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हैप्पी बर्थडे करीना

बॉलीवुड की बोल्ड, सेक्सी अभिनेत्री और बेहतरीन अदाकारी के बल पर सुर्खियों में रहने वाली और सफलता की ऊंचाइयां छूनेवाली करीना कपूर आज अपना 36वां जन्मदिन मना रहीं हैं। करीना कपूर, राज कपूर के बेटे अभिनेता रणधीर कपूर और अभिनेत्री बबिता की दूसरी बेटी हैं। करिश्मा कपूर की छोटी बहन और अभिनेता सैफ अली की बेगम करीना का जन्म 21 सितम्बर 1980 को मुंबई में हुआ था। लोग उन्हें प्यार से बेबो बुलातें हैं। खबर है कि 'छोटे नवाब' सैफ अली खान अपनी 'बेगम' के लिए लंदन में शानदार बर्थडे पार्टी आयोजित कर रहे हैं, जिसमें इनके करीबी दोस्‍त शामिल होंगे। 

करीना ने वर्ष 2000 में रिफ्यूज़ी से अपने फिल्म सफर की शुरुआत की। इस फिल्म में उनके अपोजिट अभिषेक बच्चन थे| 'रिफ्यूजी' बॉक्स ऑफिस पर पिट गई लेकिन इस फ़िल्म में उन्हें अपने अभिनय के लिए 'फिल्मफेयर बेस्ट फीमेल डेब्यू' का पुरस्कार मिला। इसके बाद आईं उनकी फिल्में 'मुझे कुछ कहना है' और 'ख़ुशी' भी बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रहीं लेकिन 'मुझसे दोस्ती करोगे' और 'कभी खुशी कभी गम' जैसी फिल्मों से करीना ने बड़ी ही आसानी से खुद को कॉमर्शियल सिनेमा में स्थापित कर दिया मगर शायद इतना करके वे चुप नहीं बैठना चाहती थीं। 

चमेली, देव और ओंकारा जैसी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय के दम पर उन्होंने खुद को शो-पीस कहने वाले आलोचकों को चुप करा दिया। इन फिल्मों के जरिये करीना ने खुद को साबित किया कि वह केवल 'ग्लैमरस गर्ल' ही नहीं है बल्कि एक अच्छी अभिनेत्री भी हैं। इसके बाद करीना ने 'जब वी मेट' और 'थ्री इडियट्स' जैसी कई सुपरहिट फ़िल्में दी| वर्ष 2007 की सुपरहिट फिल्म 'जब वी मेट' ने सफलता की नई दास्तां लिखी। इस फिल्म के लिए करीना को 'फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री' पुरस्कार दिया गया। बॉलीवुड के तीनों खानों के साथ काम कर चुकी करीना को लोग आज बॉलीवुड की नंबर वन अभिनेत्री मानते हैं। 

वैसे फिल्मों से ज्यादा करीना अपनी निजी जिंदगी की वजह से चर्चा में रही हैं| करीना का नाम बॉलीवुड फिल्म 'इश्क-विश्क' से एंट्री करने वाले शाहिद कपूर के साथ जोड़ा गया| उन दोनों ने फिल्म 'फिदा', '36 चाइना टाउन', 'जब वी मेट' जैसी फिल्में की जो सफल रहीं| फिल्मों में काम करने के दौरान दोनों ने एक-दूसरे से प्यार की पींगें बढ़ाईं| आज भले ही सैफ और करीना की शादी हो गई है लेकिन करीना का पहला प्यार सैफ नही बल्कि शाहिद थे| जब इनके प्यार के चर्चे हर एक की जुबान पर थे तभी एक एमएमएस ने हंगामा मचा दिया| 20 सेकंड के इस एमएमएस में शाहिद औऱ करीना एक-दूसरे को किस करते हुए दिखे थे| इस एमएमएस के चलते करीना ने जमकर सुर्खियां बटोरी और इसे खानदान की किरकिरी के तौर पर भी देखा गया|

करीना बॉलीवुड की उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में शुमार की जाती हैं, जिनकी चार फिल्मों ने 100 करोड़ रुपए से अधिक का बिजनेस किया है। इन फिल्मों में थ्री इडिएट्‍स, बॉडीगार्ड, रॉ वन और गोलमाल-3 हैं। करीना की खूबसूरती को दुनिया सलाम करती है वहीं इंडस्ट्री की सबसे हॉट ऐक्ट्रेस करीना को भी सेक्सी कहलाना बेहद पसंद है। हाल ही में 'मैग्ज़िम' ने करीना को दुनिया की 'सबसे हॉट ऐक्ट्रेस का खिताब दे डाला। 

