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जानिए गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध क्यों...?

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध माना गया है| कहते हैं कि इस रात जो व्यक्ति चंद्रमा को जाने-अन्जाने देख लेता हैं उसे मिथ्या कलंक लगता हैं। उस पर झूठा आरोप लगता हैं। क्या आपको पता है ऐसा क्यों होता है? 

शास्त्रों के अनुसार, एक बार जरासन्ध के भय से भगवान कृष्ण समुद्र के बीच नगर बनाकर वहां रहने लगे। भगवान कृष्ण ने जिस नगर में निवास किया था वह स्थान आज द्वारिका के नाम से जाना जाता हैं। उस समय द्वारिका पुरी के निवासी से प्रसन्न होकर सूर्य भगवान ने सत्रजीत यादव नामक व्यक्ति अपनी स्यमन्तक मणि वाली माला अपने गले से उतारकर दे दी। यह मणि प्रतिदिन आठ सेर सोना प्रदान करती थी। मणि पातेही सत्रजीत यादव समृद्ध हो गया। भगवान श्री कृष्ण को जब यह बात पता चली तो उन्होंने सत्रजीत

से स्यमन्तक मणि पाने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन सत्रजीत ने मणि श्री कृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजीत को दे दी। एक दिन प्रसेनजीत शिकार पर गया जहां एक शेर ने प्रसेनजीत को मारकर मणि ले ली। यही रीछों के राजा और रामायण काल के जामवंत ने शेर को मारकर मणि पर कब्जा कर लिया था। कई दिनों तक प्रसेनजीत शिकार से घर न लौटा तो सत्रजीत को चिंता हुई और उसने सोचा कि श्रीकृष्ण ने ही मणि पाने के लिए प्रसेनजीत की हत्या कर दी। इस प्रकार सत्रजीत ने पुख्ता सबूत जुटाए बिना ही मिथ्या प्रचार कर दिया कि श्री कृष्ण ने प्रसेनजीत की हत्या करवा दी हैं। इस लोकनिंदा से आहत होकर और इसके निवारण के लिए श्रीकृष्ण कई दिनों तक एक वन से दूसरे वन भटक कर प्रसेनजीत को खोजते रहे और वहां उन्हें शेर द्वारा प्रसेनजीत को मार डालने और रीछ द्वारा मणि ले जाने के चिह्न मिल गए। इन्हीं चिह्नों के आधार पर श्री कृष्ण जामवंत की गुफा में जा पहुंचे जहां जामवंत की पुत्री मणि से खेल रही थी। 

उधर जामवंत श्री कृष्ण से मणि नहीं देने हेतु युद्ध के लिए तैयार हो गया। सात दिन तक जब श्री कृष्ण गुफा से बाहर नहीं आए तो उनके संगी साथी उन्हें मरा हुआ जानकार विलाप करते हुए द्वारिका लौट गए। 21 दिनों तक गुफा में युद्ध चलता रहा और कोई भी झुकने को तैयार नहीं था। तब जामवंत को भान हुआ कि कहीं ये वह अवतार तो नहीं जिनके दर्शन के लिए मुझे रामचंद्र जी से वरदान मिला था। तब जामवंत ने अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और मणि दहेज में श्रीकृष्ण को दे दी। उधर कृष्ण जब मणि लेकर लौटे तो उन्होंने सत्रजीत को मणि वापस कर दी। सत्रजीत अपने किए पर लज्जित हुआ और अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।

कुछ ही समय बाद अक्रूर के कहने पर ऋतु वर्मा ने सत्रजीत को मारकर मणि छीन ली। श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ उनसे युद्ध करने पहुंचे। युद्ध में जीत हासिल होने वाली थी कि ऋतु वर्मा ने मणि अक्रूर को दे दी और भाग निकला। श्रीकृष्ण ने युद्ध तो जीत लिया लेकिन मणि हासिल नहीं कर सके। जब बलराम ने उनसे मणि के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मणि उनके पास नहीं। ऐसे में बलराम खिन्न होकर द्वारिका जाने की बजाय इंद्रप्रस्थ लौट गए। उधर द्वारिका में फिर चर्चा फैल गई कि श्रीकृष्ण ने मणि के मोह में भाई का भी तिरस्कार कर दिया। मणि के चलते झूठे लांछनों से दुखी होकर श्रीकृष्ण सोचने लगे कि ऐसा क्यों हो रहा है। तब नारद जी आए और उन्होंने कहा कि हे कृष्ण तुमने भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को चंद्रमा के दर्शन किये थे और इसी कारण आपको मिथ्या कलंक झेलना पड़ रहा हैं।

