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कानपुर की गलियों में मोदी के स्विस कॉटेज के चर्चे

उत्तर प्रदेश में चुनावी रैली के लिए कानपुर आ रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के लिए बनाए गए स्विस कॉटेज के चर्चे कानपुर के आम लोग के बीच भी हो रहे हैं। आधुनिकतम सुख सुविधाओं से लैस इस कॉटेज में भाजपाईयों ने मोदी के लिए गुजराती व्यंजनों का भी इंतजाम किया है, ताकि फुरसत के क्षणों में मोदी इसका लुत्फ उठा सकें।

कानपुर में मोदी का स्वागत गुजराती खानपान के साथ होगा। मोदी के आने के पहले ही उनके लिए तैयार हो रहे स्विस कॉटेज में सभी व्यवस्थाएं कर दी जाएंगी। यह स्विस कॉटेज मंच के ठीक पीछे तैयार किया जा रहा है, जो पूरी तरह से वातानुकूलित होगा। इसमें श्नानागार, सोफा, बिस्तर, सेंट्रल टेबल की व्यवस्था होगी। स्वागत सत्कार के लिए मशहूर राज्य उत्तर प्रदेश के नेता उनके खान पान में किसी भी तरह की कमी नहीं होने देना चाहते।

भाजपा के जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र मैथानी ने मोदी के लिए गुजरात से विशेष नमकीन, ढोकला और फाफड़ा मंगवाया है जो कि मोदी के आने के पहले ही रैली स्थल पर आ जाएगा। भाजपा के एक पदाधिकारी ने बताया कि यह व्यवस्था उनकी तरफ से की जा रही है। यदि प्रोटोकॉल के तहत कोई मांग या किसी सामग्री को हटाने के लिए कहा जाएगा तो उसे तुरंत बदलवा दिया जाएगा। साथ ही मोदी के लिए ठंडा व गरम दोनों तरह के पानी का प्रबंध किया जा रहा है।

एक सुरक्षा अधिकारी के मुताबिक, स्विस कॉटेज से लेकर मंच तक अत्यंत खास लोगों को ही पूरी तरह से प्रवेश करने दिया जाएगा, वह भी जिन्हें मोदी बुलाएंगे। खाने पीने का सारा सामान पहले तीन लोग जांचेंगे। इसके बाद ही खाने का सामान मोदी के सामने रखा जाएगा।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि किसी भी वीआईपी गतिविधि के दौरान एक सुरक्षित स्थान बनाया जाता है, ताकि आने वाले व्यक्ति को जरूरत पड़ने पर वहां ठहराया जा सके। इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए इसे भी तैयार किया गया है। 

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कानपुर के लिए आकर्षण बना मोदी का मंच

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैली को लेकर लोगों के भीतर गजब का उत्साह देखा जा रहा है। मोदी के साथ खड़े होकर तस्वीर खिंचवाने की तमन्ना भले ही पूरी न हो लेकिन मोदी के आने से पहले ही उनके लिए बने भव्य मंच के सामने ही फोटो खिंचवाकर लोग खुश दिखाई दे रहे हैं।

भाजपा की विजय शंखनाद रैली के लिए तैयार किया गया मंच काफी भव्य है। काफी दिनों से इसे सजाने संवारने का काम चल रहा था, लेकिन शुक्रवार को कानपुरवासियों ने इसका दीदार किया। लोगों के बीच उत्सव सरीखा माहौल दिखाई दिया। शुक्रवार देर रात तक लोग परिवार सहित मोदी के रैली स्थल को देखने पहुंचे।

रैली स्थल की सैर करने पहुंचे लोगों ने भी जमकर अपनी इच्छा पूरी की। मोदी के लिए बनाए गए भव्य मंच के सामने खड़े होकर फोटो खिंचवाने का सिलसिला घंटों तक चलता रहा। मोदी के मंच की निगरानी और आसपास की सुरक्षा का जिम्मा गुजरात से आए हुए अधिकारियों ने अपने हाथों में ले लिया है। मोदी के खास और करीबी माने जाने वाले इन अधिकारियों के सुझावों के आधार पर ही भाजपा के पदाधिकारियों ने मंच को अंतिम रूप दिया है।