करीना को उनके अभिनय के लिए 13 साल के करियर में 6 बार बेस्ट एक्ट्रेस के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला चुका है। करीना अपने करियर में बॉलीवुड के तमाम बड़े एक्टर्स के साथ काम कर चुकी है। जीरो फिगर के लिए मशहूर करीना कपूर के फेवरेट फूड की बात की जाए तो करीना को हर तरह का फूड पसंद है और उससे भी ज्यादा उन्हें दाल चावल खाना सबसे ज्यादा पसंद है। करीना का कहना है कि वो खाने के मामले में चूजी नहीं हैं। जो मिलता है खा लेतीं है। उनकी पसंदीदा जगह गोवा है। करीना के काम के साथ साथ उनका अफयेर भी चलता रहा शाहिद कपूर से अलग होने के बाद सैफ अली खान के साथ लम्बे अफेयर के बाद वर्ष 2012 में शादी कर ली।

PHOTO: हॉट पूनम पांडे के पास ऑफर्स की लाइन

सोशल साइट्स पर अपनी बोल्ड तस्वीरों के जरिए अक्सर सुर्खियां बटोरने वाली अभिनेत्री पूनम पांडे का कहना है कि उनके पास फिल्मों के ऑफर की लाइन लग गई है। फिल्म मालिनी एंड कंपनी से तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री करने वाली पूनम पांडे के पास साउथ फिल्म इंडस्ट्री से ऑफर की लाइन लग गई है। हालांकि आलोचकों ने फिल्म को नकार दिया है लेकिन पूनम, साउथ फिल्म इंडस्ट्री का ध्यान खींचने में कामयाब रही हैं। 


 पूनम पांडे ने कहा है कि वह उन्हें मिल रहे ऑफर्स से बेहद उत्साहित है। यदि मुझे अच्छी स्क्रिप्ट मिलती है तो मैं और ज्यादा प्रोजेक्ट्स करना चाहूंगी। कंटेंट के मामले में साउथ फिल्म इंडस्ट्री मालामाल है और मैं यहां ज्यादा से ज्यादा फिल्में करना चाहूंगी। हालांकि मैंने अभी तक कोई फिल्म फाइनल नहीं की है लेकिन मैं स्क्रिप्ट सुनने के लिए निर्देशकों से मिल रही हूं लेकिन मैं जल्द ही उस फिल्म को फाइनल करूंगी जो मुझे उत्साहित करेगी।’ पूनम ने फिल्म ‘‘नशा’ से बॉलीवुड में कदम रख था, जो बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं सकी। 


59 की हुईं मस्तानी आंखों वाली रेखा

यूं तो रेखा की 'आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं' मगर हिंदी फिल्मों की सांवली सलोनी अभिनेत्री सिनेमा जगत में अपने अलहदा रूप-सौंदर्य और आकर्षण के लिए भी खूब मशहूर हैं। उनकी मोहक अदा और मादक आवाज ने उनके अभिनय और संवाद अदायगी के साथ मिलकर दशकों तक बॉलीवुड और सिनेप्रेमियों के दिल में राज किया है।

जेमिनी गणेशन और पुष्पावली की संतान के रूप में 10 अक्टूबर 1954 को जन्मी रेखा का वास्तविक नाम भानुरेखा गणेशन है। सत्तर और अस्सी के दशक की अग्रणी अभिनेत्रियों में शुमार रेखा फिल्मों में शुरुआत बतौर बाल कलाकार तेलुगू भाषा की फिल्म 'रंगुला रत्नम' से कर चुकी थीं। लेकिन 1970 में फिल्म 'सावन भादो' से उन्हें बॉलीवुड में एक अभिनेत्री के रूप में औपचारिक प्रवष्टि मिली और उसके बाद उन्होंने अपने रूप और सौंदर्य के साथ-साथ सिनेमा जगत में अपने अभिनय का भी लोहा मनवाया।

उन्होंने कई यादगार फिल्मों में काम किया। रेखा ने एक तरफ सजा (1972), आलाप (1977), मुकद्दर का सिकंदर (1978), मेहंदी रंग लाएगी (1982), रास्ते प्यार के (1982), आशा ज्योति (1984), सौतन की बेटी (1989),बहूरानी (1989), इंसाफ की देवी (1992), मदर (1999) जैसी मुख्यधारा की फिल्मों में अपने अभिनय के जरिये नाम कमाया तो दूसरी तरफ उनकी निजी जिंदगी भी लोगों के लिए कौतूहल का विषय बनी।

करियर की शुरुआत में ही उनका नाम अभिनेता नवीन निश्चल से जुड़ा तो कभी किरण कुमार के साथ जोड़ा गया, यहां तक कि अभिनेता विनोद मेहरा के साथ गुपचुप शादी कर लेने की खबर भी उड़ी और अमिताभ बच्चन के साथ रेखा के रिश्ते की सरगोशियां तो आज तक लोगों के जुबां से हटी नहीं हैं।

लेकिन नवीन निश्चल के साथ रेखा का नाम जुड़ना उनकी जिंदगी में प्यार के आने और चले जाने की शुरुआत भर थी। नवीन निश्चल और किरण कुमार के साथ रेखा का नाम जोड़कर कुछ समय बाद लोगों ने इन किस्सों को भुला दिया।

