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...यहीं गिरी थी देवी सती के दायें पैर की चारों अंगुलियां

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं।

51 शक्तिपीठों के सन्दर्भ में जो कथा है वह यह है राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने जन्म लिया| एक बार राजा प्रजापति दक्ष एक समूह यज्ञ करवा रहे थे| इस यज्ञ में सभी देवताओं व ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया गया था| जब राजा दक्ष आये तो सभी देवता उनके सम्मान में खड़े हो गए लेकिन भगवान शंकर बैठे रहे| यह देखकर राजा दक्ष क्रोधित हो गए| उसके बाद एक बार फिर से राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया इसमें सभी देवताओं को बुलाया गया, लेकिन अपने दामाद व भगवान शिव को यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा| जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए।

नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।

भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा।

सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। माना जाता जाता है शक्तिपीठ में देवी सदैव विराजमान रहती हैं। जो भी इन स्थानों पर मॉ की पूजा अर्चना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।

कालीघाट काली मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के कालीघाट में स्थित देवी काली का प्रसिद्ध मंदिर है। कोलकाता में भगवती के अनेक प्रख्यान स्थल हैं। परंपरागत रूप से हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, जहाँ सती के दाएँ पाँव की 4 उँगलियों (अँगूठा छोड़कर) का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति 'कालिका' व भैरव 'नकुलेश' हैं। इस पीठ में काली की भव्य प्रतिमा मौजूद है, जिनकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है। मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं। पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है।

काली मंदिर में देवी काली के प्रचंड रूप की प्रतिमा स्‍थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव के छाती पर पैर रखी हुई हैं। उनके गले में नरमुण्‍डों की माला है। उनके हाथ में कुल्‍हाड़ी तथा कुछ नरमुण्‍ड है। उनके कमर में भी कुछ नरमुण्‍ड बंधा हुआ है। उनकी जीभ निकली हुई है। उनके जीभ से रक्‍त की कुछ बूंदें भी टपक रही हैं। इस मूर्त्ति के पीछे कुछ अनुश्रुतियाँ भी प्रचलित है। इस अनुश्रुति के अनुसार देवी किसी बात पर गुस्‍सा हो गई थीं। इसके बाद उन्‍होंने नरसंहार करना शुरू कर दिया। उनके मार्ग में जो भी आता‍ वह मारा जाता। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके रास्‍ते में लेट गए। देवी ने गुस्‍से में उनकी छाती पर भी पैर रख दिया। इसी समय उन्‍होंने भगवान शिव को पहचान लिया। इसके बाद ही उनका गुस्‍सा शांत हुआ और उन्‍होंने नरसंहार बंद किया।

अपने देश में बेगाना: भारत-बांग्लादेश सीमा के निवासियों की व्यथा

भारत में पैदा हुए हजारों लोगों को सरकार भारतीय नागरिक स्वीकार नहीं करती और उन्हें बांग्लादेशी मानती है। क्योंकि इनके पास अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। ऐसे ही एक मामले में एक व्यक्ति पिछले एक वर्ष से अवैध रूप से बांग्लादेश में रहने को विवश है।

भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा समझौते से करीब 50,000 लोग ऐसे ही स्थिति का सामना कर रहे हैं। हजारों गरीब और अनपढ़ लोगों की तरह पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में पैदा हुए रूहुल अमीन शेख (32) को अब भारतीय अधिकारियों के कारण बांग्लादेश में अवैध रूप से अपनी चाची के घर में रहना पड़ रहा है। भारतीय अधिकारियों ने उन्हें विदेशी ठहराकर देश से बाहर निकाल दिया।

अमीन की परेशानी तब शुरू हुई, जब उनकी सात वर्षीय बेटी ने दुर्गापूजा पर एक नई पोशाक की मांग की। इसके बाद शेख एक निर्माण क्षेत्र के एक मजदूर के तौर पर नई दिल्ली चले आए। एक अवैध बांग्लादेशी होने के आरोप में शेख को 26 बार 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में रखा गया। इसके बाद उन्हें देश से बाहर निकाल दिया गया।

एन्क्लेव में पैदा हुए अन्य लोगों की तरह अमीन के पास अपनी भारतीय पहचान को स्थापित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। वह शिक्षा, बिजली और अन्य मूल जरूरतों के अभाव में पले-बढ़े हैं। एन्क्लेव में रहने वालों की समस्याओं पर काम करने वाले एक स्वयंसेवी संगठन भारत-बांग्लादेश एन्क्लेव विनिमय समन्वय समिति (बीबीईईसीसी) ने कहा कि अमीन को दिल्ली से अगस्त के शुरू में लाया गया और अवैध रूप से पुलिस ने उन्हें भारत से बाहर निकाल दिया।

बीबीईईसीसी के समन्वयक दीप्तिमान सेनगुप्ता ने कहा, "अमीन को बांग्लादेश के उच्चायुक्त को सूचना दिए बगैर ही बांग्लादेश में धकेल दिया गया जो अवैध है। अमीन को 2011 की जनगणना में मोसलडंगा का निवासी बताया गया है। इसलिए वह आप्रवासी कैसे हो सकता है?" 

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