माघ पूर्णिमा हिन्दुओं के सबसे पवित्र माने जाने वाली पूर्णिमाओं में से एक है| इस बार माघ मास की पूर्णिमा 7 फरवरी मंगलवार को पड़ रही है| मान्यता है कि माघ मास की पूर्णिमा को गंगा स्नान करने से मनुष्य का तन-मन पवित्र हो जाता है| माघी पूर्णिमा में किसी नदी,सरोवर, कुण्ड अथवा जलाशय में सूर्य के उदित होने से पहले स्नान करने मात्र से ही पाप धुल जाते हैं और हृदय शुद्ध होता है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि व्रत, दान और तप से भगवान विष्णु को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघी पूर्णिमा में स्नान करने मात्र से होती है। यह स्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है| इस समय ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए स्नान व दान करना चाहिए|
माघी पूर्णिमा में पूजा की विधि-
माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है| सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है| सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है|
माघ मास को बत्तीसी पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन अन्न दान और वस्त्रदान का बड़ा ही महत्व है। इस तिथि को स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। श्री हरि की पूजा के पश्चात यथा संभव अन्नदान किया जाता है अथवा भूखों को भरपेट भोजन कराया जाता है। ब्रह्मणों एवं पुरोहितों को यथा संभव श्रद्धा पूर्वक दान दे उनका आशीर्वाद लिया जाता है। शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन अन्न दान और वस्त्रदान का बड़ा ही महत्व है| इस तिथि को गंगा स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करें| श्री हरि की पूजा के पश्चात यथा संभव अन्नदान करें अथवा भूखों को भरपेट भोजन कराए| ब्रह्मणों एवं पुरोहितों को यथा संभव श्रद्धा पूर्वक दान दें और उनका आशीर्वाद लें, इसके बाद आप स्वयं भोजन करें|
शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा कर सकते हैं| जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं| समदर्शी भक्तों के प्रति भगवान शंकर और विष्णु दोनों ही प्रेम रखते हैं अत: गंगा के जल से शिव और विष्णु की पूजा करना परम कल्याणकारी माना गया है|
माघी पूर्णिमा का महत्व:-
हिन्दु धर्म पंचांग के ग्यारह-वें महीने ‘माघ’ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व होता है इस महीने कि पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा मघा नक्षत्र में होता है जिस कारण इसे माघ कहा जाता है| माघ मास की पूर्णिमा की विशेषता है कि इसमें जहां-कहीं भी स्वच्छ जल हो, वह गंगाजल के समान गुणकारी हो जाता है। जिन्हें प्रयाग, काशी, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, नैमिषारण्य, मथुरा, अवंतिका (उज्जैन) आदि किसी तीर्थ में माघ-स्नान का सुअवसर प्राप्त होगा, वे निश्चय ही सौभाग्यशाली हैं। किंतु जो श्रद्धालु किन्ही कारणों से बाहर नहीं जा सकते, वे साफ जल को किसी बाल्टी में भरकर उसमें आंवले और तुलसीदल का चूर्ण मिला दें और उससे स्नान करें।
पुरातन मान्यता है कि गंगा में जहां कही भी स्नान किया जाए वे कुरुक्षेत्र के समान फल देने वाली हैं। जिनका चित्त पाप से दूषित है, ऐसे समस्त प्राणियों और मनुष्यों की गंगा के अलावा अन्यत्र कहीं दूसरा स्थान नहीं है। भगवान शंकर के मस्तक से निकली हुई गंगा सब पापों का हरण करने वाली शुभ फल देने वाली हैं। वे पापियों को भी पवित्र कर उनका उद्धार करने वाली हैं।
आपको बता दें कि पूर्णिमा में प्रात:स्नान, यथाशक्ति दान तथा सहस्त्र नाम अथवा किसी स्तोत्र द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से यह अनुष्ठान पूरा होता है। यदि किसी कामना की पूर्ति के उद्देश्य से माघ-स्नान किया जाए, तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। निष्काम भाव से माघ-स्नान मोक्ष प्रदायक है। माघ-स्नान से समस्त पाप-ताप-शाप नष्ट हो जाते हैं। माघ-स्नान के व्रती स्त्री-पुरुष को नित्य कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए।
माघी पूर्णिमा में दान का महत्व:-
माघ मास की पूर्णिमा के दिन स्नान व व्रत रखने से विशेष पुण्य मिलता है ऐसा धर्मशास्त्रों में वर्णित है। सुबह नित्यकर्म एवं स्नान आदि से निपट कर भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें। फिर पितरों का श्राद्ध करें। गरीबों को भोजन तथा वस्त्र दान दें। तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, मोदक, जूते, फल, अन्न और यथाशक्ति सोना, चांदी आदि का दान भी दें तथा पूरे दिन का व्रत रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सत्संग एवं कथा कीर्तन में दिन-भर बिताकर दूसरे दिन पारण करें।
माघ शुक्ल पूर्णिमा को यदि शनि मेष राशि पर, गुरु और चंद्रमा सिंह राशि पर तथा सूर्य श्रवण नक्षत्र पर हों तो महामाघी पूर्णिमा का योग होता है। यह तिथि स्नान तथा दान के लिए अक्षय फलदायिनी होती है।
माघ मास की धार्मिक मान्यता:-
शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है | इसके सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस तिथि में भगवान नारायण क्षीर सागर में विराजते हैं तथा गंगा जी क्षीर सागर का ही रूप है| धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है| यह महीना जप-तप व संयम का महीना माना गया है इस महीने तामसी प्रवृत्ति के लोग भी सात्विकता को अपना लेते हैं, ऋषि मुनियों ने भी माघ मास में मांस भक्षण को निषिद्व कहा है|
माघी पूर्णिमा में पूजा की विधि-
माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है| सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है| सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है|
माघ मास को बत्तीसी पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन अन्न दान और वस्त्रदान का बड़ा ही महत्व है। इस तिथि को स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। श्री हरि की पूजा के पश्चात यथा संभव अन्नदान किया जाता है अथवा भूखों को भरपेट भोजन कराया जाता है। ब्रह्मणों एवं पुरोहितों को यथा संभव श्रद्धा पूर्वक दान दे उनका आशीर्वाद लिया जाता है। शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन अन्न दान और वस्त्रदान का बड़ा ही महत्व है| इस तिथि को गंगा स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करें| श्री हरि की पूजा के पश्चात यथा संभव अन्नदान करें अथवा भूखों को भरपेट भोजन कराए| ब्रह्मणों एवं पुरोहितों को यथा संभव श्रद्धा पूर्वक दान दें और उनका आशीर्वाद लें, इसके बाद आप स्वयं भोजन करें|
शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा कर सकते हैं| जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं| समदर्शी भक्तों के प्रति भगवान शंकर और विष्णु दोनों ही प्रेम रखते हैं अत: गंगा के जल से शिव और विष्णु की पूजा करना परम कल्याणकारी माना गया है|
माघी पूर्णिमा का महत्व:-
हिन्दु धर्म पंचांग के ग्यारह-वें महीने ‘माघ’ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व होता है इस महीने कि पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा मघा नक्षत्र में होता है जिस कारण इसे माघ कहा जाता है| माघ मास की पूर्णिमा की विशेषता है कि इसमें जहां-कहीं भी स्वच्छ जल हो, वह गंगाजल के समान गुणकारी हो जाता है। जिन्हें प्रयाग, काशी, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, नैमिषारण्य, मथुरा, अवंतिका (उज्जैन) आदि किसी तीर्थ में माघ-स्नान का सुअवसर प्राप्त होगा, वे निश्चय ही सौभाग्यशाली हैं। किंतु जो श्रद्धालु किन्ही कारणों से बाहर नहीं जा सकते, वे साफ जल को किसी बाल्टी में भरकर उसमें आंवले और तुलसीदल का चूर्ण मिला दें और उससे स्नान करें।
पुरातन मान्यता है कि गंगा में जहां कही भी स्नान किया जाए वे कुरुक्षेत्र के समान फल देने वाली हैं। जिनका चित्त पाप से दूषित है, ऐसे समस्त प्राणियों और मनुष्यों की गंगा के अलावा अन्यत्र कहीं दूसरा स्थान नहीं है। भगवान शंकर के मस्तक से निकली हुई गंगा सब पापों का हरण करने वाली शुभ फल देने वाली हैं। वे पापियों को भी पवित्र कर उनका उद्धार करने वाली हैं।
आपको बता दें कि पूर्णिमा में प्रात:स्नान, यथाशक्ति दान तथा सहस्त्र नाम अथवा किसी स्तोत्र द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से यह अनुष्ठान पूरा होता है। यदि किसी कामना की पूर्ति के उद्देश्य से माघ-स्नान किया जाए, तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। निष्काम भाव से माघ-स्नान मोक्ष प्रदायक है। माघ-स्नान से समस्त पाप-ताप-शाप नष्ट हो जाते हैं। माघ-स्नान के व्रती स्त्री-पुरुष को नित्य कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए।
माघी पूर्णिमा में दान का महत्व:-
माघ मास की पूर्णिमा के दिन स्नान व व्रत रखने से विशेष पुण्य मिलता है ऐसा धर्मशास्त्रों में वर्णित है। सुबह नित्यकर्म एवं स्नान आदि से निपट कर भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें। फिर पितरों का श्राद्ध करें। गरीबों को भोजन तथा वस्त्र दान दें। तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, मोदक, जूते, फल, अन्न और यथाशक्ति सोना, चांदी आदि का दान भी दें तथा पूरे दिन का व्रत रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सत्संग एवं कथा कीर्तन में दिन-भर बिताकर दूसरे दिन पारण करें।
माघ शुक्ल पूर्णिमा को यदि शनि मेष राशि पर, गुरु और चंद्रमा सिंह राशि पर तथा सूर्य श्रवण नक्षत्र पर हों तो महामाघी पूर्णिमा का योग होता है। यह तिथि स्नान तथा दान के लिए अक्षय फलदायिनी होती है।
माघ मास की धार्मिक मान्यता:-
शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है | इसके सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस तिथि में भगवान नारायण क्षीर सागर में विराजते हैं तथा गंगा जी क्षीर सागर का ही रूप है| धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है| यह महीना जप-तप व संयम का महीना माना गया है इस महीने तामसी प्रवृत्ति के लोग भी सात्विकता को अपना लेते हैं, ऋषि मुनियों ने भी माघ मास में मांस भक्षण को निषिद्व कहा है|
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