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जानिए भगवान विष्णु ने अयोध्या में ही क्यों लिया अवतार?

क्या आप जानते हैं त्रेता युग में भगवान विष्णु ने अयोध्या में ही क्यों अवतार लिया? यदि नहीं तो आज हम आपको बताते हैं कि भगवान ने अवध नगरी में जन्म लिया| स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा जिनसे मनुष्यों की यह अनुपम सृष्टि हुई| इन दोनों पति पत्नी के धर्म और आचरण बहुत अच्छे थे| आज भी वेद जिनकी मर्यादा का गान करते हैं| राजा उत्तानपाद उनके पुत्र थे, जिनके पुत्र हरिभक्त ध्रुव हुए| मनु के छोटे लड़के का नाम प्रियव्रत था| जिसकी प्रशंसा वेद और पुराणों में करते हैं| देवहुति उनकी कन्या थी| देवहुति ने ही कृपालु भगवान कपिल को जन्म दिया| मनु ने बहुत समय तक राज्य किया घर में रहते बुढ़ापा आ गया| एक दिन उनके मन में बड़ा दुःख हुआ कि श्रीहरि की भक्ति के बिना जीवन युहिं बीत गया| तब मनु ने अपने पुत्र को जबर्दस्ती राज्य देकर स्वयं स्त्री सहित वन को गमन किया| पत्नी समेत मनु तीर्थों में श्रेष्ठ नैमिषारण्य धाम पहुंचे| 

जहाँ-जहाँ तीर्थ थे मुनियों ने उन्हें सभी तीर्थ करा दिए| उनका शरीर दुर्बल हो गया था| वे मुनियों के भेष में ही रहते थे और संतों के समाज में नित्य पुराण सुनते| दोनों पति-पत्नी द्वादशाक्षर (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का प्रेम सहित जप करते थे| वे साग, फल और कंद का आहार करते थे और सच्चिदानंद ब्रम्हा का स्मरण करते थे| फिर वे श्री हरि के लिए तप करने लगे और मूल फल का त्यागकर केवल जल के आधार पर रहने लगे| उनके हृदय में केवल यही अभिलाषा थी कि हम कैसे श्रीहरि को आँखों से देखें| जो निर्गुण, अखंड, अनंत और अनादि हैं और परमार्थवादी लोग जिनका चिंतन करते हैं| 

इस प्रकार जल का आहार करते हुए छह हजार साल बीत गए| फिर साथ हजार वर्ष वे वायु के आधार पर रहे|10000 वर्ष तक वे वायु का आधार भी छोड़ दिया| दोनों एक पैर से खड़े रहे| उनका अपार तप देखकर ब्रम्हा, विष्णु और शिवजी कई बार मनु जी के पास आये| उन्होंने अनेकों प्रकार से ललचाया और कहा कि कोई वर मांगो| पर यह परम धैर्यवान डिगाए नहीं डिगे| उनका शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र ही रह गया फिर भी उनके मन में ज़रा सी पीड़ा न हुई| 

फिर आकाशवाणी हुई कि 'वर मांगो' कानों में अमृत सामान लगने वाले बचन सुनते ही उनका शरीर पुलकित और प्रफुल्लित हो गया| तब मनु जी दंडवत कर बोले! हे प्रभु! सुनिए आप सेवकों के लिए कल्पवृक्ष और कामधेनु हैं| आपकी चरण रज की ब्रम्हा और शिवजी भी वंदना करते हैं| आप जड़ चेतन के स्वामी हैं| यदि हम लोगों पर आपका स्नेह है तो प्रसन्न होकर यह वर दीजिए आपका जो स्वरुप शिवजी के मन में बसता है| सगुण और निर्गुण कहकर वेद जिसकी प्रशंसा करते हैं| हे प्रभु! ऐसी कृपा कीजिए हम उसी रूप को नेत्र भरकर देखें | भगवान को राजा रानी के वचन अति प्रिय लगे| भगवान ने उन्हें तुरंत दर्शन दिया| 

