‏إظهار الرسائل ذات التسميات स्वतंत्रता संग्राम. إظهار كافة الرسائل
‏إظهار الرسائل ذات التسميات स्वतंत्रता संग्राम. إظهار كافة الرسائل

राष्ट्रवादी भावनाओं के उद्गाता थे मैथिलीशरण गुप्त


 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनी रचनाओं से भारतीयों में राष्ट्रीयता की अलख जगाने वाले रचनाकारों में कवि मैथिलीशरण गुप्त का नाम अग्रिम पंक्ति में रखा जाता है। खड़ी बोली में काव्य रचना कर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले, राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत 'भारत भारती' जैसे काव्यसंग्रह के रचयिता गुप्तजी मानवीय संवेदनाओं के भी प्रखर प्रवक्ता थे। मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को झांसी के चिरगांव में सेठ रामचरण कनकने और कौशल्या बाई के घर हुआ। वे अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे। विद्यालय में खेलकूद में विशेष रुचि लेने के कारण गुप्तजी की शिक्षा अधूरी रह गई और बाद में उन्होंने घर पर ही हिंदी, बांग्ला और संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया।

मुंशी अजमेरी की प्रेरणा से 12 वर्ष की अवस्था से ही ब्रजभाषा में काव्य रचना प्रारंभ करने वाले मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य की अप्रतिम सेवा करने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए। इसके बाद वह द्विवेदी जी के आग्रह पर खड़ी बोली में रचना करने लगे। प्रथम काव्य संग्रह 'रंग में भंग' के बाद गुप्तजी ने 'जयद्रथ वध' की रचना की। गुप्तजी ने बांग्ला से 'मेघनाथ वध', 'ब्रजांगना', संस्कृत से 'स्वप्नवासवदत्त' आदि का अनुवाद भी किया।

उस समय तक रामकथा पर आधारित काव्य रचनाओं में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के प्रति कवियों की उदासीनता पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'कवियों की उर्मिला के प्रति उदासीनता' लेख लिखा था। काव्यजगत की कमी की ओर किए गए इशारे के बाद गुप्तजी ने 'साकेत' की रचना करने का मन बनाया। साकेत में उर्मिला के विरह को जिस मार्मिक ढंग से उन्होंने प्रस्तुत किया है वह अन्यत्र दुलर्भ है।

मैथिलीशरण गुप्त की स्त्री वेदना की दूसरी उत्कृष्ट रचना 'यशोधरा' मानी जाती है। गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा को विरह से ज्यादा पति का चुपके से चले जाना सालता है। अपनी पीड़ा को व्यक्त करते हुए यशोधरा एक आम भारतीय नारी का प्रतीक बन जाती हैं, जो निरपराध दंड भुगतने के लिए विवश हैं।

असल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इसी दौर में नारी मुक्ति का विश्वव्यापी विचार भी उभर कर सामने आया था। मैथिलीशरण गुप्त जहां एक ओर राष्ट्रीयता का सूत्र थामे हुए थे, वहीं दूसरी ओर वे समकालीन वैचारिक आंदोलन पर भारतीय नजरिए के चिंतन को भी काव्य भाषा के माध्यम से रख रहे थे।

1914 में भारत भारती के प्रकाशन के साथ ही मैथिलीशरण गुप्त की ख्याति चारों ओर फैल गई। तीन खंडों की इस रचना की शुरुआत ही पाठकों को बांधे बगैर नहीं रह पाती है। 'मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती, भगवान भारत वर्ष में गूंजे हमारी भारती।'

1916-17 में उन्होंने साकेत की रचना शुरू की जो 1931 में पूरी हुई। इसी दौरान 'पंचवटी' खंड काव्य भी सामने आया और गुप्तजी महात्मा गांधी के संपर्क में भी आए। इसके बाद 1932 में उन्होंने यशोधरा की रचना की। गुप्त जी 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के तहत जेल गए। महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की संज्ञा से नवाजा और आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट. की उपाधि से विभूषित किया। 1952 में उन्हें राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया और 1953 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से अलंकृत किया। 1962 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया तथा हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट से सम्मानित किया। 1954 में कवि मैथिलीशरण गुप्त को शिक्षा एवं साहित्य क्षेत्र से पद्म भूषण से अलंकृत किया गया।

1963 में अनुज सियाराम शरण गुप्त के निधन से मैथिलीशरण गुप्त को गहरा सदमा हुआ। 12 दिसंबर 1964 को दिल का दौरा पड़ने से साहित्य के इस महान पुरोधा ने नश्वर पार्थिव संसार से महाप्रस्थान किया। 78 वर्ष की अवस्था तक मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को 19 खंड काव्यों, दो महाकाव्य और अनेक नाटिकाओं आदि से समृद्ध किया। हिंदी के प्रखर आलोचक डॉ. नगेंद्र के शब्दों में राष्ट्रकवि थे सच्चे राष्ट्रकवि। रामधारी सिंह दिनकर के मुताबिक उनके काव्य में भारत की प्राचीन संस्कृति एक बार फिर तरुणावस्था को प्राप्त हुई थी। 

PARDAPHASH