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गणेश चतुर्थी पर इस बार नक्षत्रों का संयोग

पार्वती नंदन व रिद्दी सिद्धी के दाता गणेशजी का जन्मोत्सव 'गणेश चतुर्थी' के अवसर पर पूरे देश में धूम मची हुई है। गणपति धाम व गणेश जी के प्रमुख मंदिरों में जहां भव्य सजावट का दौर जारी रहा वहीं उनके दर्शन के लिए भक्तों की लम्बी कतार भी देखी गई| यह त्यौहार महाराष्ट्र और गोवा में कोंकणी लोगों का सबसे ज्यादा लोकप्रिय त्यौहार है, जिसे वह बड़ी धूम-धाम और श्रद्धा के साथ मानते हैं। इसके साथ ही गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के अलावा भारत के सभी राज्यों में इस त्यौहार में बड़ी धूम रहती है।

भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को ही 'श्री गणेश चतुर्थी' कहते हैं। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को गणेश भगवान का जन्म हुआ था। भारतीय संस्कृति के अनुसार गणेश भगवान की पूजा बुद्धि, समृद्धि, सौभाग्य और किसी भी शुभ कार्य के करने को करने से पहले की जाती है। इस बार गणेश चतुर्थी 17 सितम्बर दिन गुरूवार को पड़ रही है| गणेश जी को बुद्धि के देवता और विघ्नों का विनाशक माना जाता है। चूहे की सवारी करने वाले गणेश जी का प्रिय भोग लड्डू है। गणेश जी का विवाह ऋद्धि तथा सिद्धि नामक दो स्त्रियों के साथ हुआ है।

शुभ मुहूर्त-

इस साल 17 सितम्बर गुरुवार भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी को गणेश चतुर्थी पूरे देश में मनाई जाएगी। ऐसे चार योग हैं जो कई वर्षों बाद बने हैं। इस साल गणेश चतुर्थी बेहद महत्वपूर्ण है और आपके घर में सुख एवं समृद्धि लेकर आने वाली है। पहला योग यह कि कन्या की संक्रांति में 19 वर्षों बाद गणेश चतुर्थी मनेगी| 12 वर्षों के बाद गणेश चतुर्थी बृहस्पति, सूर्य सिंह संक्रांति में आयी है, जो अगले 12 साल बाद 4 सितम्बर 2027 को आएगी। रवि योग जो सूर्योदय से रात्रि 1:32 बजे तक रहेगा, ऐन्द्र योग जो सूर्योदय पूर्व से सायः 6:23 बजे तक रहेगा। सिंह में बृहस्पति का योग। विद्या और बुद्ध‍ि के देव गणेश जी की चतुर्थी ऐसे दुर्लभ योग कई वर्षों बाद आते हैं जिसमें विद्या, साधना के करने से उत्तम सिद्दी प्रदान करेगा।

गणेश चतुर्थी सूर्योदय पूर्व से रात्रि 10:20 मिनिट तक रहेगी तथा स्वाति नक्षत्र सूर्योदय से रात्रि 1:32 तक रहेगी। इसी दिन सूर्य दोपहर 12:29 पर कन्या राशि में संकान्ति करेंगे। सूर्य और बुध मिल के बुध आदित्य योग बनायेंगे। यह योग श्रेष्ठ फलदायी रहेगा, जिससे व्यापारियों को बाजार में वृद्धि होगी। मंगल कार्यों का आरम्भ होगा। 

गणेश चतुर्थी पर भद्रा का साया रहेगा| भद्रा प्रातः 9:10 बजे से रात्रि 10:20 तक रहेगी। गणेश चतुर्दशी को भी भद्रा रहेगी जो दोपहर 12:07 से रात्रि 10:14 मिनट तक रहेगी। हो सके तो भद्रा के समय को छोड़कर पूजन कार्य करें व अधिक आवश्यकता हो तो भद्रा का मुख पूछ छोड़कर शुभ मुहूर्त में कार्य संपन्न किये जा सकते हैं। 18 सितम्बर को ऋषि पंचमी को सर्वार्थ सिद्दी योग भी रहेगा।

