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पितरों की मुक्ति के लिए प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान जरुरी

पितृपक्ष के प्रारम्भ होते ही पिंडदान के लिए उत्तम माने जाने वाले बिहार के गया में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति व मुक्ति के लिए पिंडदान करने आने लगते हैं। वे पिंडदान के लिए विश्व प्रसिद्ध गया में प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान करना नहीं भूलते। 

आत्मा और प्रेतात्मा में विश्वास रखने वाले लोग आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पूरे पितृपक्ष की समाप्ति तक गया में आकर पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि प्रेतशिला में पिंडदान के बाद ही पितरों को प्रेतात्मा योनि से मुक्ति मिलती है। 

गया में पुराने समय में 365 वेदियां थी जहां लोग पिंडदान किया करते थे लेकिन वर्तमान समय में यहां 45 वेदियां हैं जहां लोग पिंडदान कर अपने पुरखों का श्राद्ध करते हैं। इन्हीं 45 वेदियों में से एक है प्रेतशिला वेदी। 

मान्यता है कि जो पूर्वज पितृलोक नहीं जा सके या जिन्हें दोबारा जन्म नहीं मिला, ऐसी अतृप्त और आसक्त भाव में लिप्त आत्माओं के लिए अंतिम बार उनकी मृत्यु के एक वर्ष पश्चात गया में मुक्ति तृप्ति का कर्म तर्पण और पिंडदान किया जाता है। 

गया शहर से लगभग चार किलोमीटर दूर प्रेतशिला तक पहुंचने के लिए 873 फीट ऊंचे प्रेतशिला पहाड़ी के शिखर तक जाना पड़ता है। ऐसे तो सभी श्रद्धालु पिंडदान करने यहां पहुंचते हैं लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के लिए इतनी ऊंचाई पर वेदी के होने के कारण वहां तक पहुंचना मुश्किल होता है। वेदी तक पहुंचने के लिए यहां पालकी की व्यवस्था भी है जिस पर सवार होकर शारीरिक रूप से कमजोर लोग यहां तक पहुंचते हैं। 

पंडा पूर्णेश्वर ने बताया कि प्रेतशिला वेदी के पास विष्णु भगवान के चरणों के निशान हैं और इस वेदी के पास पत्थरों में दरार है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। उन्होंने बताया कि सभी वेदियों पर तिल, गुड़, जौ आदि से पिंड दिया जाता है लेकिन यहां तिल मिश्रित सत्तु से पिंडदान होता है। उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर अपने ही घर में लोगों को तंग करने वाले पूर्वजों के यहां पिंडदान से उन्हें शांति मिल जाती है और वे मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं। 

उन्होंने बताया कि पहले प्रेतशिला का नाम प्रेतपर्वत हुआ करता था लेकिन भगवान राम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला हुआ। प्रेतशिला में पिंडदान के पूर्व ब्रह्म कुंड में स्नान-तर्पण करना होता है। गया में पिंडदान करने आए गोरखपुर के अश्विनी शुक्ल कहते हैं कि अगर हमारे पिंडदान से सभी पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है तो यह सभी का कर्तव्य है कि वे यहां आकर अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान करें। उन्होंने कहा कि मरने के बाद कौन कहां जाता है यह गूढ़ रहस्य है, लेकिन पिंडदान आवश्यक है और वह उसका पालन करने यहां आए हैं।

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