देशभर में अब तक हुई मोदी की हर रैली में अपेक्षा से अधिक भीड़ जुट चुकी है। प्रदेश में पहली रैली कानपुर में होने से भाजपाइयों को भीड़ का अनुमान भी कुछ बढ़ गया है। रैली में आने वाला कोई भी व्यक्ति बगैर मोदी को सुने व देखे न जाए इसके लिए भी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। इंदिरा नगर में बुद्धापार्क के सामने खाली पड़े मैदान के 1.08 लाख वर्ग मीटर स्थान का प्रयोग रैली के लिए किया जा रहा है। रैली में तीन से साढ़े तीन लाख लोगों के जुटने का अनुमान लगाया जा रहा है।

भीड़ की वजह से कोई भी व्यक्ति रैली में मोदी को देखे बिना न लौटे, इसके लिए भाजपाइयों ने रैली स्थल से दो किलोमीटर की परिधि में मोदी को देखने और उनके भाषण को सुनने का प्रबंध किया है। मैदान के अंदर 10 और दो किलोमीटर परिधि में 17 एलसीडी स्क्रीन लगाई गई है। जाम या अन्य कारण से रैली स्थल तक न पहुंचने वाले लोगों को भी मोदी स्पष्ट आवाज के साथ एलसीडी स्क्रीन पर दिखाई देंगे। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष शुक्ला ने बताया कि बेहतर प्रसारण के लिए 17 एलसीडी स्क्रीन वाले टेलीविजन लगाए गए हैं। मोदी की रैली को ऐतिहासिक माना जा रहा है। 

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नरेंद्र मोदी: चाय विक्रेता से प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी

गुजरात के एक रेलवे स्टेशन पर कभी चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति में धूमकेतु की तरह आगे बढ़े हैं। वर्ष 2001 में मुख्यमंत्री बनने के बाद सुर्खियों में आए मोदी महज 12 वर्षो में पार्टी की ओर से देश की सरकार के शीर्ष पद के प्रत्याशी बनाए गए हैं।

धुर हिंदूवादी या हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा के पैरोकार मोदी (62) जनभावनाओं को उभारने में अपनी पार्टी के किसी भी नेता से आगे माने जाते हैं। उनके साथियों का कहना है कि सदैव लक्ष्य पर निगाह टिकाए रखने वाले मोदी हर विपरीत परिस्थिति को अवसर में बदलने में दक्ष हैं।

गुजरात का मुख्यमंत्री चयनित होने से पहले मोदी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे और जिस समय देश के सर्वाधिक विकसित राज्य की उन्हें कमान सौंपी गई थी उस समय तक उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था।

तीव्र गति से आगे बढ़ते जाने वाले मोदी पर उनके आलोचकों का आरोप है कि शिखर चढ़ने में मददगार रहे लोगों को ही वे ठिकाने लगाते रहे हैं। इस सूची में सबसे ताजा नाम भाजपा के कद्दावर नेता और कभी उनके (मोदी के) संरक्षक रहे लालकृष्ण आडवाणी का भी नाम जुड़ गया है। आडवाणी तब मोदी के मार्गदर्शक थे जब उन्हें कोई जानता तक नहीं था।

मोदी को गहरे रूप से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक जी. वी. एल. नरसिम्हा राव ने कहा, "वे प्रतिबद्ध व्यक्ति हैं। वे अत्यंत इमानदार और परिश्रमी हैं। चाहे जैसी भी परिस्थिति हो वे समझौता नहीं करते। और यहां तक कि मोदी एक अस्थायी विजय के लिए कभी नहीं झुकेंगे।" आज के मुकाबले मोदी का शुरुआती जीवन बेहद गौण रहा है।

गुजरात के मेहसाणा जिले के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में 17 सितंबर 1950 को जन्मे मोदी अपने माता-पिता की चार संतानों में तीसरे हैं। उनके पिता दामोदरदास चाय की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। गुजरात के वादनगर रेलवे स्टेशन पर उनके बेटे केतली में चाय लेकर रेलगाड़ियों में बेचा करते थे।

इस परिवार का घर ऐसा था जिसमें खिड़कियों से पर्याप्त रोशनी भी नहीं पहुंचती थी। किरासन तेल पर जलनेवाली एकमात्र चिमनी धुआं और कालिख उगलती रहती थी। जो लोग मोदी को जानते हैं वे बताते हैं कि वे एक औसत दर्जे के छात्र थे। खुद उनके मुताबिक वे एक समर्पित हिंदू हैं। चार दशक तक उन्होंने नवरात्रि के दौरान केवल जल के सहारे उपवास रखते रहे।