कैसे जन्में भगवान गणेश-

एक बार की बात है माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। वह चाहती थी की स्नान करते समय उन्हें कोई परेशान न करें। तब उन्होंने स्नान से पहले अपने मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे अपना द्वारपाल बनाकर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश दिया। उसी समय वहाँ भगवान शिवजी आये और अन्दर प्रवेश करने लगे, तब बालक ने उन्हें बाहर रोक दिया। शिव जी ने उस बालक को कई बार समझाया लेकिन वह नहीं माना। इस पर शिवगणों ने भगवान शिवजी के कहने पर उस बालक को द्वार से हटाने के लिए उससे भयंकर युद्ध किया। लेकिन उसे कोई पराजित नहीं कर सका। बालक के पराक्रम और हठधर्मिता से क्रोधित होकर शिवजी ने उस बालक का सिर काट दिया।

जब माता पार्वती स्नान करके निकली तो अपने पुत्र का कटा हुआ सिर देखकर क्रोधित हो उठीं और शिवजी से उसे पुनः जीवित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा की अगर उनके पुत्र को जीवित नहीं किया गया तो प्रलय आ जाएगी। यह सब देखकर सारे देवी-देवता भयभीत हो गये। तब देवर्षि नारद न एपर्वती जी को शांत किया और बालक को जिन्दा करने का अनुराध भगवान शिवजी से करने लगे। बड़ी समस्या यह थी कि कटा हुआ सिर वापस से धड के साथ जुड नही सकता था। अतः यह तय हुआ कि अगर किसी दूसरे जीव का सिर मिल जाए तो यह बालक वापस से जिन्दा हो जाएगा।

शिव जी के आदेशानुसार शिवगणों जब दूसरा सिर खोजने निकले तो उन्हें एक जंगल में एक हाथी का बच्चा मिला। शिवगणों उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आए। इसके पश्चात शिव जी ने उस गज के कटे हुए मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया और इस बालक का नाम गणेश पड़ा। गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की स्थापना की जाती है। सभी भक्तगण गणेश जी का उपवास रखते हैं। इस दिन घरों व मंदिरों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। कई दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और गणेश भगवान की पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं। दस दिन चलने वाले इस उत्सव के बाद गणेश भगवान की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है।

गणेश चतुर्थी कथा-

श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है| कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें| वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा| भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये| परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है| परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है| इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता|

यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया| खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई| खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया| यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व कीचड़ में पडे रहने का श्राप दे दिया| बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऎसा नहीं किया| बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई|

ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं| नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया| उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा| बालक ने कहा कि हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों|

बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए| बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई| उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई| देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया| इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वह समाप्त हो गई|

यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई| यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई| माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया| व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें| उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है|

विघ्नविनाशक गणपति के इस मंत्र से पूरी कर सकते हैं कोई भी मन्नत

हमारे हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत ईश्वर के नाम के बिना नहीं होती| हिंदू धर्म के अनुयायी भगवान श्रीगणेश की पूजा सर्वप्रथम करते हैं। भगवान श्रीगणेश बुद्धि के देवता हैं। जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान हैं। गणपति की पूजा सम्पूर्ण मानी जाती है| हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि गणपति सब देवताओं में अग्रणी हैं।

गणेश के इस नाम का शाब्दिक अर्थ – भयानक या भयंकर होता है। क्योंकि गणेश की शारीरिक रचना में मुख हाथी का तो धड़ पुरुष का है। सांसारिक दृष्टि से यह विकट स्वरूप ही माना जाता है। किंतु इसमें धर्म और व्यावहारिक जीवन से जुड़े गुढ़ संदेश है। धार्मिक आस्था से श्री गणेश विघ्रहर्ता है। इसलिए माना जाता है कि वह बुरे वक्त, संकट और विघ्रों का भयंकर या विकट स्वरूप में अंत करते हैं। आस्था से जुड़ी यही बात व्यावहारिक जीवन का एक सूत्र बताती है कि धर्म के नजरिए से तो सज्जनता ही सदा सुख देने वाली होती है, लेकिन जीवन में अनेक अवसरों पर दुर्जन और तामसी वृत्तियों के सामने या उनके बुरे कर्मों के अंत के लिये श्री गणेश के विकट स्वरूप की भांति स्वभाव, व्यवहार और वचन से कठोर या भयंकर बनकर धर्म की रक्षा जरूर करना चाहिए।

शास्त्रों में श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के विधि विधान बताये गए हैं| आज हम आपको एक ऐसा चमत्कारी गणेश मंत्र बताने जा रहे हैं जो तुरंत मन्नत पूरी करता है!

