शनि के अस्त होने से किन-किन राशियों को होगा लाभ

कठोर न्यायाधीश कहे जाने वाले शनि देव के कोप से सभी भलीभांति परिचित हैं क्योंकि शनि देव बुरे कर्मों का न्याय बड़ी कठोरता से करते हैं। शनि की बुरी नजर किसी भी राजा को रातों-रात भिखारी बना सकती है और यदि शनि शुभ फल देने वाला हो जाए तो कोई भी भिखारी राजा के समान बन सकता है।26 सितम्बर को शाम पांच बजे से शनि अस्त हो गया है और अब शनि 30 अक्टूबर 2011 तक अस्त ही रहेगा।

आपको बता दें कि शनि की स्थिति से सभी राशियों पर सीधा-सीधा प्रभाव पड़ता है। शनि के अस्त होने से कुछ राशियों को लाभ मिलेगा, लेकिन राशियों के लिए अशुभ रहेगा| सूर्य पुत्र शनि अत्यंत धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। यह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है। शनि देव के कोप से बचने के लिए इनकी आराधना करना अति आवश्यक है।

जानिए शनि के अस्त होने से किन राशियों को होगा लाभ और किन को हानि-

ज्योतिष के अनुसार, शनि के अस्त होने से कन्या, वृश्चिक, कुंभ और मिथुन राशि के लोगों को लाभ होगा और इस राशि के लोगों को शनि दोषों से हो रहे नुकसान में कमी आएगी। इनके लिए शनि का अस्त होना उत्तम है। इसके साथ साथ तुला, धनु, मीन और कर्क राशि के जातकों के लिए शनि का अस्त होना शुभ संकेत है। आपके बिगड़े कार्य बनेंगे। वहीँ सिंह, मकर, वृष और मेष के लिए शनि के अस्त होने पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन लोगों के समय पहले जैसा ही रहेगा।

कुण्डली के अनुसार शनि का प्रभाव-

ज्योतिष के अनुसार जिस जातक की कुण्डली में सूर्य की राशि में शनि हो उस व्यक्ति को जीवनभर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

जिस व्यक्ति की कुंडली में चार, आठ या बाहरवें भाव में शनि है तो उस व्यक्ति को शनि की कृपा प्राप्त होती है।

शनि नीच राशिस्थ, अस्त वक्री होकर व्यक्ति को सदैव दुख और कष्ट ही देता है।

शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। मेष राशि में नीच व तुला राशि में उच्च का शनि माना गया है।

शनि के कोप से बचने के उपाय-

प्रतेक दिन महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

भगवान भोलेनाथ का पूजन करें और प्रत्येक दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।

शनि के प्रभाव से बचने के लिए आप शनिवार का व्रत रखें और काले उड़द, काले तिल, तेल, लोहे के बर्तन आदि, काली गाय, काले कपड़े का दान करें|

पीपल की पूजा करें, जल चढ़ाएं एवं परिक्रमा करें साथ ही गरीबों को भोजन कराएँ|

शनि मंत्र-

शनि के प्रभाव से बचने के लिए "शन्नो देवीरभिष्ट्यऽआपो भवंतु पीतये। शंय्योर भिस्त्रवन्तु न:" का जाप करे|

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