श्रीकृष्ण चंद्रमा के दर्शन कि बात विस्तार पूछने पर नारदजी ने श्रीकृष्ण को कलंक वाली यह कथा बताई थी। एक बार भगवान श्रीगणेश ब्रह्मलोक से होते हुए लौट रहे थे कि चंद्रमा को गणेशजी का स्थूल शरीर और गजमुख देखकर हंसी आ गई। गणेश जी को यह अपमान सहन नहीं हुआ। उन्होंने चंद्रमा को शाप देते हुए कहा, 'पापी तूने मेरा मजाक उड़ाया हैं। आज मैं तुझे शाप देता हूं कि जो भी तेरा मुख देखेगा, वह कलंकित हो जायेगा।

गणेशजी शाप सुनकर चंद्रमा बहुत दुखी हुए। गणेशजी शाप के शाप वाली बाज चंद्रमा ने समस्त देवताओं को सोनाई तो सभी देवताओं को चिंता हुई। और विचार विमर्श करने लगे कि चंद्रमा ही रात्री काल में पृथ्वी का आभूषण हैं और इसे देखे बिना पृथ्वी पर रात्री का कोई काम पूरा नहीं हो सकता। चंद्रमा को साथ लेकर सभी देवता ब्रह्माजी के पास पहुचें। देवताओं ने ब्रह्माजी को सारी घटना विस्तार से सुनाई उनकी बातें सुनकर ब्रह्माजी बोले, चंद्रमा तुमने सभी गणों के अराध्य देव शिव-पार्वती के पुत्र गणेश का अपमान किया हैं। यदि तुम गणेश के शाप से मुक्त होना चाहते हो तो श्रीगणेशजी का व्रत रखो। वे दयालु हैं, तुम्हें माफ कर देंगे। 

चंद्रमा गणेशजी को प्रशन्न करने के लिये कठोर व्रत-तपस्या करने लगे। भगवान गणेश चंद्रमा की कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और कहा वर्षभर में केवल एक दिन भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को जो तुम्हें देखेगा, उसे ही कोई मिथ्या कलंक लगेगा। बाकी दिन कुछ नहीं होगा। केवल एक ही दिन कलंक लगने की बात सुनकर चंद्रमा समेत सभी देवताओं ने राहत की सांस ली। उसी दिन से गणेश चतुर्थी यानि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध माना गया है|

गणेश चतुर्थी पर इस बार नक्षत्रों का संयोग

पार्वती नंदन व रिद्दी सिद्धी के दाता गणेशजी का जन्मोत्सव 'गणेश चतुर्थी' के अवसर पर पूरे देश में धूम मची हुई है। गणपति धाम व गणेश जी के प्रमुख मंदिरों में जहां भव्य सजावट का दौर जारी रहा वहीं उनके दर्शन के लिए भक्तों की लम्बी कतार भी देखी गई| यह त्यौहार महाराष्ट्र और गोवा में कोंकणी लोगों का सबसे ज्यादा लोकप्रिय त्यौहार है, जिसे वह बड़ी धूम-धाम और श्रद्धा के साथ मानते हैं। इसके साथ ही गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के अलावा भारत के सभी राज्यों में इस त्यौहार में बड़ी धूम रहती है।

भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को ही 'श्री गणेश चतुर्थी' कहते हैं। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को गणेश भगवान का जन्म हुआ था। भारतीय संस्कृति के अनुसार गणेश भगवान की पूजा बुद्धि, समृद्धि, सौभाग्य और किसी भी शुभ कार्य के करने को करने से पहले की जाती है। इस बार गणेश चतुर्थी 17 सितम्बर दिन गुरूवार को पड़ रही है| गणेश जी को बुद्धि के देवता और विघ्नों का विनाशक माना जाता है। चूहे की सवारी करने वाले गणेश जी का प्रिय भोग लड्डू है। गणेश जी का विवाह ऋद्धि तथा सिद्धि नामक दो स्त्रियों के साथ हुआ है।