भगवान के नीले कमल, नीलमणि और नील मेघ के सामान श्यामवर्ण शरीर की शोभा देखकर मनु और शतरूपा की आँखें खुली की खुली रह गईं| भगवान के अनुपम रूप को देखकर दोनों अघाते न थे| वे हाथों से भगवान के चरण पकड़कर दंड की तरह जमीन पर गिर पड़े| प्रभु ने उन्हें तुरंत उठा लिया| फिर कृपानिधान भगवान बोले, मुझे अत्यंत प्रसन्न जानकार जो मन को भाये वही वर मांग लो| प्रभु के वचन सुनकर दोनों हाथ जोड़कर बोले, हे नाथ ! आपके चरण कमलों को देखकर अब हमारी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो गई फिर भी मन में एक बड़ी लालसा है| पर उसका पूरा होना बड़ा कठिन मालूम होता है| भगवान ने कहा, हे राजन! बिना संकोच किये वह वर मुझसे मांगिए| तुम्हें दे न सकूँ ऐसा मेरे पास कुछ नही नहीं है| 

तब मनु ने कहा, हे नाथ! मैं आपके समान पुत्र चाहता हूँ| राजा की प्रीति देखकर भगवान ने कहा, मैं अपने समान दूसरा कहाँ खोजूं| अतः मैं स्वयं ही आकर आपका पुत्र बनूंगा| शतरूपा को हाथ जोड़े देखकर भगवान ने कहा, हे देवी! तुम्हारी जो इच्छा हो सो वर मांग लो| शतरूपा ने कहा, राजा ने जो वर मांगा वह मुझे बहुत प्रिय लगा| तब भगवान ने कहा अब तुम्हे मेरी आज्ञा मानकर देवराज इंद्र की राजधानी अमरावती में वास करो| हे तात! कुछ काल बीत जाने पर आप अवध के राजा होंगे| तब मैं तुम्हारा पुत्र बनूंगा| आदिशक्ति भी अवतार लेंगी| इस प्रकार मैं तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण करूंगा|

जानिए भगवान श्रीराम के वंश के बारे में

ऐसा कहा जाता है कि जब जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते है। भगवान विष्णु ने अनेको बार पृथ्वी पर अवतार लिया है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हिन्दू धर्म में विष्णु के 10 अवतारों में से एक हैं। भगवान राम अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्‍च स्‍थान दिया था। इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है। उनका राज्य न्‍यायप्रिय और ख़ुशहाल माना जाता था, इसलिए भारत में जब भी सुराज की बात होती है, रामराज या रामराज्य का उद्धरण दिया जाता है। क्या आपको भगवान राम के वंश के बारे में पता है, यदि नहीं तो आज हम आपको भगवान श्रीराम के वंश के बारे में बताता हूँ-

ब्रह्मा जी की उन्तालीसवीं पीढ़ी में भगवाम श्री राम का जन्म हुआ था | हिंदू धर्म में श्री राम को श्री हरि विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है | वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे – इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट,
धृष्ट, नरिष्यन्त,करुष, महाबली, शर्याति और पृषध | श्री राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था| मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए| इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र, रोहित, वृष, बाहु और सगरतक पहुँची | इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी |

रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठ जी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है :-

ब्रह्मा जी से मरीचि हुए, मरीचि के पुत्र कश्यप हुए, कश्यप के पुत्र विवस्वान थे, विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए| वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था| वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु
था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की| इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए, कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था, विकुक्षि के पुत्र बाण हुए, बाण के पुत्र अनरण्य हुए, अनरण्य से पृथु हुए, पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ, त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए, धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था, युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए, मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ, सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित, ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए, भरत के पुत्र असित हुए, असित के पुत्र सगर हुए, सगर के पुत्र का नाम असमंज था| असमंज के पुत्र अंशुमान हुए, अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए, दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए| भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था| 

भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे | ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है | रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए, प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे, शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए, सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था, अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए, शीघ्रग के पुत्र मरु हुए, मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे, प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए, अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था, नहुष के पुत्र ययाति हुए, ययाति के पुत्र नाभाग हुए, नाभाग के पुत्र का नाम अज था, अज के पुत्र दशरथ हुए, दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए | इस प्रकार ब्रह्मा की उन्तालीसवीं पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ|

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राम मंदिर के लिए मुसलमान ने दान की जमीन

अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने को लेकर जहां दो संप्रदायों के लोग न्यायालय में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं बिहार के पूर्वी चंपारण में विश्व के सबसे ऊंचे राम मंदिर के निर्माण के लिए एक बुजुर्ग मुस्लिम ने अपनी जमीन दान में दी है। इस मंदिर को लेकर मुस्लिम संप्रदाय के लोगों में भी उत्सुकता है। 

मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष ललन सिंह कहते हैं कि कल्याणपुर प्रखंड के कैथवलिया में बनने वाले राम मंदिर के लिए बुजुर्ग मुस्लिम जैनुल हक खां ने अपनी डेढ़ बीघा (करीब दो एकड़) जमीन दान कर दी है। दान की सारी प्रक्रिया बुधवार को केसरिया स्थित अवर निबंधक कार्यालय में पूरी की गई। 

बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल ने गुरुवार को बताया कि कई मुस्लिम परिवार ऐसे हैं जो अपनी जमीन इस मंदिर के लिए देना चाहते हैं। उनके मुताबिक इस मंदिर के लिए करीब 115 एकड़ जमीन की आवश्यकता है। वह कहते हैं कि अभी यह कहना मुश्किल है कि और कितने परिवार मंदिर के लिए जमीन दान देंगे। 

उन्होंने मंदिर के लिए जमीन देने वाले सभी लोगों के प्रति आभार जताते हुए कहा कि मंदिर निर्माण में समाज के हर वर्ग का सहयोग मिल रहा है। मंदिर निर्माण भी अतिशीघ्र प्रारंभ होगा। 
कुणाल कहते हैं कि मंदिर के गर्भगृह से लेकर इसकी प्रतिकृति 28 एकड़ के दायरे में होगी। मंदिर के चारों ओर विशाल आंगन होगा तथा यहां पर्यटकों और श्रद्घालुओं के आने के लिए हैलीपैड का निर्माण कराया जाएगा। मंदिर की नींव अत्याधुनिक हैमर पाइलिंग सिस्टम से डाली जाएगी तथा निर्माण कार्य भूकंप के खतरे को ध्यान में रखकर होगा। 

पूरे मंदिर का निर्माण उत्तर प्रदेश के चुनार से मंगवाए गए लाल पत्थरों से होगा। इस विशालकाय और दर्शनीय मंदिर निर्माण में 30 लाख घनफुट गुलाबी पत्थर लगाया जाएगा। वह कहते हैं कि स्पेन के कारीगरों द्वारा मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्ति बनाई जाएगी जबकि मीनाकारी और नक्काशी के लिए राजस्थान से कारीगर बुलाए जाएंगे। 

मंदिर में आकर्षक गर्भगृह और गुंबद बनाने की योजना है। मंदिर के मंडप की ऊंचाई 270 फुट होगी। एक बड़े सिंहासननुमा चबूतरे पर 72 फुट के भगवान राम और सीता सहित सौ से अधिक देवी-देवताओं की प्रतिमाएं होंगी। मंदिर का निर्माण कार्य अगले पांच साल में पूरा होने की संभावना है। माना जा रहा है कि यह मंदिर देश के सभी मंदिरों से अलग और विशेष होगा। मान्यता है कि भगवान राम जब जनकपुर से सीता के साथ परिणय सूत्र में बंधन के बाद वापस लौट रहे थे तो चंपारण के पिपरा के नजदीक ही उनकी बारात रुकी थी।

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राम की अयोध्या बनी सियासत का कुरूक्षेत्र!