मंत्र

“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरदे नम:”

इस मंत्र का जाप करने लिए सुबह स्नान के बाद मन्दिर या घर में पूर्व दिशा की ओर मुख कर पीले आसन पर बैठें| एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर अक्षत की ढेरी या अष्टदल कमल पर श्रीगणेश मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। श्रीगणेश को फूल, चंदन, धूप, दीप व भोग में पीले रंग के लड्डू चढ़ाएं। गौ माता के घी का दीप श्रीगणेश के सामने जलाएं|

श्रीगणेश की कामना विशेष मंत्र को संकल्प लेकर हर रोज 108 बार मंत्र स्मरण करें। चंदन, रुद्राक्ष की माला से 108 बार स्मरण न कर पाएं तो 9, 18, 27 या 54 बार भी जप कर सकते हैं। यह विशेष गणेश मंत्र आसान व मनोरथसिद्धी करने वाला बताया गया है| 

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इसी दिन हुआ था भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भैया बलरामजी (बलदाऊ) का जन्म हुआ था| बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। बलराम जी शेषनाग के अवतार माने जाते हैं| कहीं-कहीं विष्णु के अवतारों में भी इनकी गणना की जाती है| 

जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नन्द बाबा के यहाँ निवास कर रही श्री रोहिणी जी के गर्भ में पहुँचा दिया। इसलिये उनका एक नाम संकर्षण पड़ा। बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। बलराम जी साक्षात शेषावतार थे। बलराम जी बचपन से ही अत्यन्त गंभीर और शान्त थे। श्री कृष्ण उनका विशेष सम्मान करते थे। बलराम जी भी श्रीकृष्ण की इच्छा का सदैव ध्यान रखते थे। 

बलराम के बल-वैभव और उनकी ख्याति पर मुग्ध होकर रैवत नामक राजा ने अपनी पुत्री रेवती का विवाह उनके साथ कर दिया। बलराम अवस्था में श्रीकृष्ण से बड़े थे। अतः नियमानुसार सर्वप्रथम उन्हीं का विवाह हुआ। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन क्रोध है। इसी के कारण बलराम जी से ऐसी गलती हुई कि पूरा संत समाज इनके विरुद्घ हो गया। संतों ने कहा आपने महापाप किया है और इसका प्रायश्चित करना होगा।

वेदव्यास जी के प्रिय शिष्य सूत जी थे। सूत जी पुराणों के ज्ञाता थे और ऋषियों के आश्रम में जाकर पुराण कथा सुनाया करते थे। संतों के बीच इनका बड़ा आदर था। एक बार सूत जी पुराण कथा सुना रहे थे। इसी बीच दाऊ बलराम कहीं से आश्रम में पहुंच गए। बलराम जी को देखते ही सभी संत खड़े होकर नमस्कार करने लगे। लेकिन पुराण कथा सुना रहे व्यास जी अपने आसान पर बैठे रहे। क्योंकि पुराण कथा सुनाते समय बीच में उठना नियम विरुद्घ था। बलराम जी ने समझा कि सूत जी उनका अनादर कर रहे हैं।

क्रोध में आकर बलराम जी ने अपनी तलवार से सूत जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। संत समाज बलराम जी के इस व्यवहार से हैरान रह गया। संतों ने बलराम जी से कहा कि आपने एक निर्दोष ब्राह्मण की हत्या करके महापाप किया है। आपको ब्रह्महत्या का पाप लगेगा।

श्री दाऊजी या बलराम जी का मन्दिर मथुरा से 21 कि.मी. दूरी पर एटा-मथुरा मार्ग के मध्य में स्थित है। श्री दाऊजी की मूर्ति देवालय में पूर्वाभिमुख 2 फुट ऊँचे संगमरमर के सिंहासन पर स्थापित है। पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र श्री वज्रनाभ ने अपने पूर्वजों की पुण्य स्मृति में तथा उनके उपासना क्रम को संस्थापित करने हेतु 4 देव विग्रह तथा 4 देवियों की मूर्तियाँ निर्माण कर स्थापित की थीं जिनमें से श्री बलदेव जी का यही विग्रह है जो कि द्वापर युग के बाद कालक्षेप से भूमिस्थ हो गया था। पुरातत्त्ववेत्ताओं का मत है यह मूर्ति पूर्व कुषाण कालीन है जिसका निर्माण काल 2 सहस्र या इससे अधिक होना चाहिये।

