पैगंबर मुहम्मद द्वारा बुरी धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों का विरोध करने पर तत्कालीन शासकों द्वारा उनको मक्का छोडने पर मजबूर किया गया, तब पैगंबर द्वारा इसी मदीना शहर को अपना ठिकाना बनाया गया। यहीं पर उन्होंने अल्लाह के पवित्र संदेशों को प्रथम बार लोगों तक पहुंचाया। मदीना का पूरा नाम \'मदीना रसूल अल्लाह\' है। जिसका अर्थ होता हैअल्लाह के दूत की नगरी। इसका छोटा रूप \'अल मदीना\' है जिसका अर्थ है नगर। मुस्लिम अनुयायी पैगंबर मुहम्मद के साथ हमेशा \'सल्ला अल्लाहु अलाही वा सल्लम\' जोड़ते हैं। इसलिए इन सभी शब्दों को जोड़कर यह स्थान \'मदीनात रसूल अल्लाह सल्ला अल्लाहु अलाही वा सल्लम\' के नाम से भी जाना जाता है। इसका सार यही है कि यह शांति और सुरक्षा की नगरी है।
इस्लाम धर्म के धर्मावलंबियों में मक्का के बाद मदीना दूसरा महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इस्लाम धर्म के अनुसार यह मुसलमानों की प्रथम राजधानी है। इसी नगर में देवदूत जिब्राइल उतरे थे। यह वह नगर है, जहां अल्लाह के दूत पैगंबर हजरत मुहम्मद ने आश्रय लेकर धर्म और समाज में पैदा हुए दोषों और अन्याय के विरोध में अल्लाह के पवित्र उपदेशों को फैलाया। इस प्रकार यहीं से जिहाद या धर्मयुध्द की शुरुआत हुई। मुसलमानों की आस्था यहां से इसलिए भी जुड़ी है कि यहीं पर पैगंबर ने अपने जीवन का अंतिम समय गुजारा और यहीं पर उनका निधन हुआ। यहां पैगंबर की समाधि भी है।
मदीना नगर ईस्वी सन् 622 में मुहम्मद हजरत के इस्लाम धर्म के प्रचार का प्रमुख स्थान रहा। पैगंबर द्वारा मक्का में चलाए गए धार्मिक और सामाजिक बुराइयों के विरोध के बाद शासकों द्वारा उनको प्रताड़ित करने से मक्का छोडने के बाद उनके अनुयायियों द्वारा मुहम्मद पैगंबर को \'यथरीब\' जो मदीने का पुराना नाम है, में मुखिया बनकर रहने को आमंत्रित किया गया। उन दिनों में मदीना भी अलग गुटों और धर्म में बंटा हुआ था। जिनके बीच आए दिन धार्मिक परंपराओं को लेकर झगड़े और कलह होते थे तब मुहम्मद हजरत ने इस स्थान को अपना घर बनाया और अल्लाह के पवित्र संदेशों और शिक्षाओं को यहां के लोगों तक पहुंचाया। जिससे सभी धर्म और गुटों के लोग आपस में समझौता कर हजरत मुहम्मद और उनके अनुयायियों द्वारा बताए गए इस्लाम धर्म का पालन करने को राजी हो गए।
उस वक्त मदीना में यहूदी बड़ी संख्या में रहते थे। पैगंबर मुहम्मद के लिए यहूदियों को इस बात के लिए तैयार करना कठिन था कि इस्लाम धर्म ही यहूदी धर्म का वास्तविक रूप है। फिर भी उन्होंने सभी का समर्थन प्राप्त कर मक्का की ओर चढ़ाई की और अंत में इस्लाम धर्म और उसमें विश्वास करने वालों की जीत हुई। इसी स्थान से पैगंबर ने मानवता और धर्म पालन के लिए सदैव जगत को एक हो जाने की प्रेरणा दी। उन्होंने मानवीय मूल्यों और आचरण की पवित्रता का महत्व बताया। उन्होंने संदेश दिया कि हर व्यक्ति को जीवन में ईश्वर के प्रति पूरा समर्पण रखकर बुराई से बचना चाहिए और अच्छाई को ही अपनाना चाहिए। पवित्र नगरी मदीना में पैगंबर मुहम्मद की \'अल-नबवी\' के नाम से प्रसिध्द मस्जिद स्थित है।