उत्तर प्रदेश में राम की नगरी अयोध्या एक बार सियासत का कुरूक्षेत्र बन गयी है। सियासत की इस अयोध्या रूपी बिसात पर विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) जहां अपनी 84 कोसी परिक्रमा को लेकर अडिग है वहीं राज्य सरकार ने भी इस परिक्रमा को रोकने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। 

विहिप और राज्य सरकार के टकराव के बीच अब इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भी कूद पड़ा है तो भारतीय जनता पार्टी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। आरएसएस के प्रवक्ता राम माधव ने इलाहाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान खुलेआम यह घोषणा कर दि कि आरएसएस भी संतों का पूरा सहयोग करेगा। संघ सूत्रों के मुताबिक 84 कोसी परिक्रमा जिन छह जिलों से गुजरनी है वहां संघ ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राम माधव ने कहा, राज्य सरकार यदि संतों से टकराएगी तो उसका सत्तामद चूर-चूर हो जाएगा।

माधव के बयान से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि विहिप के साथ ही संघ भी 84 कोसी परिक्रमा के बहाने अपनी खोई हुई जमीन हासिल करना चाहता है। संघ सूत्रों ने बताया कि संघ की शाखाएं पहले गांवों में खूब लगा करती थीं लेकिन बीते एक दशक में इतनी भारी कमी आयी है। संघ की पकड़ जैसे जैसे गावों से ढीली हुई वैसे-वैसे भाजपा का जनाधार भी घटता चला गया। 

विहिप के सूत्र बताते हैं कि 84 कोसी परिक्रमा पर प्रतिबंध लगने के बावजूद विहिप ने संतों की भीड़ जुटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। अयोध्या में लगने वाले सावन मेले में करीब 5 हजार से अधिक संत अन्य राज्यों से यहां आए हुए हैं। विहिप की रणनीति बाहर से आए उन संतांे को मठों में रोकना और परिक्रमा में शामिल होने का निवेदन करना है।

विहिप के प्रांतीय प्रवक्ता शरद शर्मा भी यह स्वीकार करते हैं कि मठ-मंदिरों में जाकर अयोध्या में होने वाली 84 कोसी परिक्रमा में शामिल होने का निवेदन किया जाएगा। उनके रहने का इंतजाम अलग अलग जगहों पर गांवों में किया जाएगा। लोग भी संतो के ठहरने की सूचना से काफी खुश हैं। इस बीच विहिप की रणनीति को भांपते हुए प्रशासन ने भी अयोध्या में लगे सावन मेले के समाप्त होने के साथ ही बाहर से आए साधु संतों को वापस भेजने की रणनीति तैयार कर रहा है। 

अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक स्थानीय प्रशासन इस दिशा में पहल कर रहा है और उसने कई टीमें गठित करने का फैसला किया है जो अलग अलग मठों में जाकर बाहर से आए संतों को वापस जाने का निवेदन करेगी। प्रशासन को भी इस बात का अंदाजा है कि बाहर से आए हजारों संत विहिप की ताकत बन सकते हैं।

सूत्रों ने यह भी बताया कि प्रशासन की ओर से खुफिया विभाग को भी भीड़ पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंपी है और अधिकारियों द्वारा उन जगहों को चिन्हित किया जा रहा है जहां आवश्यकता पड़ने पर अस्थायी जेलें बनायी जा सकें। इधर, 84 कोसी परिक्रमा को लेकर भाजपा ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा की तरफ से यही कहा जा रहा है कि परिक्रमा पर सरकार लोग नहीं सकती। विहिप का साथ देने के सवाल पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं, सरकार कुतर्कों के सहारे संतों की यात्रा रोक रही है। सरकार को संतों को परिक्रमा करने की इजाजत देनी चाहिए और सरकार को यात्रा की सुरक्षा का प्रबंध करना चाहिए ताकि सौहार्दपूर्ण वातावरण में यात्रा सम्पन्न हो सके।

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