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अरे ! यहां तो हाथी भी हो गये कच्ची के शौकीन

‘‘सबको मालूम है, मैं शराबी नहीं, फिर भी कोई पिलाये तो मैं क्या करुं....‘‘ पंकज उधास की यह गजल वैसे तो शराब के शौकीनों द्वारा काफी पसंद की जाती है लेकिन आज कल यह गजल जनपद लखीमपुर खीरी के सिंगाही क्षेत्र के जंगली हाथियों पर बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं। कहा जाता है कि जब आदमी शराब पीना शुरू करता है और उसका आदी हो जाता है तो उसकी लत जल्दी नही छूटती और उसी लत के चलते वह कभी कभी बेचैन होने लगता है। यहां कुछ ऐसा ही हाल जंगली हाथियों का है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जनपद के सिंगाही क्षेत्र में नेपाल बार्डर की एसएसबी कृष्णा नगर की चैकी के पास आधा दर्जन हाथियों का झुण्ड लहन पीकर बेहोश होकर जमीन पर लुढ़क गया। जंगल से निकल कर हाथी किसानों की धान, गन्ना ,और मक्के की फसल को तो बर्बाद कर ही रहे थे इसके साथ ही जंगल किनारे अवैध कच्ची शराब बनाने वाले कारेाबारी भी अब हाथियों के निशाने पर आ गये है। जंगल से निकल कर फसल नष्ट करने के इरादे से बाहर आये जंगली हाथियों के एक झुण्ड ने शराब बनाने के लिये रखी गयी लहन का क्या सेवन कर लिया कि अब शायद यह उनकी पहली पसन्द बन गया है। 

कहने सुनने में शायद यह बात अजीब जरुर लगती होगी लेकिन हकीकत यही है कि जंगली हाथी अब कच्ची शराब के शौकीन हो गये हैं। क्षेत्र में सैकड़ो एकड़ गन्ना, धान, मक्का की फसल हाथियो की भेंट चढ़ चुकी है, हालत यह है कि जहां एक ओर लोग बाग अब अपनी फसलों को बचाने के लिये खेतों पर जाने से भी डरने लगे है। वहीं दूसरी ओर अब जंगल के किनारे अवैध कच्ची शराब बनाने वाले भी हाथियों के निशाने पर आ गयें है। आबकारी व पुलिस विभाग की मिलीभगत के चलते कच्ची शराब बनाने वाले कारोबारी जंगल के किनारे का ही इलाका चुनते है वहीं वह लोग कच्ची बनाने के लिये ड्रम में पानी भरकर उसमें गुड, खाण्डसारी, या शीरा मिला देते है, और कुछ दिनो के लिये छोड़ देते है। दो तीन दिन के बाद यह लहन कच्ची शराब बनाने के लिये तैयार हो जाता हैं। इस लहन से वह लोग दारू निकाले इससे पहले ही जंगली हाथियों का झुण्ड जंगल से बाहर आया और उनकी नजर लहन वाले ड्रम पर पड गयी और हाथियों ने जी भरकर उसे पी लिया। जब उनके उपर कच्ची का असर हुआ तो हाथियों ने क्षेत्र में जमकर उत्पात मचाया हाथियो के उत्पात से कच्ची बनाने वालो ने किसी प्रकार भाग कर अपनी जान बचाई। कच्ची का चस्का हाथियो को इस कदर लगा है कि अब हाथी कच्ची शराब के बगैर नहीं रह पा रहे है और हाथियों को कच्ची दारु की तलाश रहने लगी है। जंगल से निकल कर हाथियो के झुण्ड अब सबसे पहले कच्ची के लहन को ढूंढते नजर आते है। इसके चलते अब किसानो के साथ कच्ची बनाकर आजिविका चलाने वालो के सामने रोजी रोटी का संकट खडा हो गया है। कुछ ऐसा ही जनपद के सिंगाही क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम महराजनगर, पचपेडा माझा, बघौडिया, रहीमपुरवा, इच्छानगर, रामनगर, में हुआ जहाँ कच्ची के सहारे रोजी रोटी कमाने वाले लोगो की लहन को हाथी पी गये और जब उन्हें नशा चढ़ा तो कच्ची बनाने वालों की शामत आ गयी। 

