साढ़े साती और काल सर्प योग का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं| इनके प्रति लोगों के मन में जो भय बना हुआ है इसका फायदा उठाकर बहुत से ज्योतिषी लोगों को लूट रहे हैं| बात करें काल सर्प योग की तो इसके भी कई रूप और नाम हैं| काल सर्प को दोष नहीं बल्कि योग कहना चाहिये|
काल सर्प का सामान्य अर्थ यह है कि जब ग्रह स्थिति आएगी तब सर्प दंश के समान कष्ट होगा| पुराने समय राहु तथा अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर काल सर्प का आंकलन किया जाता था| आज ज्योतिष शास्त्र को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करने के लिए नये नये शोध हो रहे हैं| इन शोधो से कालसर्प योग की परिभाषा और इसके विभिन्न रूप एवं नाम के विषय में भी जानकारी मिलती है| वर्तमान समय में कालसर्प योग की जो परिभाषा दी गई है उसके अनुसार जन्म कुण्डली में सभी ग्रह राहु केतु के बीच में हों या केतु राहु के बीच में हों तो काल सर्प योग बनता है|
कालसर्प योग के नाम-
ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक भाव के लिए अलग अलग कालसर्प योग के नाम दिये गये हैं| इन काल सर्प योगों के प्रभाव में भी काफी कुछ अंतर पाया जाता है जैसे प्रथम भाव में कालसर्प योग होने पर अनन्त काल सर्प योग बनता है|
अनन्त कालसर्प योग -
जब प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु होता है तब यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित होने पर व्यक्ति को शारीरिक और, मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है साथ ही सरकारी व अदालती मामलों में उलझना पड़ता है| इस योग में अच्छी बात यह है कि इससे प्रभावित व्यक्ति साहसी, निडर, स्वतंत्र विचारों वाला एवं स्वाभिमानी होता है|
कुलिक काल सर्प योग -
द्वितीय भाव में जब राहु होता है और आठवें घर में केतु तब कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है| इस कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक काष्ट भोगना होता है| इनकी पारिवारिक स्थिति भी संघर्षमय और कलह पूर्ण होती है| सामाजिक तौर पर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती|
वासुकि कालसर्प योग -
जन्म कुण्डली में जब तृतीय भाव में राहु होता है और नवम भाव में केतु तब वासुकि कालसर्प योग बनता है| इस कालसर्प योग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहता है और नौकरी व्यवसाय में परेशानी बनी रहती है| इन्हें भाग्य का साथ नहीं मिल पाता है व परिजनों एवं मित्रों से धोखा मिलने की संभावना रहती है|
शंखपाल कालसर्प योग-
राहु जब कुण्डली में चतुर्थ स्थान पर हो और केतु दशम भाव में तब यह योग बनता है| इस कालसर्प से पीड़ित होने पर व्यक्ति को आंर्थिक तंगी का सामना करना होता है| इन्हें मानसिक तनाव का सामना करना होता है| इन्हें अपनी मां, ज़मीन, परिजनों के मामले में कष्ट भोगना होता है|
पद्म कालसर्प योग-
पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु होने पर यह कालसर्प योग बनता है| इस योग में व्यक्ति को अपयश मिलने की संभावना रहती है| व्यक्ति को यौन रोग के कारण संतान सुख मिलना कठिन होता है| उच्च शिक्षा में बाधा, धन लाभ में रूकावट व वृद्धावस्था में सन्यास की प्रवृत होने भी इस योग का प्रभाव होता है|
महापद्म कालसर्प योग -
जिस व्यक्ति की कुण्डली में छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु होता है वह महापद्म कालसर्प योग से प्रभावित होता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति मामा की ओर से कष्ट पाता है एवं निराशा के कारण व्यस्नों का शिकार हो जाता है| इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है| प्रेम के ममलें में ये दुर्भाग्यशाली होते हैं|
तक्षक कालसर्प योग-