मोदी के जीवनीलेखक नीलांजन मुखोपाध्याय के मुताबिक, युवावस्था में ही मोदी की शादी हुई, लेकिन वह निभ नहीं सकी। प्रचारक बनने के लिए उन्होंने अपने विवाहित होने के सच को छिपाए रखा। इस सच के सामने आने पर अति शुद्धतावादी संघ का प्रचारक बनना मुश्किल था।

स्कूली जीवन से ही मोदी अच्छे वक्ता रहे हैं। वे अक्सर महीनों अपने परिवार से गायब रहा करते थे। वे एकांत में रुकते या हिमालय में भटका करते थे। एक बार वे गिर के जंगलों में एक छोटे से मंदिर में ठहरे थे। 1967 में उन्होंने अपने परिवार से नाता तोड़ लिया।

मोदी संघ में औपचारिक रूप से 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शमिल हुए। वे दिल्ली के संघ कार्यालय में रहे जहां उनकी दिनचर्या कुछ इस तरह की थी। सुबह 4 बजे जगने के बाद पूरे कार्यालय में झाडूबुहारू करना, वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के लिए चाय के साथ-साथ नाश्ता और शाम का नाश्ता बनाना और पत्रों का उत्तर देना उनका काम था। वे बर्तन भी साफ करते थे और पूरे भवन की साफ सफाई करते थे।

मोदी अपना कपड़ा भी खुद धोते थे। जब इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोपा था तब मोदी दिल्ली से गुजरात जा कर भूमिगत हो गए। एक बजाज स्कूटर पर अनवरत इधर-उधर घूमते रहते और कभी-कभी गुप्तरूप से और छपे हुए केंद्र सरकार विरोधी पर्चे बांटा करते थे। राजनीति को अंगीकार करने वाले मोदी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक और गुजरात विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की है।

अपने परिश्रम के दम पर मोदी ने वरिष्ठों का ध्यान खींचा और उन्हें 1987-88 में भाजपा की गुजरात इकाई में संगठन मंत्री की कमान सौंपी गई। यहीं से उनके राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत हुई।

मोदी ने आहिस्ता-आहिस्ता भाजपा पर नियंत्रण पाया और कार्यकर्ताओं के बीच पैठ बनाई। उन्होंने 1990 में तब महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जब आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली थी। इसी रथ यात्रा ने भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज कराने में मदद दिलाई।

लेकिन राजनीतिक कद बढ़ते जाने के बीच मोदी की अपनी कुछ निजी कमजोरियां भी हैं। 1992 में उन्हें गुजरात भाजपा में दरकिनार कर दिया गया। पहले से जमे केशुभाई पटेल, शंकरसिंह वाघेला और कांशीराम राणा जैसे वरिष्ठ नेताओं को मोदी का 'उदय' नहीं पचा। 

समय बीता। मोदी पर आरोप है कि उन्होंने अपने लाभ के लिए समर्थकों को किनारे लगाने में भी परहेज नहीं किया। वर्ष 2001 में जिस मुख्यमंत्री पटेल की जगह उन्होंने ली कभी मोदी उनके विश्वासपात्र रह चुके थे।

मोदी की आज की पहचान पर 2002 के गुजरात में हुई हिंसा की व्यापक छाया है। उस समय वहां उन्हीं की सरकार थी। उनकी सरकार पर एक समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाने के लिए दूसरे समुदाय को प्रोत्साहन देने का आरोप है।

उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात हिंसा पर गहरी नाराजगी जताई थी। तब मोदी के लिए आडवाणी संकटमोचक बने थे। उसके बाद 2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी विजेता बनकर उभरे और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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..और आसुमल बन गए आसाराम बापू

यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार स्वयंभू संत आसाराम बापू का पिछले कुछ समय से विवादों से नाता-सा हो गया है। पिछले कुछ अर्से से उनके आश्रम में बच्चों की मौत, जमीन घोटाला, जानलेवा हमला करने के आरोप लगते रहे हैं। कहा जाता है कि संतों को क्रोध शोभा नहीं देता, वे खुद भी लोगों को क्रोध से दूर रहने का उपदेश देते हैं। लेकिन कभी 'ईश्वर की खोज में' घर छोड़ देने वाले 'संत' को क्रोध भी खूब आता है। 2009 में आश्रम के साधकों पर पुलिस कार्रवाई पर उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने कहा कि जब बच्चों पर अन्याय होता है तो मैं दुर्वासा का रूप ले लेता हूं। 