कच्ची शराब बनाने के लिए रखी जाने वाली लहन में चूकिं गुड और खाण्डसारी के अलावा कुछ अन्य मादक वस्तुयें भी कारोबारी मिलाते है, जिसके कारण लहन स्वादिष्ट हो जाती है। लोगों के अनुसार इसका नशा भी ठीक ठाक चढ़ता है, इस कारण हाथी उसे खूब पसन्द कर रहे है। हाथियों को कच्ची का स्वाद मिल जाने के कारण अब किसानो के साथ कच्ची बनाने वाले भी हाथियों के निशाने पर आ गये है। वैसे जब हाथियों का झुण्ड जंगल से निकलकर किसानों की फसलें तबाह करते थे तब किसान उन्हें गोले व पटाखे दगाकर भगा देते थे लेकिन अब ऐसा नही है। बताया जाता है कि शराबी हाथियों मे से एक हांथी बहरा भी है जो किसी की भी नही सुनता है। एक तो बहरा दूसरे कच्ची के नशे में धुत उस हाथी पर गोले व पटाखों का कोई असर नहीं होता हैं और वह वहां से जाने का नाम ही नही लेता है लेकिन इससे वन विभाग को कोई मतलब नही है वन विभाग के ही नक्शे कदम पर चलता हुआ पुलिस विभाग भी जान कर भी अनजान बना हुआ हैं। हाथी गरीब किसानों की चाहे जितनी फसल बर्बाद करे उससे किसी को फर्क नही पड़ता मगर यदि कोई व्यक्ति जंगल में पेड़ों से गिरी हुयी जलौनी लकड़ी अगर बीन बटोर लेता है तो उससे फारेस्ट विभाग व पुलिस विभाग दोनो अपनी जेबें भरने के लिए पूरी कानूनी कार्यवाही दिखाते हुए अपनी जेबें भरने से बाज नहीं आते हैं। एक ओर जहां फसल बचाव के लिय लोग अपने आप हाथियों को भगाने हेतु उपचार में जुट जातेे है। वहीं दूसरी ओर कच्ची शराब पीने का मजा ले चुके हाथियों का झुण्ड नशेड़ी हो चुका है और वह अब मानने वाले नही है, इसीलिए वह प्रतिदिन जंगल से बाहर आ रहे है। आज इंडो नेपाल बार्डर की कृष्णा नगर की एस एस बी चैकी के पास लगभग आधादर्जन हाथी जहरीली कच्ची शराब बनाने वाली लहन को पीकर बेहोश होकर जमीन पर लुढ़क गये और घण्टों वहीं पड़े रहे। नशा उतरने के बाद लोगों द्वारा काफी मशक्कत के बाद उन्हें वहां से भगाया जा सका। 

यदि आबकारी विभाग व पुलिस विभाग द्वारा क्षेत्र में अवैध शराब के कारोबारियों द्वारा बनायी जा रही अवैध कच्ची शराब पर यदि समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो नशे के आदी हो चुके हाथियों द्वारा कभी भी मचाई जाने वाली किसी भी प्रलयंकारी घटना से इंकार नहीं किया जा सकता। 

लखीमपुर-खीरी से एसडी त्रिपाठी की रिपोर्ट

सरयू का अस्तित्व संकट में

उत्तर प्रदेश में खैरीगढ़ स्टेट की राजधानी रही सिंगाही एक समृद्ध सांस्कृतिक संस्कृति को संजोये हुए है। कस्बे से एक किलोमीटर उत्तर में भूल-भुलैया स्थित है तो दूसरी ओर वास्तुकला की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण शिव मंदिर है। सरयू नदी पहले इसी शिव मंदिर के पास से बहती थी लेकिन वर्तमान में लगभग एक किलोमीटर सिंगाही के जंगलों में सटकर बह रही है। इसका अस्तित्व सिंगाही व बेलरायां झील से अयोध्या तक रह गया है।

मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम के अवतरण व लीला परधाम गमन की साक्षी रही सरयू का उद्गम स्थल यूं तो कैलाश मानसरोवर माना जाता है लेकिन अब यह नदी सिंगाही जंगल की झील से श्रीराम नगरी अयोध्या तक ही बहती है। भौगोलिक कारणों से इस नदी का अस्तित्व संकट में दिखाई देता है। मत्स्य पुराण के अध्याय 121 और वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में इस नदी का वर्णन है। कहा गया है कि हिमालय पर कैलाश पर्वत है, जिससे लोकपावन सरयू निकली है, यह अयोध्यापुरी से सटकर बहती है। वामन पुराण के 13वें अध्याय, ब्रह्म पुराण के 19वें अध्याय और वायुपुराण के 45वें अध्याय में गंगा, जमुना, गोमती, सरयू और शारदा आदि नदियों का हिमालय से प्रवाहित होना बताया गया है।

सरयू का प्रवाह कैलाश मानसरोवर से कब बंद हुआ, इसका विवरण तो नहीं मिलता लेकिन सरस्वती और गोमती की तरह इसका भी प्रवाह भौगोलिक कारणों से बंद होना माना जाता रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सरयू, घाघरा और शारदा नदियों का संगम तो हुआ ही है, सरयू और गंगा का संगम श्रीराम के पूर्वज भगीरथ ने करवाया था। 

सरयू का भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रगट होना बताया गया है। 'आनंद रामायण' के यात्रा कांड में वर्णित है कि प्राचीन काल में शंकासुर दैत्य ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया और स्वयं वहां छिप गया। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध किया और ब्रह्मा को वेद सौंप कर अपना वास्तवित स्वरूप धारण किया। उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों में प्रेमाश्रु टपक पड़े। ब्रह्मा ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डालकर उसे सुरक्षित कर लिया। इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला। यही जलधारा सरयू नदी कहलाई। बाद में भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाया और उन्होंने ने ही गंगा और सरयू का संगम करवाया।

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