तक्षक कालसर्प योग की स्थिति अनन्त कालसर्प योग के ठीक विपरीत होती है| इस योग में केतु लग्न में होता है और राहु सप्तम में| इस योग में वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है| कारोबार में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और मानसिक परेशानी देती है|
शंखचूड़ कालसर्प योग-
तृतीय भाव में केतु और नवम भाव में राहु होने पर यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में सुखों को भोग नहीं पाता है| इन्हें पिता का सुख नहीं मिलता है| इन्हें अपने कारोबार में अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है|
घातक कालसर्प योग -
कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु और दशम भाव में राहु के होने से घातक कालसर्प योग बनता है| इस योग से गृहस्थी में कलह और अशांति बनी रहती है| नौकरी एवं रोजगार के क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना होता है|
विषधर कालसर्प योग -
केतु जब पंचम भाव में होता है और राहु एकादश में तब यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति को अपनी संतान से कष्ट होता है| इन्हें नेत्र एवं हृदय में परेशानियों का सामना करना होता है| इनकी स्मरण शक्ति अच्छी नहीं होती| उच्च शिक्षा में रूकावट एवं सामाजिक मान प्रतिष्ठा में कमी भी इस योग के लक्षण हैं|
शेषनाग कालसर्प योग -
व्यक्ति की कुण्डली में जब छठे भाव में केतु आता है तथा बारहवें स्थान पर राहु तब यह योग बनता है| इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु होते हैं जो इनके विरूद्ध षड्यंत्र करते हैं| इन्हें अदालती मामलो में उलझना पड़ता है| मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में सहनी पड़ती है| इस योग में एक अच्छी बात यह है कि मृत्यु के बाद इनकी ख्याति फैलती है| अगर आपकी कुण्डली में है तो इसके लिए अधिक परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं है| काल सर्प योग के साथ कुण्डली में उपस्थित अन्य ग्रहों के योग का भी काफी महत्व होता है| आपकी कुण्डली में मौजूद अन्य ग्रह योग उत्तम हैं तो संभव है कि आपको इसका दुखद प्रभाव अधिक नहीं भोगना पड़े और आपके साथ सब कुछ अच्छा हो|
काल सर्प का सामान्य अर्थ यह है कि जब ग्रह स्थिति आएगी तब सर्प दंश के समान कष्ट होगा| पुराने समय राहु तथा अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर काल सर्प का आंकलन किया जाता था| आज ज्योतिष शास्त्र को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करने के लिए नये नये शोध हो रहे हैं| इन शोधो से कालसर्प योग की परिभाषा और इसके विभिन्न रूप एवं नाम के विषय में भी जानकारी मिलती है| वर्तमान समय में कालसर्प योग की जो परिभाषा दी गई है उसके अनुसार जन्म कुण्डली में सभी ग्रह राहु केतु के बीच में हों या केतु राहु के बीच में हों तो काल सर्प योग बनता है|
कालसर्प योग के नाम-
ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक भाव के लिए अलग अलग कालसर्प योग के नाम दिये गये हैं| इन काल सर्प योगों के प्रभाव में भी काफी कुछ अंतर पाया जाता है जैसे प्रथम भाव में कालसर्प योग होने पर अनन्त काल सर्प योग बनता है|
अनन्त कालसर्प योग -
जब प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु होता है तब यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित होने पर व्यक्ति को शारीरिक और, मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है साथ ही सरकारी व अदालती मामलों में उलझना पड़ता है| इस योग में अच्छी बात यह है कि इससे प्रभावित व्यक्ति साहसी, निडर, स्वतंत्र विचारों वाला एवं स्वाभिमानी होता है|
कुलिक काल सर्प योग -
द्वितीय भाव में जब राहु होता है और आठवें घर में केतु तब कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है| इस कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक काष्ट भोगना होता है| इनकी पारिवारिक स्थिति भी संघर्षमय और कलह पूर्ण होती है| सामाजिक तौर पर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती|