शुभ मुहूर्त-

इस साल 17 सितम्बर गुरुवार भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी को गणेश चतुर्थी पूरे देश में मनाई जाएगी। ऐसे चार योग हैं जो कई वर्षों बाद बने हैं। इस साल गणेश चतुर्थी बेहद महत्वपूर्ण है और आपके घर में सुख एवं समृद्धि लेकर आने वाली है। पहला योग यह कि कन्या की संक्रांति में 19 वर्षों बाद गणेश चतुर्थी मनेगी| 12 वर्षों के बाद गणेश चतुर्थी बृहस्पति, सूर्य सिंह संक्रांति में आयी है, जो अगले 12 साल बाद 4 सितम्बर 2027 को आएगी। रवि योग जो सूर्योदय से रात्रि 1:32 बजे तक रहेगा, ऐन्द्र योग जो सूर्योदय पूर्व से सायः 6:23 बजे तक रहेगा। सिंह में बृहस्पति का योग। विद्या और बुद्ध‍ि के देव गणेश जी की चतुर्थी ऐसे दुर्लभ योग कई वर्षों बाद आते हैं जिसमें विद्या, साधना के करने से उत्तम सिद्दी प्रदान करेगा।

गणेश चतुर्थी सूर्योदय पूर्व से रात्रि 10:20 मिनिट तक रहेगी तथा स्वाति नक्षत्र सूर्योदय से रात्रि 1:32 तक रहेगी। इसी दिन सूर्य दोपहर 12:29 पर कन्या राशि में संकान्ति करेंगे। सूर्य और बुध मिल के बुध आदित्य योग बनायेंगे। यह योग श्रेष्ठ फलदायी रहेगा, जिससे व्यापारियों को बाजार में वृद्धि होगी। मंगल कार्यों का आरम्भ होगा। 

गणेश चतुर्थी पर भद्रा का साया रहेगा| भद्रा प्रातः 9:10 बजे से रात्रि 10:20 तक रहेगी। गणेश चतुर्दशी को भी भद्रा रहेगी जो दोपहर 12:07 से रात्रि 10:14 मिनट तक रहेगी। हो सके तो भद्रा के समय को छोड़कर पूजन कार्य करें व अधिक आवश्यकता हो तो भद्रा का मुख पूछ छोड़कर शुभ मुहूर्त में कार्य संपन्न किये जा सकते हैं। 18 सितम्बर को ऋषि पंचमी को सर्वार्थ सिद्दी योग भी रहेगा।

कैसे जन्में भगवान गणेश-

एक बार की बात है माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। वह चाहती थी की स्नान करते समय उन्हें कोई परेशान न करें। तब उन्होंने स्नान से पहले अपने मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे अपना द्वारपाल बनाकर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश दिया। उसी समय वहाँ भगवान शिवजी आये और अन्दर प्रवेश करने लगे, तब बालक ने उन्हें बाहर रोक दिया। शिव जी ने उस बालक को कई बार समझाया लेकिन वह नहीं माना। इस पर शिवगणों ने भगवान शिवजी के कहने पर उस बालक को द्वार से हटाने के लिए उससे भयंकर युद्ध किया। लेकिन उसे कोई पराजित नहीं कर सका। बालक के पराक्रम और हठधर्मिता से क्रोधित होकर शिवजी ने उस बालक का सिर काट दिया।

जब माता पार्वती स्नान करके निकली तो अपने पुत्र का कटा हुआ सिर देखकर क्रोधित हो उठीं और शिवजी से उसे पुनः जीवित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा की अगर उनके पुत्र को जीवित नहीं किया गया तो प्रलय आ जाएगी। यह सब देखकर सारे देवी-देवता भयभीत हो गये। तब देवर्षि नारद न एपर्वती जी को शांत किया और बालक को जिन्दा करने का अनुराध भगवान शिवजी से करने लगे। बड़ी समस्या यह थी कि कटा हुआ सिर वापस से धड के साथ जुड नही सकता था। अतः यह तय हुआ कि अगर किसी दूसरे जीव का सिर मिल जाए तो यह बालक वापस से जिन्दा हो जाएगा।

शिव जी के आदेशानुसार शिवगणों जब दूसरा सिर खोजने निकले तो उन्हें एक जंगल में एक हाथी का बच्चा मिला। शिवगणों उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आए। इसके पश्चात शिव जी ने उस गज के कटे हुए मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया और इस बालक का नाम गणेश पड़ा। गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की स्थापना की जाती है। सभी भक्तगण गणेश जी का उपवास रखते हैं। इस दिन घरों व मंदिरों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। कई दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और गणेश भगवान की पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं। दस दिन चलने वाले इस उत्सव के बाद गणेश भगवान की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है।

