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जाने नागपंचमी के दिन क्यों पीटी जाती हैं गुड़िया

नागपंचमी हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है| इस दिन भगवान भोलेनाथ के साथ- साथ उनके गले का श्रृंगार नागदेवता की भी पूजा होती है| नागपंचमी का त्यौहार देश केविभिन्न भागों में मनाया जाता है| लेकिन उत्तर प्रदेश में इसे मनाने का ढंग कुछ अनूठा है| यहाँ नागपंचमी के दिन महिलाएं व लड़कियां घर के पुराने कपड़ों की गुड़िया बनाती हैं जिसे लड़के कोड़ों व डंडों से पीटते हैं| क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों होता है- 

इस बारे में एक प्रचलित कथा है- 

तक्षक नाग के बारे में आपने कई धार्मिक पुस्तकों में पढ़ा होगा| माना जाता है कि तक्षक नाग काफी जहरीला था| इसमें इतनी शक्ति थी कि अपने विष से हरे-भरे वृक्ष को भी सूखा सकता था| कहा जाता है कि एक बार महाराज परीक्षित को एक ऋषि ने शाप दे दिया कि तक्षक तुम्हें डसेगा जिससे तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी| ऋषि के श्राप से तक्षक ने नियत समय पर परीक्षित को डस लिया| इससे परीक्षित की मृत्यु हो गयी| 

धीरे- धीरे समय बीतता गया और तक्षक की चौथी पीढी में कन्या का विवाह राजा परीक्षित की चौथी पीढी में हुआ| उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने के लिए कहा| कहते हैं कि औरतों के बात हजम नहीं होती और उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई।

तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है। तभी से नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है।

वहीं एक दूसरी कथा के मुताबिक, किसी नगर में एक भाई अपनी बहन के साथ रहता था| दोनों भाई बहन एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे| भाई, भगवान भोलेनाथ और मां काली का भक्त था। वह प्रतिदिन भगवान् भोलेनाथ के मंदिर जाता था जहाँ उसे एक नागदेवता के दर्शन होते थे| वह लड़का रोजाना उस नाग को दूध पिलाने लगा| धीरे- धीर दोनों में प्रेम बढ़ने लगा| लड़के को देखते ही सांप अपनी मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट जाता था। 

एक बार सावन का महीना था। बहन, भाई के साथ सज धजकर मंदिर जाने के लिए तैयार हुई। नये गेहूं और चने की मीठी खीर, फल, फूल लेकर भाई संग मंदिर गयी। वहां रोज की तरह सांप अपनी मणि छोड़कर भाई के पैरों मे लिपट गया। बहन को लगा कि सांप भाई को डस रहा है। इस पर ने वह दलीय सांप पर दे मारी और उसे पीट- पीटकर मर डाला| भाई ने जब अपनी बहन को पुरी बात बताई तो वह रोने लगी और पश्चाताप करने लगी| लोगों ने कहा कि सांप देवता का रूप होते हैं इसलिए बहन को दंड और पूजा जरूरी है। पर बहन ने भाई की जान बचाने के लिए सांप को मारा है। इसलिए बहन के रूप में यानी गुड़िया को हर काल में दंड भुगतना पड़ेगा| तभी से गुडिया का यह पर्व मनाया जाने लगा|

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हिन्दू के लिए ‘देव’ और सपेरों की ‘रोजी-रोटी’ हैं नाग!

नागपंचमी में हिन्दू समाज जिस नाग को ‘देवता’ मान पूजा-अर्चना करता है, वह हिन्दू समाज के ही अनुसूचित वर्गीय सपेरा समुदाय की सिर्फ ‘रोजी-रोटी’ है। इनके मासूम बच्चे जहरीले सांपों के साथ खेल कर अपना सौख पूरा करते हैं और स्कूल जाने की जगह ‘पिटारी’ और ‘बीन’ बजाने के गुर सीखने को मजबूर हैं।

इस देश में हिन्दू समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जो बेहद मुफलिसी का जीवन गुजार रहा है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड़ की सीमा से सटे इलाहाबाद जिले के शंकरगढ़ इलाके में आधा दर्जन गांवों में अनुसूचित वर्गीय सपेरा समाज के करीब साढ़े चार सौ परिवार आबाद हैं, इनका सुबह से शाम तक दैनिक कार्य जहरीले सांप पकड़ना और ‘बीन’ के इशारे पर नचा कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना है। सपेरा समुदाय का आर्थिक ढांचा बेहद कमजोर होने वह अपने बच्चों को खिलैनों की जगह जहरीले सांप और स्कूली बस्ते के स्थान पर सांप पालने वाली ‘पिटारी’ और ‘बीन’ थमा देते हैं, ताकि आगे चल कर इस पुश्तैनी पेशे से जुड़े रहें।

शंकरगढ़ के सहने वाला सपेरा बाबा दिलनाथ बताता है कि ‘करीब आधा दर्जन गांवों में उनकी बिरादरी के साढ़े चार सौ परिवार पीढि़यों से आबाद हैं। सरकार ने सांप पकड़ने और उनके प्रदर्शन करने में रोंक तो लगा दी है, मगर रोटी का अन्य ‘सहारा’ नहीं दिया, जिससे चोरी छिपे सांप नचाना मजबूरी बना हुआ है।’ वह बताता है कि ‘सांप मांसाहारी जीव है, यह कभी दूध नहीं पीता, भगवान शिव का श्रंगार मान अधिकांश हिन्दू इसे देवता मानते हैं, लेकिन हमारे लिए यह सिर्फ ‘रोजी-रोटी’ है।

सपेरों का एक कुनबा बांदा जिले के अतर्रा कस्बे में नागपंचमी के त्योहार में बरसाती की पन्नी डाल कर डेरा जमाए है, इस कुनबे के 13 वर्षीय बालक चंद्रनाथ को ‘पिटारी’ और ‘बीन’ उसके पिता ने बिरासत में दिया है। वह कस्बे में घूम-घूम कर जहरीले सांपों का प्रदर्शन कर रहा है, उसने बताया कि ‘वह भी पढ़-लिख कर बड़ा आदमी बनना चाहता है, लेकिन परिवार की माली हालत उसे पुश्तैनी पेश में खींच लायी है। यह संवाददाता शनिवार की सुबह जब सपेरों की इस झोपड़ी में गया तो वहां नजारा देख भौंचक्का रह गया। मासूम बच्चे शनि, बली और चंदू मिट्टी के खिलौनों से नहीं, बल्कि जहरीले सांप और विषखापर से खेल रहे थे। कुनबे में मौजूद महिला सोमवती ने बताया कि ‘मिट्टी के खिलौना खरीदने के लिए पैसे नहीं है, सो बच्चे इन्हीं सांपों से खेल कर अपना सौख पूरा कर लेते हैं।’

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