जानिए किस शिवलिंग के पूजन से मिलता है कैसा फल

नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शन्कराय च मयस्करय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। 
ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिर्ब्रम्हणोधपतिर्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।। 
तत्पुरषाय विद्म्हे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।। 

भगवान शिव को सभी विद्याओं के ज्ञाता होने के कारण जगत गुरु भी कहा गया है। भोले शंकर की आराधना से सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। शिव की आराधना किसी भी रूप में की जा सकती है। शिव अनादि तथा अनंत हैं। धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं, क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद प्रदान करता हैं। जिस तरह निराकार रूप में केवल ध्यान करने से भोले शंकर प्रसन्न होते हैं, उसी प्रकार साकार रूप में श्रद्धा से शिवलिंग की उपासना से भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया जाता है| 

शिवलिंग जो कि भगवान शंकर का प्रतीक है| उनके निश्छल ज्ञान और तेज़ का यह प्रतिनिधित्व करता है। 'शिव' का अर्थ है - 'कल्याणकारी'। 'लिंग' का अर्थ है - 'सृजन'। सर्जनहार के रूप में उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में लिंग की पूजा होती है। स्कंद पुराण में भी लिंग का अर्थ लय लगाया गया है। लय ( प्रलय) के समय अग्नि में सब भस्म हो कर शिवलिंग में समा जाता है और सृष्टि के आदि में लिंग से सब प्रकट होता है। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं। आज आपको बता दें कि किस चीज का शिवलिंग आपकी कौन सी कामना सिद्ध कर सकता है| तो आइये जाने कौन सी शिवलिंग आपकी मनोकामनाएं पूरी कर सकती है| 

चंदन-कस्तूरी से बने शिवलिंग ऐश्वर्य से भरे जीवन की कामना पूरी करते हैं, इसके अलावा अक्षत, गेंहू या जौ के आटे से बने शिवलिंग की पूजा पारिवारिक सुख-शांति व संतान की कामना पूरी करती है। अगर आपको मृत्यु व काल का भय सता रहा है तो आप दरें नहीं बस दूर्वा दल से बने शिवलिंग पूजा करें ऐसा करने से भय दूर हो जायेगा | स्फटिक शिवलिंग की पूजा हर कामना और कार्य सिद्धि करने वाली मानी गई है। वहीँ, पुष्पों से बने शिवलिंग का पूजन शुभ फल देता है। इससे भूमि, भवन और अचल संपत्ति की प्राप्ति होती है।

मिश्री(चीनी) से बने शिव लिंग कि पूजा से रोगो का नाश होकर सभी प्रकार से सुखप्रद होती हैं। मिर्च, पीपल के चूर्ण में नमक मिलाकर बने शिवलिंग कि पूजा से वशीकरण और अभिचार कर्म के लिए किया जाता हैं। किसी भी फल को शिवलिंग के समान रखकर उसकी पूजा करने से फलवाटिका में अधिक उत्तम फल होता हैं। यदि बांस के अंकुर को शिवलिंग के समान काटकर पूजा करने से वंश वृद्धि होती है। दही को कपडे में बांधकर निचोड़ देने के पश्चात उससे जो शिवलिंग बनता हैं उसका पूजन करने से समस्त सुख एवं धन कि प्राप्ति होती हैं। गुड़ से बने शिवलिंग में अन्न चिपकाकर शिवलिंग बनाकर पूजा करने से कृषि उत्पादन में वृद्धि होती हैं।

आंवले से बने शिवलिंग का रुद्राभिषेक करने से मुक्ति प्राप्त होती हैं। कपूर से बने शिवलिंग का पूजन करने से आध्यात्मिक उन्नती प्रदत एवं मुक्ति प्रदत होता हैं। मोती के बने शिवलिंग का पूजन स्त्री के सौभाग्य में वृद्धि करता हैं। स्वर्ण निर्मित शिवलिंग का पूजन करने से समस्त सुख-समृद्धि कि वृद्धि होती हैं। चांदी के बने शिवलिंग का पूजन करने से धन-धान्य बढ़ाता हैं। पीपल कि लकडी से बना शिवलिंग दरिद्रता का निवारण करता हैं।