गणेश चतुर्थी कथा-

श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है| कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें| वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा| भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये| परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है| परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है| इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता|

यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया| खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई| खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया| यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व कीचड़ में पडे रहने का श्राप दे दिया| बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऎसा नहीं किया| बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई|

ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं| नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया| उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा| बालक ने कहा कि हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों|

बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए| बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई| उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई| देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया| इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वह समाप्त हो गई|

यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई| यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई| माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया| व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें| उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है|

लौंग के औषधीय गुणों के बारे में जानकर दंग रह जाएंगे आप

हमारे देश में लौंग को मसालों का राजा माना जाता है| मसाले को स्थायी तथा खुशबूदार बनाने के लिए लौंग का प्रयोग किया जाता है| पान में भी लौंग डालकर खाया जाता है| यह कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, वसा जैसे तत्वों से भरपूर है। इसके अलावा लौंग में खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा, सोडियम, विटामिन सी और ए भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

इसके सेवन से गला खुल जाता है और छाती में जमा कफ बाहर निकल जाता है| यह पाचक, पित्त नाशक, कुछ उष्ण, वायु रोग नष्ट करने वाला, दमा, बुखार, अपच, हैजा, सिर दर्द, हिचकी और खांसी आदि रोगों को शान्त करने वाला है| स्त्रियां इसका उपयोग घरेलू चिकित्सा में करती हैं| आइए, जाने लौंग के औषधीय गुणों के बारे में-

यदि खांसी से परेशान हैं तो लौंग, कालीमिर्च, अनार के छिलके और सोंठ – सभी बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें| फिर शहद मिलाकर इस चूर्ण को दिन में तीन बार खाएं| लौंग को पानी में पीसकर माथे तथा दोनों कनपटियों पर लेप लगाने से सिर दर्द ठीक हो जाता है| खसरा में दो लौंग का चूर्ण शहद के साथ दिन में तीन बार चटाएं| इससे बच्चे को बहुत आराम मिलता है| भोजन के बाद दो लौंग सुबह और दो शाम को मुंह में डालकर चूसें| कुछ ही दिनों में अम्लपित्त शान्त हो जाएगा|

लौंग, कालीमिर्च, सोंठ तथा अनार के छिलकों को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करें| यह छाती पर जमे हुए कफ को निकालता है और श्वास को स्वाभाविक बनाता है| एक गिलास पानी में दो लौंग का चूर्ण और दो चम्मच प्याज का रस मिलाकर रोगी को पिलाने से हैजे का रोग शान्त होता है| दो रत्ती की मात्रा में लौंग का चूर्ण गरम पानी से लेने पर बुखार उतर जाता है| इस चूर्ण का सेवन सुबह-शाम करें| दो लौंग पीसकर आधा कप पानी में डालकर अच्छी तरह खौला लें| फिर इस पानी को गुनगुने रूप में दिनभर में तीन बार पिएं|

चार-पांच लौंग पीसकर पानी में डालकर उसे गरम कर लें| फिर इस पानी में कुल्ला करें| दाढ़-दांत के दर्द में लौंग का तेल लगाने से भी काफी आराम मिलता है| एक-दो लौंग मुंह में डालकर धीरे-धीरे चूसने से जी मिचलाना रुक जाता है| लौंग को पानी में घिसकर गुहेरी पर लेप करने से वह बैठ जाती है| इससे पलकों की सूजन भी दूर होती है|

एंटी-सेप्टिक गुणों के कारण लौंग चोट, खुजली और संक्रमण में काफी उपयोगी होती है। इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। इसे किसी पत्थर पर पानी के साथ पीस कर काटे गए या डंक वाले स्थान पर लगाना चाहिए, काफी लाभ होता है। अक्सर लोग तनाव के समय सिगरेट जला लेते हैं या ऐसा कोई अन्य उपाय करते हैं, जो कई बार नुकसानदेह भी साबित होता है। एक लौंग आपके ऐसे तनाव को ही नहीं कम करती, बल्कि अपने विशिष्ट गुण के कारण थकान को कम करने का भी काम करती है।

इस समय खूब खाइये अमरुद क्योंकि...