मस्जिद का निर्माण पैगंबर के घर के पास ही किया गया है, जहां उनको दफनाया गया था। इस्लाम धर्म की प्रथम मस्जिद जो \'मस्जिद अल कूबा\' के नाम से पूरे विश्व में प्रसिध्द है, यहीं स्थित है। इस्लाम धर्म के पहले चार खलीफा ने इस्लामी साम्राय का तेजी से विस्तार किया। बाद के समय में इस्लाम धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में यरूशलेम, दमिश्क शामिल हुए। चौथे खलीफा अली खलीफा की मृत्यु के बाद मदीना से हटकर दमिश्क बना दी गई। समय बीतने के साथ ही मदीना धार्मिक महत्व के साथ ही राजनीतिक महत्व का प्रमुख स्थान हो गया। किंतु पैगंबर हजरत मुहम्मद की धर्म और ईश्वर के प्रति निष्ठा के लिए यह स्थान चिर काल तक याद किया जाएगा।
इस्लाम धर्म के धर्मावलंबियों में मक्का के बाद मदीना दूसरा महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इस्लाम धर्म के अनुसार यह मुसलमानों की प्रथम राजधानी है। इसी नगर में देवदूत जिब्राइल उतरे थे। यह वह नगर है, जहां अल्लाह के दूत पैगंबर हजरत मुहम्मद ने आश्रय लेकर धर्म और समाज में पैदा हुए दोषों और अन्याय के विरोध में अल्लाह के पवित्र उपदेशों को फैलाया। इस प्रकार यहीं से जिहाद या धर्मयुध्द की शुरुआत हुई। मुसलमानों की आस्था यहां से इसलिए भी जुड़ी है कि यहीं पर पैगंबर ने अपने जीवन का अंतिम समय गुजारा और यहीं पर उनका निधन हुआ। यहां पैगंबर की समाधि भी है।
मदीना नगर ईस्वी सन् 622 में मुहम्मद हजरत के इस्लाम धर्म के प्रचार का प्रमुख स्थान रहा। पैगंबर द्वारा मक्का में चलाए गए धार्मिक और सामाजिक बुराइयों के विरोध के बाद शासकों द्वारा उनको प्रताड़ित करने से मक्का छोडने के बाद उनके अनुयायियों द्वारा मुहम्मद पैगंबर को \'यथरीब\' जो मदीने का पुराना नाम है, में मुखिया बनकर रहने को आमंत्रित किया गया। उन दिनों में मदीना भी अलग गुटों और धर्म में बंटा हुआ था। जिनके बीच आए दिन धार्मिक परंपराओं को लेकर झगड़े और कलह होते थे तब मुहम्मद हजरत ने इस स्थान को अपना घर बनाया और अल्लाह के पवित्र संदेशों और शिक्षाओं को यहां के लोगों तक पहुंचाया। जिससे सभी धर्म और गुटों के लोग आपस में समझौता कर हजरत मुहम्मद और उनके अनुयायियों द्वारा बताए गए इस्लाम धर्म का पालन करने को राजी हो गए।
उस वक्त मदीना में यहूदी बड़ी संख्या में रहते थे। पैगंबर मुहम्मद के लिए यहूदियों को इस बात के लिए तैयार करना कठिन था कि इस्लाम धर्म ही यहूदी धर्म का वास्तविक रूप है। फिर भी उन्होंने सभी का समर्थन प्राप्त कर मक्का की ओर चढ़ाई की और अंत में इस्लाम धर्म और उसमें विश्वास करने वालों की जीत हुई। इसी स्थान से पैगंबर ने मानवता और धर्म पालन के लिए सदैव जगत को एक हो जाने की प्रेरणा दी। उन्होंने मानवीय मूल्यों और आचरण की पवित्रता का महत्व बताया। उन्होंने संदेश दिया कि हर व्यक्ति को जीवन में ईश्वर के प्रति पूरा समर्पण रखकर बुराई से बचना चाहिए और अच्छाई को ही अपनाना चाहिए। पवित्र नगरी मदीना में पैगंबर मुहम्मद की \'अल-नबवी\' के नाम से प्रसिध्द मस्जिद स्थित है।
मस्जिद का निर्माण पैगंबर के घर के पास ही किया गया है, जहां उनको दफनाया गया था। इस्लाम धर्म की प्रथम मस्जिद जो \'मस्जिद अल कूबा\' के नाम से पूरे विश्व में प्रसिध्द है, यहीं स्थित है। इस्लाम धर्म के पहले चार खलीफा ने इस्लामी साम्राय का तेजी से विस्तार किया। बाद के समय में इस्लाम धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में यरूशलेम, दमिश्क शामिल हुए। चौथे खलीफा अली खलीफा की मृत्यु के बाद मदीना से हटकर दमिश्क बना दी गई। समय बीतने के साथ ही मदीना धार्मिक महत्व के साथ ही राजनीतिक महत्व का प्रमुख स्थान हो गया। किंतु पैगंबर हजरत मुहम्मद की धर्म और ईश्वर के प्रति निष्ठा के लिए यह स्थान चिर काल तक याद किया जाएगा।
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