इसके बाद रेखा का नाम अभिनेता विनोद मेहरा के साथ जुड़ा, मगर मेहरा ने खुद अपनी शादी की बात कभी नहीं स्वीकारी। अमिताभ बच्चन के साथ रेखा की प्रेम कहानी तो आज भी एक पहेली ही है। कहा जाता है कि 1981 में बनी फिल्म 'सिलसिला' रेखा और जया भादुड़ी (बच्चन) के प्रेम के बीच बंटे अमिताभ की वास्तविक जिंदगी की सच्चाई पर आधारित थी। फिल्म बहुत सफल नहीं रही, बल्कि यह फिल्म रेखा-अमिताभ की जोड़ी वाली आखिरी फिल्म साबित हुई।

रेखा के लिए उद्योगपति मुकेश अग्रवाल के साथ विवाह (1990) भी उनके जीवन का दुर्भाग्य ही रहा। उनके पति ने शादी के एक साल बाद ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, तब रेखा न्यूयार्क गई हुई थीं। इस घटना के लिए रेखा को लंबे समय तक सवालों और आक्षेपों का सामना करना पड़ा था।

रेखा एक बार फिर अपने जीवन में अकेली हो गईं। लेकिन बीच-बीच में सार्वजनिक समारोहों और कार्यक्रमों में शुद्ध कांजीवरम साड़ी और मांग में सिंदूर सजाकर रेखा लोगों के बीच कौतूहल का विषय बनती रहीं। रेखा की जिंदगी में प्यार कई बार और कई सूरतों में आया लेकिन जिस स्थायी सहारे और सम्मान की उन्हें जीवन में चाहत और जरूरत थी, उससे वह महरूम ही रहीं।

साल 2005 में आई फिल्म 'परिणीता' में रेखा पर फिल्माया गीत 'कैसी पहेली जिंदगानी' जैसे वास्तव में रेखा की जिंदगी को शब्दों में पिरोया हुआ गीत हो। रेखा को अपने अब तक के अपने फिल्मी सफर में दो बार (1981,1989) सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर अवार्ड और एक बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर अवार्ड (1997) से नवाजा जा चुका है। जीवन के 59 वसंत देख चुकीं खूबसूरत रेखा इस समय राज्यसभा सदस्य होने के साथ-साथ फिल्म जगत में भी सक्रिय हैं। 

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लता मंगेशकर : आवाज ही पहचान है..

भारत रत्न से विभूषित भारत की 'स्वर कोकिला' लता मंगेशकर का गाया गीत 'नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे' वास्तव में उनके व्यक्तित्व, कला और अद्वितीय प्रतिभा का परिचायक है। 28 सितंबर को लता जी अपने जीवन के 84 साल पूरे कर रही हैं। उन्होंने फिल्मों में पाश्र्वगायन के अलावा गर फिल्मी गीत भी गाए हैं। 

मध्य प्रदेश के इंदौर में 28 सितंबर 1929 को जन्मीं कुमारी लता दीनानाथ मंगेशकर रंगमंचीय गायक दीनानाथ मंगेशकर और सुधामती की पुत्री हैं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी लता को उनके पिता ने पांच साल की उम्र से ही संगीत की तालीम दिलवानी शुरू की थी। 

बहनों आशा, उषा और मीना के साथ संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के साथ साथ लता बचपन से ही रंगमंच के क्षेत्र में भी सक्रिय थीं। जब लता सात साल की थीं, तब उनका परिवार मुंबई आ गया, इसलिए उनकी परवरिश मुंबई में हुई।

वर्ष 1942 में दिल का दौरा पड़ने से पिता के देहावासान के बाद लता ने परिवार के भरण पोषण के लिए कुछ वर्षो तक हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया, जिनमें प्रमुख हैं 'मीरा बाई', 'पहेली मंगलागौर' 'मांझे बाल' 'गजा भाऊ' 'छिमुकला संसार' 'बड़ी मां' 'जीवन यात्रा' और 'छत्रपति शिवाजी'।

लेकिन लता की मंजिल तो गायन और संगीत ही थे। बचपन से ही उन्हें गाने का शौक था और संगीत में उनकी दिलचस्पी थी। लता ने एक बार बातचीत में बीबीसी को बताया था कि जब वह चार-पांच साल की थीं तो किचन में खाना बनाती स्टूल पर खड़े होकर अपनी मां को गाने सुनाया करती थीं। तब तक उनके पिता को उनके गाने के शौक के बारे में पता नहीं था। 

एक बार पिता की अनुपस्थिति में उनके एक शागिर्द को लता एक गीत के सुर गाकर समझा रही थीं, तभी पिता आ गए। पिताजी ने उनकी मां से कहा, "हमारे खुद के घर में गवैया बैठी है और हम बाहर वालों को संगीत सिखा रहे हैं।" अगले दिन पिताजी ने लता को सुबह छह बजे जगाकर तानपुरा थमा दिया।

