यह नवरात्रि पर्व शक्ति की शक्तियों को जगाने का आह्वान है ताकि हम पर देवी की कृपा हो और हम शक्ति-स्वरूपा से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद अर्जित कर सकें। हम सभी संकट, रोग, दुश्मन व प्राकृतिक-अप्राकृतिक आपदाओं से बच सकें। हमारे शारीरिक तेज में वृद्धि हो, मन निर्मल हो। हमें सपरिवार दैवीय शक्तियों का लाभ मिल सकें।
माँ भगवती दुर्गा की आराधना का पवित्र पर्व नवरात्रि का प्रारंभ 28 सितंबर, बुधवार से हो रहा है। नवरात्री के प्रथम दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घट की स्थापना की जाती है। इसके बाद ही नवरात्रि उत्सव का प्रारंभ होता है। हम आपको बता दें कि नवरात्रि में घट स्थापना की विधि तथा शुभ मुहूर्त क्या है |
आप पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी शक्ति के अनुसार बनवाए गए सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी माँ दुर्गा की मूर्ति की प्रतिष्ठा करें।
नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करते हैं और सबसे पहले श्रीगणेश की पूजा अर्चना कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करते हैं | फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करते हैं| माँ भगवती की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करते हैं|
माँ भगवती दुर्गा की आराधना का पवित्र पर्व नवरात्रि का प्रारंभ 28 सितंबर, बुधवार से हो रहा है। नवरात्री के प्रथम दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घट की स्थापना की जाती है। इसके बाद ही नवरात्रि उत्सव का प्रारंभ होता है। हम आपको बता दें कि नवरात्रि में घट स्थापना की विधि तथा शुभ मुहूर्त क्या है |
आप पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी शक्ति के अनुसार बनवाए गए सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी माँ दुर्गा की मूर्ति की प्रतिष्ठा करें।
नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करते हैं और सबसे पहले श्रीगणेश की पूजा अर्चना कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करते हैं | फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करते हैं| माँ भगवती की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करते हैं|
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