटा दिया गया था और लोगों को सलाह दी गई थी कि वे रबर की गेंद का इस्तेमाल करें मगर बात नहीं बनी। प्रशासन ने इस बार भी आयोजन स्थल पर निषेधाज्ञा लागू कर दी है, साथ ही लोगों को सलाह दी गई है कि वे परंपरा को तो निभाएं मगर किसी को ज्यादा नुकसान न पहुंचे इसका ध्यान रखें। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व एस. सी. गंगवानी ने बताया है कि प्रशासन ने किसी अनहोनी को रोकने के पुख्ता इंतजाम किए हैं। बड़े पत्थरों की बजाय छोटे पत्थरों के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। साथ ही चिकित्सा के भी इंतजाम किए गए हैं, ताकि घायलों का मौके पर ही इलाज किया जा सके। 

गंगवानी ने बताया है कि मेले में आने वाले लोग पत्थरबाजी में कम से कम शामिल हों, इसके लिए प्रशासन ने दूसरे खेलों का भी आयोजन किया है। इसके अलावा सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। परंपरा के नाम पर खून बहाने का यह खेल शुक्रवार छह सितंबर को फिर खेला जा रहा है। प्रशासन की कोशिश कम से कम लोगों को आहत होने देने की है, वहीं सावरगांव व पांढुर्ना के लोगों में जीत की होड़ मची है।

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सावन में जितना रंग लाती है मेंहदी, उतना मिलता है पति का प्रेम

सावन में जब चारों ओर हरियाली का साम्राज्य रहता है, ऐसे में भारतीय महिलाएं भी अपने साजो-श्रृंगार में हरे रंग का खूब इस्तेमाल करती हैं। और जब महिलाओं के श्रृंगार की बात हो रही हो और उसमें मेंहदी की बात न हो तो बात अधूरी रह जाती है। वैसे भी सावन में मेंहदी का अपना महत्व है।

मान्यता है कि जिसकी मेंहदी जितनी रंग लाती है, उसको उतना ही अपने पति और ससुराल का प्रेम मिलता है। मेंहदी की सोंधी खुशबू से लड़की का घर-आंगन तो महकता ही है, लड़की की सुंदरता में भी चार चांद लग जाते हैं। इसलिए कहा भी जाता है कि मेंहदी के बिना दुल्हन अधूरी होती है। 

अक्सर देखा जाता है कि सावन आते ही महिलाओं की कलाइयों में चूड़ियों के रंग हरे हो जाते हैं तो उनका पहनावा भी हरे रंग में तब्दील होता है। और ऐसे में मेंहदी न हो तो बात पूरी नहीं होती है। यही कारण है कि पटना में सावन में मेंहदी के छोटे से बड़े मेंहदी के दुकानों में लड़कियों और महिलाओं से पटे रहते हैं। 

सावन के महीने में पटना का कोई भी ऐसा मार्केट नहीं होता जहां मेंहदी वाले नहीं होते। पटना के डाक बंगला चौराहे के मौर्या लोक कांप्लेक्स में दिलीप मेंहदी वाला और धोनी मेंहदी वाले की दुकानें सजी हैं तो बेली रोड के केशव पैलेस में सुरेश मेंहदी वाले अपनी मेंहदी लगाने वाले हुनर से महिलाओं को आकर्षित कर रहे हैं। 

वैसे पटना में कई ब्यूटी पार्लरों में भी मेंहदी लगाने का काम होता है परंतु वहां मेंहदी लगाने का मूल्य अधिक होता है इस कारण अधिकांश महिलाएं इन छोटे दुकानों पर ही मेंहदी लगाने पहुंचती हैं। एक स्थान में तीन से चार मेंहदी वाले होते हैं जो अक्सर दिन के 11 बजे के बाद ही मेंहदी लगाने का कार्य प्रारम्भ करते हैं जो देर शाम तक चलता रहता है। 

सुरेश मेंहदी वाले बताते हैं कि आम तौर पर सावन में ग्राहकों की संख्या चार गुनी बढ़ जाती है, इस कारण हम लोग भी कारीगरों की संख्या में इजाफा करते हैं। सुरेश कहते हैं कि प्रतिदिन वह करीब 100 से ज्यादा हाथों में मेंहदी लगाने का काम करता है। उनका यह भी कहना है कि आमतौर पर महिलायें दोनों तरफ हाथ मेंहदी से भरवाती हैं और कई तरह की डिजाइन की भी मांग करती हैं। 

उधर, एक अन्य मेंहदी वाले ने मेंहदी के विषय में बताया कि सिल्वर मेंहदी, गोल्डन मेंहदी, ब्राउन मेंहदी को छोड़कर सारे डिजाइन असली मेंहदी से बनते हैं और इसका रंग भी काफी दिनों तक टिकता है। जबकि सिल्वर, गोल्डन और ब्राउन मेंहदी ग्लीटर का होता है जो अक्सर लोग समारोह में जाने के पूर्व लगवाते हैं और पानी से धोने के बाद पूरी तरह साफ हो जाता है। 

उनका यह भी कहना है कि अक्सर लोग मारवाड़ी और राजस्थानी मेंहदी की मांग करते हैं। वैसे कई महिलायें ऐसी भी होती हैं जो घर में ही मेंहदी लगाती हैं। 

पटना के राजा बजार में एक ब्यूटी पार्लर चलाने वाली रोमा बताती हैं कि इन दिनों मेंहदी फैशन की वस्तु बन गई है जिस कारण मांग भी बढ़ गई है। रोमा कहती हैं कि अक्सर लोग मेंहदी विशेष अवसरों पर ही लगाती हैं। उनका दावा है कि मेंहदी हार्मोन को तो प्रभावित करती ही हैं, रक्त संचार में भी नियंत्रण रखती हैं। वे कहती हैं कि आजकल पिछले कुछ वषों से इसका चलन काफी बढ़ गया है। मेंहदी दिमाग को शांत और तेज भी बनाता है। रोमा यह भी कहती हैं कि आखिर मेंहदी सजने की वस्तु है तो महिलायें सावन में इससे अलग नहीं रह पातीं। आखिर सजना जो है 'सजना' के लिए।

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