लता के फिल्मों में पाश्र्वगायन की शुरुआत 1942 में मराठी फिल्म 'कीती हसाल' से हुई, लेकिन दुर्भाग्य से यह गीत फिल्म में शामिल नहीं किया गया। कहते हैं, सफलता की राह आसान नहीं होती। लता को भी सिनेमा जगत में कॅरियर के शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा। उनकी पतली आवाज के कारण शुरुआत में संगीतकार फिल्मों में उनसे गाना गवाने से मना कर देते थे। 

अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर हालांकि धीरे-धीरे उन्हें काम और पहचान दोनों मिलने लगे। 1947 में आई फिल्म 'आपकी सेवा में' में गाए गीत से लता को पहली बार बड़ी सफलता मिली और फिर उन्होंने पीछे मुढ़कर नहीं देखा। 

वर्ष 1949 में गीत 'आएगा आने वाला', 1960 में 'ओ सजना बरखा बहार आई', 1958 में 'आजा रे परदेसी', 1961 में 'इतना न तू मुझसे प्यार बढ़ा', 'अल्लाह तेरो नाम', 'एहसान तेरा होगा मुझ पर' और 1965 में 'ये समां, समां है ये प्यार का' जैसे गीतों के साथ उनके प्रशंसकों और उनकी आवाज के चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई।

यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदी सिनेमा में गायकी का दूसरा नाम लता मंगेशकर है। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद जब एक कार्यक्रम में लता ने पंडित प्रदीप का लिखा गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे।

भारत सरकार ने लता को पद्म भूषण (1969) और भारत रत्न (2001) से सम्मानित किया। सिनेमा जगत में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और फिल्म फेयर पुरस्कारों सहित कई अनेकों सम्मानों से नवाजा गया है। 

सुरीली आवाज और सादे व्यक्तित्व के लिए विश्व में पहचानी जाने वाली लता जी आज भी गीत रिकार्डिग के लिए स्टूडियो में प्रवेश करने से पहले चप्पल बाहर उतार कर अंदर जाती हैं।

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33 की हुईं करीना, आइए नजर डालते हैं करीना की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों पर...

बॉलीवुड अदाकारा बेबो यानी करीना कपूर शनिवार को 33 साल की हो गईं। खूबसूरत करीना ने 'जब वी मेट' और 'ओमकारा' जैसी फिल्मों के जरिए खुद को साबित किया है। आइए नजर डालते हैं करीना की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों पर.. 

'रिफ्यूजी' (200) : इस फिल्म में करीना की नैसर्गिक सुंदरता नजर आई है। निर्देशक जे.पी.दत्ता ने अपने दोस्त रणधीर से किया वादा पूरा किया कि वह उनकी बेटी की शुरुआत ऐसे करेंगे कि लोग हमेशा याद रखेंगे। पाकिस्तान सीमा पार करने वाली लड़की के किरदार में करीना ने हमें नूतन, मधुबाला और नर्गिस जैसी अदाकाराओं की याद दिला दी थी।

'अशोका' (2001) : संतोष सिवान निर्देशित इस ऐतिहासिक फिल्म में करीना योद्धा राजकुमारी कौरवकी के रूप में नजर आईं। उन्होंने हर दृश्य में जोश भर दिया। 

'चमेली' (2004) : मनीष मल्होत्रा के परिधानों में बारिश में नाचती करीना इस फिल्म में काफी खूबसूरत लगी थीं। फिल्म में चमेली का किरदार निभाने वाली करीना ने काफी अच्छा अभिनय किया था।

'युवा' (2004) : मणि रत्नम की युवा में करीना ने ऐसी लड़की किरदार किया है जो सनकी, भावुक और अपने भविष्य को लेकर अस्थिर है। लेकिन वह विरोध प्रदर्शनों में दिलचस्पी रखती है। जया बच्चन को इसमे करीना बेहद अच्छी लगी थीं।

'देव' (2004) : गोविंद निहलानी की इस फिल्म में करीना का किरदार 2002 के गुजरात दंगों में बेकरी में 14 लोगों की मौत के खिलाफ प्रमाण देने वाली जहीरा शेख से प्रेरित था। करीना इसमें बिना मेकअप के नजर आई हैं।

'फिदा' (2004) : करीना ने अभी तक करियर में इसी फिल्म में नकारात्मक भूमिका निभाई है। उन्होंने ईष्र्यालु पति की दुखी और असुरक्षित पत्नी की भूमिका में जबरदस्त अभिनय किया।

'जब वी मेट' (2007) : चंचल और बातूनी लड़की के तौर पर करीना को सभी ने पसंद किया। एक भाग में करीना चंचल और बातूनी हैं तो दूसरे भाग में गंभीर और शांत नजर आती हैं। इस फिल्म में भी वह काफी खूबसूरत नजर आई हैं। 

'हीरोइन' (2012) : मधुर भंडारकर की यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भले ही न चली हो लेकिन एक अभिनेत्री के किरदार को करीना ने बखूबी निभाया है। फिल्म एक हीरोइन की जिंदगी के उतार-चढ़ाव की कहानी है।

'तलाश' (2012) : इसमें करीना ने भूत की भूमिका निभाई है। फिल्म में करीना के अभिनय की काफी सराहना की गई थी।

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काजोल के 39वें जन्मदिन पर विशेष.........

