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उप्र में बालू का अवैध खनन फायदे का धंधा क्यों?


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा ग्रेटर नोएडा की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन से राजनीतिक एजेंटों, बालू खनन माफिया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिले में सक्रिय रीअल इस्टेट कारोबारियों के बीच सांठगांठ उजागर हुआ है। दुर्गा का निलंबन सही काम करने वाले अधिकारी पर हमला है, इसी कारण इसकी व्यापक निंदा हो रही है, मगर यह कोई पहला मामला नहीं है।

पूर्व में एक अनुमंडल दंडाधिकारी (एसडीएम) विशाल सिंह पर कातिलाना हमला हो चुका है। पुलिस में शिकायत दर्ज हुई, लेकिन कुछ नहीं हुआ और विशाल सिंह को नेपथ्य में भेज दिया गया। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद जिलों में चल रहे निर्माण कार्यो के लिए बालू की मांग में हो रही निरंतर ने वृद्धि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यमुना और हिंडन नदियों से बालू उत्खनन बढ़ावा दिया है।

बिल्डरों के करीबी सूत्रों ने बताया कि सबको सस्ते बालू की तलाश रहती है। यह बालू हिंडन, यमुना और गंगा नदियों में गैरकानूनी तरीके से खुदाई करने वाले माफिया से प्राप्त होता है। एक लाइसेंसधारी आपूर्तिकर्ता राज्य को रायल्टी चुकाने के बाद ऊंची कीमत, करीब 20,000 रुपये प्रति डंपर के हिसाब से बालू बेचता है। इतना ही बालू एक गैरकानूनी आपूर्तिकर्ता 8000 रुपये में ट्रांसपोर्टरों को मुहैया कराता है जो भवन निर्माताओं को 10,000 रुपये में बेचते हैं।

गैरकानूनी खनन के बारे में प्रशासन को कई बार सूचना देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व नेता दुष्यंत नागर ने कहा, "एसडीएम नागपाल के निलंबन के पीछे केवल बालू खनन माफिया ही नहीं हैं, बिल्डरों की लॉबी का भी इस प्रकरण में प्रभावी भूमिका है। असल में उनकी भूमिका बड़ी है।"

उत्तर प्रदेश सरकार ने हालांकि यह दलील दी है कि नागपाल के निलंबन के पीछे बालू खनन नहीं है, बल्कि उनका एक धार्मिक स्थल की दीवार गिराने का आदेश है। भारतीय प्रशासनिक सेवा में उनके साथियों ने निलंबन पर एकजुटता दिखाई है और केंद्र सरकार से मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। बिल्डरों की संभावित भूमिका को स्पष्ट करते हुए नागर ने कहा, "गैरकानूनी बालू खनन से सबसे ज्यादा लाभ बिल्डर ही उठाते हैं, क्योंकि माफिया उन्हीं के लिए काम करते हैं।"

PARDAPHASH

नागपाल के निलंबन पर सियासत गरमाई

उत्तर प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को लेकर शुक्रवार को एक वीडियो सामने आने के बाद पहले से ही इस मामले में फजीहत झेल रही राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं, जिसमें समाजवादी पार्टी (सपा) के एक नेता को यह कहते दिखाया गया है कि नागपाल का निलंबन उन्होंने 41 मिनट के भीतर करवाया। यह वीडियो सामने आने के बाद विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तेवर और तल्ख हो गए हैं। उसने राज्य की सपा सरकार पर तीखे हमले किए हैं।

यह वीडियो, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उस बयान के बाद सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि नागपाल का निलंबन इसलिए किया गया, क्योंकि उन्होंने बिना-सोचे समझे इस तरह का कदम उठाया जिससे सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ सकता था। उन्होंने अधिकारी का निलंबन वापस लेने से भी इंकार किया। वीडियो में सपा नेता व उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष नरेंद्र भाटी को ग्रेटर नोएडा में समर्थकों से यह कहते दिखाया गया है कि उन्होंने सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सुबह करीब 10.30 बजे फोन किया और पूर्वाह्न् 11.11 बजे नागपाल के निलंबन का आदेश आ गया।

भाटी को उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के नाते राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है और वह आगामी लोकसभा चुनाव में गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट से सपा के उम्मीदवार हैं। भाटी के उक्त बयान के बाद इस मुद्दे पर पहले से ही आक्रामक भाजपा के तेवर अधिक तल्ख हो गए हैं। नोएडा से भाजपा विधायक महेश शर्मा ने आरोप लगाया है कि भाटी खनन माफिया से मिले हुए हैं। उन्होंने खनन माफियाओं से भाटी के संबंधों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से करवाने की मांग की है।

भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि मुख्यमंत्री का झूठ पकड़ा गया है। कल तक मुख्यमंत्री कह रहे थे कि आईएएस अधिकारी का निलंबन एक प्रशासनिक फैसला था। अब यह स्पष्ट हो गया है कि इसके पीछे राजनीतिक मकसद था। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने भी इस बात से सहमति जताई कि भाटी का वीडियो सामने आने के बाद सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब तक सरकार कहती आ रही थी कि उनका निलंबन मस्जिद परिसर की दीवार गिराने का आदेश देने के कारण हुआ, जिससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता था। लेकिन सरकार का यह दावा भी विवादों में घिर गया है, क्योंकि इस मामले में सरकार को भेजी गई जिलाधिकारी की रिपोर्ट में इससे इंकार किया गया है।

जिलाधिकारी की रिपोर्ट के मुताबिक, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के तौर पर तैनात नागपाल ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया था, बल्कि निर्माण के अवैध होने की जानकारी मिलने के बाद ग्रामीणों ने स्वयं उसे ढहा दिया। 

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