वासुकि कालसर्प योग -
जन्म कुण्डली में जब तृतीय भाव में राहु होता है और नवम भाव में केतु तब वासुकि कालसर्प योग बनता है| इस कालसर्प योग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहता है और नौकरी व्यवसाय में परेशानी बनी रहती है| इन्हें भाग्य का साथ नहीं मिल पाता है व परिजनों एवं मित्रों से धोखा मिलने की संभावना रहती है|
शंखपाल कालसर्प योग-
राहु जब कुण्डली में चतुर्थ स्थान पर हो और केतु दशम भाव में तब यह योग बनता है| इस कालसर्प से पीड़ित होने पर व्यक्ति को आंर्थिक तंगी का सामना करना होता है| इन्हें मानसिक तनाव का सामना करना होता है| इन्हें अपनी मां, ज़मीन, परिजनों के मामले में कष्ट भोगना होता है|
पद्म कालसर्प योग-
पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु होने पर यह कालसर्प योग बनता है| इस योग में व्यक्ति को अपयश मिलने की संभावना रहती है| व्यक्ति को यौन रोग के कारण संतान सुख मिलना कठिन होता है| उच्च शिक्षा में बाधा, धन लाभ में रूकावट व वृद्धावस्था में सन्यास की प्रवृत होने भी इस योग का प्रभाव होता है|
महापद्म कालसर्प योग -
जिस व्यक्ति की कुण्डली में छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु होता है वह महापद्म कालसर्प योग से प्रभावित होता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति मामा की ओर से कष्ट पाता है एवं निराशा के कारण व्यस्नों का शिकार हो जाता है| इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है| प्रेम के ममलें में ये दुर्भाग्यशाली होते हैं|
तक्षक कालसर्प योग-
तक्षक कालसर्प योग की स्थिति अनन्त कालसर्प योग के ठीक विपरीत होती है| इस योग में केतु लग्न में होता है और राहु सप्तम में| इस योग में वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है| कारोबार में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और मानसिक परेशानी देती है|
शंखचूड़ कालसर्प योग-
तृतीय भाव में केतु और नवम भाव में राहु होने पर यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में सुखों को भोग नहीं पाता है| इन्हें पिता का सुख नहीं मिलता है| इन्हें अपने कारोबार में अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है|
घातक कालसर्प योग -
कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु और दशम भाव में राहु के होने से घातक कालसर्प योग बनता है| इस योग से गृहस्थी में कलह और अशांति बनी रहती है| नौकरी एवं रोजगार के क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना होता है|
विषधर कालसर्प योग -
केतु जब पंचम भाव में होता है और राहु एकादश में तब यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति को अपनी संतान से कष्ट होता है| इन्हें नेत्र एवं हृदय में परेशानियों का सामना करना होता है| इनकी स्मरण शक्ति अच्छी नहीं होती| उच्च शिक्षा में रूकावट एवं सामाजिक मान प्रतिष्ठा में कमी भी इस योग के लक्षण हैं|
शेषनाग कालसर्प योग -
व्यक्ति की कुण्डली में जब छठे भाव में केतु आता है तथा बारहवें स्थान पर राहु तब यह योग बनता है| इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु होते हैं जो इनके विरूद्ध षड्यंत्र करते हैं| इन्हें अदालती मामलो में उलझना पड़ता है| मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में सहनी पड़ती है| इस योग में एक अच्छी बात यह है कि मृत्यु के बाद इनकी ख्याति फैलती है| अगर आपकी कुण्डली में है तो इसके लिए अधिक परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं है| काल सर्प योग के साथ कुण्डली में उपस्थित अन्य ग्रहों के योग का भी काफी महत्व होता है| आपकी कुण्डली में मौजूद अन्य ग्रह योग उत्तम हैं तो संभव है कि आपको इसका दुखद प्रभाव अधिक नहीं भोगना पड़े और आपके साथ सब कुछ अच्छा हो|
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