बरसात और सर्दियों के दिनों में बाजार में हर जगह अमरुद ही अमरुद दिखाई देने लगते हैं| देखने में हरे और लाल रंग के अमरूद लोगों को काफी पसंद आते है। खाने में तो ये स्वादिष्ट होते ही है साथ ही सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि अमरूद का सेवन, आपके चेहरे को कांतिमय बनाता है| अमरूद में मौजूद पौटेशियम के कारण इसके नियमित सेवन से स्‍कीन ग्‍लो करती है और कील मुंहासों से भी छुटकारा मिलता है। 

दरअसल, अमरुद में विटामिन सी की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिससे त्वचा संबधित रोग नहीं होते हैं। इसमें विटामिन,फाइबर और मिनरल प्रचुर मात्रा में होता है जो कब्ज की समस्याओं से निजात दिलाता है| जिन व्यक्तिओं के नाक-कान से खून आता हो, उन्हें भी अमरूद का सेवन करना चाहिए। सिर्फ यही नहीं अमरुद एसिडिटी, अस्थमा, ब्लडप्रेशर, मोटापा आदि समस्याओं में भी फायदा पहुंचाता है। यह कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करता है साथ ही साथ यह पित्त रोगों में भी मददगार होता है।

इसमें फोलेट की अच्छी मात्रा है जिससे यह महिलाओं में फर्टिलिटी बढ़ाता है। मां बनने की चाहत रखने वाली महिलाएं रोज से अमरूद का सेवन करें। अमरूद के सेवन से खून में सुगर का स्तर कम होता है। इसमें फाइबर अधिक मात्रा में होते हैं जो शुगर पचाने और इन्सुलिन बढ़ाने में मदद करते हैं। अमरूद में आयोडीन अच्छी मात्रा में होता है जिससे थायरॉइड की समस्या में आराम होता है। इससे शरीर का हार्मोनल संतुलन बना रहता है।

आपको जानकर अचरज होगा कि अमरूद में संतरे के मुकाबले चार गुना अधिक विटामिन सी होता है। विटामिन सी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर से लड़ने में शरीर की मदद करते हैं। अमरूद में मौजूद पोटैशियम शरीर में सोडियम के प्रभाव को कम करता है जिससे ब्लड प्रेशर का संतुलन बना रहता है। इसके अलावा, यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है।दांत दर्द में इसके पत्ते चबाने से भी काफी आराम मिलता है। इससे कब्ज भी दूर होती है। इसे बालू में भून कर खाने से खांसी दूर होती है। 

अगर आपके मुंह में काफी छाले हो गए हैं या फिर अक्‍सर आपको माउथ अल्‍सर की प्रॉब्‍लम बनी रहती है तो आप अमरूद की नई - नई कोमल पत्तियों को सेवन करें। इससे आराम मिलता है। अमरूद बॉडी के मेटाबॉल्जिम को बैलेंस रखता है इस वजह से इसके सेवन से कब्‍ज से छुटकारा मिल जाता है। अमरूद में विटामिन ए की मात्रा काफी होती है जो कि आंखों को स्‍वस्‍थ बनाएं रखती है। 

सर्दी-जुकाम होने पर भुना हुआ अमरुद नमक व काली मिर्च के साथ खाने से जुकाम की स्थिति से छुटकारा मिलता है। इसमें मौजूद विटामिन सी जुकाम में काफी फायदेमंद साबित होता है। अमरुद में पाया जाने बाला रेशा या फाइवर मेटाबॉलिज्म को ठीक रखने की सबसे अच्छी दवा है तो जिन लोगों का पेट खराब रहता है वो लोग अमरुद का सेवन अवश्य करें 

अमरूद के ताजे पत्तों का रस 10 ग्राम तथा पिसी मिश्री 10 ग्राम मिलाकर 21 दिन प्रात: खाली पेट सेवन करने से भूख खुलकर लगती है और शरीर सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर उसका एक सप्ताह तक लेप करने से आधा सिर दर्द समाप्त हो जाता है। यह प्रयोग प्रात: काल करना चाहिए। 

गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 4-5 नई कोमल पत्तियों को पीसकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर रोजाना खाने से से जोड़ो के दर्द में काफी राहत मिलती है। फोड़े और फुंसियों से परेशान हो तो अमरूद की 7-8 पत्तियों को लेकर थोड़े से पानी में उबालकर पीसकर पेस्ट बना लें और इस पेस्ट को फोड़े-फुंसियों पर लगाने से आराम मिलता ।