इतना ही नहीं उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तक को चुनौती दे डाली थी| उन्होंने कहा था कि वाह मुख्यमंत्री, देखें तुम्हारी गद्दी कब तक और कैसे रहती है। बहराल, विभाजन के दौरान पाकिस्तान के सिंध प्रांत से विस्थापित होकर उनका परिवार गुजरात के अहमदाबाद पहुंचा था। आज उनका आश्रम देश कई शहरों में मौजूद है और उनके पास करोड़ों रुपये की संपत्ति बताई जाती है। 

आसाराम का जन्म सिंध प्रान्त के नवाबशाह जिले में सिंधु नदी के तट पर बसे बेराणी गांव में नगर सेठ श्री थाऊमलजी सिरुमलानी के घर 17 अप्रैल, 1941 हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'आसुमल सिरुमलानी' है। उनके पिता का नाम थाऊमल और माता का नाम महंगीबा है। उस समय नामकरण संस्कार के दौरान उनका नाम आसुमल रखा गया था।

आसाराम के जन्म के कुछ समय बाद उनका परिवार विभाजन की विभीषिका झेलने के बाद सिंध में चल-अचल सम्पत्ति छोड़कर 1947 में अहमदाबाद शहर आ गया। धन-वैभव सब कुछ छूट जाने के कारण परिवार आर्थिक संकट के चक्रव्यूह में फंस गया। यहां आने के बाद आजीविका के लिए थाऊमल ने लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ किया और आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा। तत्पश्चात शक्कर का व्यवसाय भी शुरू किया। 

आसाराम की प्रारम्भिक शिक्षा सिन्धी भाषा से आरम्भ हुई। सात वर्ष की आयु में प्राथमिक शिक्षा के लिए उन्हें 'जयहिन्द हाईस्कूल', मणिनगर, (अहमदाबाद) में प्रवेश दिलवाया गया। माता-पिता के अतिरिक्त आसाराम के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थीं।

तरुणाई के प्रवेश के साथ ही घरवालों ने इनकी शादी करने की तैयारी की। वैरागी आसुमल सांसारिक बंधनों में नहीं फंसना चाहते थे, इसलिए विवाह के आठ दिन पूर्व ही 'ईश्वर की खोज में' वह चुपके से घर छोड़ कर निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद घरवालों ने उन्हें भरूच के एक आश्रम में खोज निकाला। सगाई हो जाने और परिवार की काफी दुहाई के बाद वह शादी के लिए तैयार हो गए। 

इसके बाद 23 फरवरी, 1964 को उन्होंने सिद्धि के लिए घर छोड़ दिया। घूमते-घूमते वह केदारनाथ पहुंचे, जहां उन्होंने अभिषेक करवाया। वहां से वह भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली वृन्दावन पहुंचे। होली के दिन यहां के दरिद्रनारायण में भंडारा कर कुछ दिन वहीं पर रुके और फिर उत्तराखंड की ओर निकल पड़े। इस दौरान वह गुफाओं, कन्दराओं, घाटियों, पर्वतश्रंखलाओं एवं अनेक तीर्थो में घूमे। 

फिर वह नैनीताल के जंगलों में पहुंचे। 40 दिनों के लम्बे इंतजार के बाद वहां उन्हें सदगुरु स्वामी लीलाशाहजी महाराज मिले। लीलाशाहजी महाराज ने आसुमल को ज्ञान दिया और घर में ही ध्यान भजन करने का आदेश देकर 70 दिनों बाद वापस अहमदाबाद भेज दिया।

साबरमती नदी के किनारे की उबड़-खाबड़ टेकरियों (मिट्टी के टीलों) पर भक्तों द्वारा आश्रम के रूप में 29 जनवरी, 1972 को एक कच्ची कुटिया तैयार की गई। इस स्थान के चारों ओर कंटीली झाड़ियां व बीहड़ जंगल था, जहां दिन में भी आने पर लोगों को चोर-डाकुओं का भय बराबर बना रहता था। लेकिन आश्रम की स्थापना के बाद यहां का भयावह एवं दूषित वातावरण बदल गया। 

आसाराम ने साबरमती तट पर ही अपने आश्रम से करीब आधा किलोमीटर दूर 'नारी उत्थान केन्द्र' के रूप में महिला आश्रम की स्थापना की। महिला आश्रम में भारत के विभिन्न प्रान्तों से एवं विदेशों से भी स्त्रियां आती हैं। इसके बाद सत्संग के लिए योग वेदान्त सेवा समिति की शाखाएं स्थापित की गईं। जिसमें लाखों की संख्या में श्रोता और भक्त पहुंचने लगे।

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