बॉलीवुड की खुबसूरत अभिनेत्री काजोल आज अपना 39 वां जन्मदिन मना रही हैं। पांच अगस्त 1975 को मुंबई में जन्मी काजोल अपने अभिनय से लाखों दिलों की धड़कन बन गयीं। काजोल को बचपन से ही फिल्मों में अभिनय का शौक रहा और रहे भी क्यों न काजोल की माँ तनूजा अपने समय की एक जानी मानी अभिनेत्रियों में से एक थीं जबकि पिता सोमु मुखर्जी एक निर्माता रहे|

वर्ष 1992 में निर्देशक राहुल रवैल की फिल्म बेखूदी के साथ काजोल ने अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत की। काजोल की पहली फिल्म सफल तो नहीं रही लेकिन सावली सलोनी रूप वाली काजोल को फिल्मे मिलने लगी। वर्ष 1993 में शाहरूख खान के साथ उन्होंने 'बाजीगर' के रूप में अपनी पहली हिट फिल्म दी। इस फिल्म ने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए। इसके साथ ही काजोल और शाहरूख की जोड़ी दर्शकों के दिलों पर राज करने लगीं। इस सफल जोड़ी को दर्शक आज तक नहीं भूले। आज भी जब इनकी जोड़ी सिल्वर स्क्रीन पर एक साथ होती है तो उसे दर्शकों का वही प्यार मिलता है जो 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' या फिर 'बाजीगर' को मिली थी। काजोल की फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे को बॉलीवुड के इतिहास की सबसे कामयाब फिल्मों में गिना जाता है। यह फिल्म इस कदर कामयाब हुई कि आज तक चल रही है। 

काजोल ने अपने फ़िल्मी करियर में हर तरह की भूमिकाएं निभायीं और हर भूमिका को बेहद खूबसूरती के साथ निभाया। गुप्त, इश्क, प्यार किया तो डरना क्या, कुछ-कुछ होता है, प्यार तो होना ही था, फना जैसी कामयाब फिल्में दी। फिल्म गुप्त में निभाए गए उनकी नकारात्मक चरित्र के लिए काजोल को सर्वश्रेष्ठ खलनायक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास का पहला मौका था जब किसी अभिनेत्री को सर्वश्रेष्ठ खलनायक का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था। 

वर्ष 1999 में उन्होंने अभिनेता अजय देवगन के साथ सात फेरे लिए। अजय देवगन और काजोल की जोड़ी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बेस्ट जोड़ियों में शुमार की जाती है। काजोल ने अजय को अपनी जीवन में उस समय शामिल किया जब उनका कैरियर अपने बुलंदियों पर था। शादी के बाद काजोल ने अपना वक़्त अपने घर परिवार को देना शुरू किया अपने दो बच्चों बेटी न्यासा और बेटे युग को पूरा समय देने लगी।

दो बच्चों न्यासा और युग की मां काजोल ने शादी के बाद भी 'फना', 'माई नेम इज खान' और 'कभी खुशी कभी गम' समेत कई हिट फिल्में दीं। वर्ष 2010 में आई फिल्म माय नेम इज खान काजोल और शाहरुख़ की यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर काफी सफल रही। अब काजोल घर के साथ-साथ अपनी फ़िल्मी करियर पर भी ध्यान दे रहीं हैं। काजोल के नाम अपनी सबसे ज्यादा पांच बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्फेयर पुरस्कार पाने का रिकॉर्ड है।

चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो...

चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो- फिल्म पाकीजा का यह गाना बॉलीवुड की खूबसूरत अदाकारा मीनाकुमारी की खूबसूरती में चार चाँद लगा गया था , भले ही फिल्म कामयाब नहीं रही पर 70 के दशक में यह गाना यादगार गानों में गिना जाने लगा, 1 अगस्त 1932 को जन्मी मीना कुमारी फ़िल्मी दुनिया में जड़ें मीने की तरह थी|