सीताफल खाइये और बीमारियों को दूर भगाइए

सीताफल (Custard apple) एक लाजवाब, स्वादिष्ट और मीठा फल होने के साथ-साथ अपने में अनगिनत औषधीय गुणों को शामिल किए हुए है। पूरे शरीर को स्वस्थ और बीमारियों से दूर रखने का यह एक बहुत ही आसान उपाय है। सीताफल में मौजूद विरोधी अपचायक(एंटी ऑक्सिडेंट) ,शरीर मुक्त कण से लड़ने में मदद करते हैं। पोटेशियम और मैग्नीशियम हृदय रोग से हृदय की रक्षा करते है| सीताफल एक संतुलित आहार हैं इसमे प्रोटीन, फाइबर, खनिज, विटामिन, ऊर्जा और थोड़ा वसा होता हैं। उपरोक्त रूप से इसमे कई रोगों का मुकाबला करने की शक्ति होती है। 

सीताफल में वजन बढ़ाने की क्षमता भरपूर होती है और अगर आप वजन बढ़ाने के सारे जतन करके थक चुके हैं तो तैयार हो जाएं एक नए और मीठे उपाय के लिए। आपको बस सीताफल को अपनी डाइट का हिस्सा बनाना है और आपका मनचाहा फिगर आप पा सकेंगे बहुत ही जल्दी। क्या आप अक्सर कमजोरी महसूस करते हैं? सीताफल आपकी यह परेशानी दूर कर सकता है। सीताफल बहुत ही अच्छा एनर्जी का स्रोत होता है और इसके सेवन से थकावट और मसल्स मतलब मांसपेशियों की कमजोरी आपको बिलकुल भी महसूस नहीं होगी। बस, सीताफल को अपनी डाइट में शामिल कर लीजिए।

विटामिन बी कॉम्प्लेक्स से भरा हुआ सीताफल दिमाग को शीतलता देने का भी काम करता है। यह आपको चिड़चिड़ेपन से बचाकर निराशा को दूर रखता है। तो फिर बस, सीताफल अपनाइए और अपनी मानसिक शांति को रखिए अपने साथ हमेशा। खून की कमी यानी एनीमिया से बचना अब बिलकुल आसान है। सीताफल का हर दिन इस्तेमाल खून की अल्पता को खत्म कर देता है और उल्टियों के प्रभाव को भी कम करता है। सीताफल आपके दांतों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत उत्तम है। इसको नियमित खाकर आप दांतों और मसूड़ों में होने वाले दर्द से छुटकारा पा सकते हैं।

सीताफल में मौजूद मैग्नीशियम शरीर में पानी को संतुलित करता है और इस तरह से जोड़ों में होने वाले अम्ल को हटा देता है। यह अम्ल गठिया रोग का मुख्य कारण होता है और इस तरह से सीताफल गठिया रोग से सुरक्षा करता है। सीताफल आंखों की देखने की क्षमता बढ़ाता है, क्योंकि इसमें विटामिन सी और रिबोफ्लॉविन काफी ज्यादा होता है। इससे नंबर के चश्मे को आप खुद से बड़ी आसानी से दूर रख सकते हैं। 

दिल की तंदुरुस्ती अब बिलकुल आसान है। इसमें सोडियम और पोटेशियम संतुलित मात्रा में होते हैं जिससे खून का बहाव यानी ब्लड प्रेशर में अचानक होने वाले बदलाव नियंत्रित हो जाते हैं। दोनों प्रकार की शुगर को संतुलित रखना सीताफल के उपयोग के साथ बहुत ही आसान है। इसमें शरीर में होने वाली शुगर को सोख लेने का गुण होता है और इस तरह से यह शुगर का शरीर में स्तर सामान्य बनाए रखता है। सीताफल में विटामिन बी -6 जैसे पोषक तत्व होने की वजह से ब्रोन्कियल सूजन और दमा के हमलों को रोकने मे मदद मिलती है। यह फल गर्भावस्था के समय होने वाले मूड स्विंग, मॉर्निंग सिकनेस और अकड़न से राहत दिलाने में मदद करता है।

औषधीय गुण की खान है अजवाइन

एक कहावत है-'एकाजवानी शतमन्ना पचिका' अर्थात अकेली अजवाइन ही सैकड़ों प्रकार के अन्न को पचाने वाली होती है। भारतीय खाने में अजवाइन का उपयोग मसाले के रूप में कई सदियों से किया जाता है लेकिन अजवाइन सिर्फ एक मसाला ही नहीं है ये कई तरह के औषधिय गुणों से भरपूर है। अजवाइन के कई ऐसे घरेलू प्रयोग है जो हेल्थ प्रॉब्लम्स में रामबाण की तरह कार्य करते हैं तो आइए आज हम आपको बतातेे हैं ऐसे ही कुछ औषधीय गुणों के बारे में....

