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आम तोड़ने को लेकर मासूम की दरिदों ने कर दी गला दबाकर हत्या


गोसाईंगंज। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोसाईंगंज थानाक्षेत्र में एक मासूम की दरिदों ने गला दबाकर हत्या कर दी। हत्या के बाद शव को उसके ही मकान के पास एक किसान के चरी के खेत में फेंक कर फरार हो गए। सुबह चरी काटने पहुंचे किसान ने शव देखा, जिसके बाद गांव में हड़कंप मच गया। सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने छानबीन के बाद शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। इस संबंध में मृतक के पिता ने अपने ही परिवार के कुछ सदस्यों पर आम तोड़ने को लेकर हत्या करने का आरोप लगाया है। तहरीर मिलने पर पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर दो लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है।

जानकारी के मुताबिक गोसाईगंज के सठवारा गांव निवासी राम उजागर द्विवेदी खेती करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते आ रहे है। उनके दस वर्षीय बेटे सत्यम द्विवेदी का शव गांव के ही किसान मल्हू के चरी के खेत में पड़ा मिला। मल्हू सुबह अपने जानवरों को चारा देने के लिए चरी काटने खेत गया था। उसी दौरान उसने खेत में शव देखा, इसकी सूचना तत्काल गांव के लोगों को दी। जिसके बाद गांव में हड़कंप मच गया। देखते ही देखते ग्रामीणों का हुजूम लग गया। ग्राम प्रधान शत्रोहन द्वारा घटना की सूचना गोसाईंगंज पुलिस को दी गई। मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम को भेज दिया। मृतक छात्र शिवलर गांव स्थित निजी स्कूल में कक्षा चौथी में पढ़ता था। मृतक के छात्र के पिता राम उजागर द्विवेदी ने अपने परिवार के ही तीन लोगों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई है।

पीड़ित का कहना है कि आम तोड़ने को लेकर परिवार के ही रिंकू, सुधीर व लवकेश ने गला दबाकर उसकी हत्या की है। पीड़ित के अनुसार उसके बेटे सत्यम को आरोपियों ने शनिवार को आम तोड़ने को लेकर पीटा था। जिसके बाद उन्होंने ही उसकी हत्या की है। वह गांव में सम्पन्न होने वाले एक शादी समारोह कार्यक्रम में गया था। जिसके बाद वापस नहीं लौटा। सुबह उसका शव घर के पास में चरी के खेत में पाया गया। वहीं गोसाईगंज के शिवलर गांव स्थित एक निजी विद्यालय में सत्यम कक्षा चौथी का छात्र था। वह जितना शैतानी करता था, उतना ही वह पढ़ाई में भी अव्वल था। मृतक के पिता बताते हैं कि उसकी शैतानी से लोग यहां खुश होते थे। वही आरोपियों को चुभती थी। जिसके कारण उसकी हत्या कर दी गई।

मृतक के पिता राम उजागर अपनी पत्नी अर्चना के साथ अपनी बहन के यहां बाराबंकी में आयोजित शादी समारोह कार्यक्रम शरीक होने गए थे। घर पर मृतक की बड़ी बहन मंदाकिनी तथा छोटा भाई शिवम थे। सठवारा गांव में आयोजित लक्ष्मण के घर शादी समारोह में सत्यम गया था। जिसके बाद वह घर नहीं लौटा। बहन ने काफी खोजबीन के बाद इसकी सूचना अपने पिता को दी। जिसके बाद रात में ही वह बाराबंकी से घर लौट आए। रात में काफी खोजने का प्रयास किया लेकिन कुछ पता नहीं चल सका। सुबह उसका शव घर से कुछ दूरी पर चरी के खेत में मिला।

उप्र के पुलिस थानों में पांच रुपये में मिलता है ‘भोजन’!

केन्द्रीय योजना आयोग द्वारा गरीबी का ‘बेतुका’ मानक तय करने के बाद भर पेट भोजन को लेकर देश भर में हायतौबा मची है, लेकिन एक सरकारी सच जानकार आप परेशान हो जाएंगे। भले ही बढ़ती मंहगाई के बीच देश के किसी हिस्से में बारह रुपये, पांच रुपये या एक रुपये में भर पेट भोजन न मिलता हो, पर उत्तर प्रदेश की पुलिस अपनी हिरासत में लिए गए व्यक्ति को एक दशक से ‘पांच रुपये’ में भर पेट ‘भोजन’ करा रही है।