आज के फ़िल्मी दौर में फिल्म में हीरोइने कब आती है कब चली जाती है पता ही चलता। टाकीज में फिल्म लगती है और उतर जाती है पर इन फिल्मो की फिल्मी गलियारो में चर्चा भी नही होती क्योंकि आज फिल्म की हीरोइने अदाकारी की बजाये अपना तन दिखाने और अपने कपड़े उतारने में ही अपना ध्यान लगती हैं जबकि पुराने जमाने की कई अभिनेत्रिया और फिल्मे आज भी कई बरस बीत जाने के बाद भी दिलो दिमाग से नही उतरती, उन में एक नाम मीना कुमारी का भी है। मीना कुमारी का नाम आते ही फिल्मो का वो इतिहास सामने आ जाता है जिसे लोग आज भी फिल्मो के गोल्डन दौर के रूप में याद करते है।

मीना कुमारी का असली नाम मेंजबीं बानो था और यह बांबे में पैदा हुई थीं। उनके पिता अली बक्श भी फिल्मों में और पारसी रंगमंच के एक मंजे हुए कलाकार थे और उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीतकार का भी काम किया था। उनकी मां प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो) भी एक मशहूर नृत्यांगना एवं अदाकारा थी।

मीना कुमारी का वास्तविक नाम मेहजबी बानो था। मीना कुमारी ने केवल छह साल की छोटी उम्र में फिल्मो में काम करना शुरू कर दिया था। 1952 में विजय भट्ट की फिल्म बैजू बावरा ने मीना कुमारी को बतौर अभिनेत्री फिल्मी दुनिया में स्थापित किया और इस फिल्म की लोकप्रियता के बाद मीना की अदाकारी की चारो ओर काफी प्रसंशा होने के साथ ही मेहजबी से यह अदाकारा मीना कुमारी बन गई। दिल अपना और प्रीत पराई, यहूदी, बंदिश, दिल एक मंदिर, प्यार का सागर, मैं चुप रहॅूगी, आरती, भाभी की चूडिया, काजल, कोहेनूर, सहारा, शारदा, फूल और पत्थर, गजल, नूर जहॉ ,मझली दीदी, चन्दन का पालना, भीगी रात, मिस मैरी, बेनजीर, साहिब बीवी और गुलाम, ये सारी ऐसी फिल्मी है जिन्होने मीना कुमारी को बुलंदी के उस आसमान पर पहुंचा दिया जहॉ से आसमान को छूना बहुत आसान हो जाता है।

धर्मन्द्र के साथ मीना कुमारी के रोमांस की चर्च सब से ज्यादा हुई पर फिल्मी पर्द पर दुख झेलती इस अदाकारा के असली जीवन में भी दुख ही दुख भर गये। या यू कहा जाये कि इस अदाकारा ने खुद को जमाने से दूर बहुत दूर कर दुखो से दोस्ती कर ली। पर इतनी बडी दुनिया में तन्हा जीना बडा मुश्क्लि होता है। मीना को तन्हाई खाए जा रही थी इसी दौरान न जाने कब उन्होने शराब और शायरी को अपना दोस्त बना लिया खुद उन्हे भी नही पता। मीना कुमारी शायरी के माध्यम से शोर कह कर अपने दिल का दर्द हल्खा करने लगी वो नाज नाम से उर्द् शायरी करती थी।

मीना कुमारी ने कमाल अमरोही से शादी की, हालांकि उनकी शादीशुदा जिंदगी तनाव से भरी रही। पाकीजा फिल्म निर्माण में सत्रह साल का समय लगा। पाकीजा फिल्म मीना कुमारी ने बीमारी की हालत में की। गुरुदत्त की फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम की छोटी बहू के किरदार में मीना कुमारी को सराहा गया। कहते हैं मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब पी। कहते तो यह भी हैं धर्मेन्द्र की बेवफाई ने मीना कुमारी को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। मीना धर्मेद्र के गम क्या डूबी उन्होंने छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर अपने पर्स में रखना शुरू कर दिया, जब मौका मिला एक शीशी गटक ली।फिल्म 'पाकीजा' 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई और 31 अगस्त 1972 को मीना कुमारी चल बसी। महज चालीस साल की उम्र में महजबीं उर्फ मीना कुमारी खुद-ब-खुद मौत के मुँह में चली गईं। मीना कुमारी का नाम कई लोगों से जोड़ा गया।

मोहम्मद रफ़ी साहब की पुण्यतिथि पर विशेष........

अपनी मदहोश कर देने वाली आवाज़ से सबको अपना दीवाना बनाने वाले गायक मोहम्मद रफ़ी की आज पुण्यतिथि है| इन्हें 'शहंशाह-ए-तरन्नुम' भी कहा जाता है| रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, के पास 'कोटला सुल्तान सिंह' में हुआ था। इनके परिवार का संगीत से कोई ताल्लुक नहीं था। रफ़ी के गायन की शुरुआत साल 1940 के आस पास हुई| वर्ष1960 में फ़िल्म 'चौदहवीं का चांद' के शीर्षक गीत के लिए रफ़ी को अपना पहला फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला था। 