लहसुनिया से बना शिवलिंग शत्रुओं का नाश कर विजय प्रदत होता हैं। बिबर के मिट्टी के बने शिवलिंग का पूजन विषैले प्राणियों से रक्षा करता है। पारद शिवलिंग का अभिषेक सर्वोत्कृष्ट माना गया है। घर में पारद शिवलिंग सौभाग्य, शान्ति, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए अत्यधिक सौभाग्यशाली है। दुकान, ऑफिस व फैक्टरी में व्यापारी को बढाऩे के लिए पारद शिवलिंग का पूजन एक अचूक उपाय है। शिवलिंग के मात्र दर्शन ही सौभाग्यशाली होता है। इसके लिए किसी प्राणप्रतिष्ठा की आवश्कता नहीं हैं। पर इसके ज्यादा लाभ उठाने के लिए पूजन विधिक्त की जानी चाहिए।

.....तो इसलिए भगवान भोलेनाथ को अत्यधिक प्रिय है भांग और धतूरा!

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व विश्व भर के हिन्दुओं का एक बड़ा पर्व है| रात में पड़ने वाली चतुर्दशी और अमावस्या को महाशिवरात्रि मनाने का विधान है। इसका उपवास त्रयोदशी से शुरू होता है। इस प्रकार के व्रत और पूजा पाठ में ऐसी पौराणिक मान्यता है कि सकल मनोरथ सिद्ध होंगे और भगवान शिव की कृपा बनी रहेगी| महाशिवरात्रि के बस कुछ ही दिन शेष बचे हैं| 

मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे| इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार- सृष्टि के पालक भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल पर सृष्टि के सर्जक ब्रह्माजी प्रकट हुए| दोनों में यह विवाद हुआ कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है? यह विवाद जब बढऩे लगा तो तभी वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ| उस ज्योतिर्लिंग को वे समझ नहीं सके और उन्होंने उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो पाए| दोनों देवताओं के निराश हो जाने पर उस ज्योतिर्लिंग ने अपना परिचय देते हुए कहां कि मैं शिव हूं| मैं ही आप दोनों को उत्पन्न किया है|

तब विष्णु तथा ब्रह्मा ने भगवान शिव की महत्ता को स्वीकार किया और उसी दिन से शिवलिंग की पूजा की जाने लगी| शिवलिंग का आकार दीपक की लौ की तरह लंबाकार है इसलिए इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है| एक मान्यता यह भी है कि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। दोनों ने इस दिन गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया था, इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है|

महाशिवरात्रि पर आने देखा होगा कि लोग भगवान विष्णु को भांग धतूरा चढ़ाते हैं| क्या आपने कभी यह सोंचा है कि आखिर लोग भगवान भोलेनाथ को भांग और धतूरा क्यों चढ़ाते हैं क्या भगवान भोलेनाथ भांग और धतूरे जैसी नशीली चीजों का सेवन करते हैं?

इसके पीछे पुराणों में जहां धार्मिक कारण बताया गया है वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो भगवान भोलेनाथ एक सन्यासी हैं और वह कैलाश पर्वत समाधि लगाते हैं| पहाड़ों पर होने वाली बर्फ़बारी की वजह से यहाँ बहुत अधिक ठंडी होती है| गांजा, धतूरा, भांग जैसी चीजें नशे के साथ ही शरीर को गरमी भी प्रदान करती हैं। जो वहां सन्यासियों को जीवन गुजारने में मददगार होती है। भांग-धतूरे और गांजा जैसी चीजों को शिव से जोडऩे का एक और दार्शनिक कारण भी है। ये चीजें त्याज्य श्रेणी में आती हैं, शिव का यह संदेश है कि मैं उनके साथ भी हूं जो सभ्य समाजों द्वारा त्याग दिए जाते हैं। जो मुझे समर्पित हो जाता है, मैं उसका हो जाता हूं।

इसका एक कारण देवी भागवत‍ पुराण में बताया गया है। जिसके अनुसार भगवान भोलेनाथ ने जब सागर मंथन से निकले हालाहल विष को पी लिया तब वह व्याकुल होने लगे। तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की। उस समय से ही शिव जी को भांग धतूरा प्रिय है। जो भी भक्त शिव जी को भांग धतूरा अर्पित करता है, शिव जी उस पर प्रसन्न होते हैं।

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार