मुनस्यारी मैं कुदरत अपने आँचल में तमाम खूबसूरत नजारों के साथ अमूल्य पेड़-पौधे व तमाम जड़ी-बूटीओं को छुपाए हुए है, उत्तराखंड के जिले पिथौरागढ़ के एक हिस्से मुनस्यारी पर कुदरत खास मेहरबान है. इसकी इन्हीं खूबिओं की वजह से स्थानीय लोग मुनस्यारी के लिए ' सात संसार, इक मुनस्यारी' की कहावत का प्रयोग करते हैं. मुनस्यारी एक विस्तृत क्षेत्र है, जहाँ शंखधुरा, नानासैण, जेती, जल्थ, सुरंगी, शर्मेली व गोड़ीपार जैसे छोटे-छोटे गाँव हैं और इन्हीं गांवो के ठीक नीचे कल-कल करती गौरी गंगा नदी बहती है.
लोगों का मानना है कि इस नदी में गंधक का पानी है। यही वजह है कि इसके पानी में औषधीय गुण बताए जाते हैं और माना जाता है कि इसमें नहाने से त्वचा संबंधी तकलीफें दूर होती हैं।
यहां से हिमालय की सफेद ऊंची चोटियां बेहद साफ नजर आती हैं। साफ व सुहावने मौसम में यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारों को देख पर्यटक पलक तक झपकना भूल जाते हैं। वैसे, मुनस्यारी उगते व डूबते सूरज के मोहक नजारों के लिए भी मशहूर है।
मुनस्यारी आने पर पर्यटक खलिया टॉप पर ना जाएं, यह तो नामुमकिन है। हालांकि यहां पहुंचने के लिए एकदम सीधी चढ़ाई चढ़ने की हिम्मत भी जुटानी होती है। वैसे, यहां पहुंचने के बाद पंचौली चोटियों को एकदम साफ देखा जा सकता है। ऐसा लगता है कि मानो ये चोटियां नहीं, बल्कि पांच चिमनियां हों। कहा जाता है कि स्वर्ग की ओर बढ़ने से पहले पांडवों ने आखिरी बार पंचौली में ही खाना बनाया था।
इनमें दिलचस्पी रखने वालों के लिए भी यह जगह बेहतरीन है। यहां आमतौर पर दिखाई देने वाले पक्षी विस्लिंग थ्रस, वेगटेल, हॉक कूकू, फॉल्कोन और सपर्ेंट ईगल वगैरह हैं। तो मुनस्यारी के जंगल शेर, चीते, कस्तूरी मृग और पर्वतीय भालू का घर कहे जाते हैं।
एक ओर जहां क्षेत्र की 'गौरी घाटी' ट्रेकिंग के लिए स्वर्ग कही जाती है, वहीं गौरी गंगा में रॉफ्टिंग के रोमांच को करीब से महसूस किया जा सकता है। इसके अलावा सर्दियों में यहां खलिया टॉप और बेतुलीधार पर पहुंच कर भी प्रकृति का भरपूर आनंद लिया जा सकता है। मुनस्यारी से मिलम, नामीक, रालम ग्लेशियर वगैरह काफी नजदीक हैं। इसके पास जोहार घाटी है, जो किसी समय तिब्बत के साथ व्यापार करने का रूट हुआ करता था। ध्यान रखें कि आज इस रूट पर आगे बढ़ने के लिए आपको पूर्व अनुमति लेनी होती है। अगर आप किसी व्यावसायिक ट्रैक समूह के साथ हैं, तो उनके पास पहले से ही अनुमति रहती है।
मुनस्यारी से 5 किमी पर कालामुनि डांडा में एक प्रसिध्द मां दुर्गा मंदिर है, जिसमें लोगों की गहरी श्रध्दा है। पर्यटक भी इस मंदिर में जरूर जाते हैं। नवरात्रों में यहां के उल्का देवी मंदिर में एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसे मिलकुटिया का मेला कहा जाता है। यहां दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। नौ दिन तक यहां सिर्फ ढोल, वाद्य यंत्र व नगाड़ों की भक्तिमय गूंज सुनाई देती है। दिल्ली से मुनस्यारी करीब 590 किमी दूर हैं, वहीं काठगोदाम से इसकी दूरी 314 किमी रह जाती है, जो यहां पहुंचने के लिए करीबी रेलवे स्टेशन भी है। यहां से आगे के लिए आपको बस व टैक्सी असानी से मिल जाती हैं। पिथौरागढ़ के नैनी सैनी में एक छोटा सा हवाई अड्डा है|
लोगों का मानना है कि इस नदी में गंधक का पानी है। यही वजह है कि इसके पानी में औषधीय गुण बताए जाते हैं और माना जाता है कि इसमें नहाने से त्वचा संबंधी तकलीफें दूर होती हैं।
यहां से हिमालय की सफेद ऊंची चोटियां बेहद साफ नजर आती हैं। साफ व सुहावने मौसम में यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारों को देख पर्यटक पलक तक झपकना भूल जाते हैं। वैसे, मुनस्यारी उगते व डूबते सूरज के मोहक नजारों के लिए भी मशहूर है।
मुनस्यारी आने पर पर्यटक खलिया टॉप पर ना जाएं, यह तो नामुमकिन है। हालांकि यहां पहुंचने के लिए एकदम सीधी चढ़ाई चढ़ने की हिम्मत भी जुटानी होती है। वैसे, यहां पहुंचने के बाद पंचौली चोटियों को एकदम साफ देखा जा सकता है। ऐसा लगता है कि मानो ये चोटियां नहीं, बल्कि पांच चिमनियां हों। कहा जाता है कि स्वर्ग की ओर बढ़ने से पहले पांडवों ने आखिरी बार पंचौली में ही खाना बनाया था।
इनमें दिलचस्पी रखने वालों के लिए भी यह जगह बेहतरीन है। यहां आमतौर पर दिखाई देने वाले पक्षी विस्लिंग थ्रस, वेगटेल, हॉक कूकू, फॉल्कोन और सपर्ेंट ईगल वगैरह हैं। तो मुनस्यारी के जंगल शेर, चीते, कस्तूरी मृग और पर्वतीय भालू का घर कहे जाते हैं।
एक ओर जहां क्षेत्र की 'गौरी घाटी' ट्रेकिंग के लिए स्वर्ग कही जाती है, वहीं गौरी गंगा में रॉफ्टिंग के रोमांच को करीब से महसूस किया जा सकता है। इसके अलावा सर्दियों में यहां खलिया टॉप और बेतुलीधार पर पहुंच कर भी प्रकृति का भरपूर आनंद लिया जा सकता है। मुनस्यारी से मिलम, नामीक, रालम ग्लेशियर वगैरह काफी नजदीक हैं। इसके पास जोहार घाटी है, जो किसी समय तिब्बत के साथ व्यापार करने का रूट हुआ करता था। ध्यान रखें कि आज इस रूट पर आगे बढ़ने के लिए आपको पूर्व अनुमति लेनी होती है। अगर आप किसी व्यावसायिक ट्रैक समूह के साथ हैं, तो उनके पास पहले से ही अनुमति रहती है।
मुनस्यारी से 5 किमी पर कालामुनि डांडा में एक प्रसिध्द मां दुर्गा मंदिर है, जिसमें लोगों की गहरी श्रध्दा है। पर्यटक भी इस मंदिर में जरूर जाते हैं। नवरात्रों में यहां के उल्का देवी मंदिर में एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसे मिलकुटिया का मेला कहा जाता है। यहां दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। नौ दिन तक यहां सिर्फ ढोल, वाद्य यंत्र व नगाड़ों की भक्तिमय गूंज सुनाई देती है। दिल्ली से मुनस्यारी करीब 590 किमी दूर हैं, वहीं काठगोदाम से इसकी दूरी 314 किमी रह जाती है, जो यहां पहुंचने के लिए करीबी रेलवे स्टेशन भी है। यहां से आगे के लिए आपको बस व टैक्सी असानी से मिल जाती हैं। पिथौरागढ़ के नैनी सैनी में एक छोटा सा हवाई अड्डा है|
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