17 अक्टूबर, गरीबी उन्मूलन दिवस पर विशेष- कई बुराइयों की जड़ है गरीबी..

नई दिल्ली| आज 19वां अन्तरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाया जायेगा| आपको बता दें कि गरीबी हर समाज के लिए एक ऐसा अभिशाप बन चुकी है जो लोगों को उनकी जरूरतों से दूर करते हुए उनके सपनों को कुचल देती है। विश्व आज जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है उनमें गरीबी की समस्या प्रमुख है। अपराध, अशिक्षा, कुपोषण सहित अन्य सामाजिक बुराइयों का सम्बंध गरीबी से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से है।

गरीबी किसी खास भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं है बल्कि पूरी दुनिया इसकी गिरफ्त में है। इससे छुटकारा पाने के लिए देश पिछले कई दशकों से कार्यक्रम चला रहे हैं लेकिन इस दिशा में एकजुट होकर प्रयास करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक रूप से वर्ष 1992 में गरीबी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस 17 अक्टूबर को मनाने की घोषणा की।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो करीब सात करोड़ की आबादी वाली दुनिया में लगभग 92 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें पेट भर भोजन नसीब नहीं होता। विश्व के दो तिहाई गरीब केवल सात देशों बांग्लादेश, चीन, कांगो, इथोपिया, भारत, इंडोनेशिया और पाकिस्तान में रहते हैं। विकासशील देशों में 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं और प्रत्येक पांच सेकेंड में एक बच्चे की मृत्यु भूख से जुड़ी बीमारियों से होती है।

गरीबी के ये आंकड़े विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को मुंह चिढ़ाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं और वे इसके उन्मूलन के लिए गम्भीरता से प्रयास नहीं कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) का भी मानना है कि जबतक विकास समावेशी नहीं होगा तबतक दुनिया से गरीबी पूरी तरह खत्म नहीं हो पाएगी।

भारत में गरीबी के आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां स्थिति और विकट है। विश्व बैंक के मुताबिक 41.6 फीसदी भारतीय अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे हैं। गरीबी को लेकर हाल ही में दी गई तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में 37 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।

इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर योजना आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि शहरों में 32 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपये प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा से नीचे का नहीं समझा जाना चाहिए। गरीबी रेखा की इस नई परिभाषा पर हो-हल्ला मचने पर योजना आयोग ने हालांकि बाद में स्वयं को इससे अलग कर लिया।

देश से गरीबी का दंश दूर करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अपने मंत्रालयों के जरिए गरीबी उन्मूलन से सम्बंधित कई कार्यक्रमों को चला रही हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण गरीबों को नियंत्रित मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है क्योंकि गरीब अपनी आय का करीब 80 फीसदी हिस्सा भोजन पर खर्च कर देता है। सरकार जवाहर रोजगार योजना, इंदिरा आवास योजना, सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, भूमि सुधार, काम के बदले आनाज और मनरेगा जैसे कार्यक्रमों के जरिए गरीबों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए प्रयास कर रही है।

ऐसा माना जाता है कि सरकार योजनाओं के लिए जितनी राशि जारी करती है यदि वह रकम सही मायनों में खर्च हो तो नतीजे चौंकाने वाले होंगे लेकिन व्यवस्था में फैला भ्रष्टाचार वांछित परिणामों को हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा बनकर उपस्थित होता है।

दशकों से चल रहे गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों ने समाज की आर्थिक स्थिति पर असर डाला है। आज जिस मध्यम वर्ग की बात की जाती है उसकी आजादी के समय उपस्थिति गौण थी। भारत प्रत्येक वर्ष अपने मध्यम वर्ग में छह से सात करोड़ों लोगों को जोड़ रहा है।

गरीबी कई समस्याओं की जड़ है। गरीबी की वजह से यदि किसी समाज के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते तो वह पूरा समाज अशिक्षित होगा और अशिक्षा के कितने दुष्परिणाम हैं वे किसी से छिपे नहीं हैं। यही नहीं गरीबी अक्सर अपराध करने पर मजबूर करती है। इस अभिशाप को दूर किए बगैर विश्व एक सभ्य समाज कहलाने का हकदार नहीं बन सकता।

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