मोहम्मद रफ़ी अपने दर्द भरे नगमों के लिए खासतौर पर जाने जाते है| इन्होनें अपने करियर में लगभग 26000 हज़ार गाने गाये| सन 1946 में आई फिल्म 'अनमोल घड़ी' का गाना 'तेरा खिलौना टूटा' से रफ़ी को पहली बार हिन्दी जगत में ख्याति मिली।

मोहम्मद रफ़ी बहुत ही शर्मीले स्वभाव के समर्पित मुस्लिम थे। आजादी के समय विभाजन के दौरान उन्होने भारत में रहना पसन्द किया। उन्होने बेगम विक़लिस से शादी की और उनकी सात संतान हुईं-चार बेटे तथा तीन बेटियां। रफ़ी का देहान्त 31 जुलाई 1980 को हृदयगति रुक जाने के कारण हुआ।

यह किसी से छुपा नहीं है कि दिवंगत अभिनेता शम्मी कपूर के लोकप्रिय गीतों में मोहम्मद रफ़ी का कितना योगदान है| शम्मी कपूर तो इनकी आवाज से इतने प्रभावित थे कि वह अपना हर गाना रफ़ी से गवातें थे| शम्मी कपूर के ऊपर फिल्माए गए यह लोकप्रिय गाने 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे', 'एहसान तेरा होगा मुझपर', 'ये चांद सा रोशन चेहरा', 'दीवाना हुआ बादल' जो रफ़ी द्वारा गायें गए है| 

इनकी प्रसिद्धि धीरे-धीरे इतनी बढ़ गयी कि ज्यादातर अभिनेता इन्हीं से गाना गवाने का आग्रह करने लगे। अभिनेता दिलीप कुमार व धर्मेन्द्र तो मानते ही नहीं थे कि उनके लिए कोई और गायक गाए। इस कारण से कहा जाता है कि रफ़ी साहब ने अन्जाने में ही 'मन्ना डे', 'तलत महमूद' और 'हेमन्त कुमार' जैसे गायकों के करियर को नुकसान पहुँचाया|

सन 1961 में रफ़ी को अपना दूसरा फ़िल्मफेयर आवार्ड फ़िल्म 'ससुराल' के गीत 'तेरी प्यारी प्यारी सूरत को' के लिए मिला। इसके बाद 1965 में ही लक्ष्मी-प्यारे के संगीत निर्देशन में फ़िल्म दोस्ती के लिए गाए गीत 'चाहूंगा मै तुझे सांझ सवेरे के' लिए रफ़ी को तीसरा फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। साल 1965 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा। उस वक्त तक रफ़ी सफलता की उचाईयों को छुते जा रहे थे| साल 1966 में फ़िल्म सूरज के गीत 'बहारों फूल बरसाओ' बहुत प्रसिद्ध हुआ और इसके लिए उन्हें चौथा फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला। साल 1968 में शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ब्रह्मचारी के गीत 'दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर' के लिए उन्हें पाचवां फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला।

1960 के दशक में अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचने के बाद उनके लिए दशक का अन्त सुखद नहीं रहा।1969 में फ़िल्म आराधना के निर्माण के समय सचिन देव बर्मन (जिन्हे दादा नाम से भी जाना जाता था) को संगीतकार चुना गया। इसी साल दादा बीमार पड़ गए और उन्होने अपने पुत्र राहुल देव बर्मन(पंचमदा) से गाने रिकार्ड करवाने को कहा। उस समय रफ़ी हज के लिए गए हुए थे। पंचमदा को अपने प्रिय गायक किशोर कुमार से गवाने का मौका मिला और उन्होने रूप तेरा मस्ताना तथा मेरे सपनों की रानी गाने किशोर दा की आवाज में रिकॉर्ड करवाया। 

ये दोनों गाने बहुत ही लोकप्रिय हुए, साथ ही गायक किशोर कुमार भी जनता तथा संगीत निर्देशकों की पहली पसन्द बन गए। इसके बाद रफ़ी के गायक जीवन का अंत शुरू हुआ। हालांकि, इसके बाद भी उन्होने कई हिट गाने दिये, जैसे 'ये दुनिया ये महफिल', 'ये जो चिलमन है', 'तुम जो मिल गए हो'। 1977 में फ़िल्म 'हम किसी से कम नहीं' के गीत 'क्या हुआ तेरा वादा' के लिए उन्हे अपने जीवन का छठा तथा अन्तिम फ़िल्म फेयर एवॉर्ड मिला।

रफ़ी के कुछ प्रमुख गाने 

मैं जट यमला पगला दीवाना
चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों 
ये देश है वीर जवानों का
नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है
रे मामा रे मामा 
चक्के पे चक्का
बाबुल की दुआए
आज मेरे यार की शादी है

दुनिया को अलविदा कहा, पर यादों में अमर रहेंगे प्राण

बहुमुखी प्रतिभा के अभिनेता प्राण के स्वाभाविक अभिनय और प्रतिभा की पराकाष्ठा ही थी कि 70-80 के दशक में लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना बंद कर दिया था। प्राण ने मशहूर हिंदी फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी और वह अपने किरदार के चित्रण में इस कदर निपुण थे कि दर्शकों में उनकी छवि ही नकारात्मक बन गई थी। 