अजवाइन के बारे में बता दें कि इसका वानस्पतिक नाम ट्रेकीस्पर्मम एम्माई है। अजवाइन में 7 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट,21 प्रतिशत प्रोटीन, 17 प्रतिशत खनिज ,7 प्रतिशत कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह, पोटेशियम, सोडियम, रिबोफ्लेविन, थायमिन, निकोटिनिक एसिड अल्प मात्रा में, आंशिक रूप से आयोडीन, शर्करा, सेपोनिन, टेनिन, केरोटिन और 14 प्रतिशत तेल पाया जाता है। इसमें मिलने वाला सुगंधित तेल 2 से 4 प्रतिशत होता है, 5 से 60 प्रतिशत मुख्य घटक थाइमोल पाया जाता है। मानक रूप से अजवाइन के तेल में थाइमोल 40 प्रतिशत होता है।

पेट खराब होने पर अजवाइन को चबाकर खाएं और एक कप गर्म पानी पीएं। पेट में कीड़े हैं तो काले नमक के साथ अजवाइन खाएं। लीवर की परेशानी है तो 3 ग्राम अजवाइन और आधा ग्राम नमक भोजन के बाद लेने से काफी लाभ होगा। पाचन तंत्र में किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर मट्ठे के साथ अजवाइन लें, आराम मिलेगा। अजवाइन मोटापे कम करने में भी उपयोगी होती है। रात में एक चम्मच अजवाइन को एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह छान कर एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से लाभ होता है। इसके नियमित सेवन से मोटापा कम होता है।

मसूड़ों में सूजन होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूंदों को गुनगुने पानी में डालकर कुल्ला करने से सूजन कम होती है। सरसों के तेल में अजवाइन डाल कर गर्म करें। इससे जोड़ों की मालिश करने पर दर्द से आराम मिलेगा। अजवाइन के रस में दो चुटकी काला नमक मिलाकर उसका सेवन करें और उसके बाद गर्म पानी पी लें। इससे आपकी खांसी ठीक हो जाएगी। आप काली खांसी से परेशान हैं तो जंगली अजवाइन के रस को सिरका और शहद के साथ मिलाकर दिन में 2-3 बार एक-एक चम्मच सेवन करें, राहत मिलेगी।

अजवाइन को भून व पीसकर मंजन बना लें। इससे मंजन करने से मसूढ़ों के रोग मिट जाते हैं। अजवाइन, सेंधानमक, सेंचर नमक, यवाक्षार, हींग और सूखे आंवले का चूर्ण आदि को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाती हैं।

अजवाइन का रस आधा कप इसमें इतना ही पानी मिलाकर दोनों समय (सुबह और शाम) भोजन के बाद लेने से दमा का रोग नष्ट हो जाता है।मासिक धर्म के समय पीड़ा होती हो तो 15 से 30 दिनों तक भोजन के बाद या बीच में गुनगुने पानी के साथ अजवायन लेने से दर्द मिट जाता है। मासिक अधिक आता हो, गर्मी अधिक हो तो यह प्रयोग न करें। सुबह खाली पेट 2-4 गिलास पानी पीने से अनियमित मासिक स्राव में लाभ होता है।

मुख से दुर्गंध आने पर थोड़ी सी अजवायन को पानी में उबालकर रख लें, फिर इस पानी से दिन में दो-तीन बार कुल्ला करने पर दो-तीन दिन में दुर्गंध खत्म हो जाती है। खीरे के रस में अजवायन पीसकर चेहरे की झाइयों पर लगाने से लाभ होता है।अजवाइन, काला नमक, सौंठ तीनों को पीसकर चूर्ण बना लें। भोजन के बाद फाँकने पर अजीर्ण, अशुद्ध वायु का बनना व ऊपर चढऩा बंद हो जाएगा। कान में दर्द होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूंदे कान में डालने से आराम मिलता है। शरीर में दाने हो जाएं या फिर दाद-खाज़ हो जाए तो, अजवाइन को पानी में गाढ़ा पीसकर दिन में दो बार लेप करने से फायदा होता है। घाव और जले हुए स्थानों पर भी इस लेप को लगाने से आराम मिलता है और निशान भी दूर हो जाते हैं।