हाल ही में केन्द्रीय योजना आयोग द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में 27 रुपये और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये रोजाना खर्च करने वाले को ‘अमीर’ का दर्जा दिए जाने का ‘बेतुका’ मानक तय करने के बाद कांग्रेसी नेताओं राज बब्बर के 12 रुपये, रशीद मसूद के पांच रुपये और केन्द्रीय मंत्री फारुक अब्दुल्ला के एक रुपये में भर पेट भोजन मिलने के बयानों के बाद समूचे देश में ‘भोजन’ को लेकर ‘गरीबी’ और ‘अमीरी’ को परिभाषित करने की जबर्दस्त बहस छिड़ गई है। कांग्रेसी नेता रोजाना कितने रुपये के भोजन से अपना पेट भरते हैं, यह तो वह खुद जानते होंगे, पर तल्खसच्चाई है कि देश के किसी भी हिस्से में नेताओं के रेट पर भर पेट भोजन नहीं मिलता और उत्तर प्रदेश की पुलिस पिछले एक दशक से अपनी हिरासत में लिए गए व्यक्ति को ‘पांच रुपये’ के सरकारी मानक में भर पेट भोजन करा रही है और इसी मानक के अनुसार सूबे की सरकार भुगतान भी करती आयी है, हालांकि अमानवीय हरकत के लिए बदनाम उत्तर प्रदेश की पुलिस इस पांच रुपये में भी ‘खेल’ कर रही है। ज्यादातर थानों के लाकप में बंद व्यक्ति के भोजन का इंतजाम उसके परिजन ही करते हैं, मगर यह छोटी सी रकम भी पुलिस डकार रही है।

बांदा के अपर पुलिस अधीक्षक स्वामी प्रसाद की मानें तो एक दशक पूर्व हिरासत में लिए गए व्यक्ति के भोजन के लिए शासन से सिर्फ दो रुपए प्रति खुराक के हिसाब से भुगतान किए जाने का प्राविधान था, बाद में शासन स्तर से मंहगाई को देखते हुए यह रकम बढ़ा कर पांच रुपये कर दी गई है जो थानेवार थाना प्रभारियों को उपलब्ध करा दी जाती है। अपर पुलिस अधीक्षक स्वामी प्रसाद कहते हैं कि ‘आज आसमान छू रही मंहगाई को देखते हुए यह धनराशि ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है, लेकिन एक दशक से इस धनराशि में कोई इजाफा नहीं किया गया।’ वह स्वीकार करते हैं कि ‘होटल से पांच रुपये में अच्छी चाय भी नहीं मिल पाती, किन्तु ‘शासन की मंशा के अनुरूप’ पुलिस किस तरह भर पेट भोजन उपलब्ध कराती होगी? आप अंदाजा लगा सकते हैं।’ बिसंड़ा के थानाध्यक्ष पंकज तिवारी का कहना है कि ‘वैसे तो हिरासत में लिए गए आस-पास के गांवों के व्यक्तियों के भोजन का इंतजाम उनके परिजन ही करते हैं, यदि दूर-दराज का व्यक्ति पकड़ा गया तो सिपाहियों का पेट काट भोजन दिया जाना मजबूरी है।’ वह बताते हैं कि ‘जिले के अधिकारी उसी व्यक्ति के नाम का भुगतान करते हैं, जिन्हें न्यायालय में पेश किया जाता है। अक्सर ऐसे भी हिरासत में ले लिए जाते हैं, जिन्हें जेल नहीं भेजा जा सकता और उनके पेट का प्रबंध अपनी जेब से करना पड़ता है।’

पुलिस हिरासत के दौरान भोजन दिए जाने की हकीकत जानने के लिए जब हमारे संवाददाता ने बांदा जेल से रिहा हुए तेन्दुरा गांव के युवक रिंकू उर्फ संकल्प से मुलाकात की। उसने बताया कि ‘उसे जेल भेजने से पूर्व चार दिन तक नरैनी पुलिस के लाकप में रहना पड़ा था, एक भी दिन पुलिस ने खाना नहीं दिया। तीसरे दिन उसके परिजन खाना लेकर गए, तब कहीं भूख मिटी।’ मुकदमा अपराध संख्या-149/20013 में गिरफ्तार किए गए इस युवक के नाम भुगतान की गई धनराशि के बारे में पुलिस लाइन बांदा में तैनात प्रतिसार निरीक्षक (आरआई) ने बताया कि ‘नरैनी पुलिस को तीन खुराक के हिसाब से केवल 15 रुपये का भुगतान किया गया है।’ इस युवक के मामले से साफ जाहिर होता है कि स्थानीय पुलिस ने उसे एक भी बार भोजन नहीं दिया और उसके नाम पर मिले 15 रुपये भी हजम करने से परहेज नहीं किया गया। यह तो सिर्फ बानगी है, ऐसा किया जाना पुलिस के लिए आम बात है। 

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