हिंदी सिनेमा जगत के प्रख्यात चरित्र अभिनेता प्राण का शुक्रवार को मुंबई के लीलावती अस्पताल में निधन हो गया। 93 वर्ष के प्राण लम्बे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उन्होंने रात 8.30 बजे अस्पताल में आखिरी सांस ली। 

प्राण को इस साल दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया था। लेकिन वह इतने बीमार थे कि पुरस्कार ग्रहण करने दिल्ली नहीं आ पाए। बाद में सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने उनके घर जाकर उन्हें अवार्ड दिया। इससे पहले साल 2001 में भारत सरकार ने उन्हें देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

सन् 1920 के फरवरी माह में पुरानी दिल्ली के बल्लीमरान मुहल्ले में केवल कृष्ण सिकंद के घर पैदा हुए प्राण का पूरा नाम 'प्राण किशन सिकंद' था, लेकिन फिल्म जगत में वह प्राण नाम से ही मशहूर थे। उनके शुरुआती जीवन के कुछ वर्ष और शिक्षा उत्तर प्रदेश और पंजाब के अलग-अलग शहरों में हुई। 

प्राण ने अपनी पेशेवर जिंदगी की शुरुआत लाहौर में बतौर फोटोग्राफर की। साल 1940 में उनके भाग्य ने पलटा खाया, जब संयोग से उनकी मुलाकात मशहूर लेखक वली मोहम्मद वली से एक पान की दुकान पर हुई। वली ने उन्हें दलसुख एम. पंचोली की पंजाबी फिल्म 'यमला जाट' में भूमिका दिलाई और वह खलनायक के रूप में मशहूर हो गए। इसके बाद उन्होंने 'चौधरी' 'खजांची', 'खानदान', 'खामोश निगाहें' जैसी कई पंजाबी-हिंदी फिल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभाईं। लेकिन तब उनकी शोहरत लाहौर और उसके आस-पास तक ही सीमित थी।

भारत विभाजन के बाद प्राण सपरिवार मुंबई आ गए, तब तक वह तीन बच्चों के पिता बन चुके थे। यहां प्राण को एक बड़ा मौका देव आनंद की फिल्म 'जिद्दी' के रूप में 1948 में मिला और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने 74 सालों के फिल्मी करियर में प्राण ने अपनी अभिनय प्रतिभा के साथ कई प्रयोग किए। उन्होंने सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह के किरदार निभाए। लेकिन नकारात्मक किरदार उनकी पहचान थे।

फिल्म 'राम और श्याम' का वह दृश्य जिसमें प्राण के हाथों में थमा चाबुक फिल्म के नायक दिलीप कुमार की पीठ पर पड़ता था तो आह दर्शकों के दिल से निकलती थी। इसके अलावा फिल्म 'कश्मीर की कली', 'मुनीमजी' और 'मधुमति' में प्राण ने खलनायक के किरदार को नायक के बराबर ला खड़ा किया था।

अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म 'जंजीर' में उनकी यादगार भूमिका के अलावा उन्होंने फिल्म 'हाफ टिकट', 'मनमौजी', 'अमर अकबर एंथनी' जैसी फिल्मों में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया, जिनमें वह खलनायक की भूमिका में नहीं थे। फिल्म 'उपकार' में विकलांग मंगल चाचा की भूमिका उनकी बहुमुखी प्रतिभा की मिसाल है।

प्राण साहब पर फिल्माए गए गीतों को वैसे तो एक से बढ़कर एक गायक कलाकारों ने अपनी आवाज दी, लेकिन मन्ना डे की आवाज और प्राण की अदाकारी लगता था कि जैसे एक-दूसरे के लिए ही बनीं हैं।

फिल्म 'उपकार' का 'कसमें वादे प्यार वफा', 'विश्वनाथ' का 'हाय जिंदड़ी ये हाय जिंदड़ी', 'सन्यासी' का गीत 'क्या मार सकेगी मौत' कुछ ऐसे गीत हैं जहां गीतों व अभिनय दोनों में गजब की गहराई और दर्शन विद्यमान है। वहीं 'जंजीर' का 'यारी है ईमान मेरा' दोस्त के लिए प्यार और समर्पण का चित्रण करता बेहतरीन गाना है और फिल्म 'दस नंबरी' का हास्य गीत 'न तुम आलू, न हम गोभी' और 'विक्टोरिया नम्बर 203' का 'दो बेचारे बिना सहारे' में प्राण की अदाकारी दर्शकों को हंसकर लोट-पोट होने को मजबूर करती है।

प्राण को करीबी रूप से जानने वालों का कहना है वह एक सज्जन, साफ दिल, उदार और बेहद अनुसाशित व्यक्ति थे।"

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