बरसात के मौसम में पाचन क्रिया के शिथिल पडऩे पर अजवायन का सेवन काफी लाभदायक होता है। इससे अपच को दूर किया जा सकता है। अजवायन, काला नमक, सौंठ तीनों को पीसकर चूर्ण बना लें। भोजन के बाद फाँकने पर अजीर्ण, अशुद्ध वायु का बनना व ऊपर चढऩा बंद हो जाएगा। पैर में कांटा चुभ जाए, तो कांटा चुभने के स्थान पर पिघले हुए गुड़ में 10 ग्राम पिसी हुई अजवाइन मिलाकर थोड़ा गरम कर बांध देने से कांटा अपने आप निकल जाएगा। रात्रि में एक चम्मच अजवायन एक गिलास पानी में भिगोएं। सुबह छानकर उस पानी में शहद डालकर पीने पर लाभ होता है।

लीवर की परेशानी है तो 3 ग्राम अजवाइन और आधा ग्राम नमक भोजन के बाद लेने से काफी लाभ होगा। पाचन तंत्र में किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर मट्ठे के साथ अजवाइन लें, आराम मिलेगा। अगर पेट में गैस की समस्या से परेशान हैं तो 1-2 ग्राम खुरसानी अजवाइन में गुड़ मिलाकर इसकी गोलियां बना कर खाएं, आपको तुरंत राहत मिलेगी। पेट में गैस होने पर हल्दी, अजवाइन और एक चुटकी काला नमक लें, इससे भी बहुत जल्दी काफी आराम मिलता है। पेट में पथरी का अंदेशा है तो आप 5 ग्राम ग्राम जंगली अजवाइन को पानी के साथ निगल लें। ऐसा आप महीने में पांच दिन करें तो पथरी कभी नहीं बनेगी। हैजा होने पर कपूर के साथ अजवाइन को मिला कर दें, हैजा की परेशानी कम होगी।

कुंदरू के फल, अजवायन, अदरक और कपूर की समान मात्रा लेकर कूट लिया जाए और एक सूती कपड़े में लपेटकर हल्का-हल्का गर्म करके सूजन वाले भागों धीमें -धीमें सिंकाई की जाए तो सूजन मिट जाती है। किसी शराब पीने वाले की आदत छुड़ाना चाहते हैं तो दिन में हर दो घंटे बाद उसे एक चुटकी अजवाइन चबाने को दें, बहुत जल्द उनकी शराब पीने की आदत छूट जाएगी। अजवाइन को पीस लिया जाए और नारियल तेल में इसके चूर्ण को मिलाकर ललाट पर लगाया जाए तो सिर दर्द में आराम मिलता है। अस्थमा के रोगी को यदि अजवाइन के बीज और लौंग की समान मात्रा का 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन दिया जाए तो काफी फायदा होता है। अजवाइन को किसी मिट्टी के बर्तन में जलाकर उसका धुंआ भी दिया जाए तो अस्थमा के रोगी को सांस लेने में राहत मिलती है।

गले में खराश हो तो बेर के पत्ते और अजवाइन दोनों को पानी में एक साथ उबाल कर उस पानी को छानकर पी लें। नाक बंद होने पर आप अजवाइन को बारीक पीस कर उसे कपड़े में बांध कर सूंघें, आराम मिलेगा। खाने के बाद अजवाइन के साथ गुड़ खाने से सर्दी और एसिडिटी में आराम मिलता है।अजवाइन की 2 से 3ग्राम मात्रा को दिन में तीन बार लें। जुकाम, नजला और सिरदर्द में यह रामबाण दवा है। पान के पत्ते के साथ अजवाइन के बीजों को चबाया जाए तो गैस, पेट मे मरोड़ और एसीडिटी से निजात मिल जाती है।

अजवाइन, इमली के बीज और गुड़ की समान मात्रा लेकर घी में अच्छी तरह भून लेते है और फिर इसकी कुछ मात्रा प्रतिदिन नपुंसकता से ग्रसित व्यक्ति को दें।ये मिश्रण पौरुषत्व बढ़ाने के साथ-साथ शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में भी मदद करता है। नींद न आने की समस्या हो तो 2 ग्राम अजवाइन पानी के साथ निगल लें। इससे अच्छी नींद आएगी। कान में दर्द है तो अजवाइन के तेल का इस्तेमाल करें, दर्द ठीक हो जाएगा।