बिहार के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है पूर्वी चंपारण। पूर्वी चंपारण से 28 किलोमीटर दूर स्थित अरेराज के सोमेश्वरनाथ मंदिर की स्थापना राजा सोम ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नाम सोमेश्वरनाथ पड़ा।
इस मंदिर में सावन माह के अलावा अन्य महीनों में भी श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। यहां वर्ष में मुख्यत: छह प्रसिद्ध मेले लगते हैं, इस दौरान एक दिन में लाख से अधिक कांवरिये जलाभिषेक करते हैं। आपको बता दें कि सोनेश्वरनाथ मंदिर की दक्षिण दिशा में निर्जन टीले पर बटुक भैरों स्थान, पश्चिम में जलपा भवानी व अकालदेव महादेव, उत्तर में मसान माई का स्थान है।
सोनेश्वरनाथ मंदिर के विषय में यह मान्यता है कि त्रेता युग में सूर्यवंशी राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम और महाभारत काल में कौरवों द्वारा दिए गए वनवास की पीड़ा झेल रहे कुंती पुत्र युद्धिष्ठिर ने भी अपने समस्त बंधु-बांधवों के साथ पंचमुखी शिवलिंग की पूजा की थी। इसी क्रम में भगवान राम ने महादेव मंदिर से माता पार्वती के मंदिर तक लाल वस्त्र की पगडी टंगवाई थी। तब से आज तक यहां परंपरा कायम है।
यहाँ के निवासियों का मानना है कि सोमेश्वरनाथ मंदिर का विकास व स्थानीय क्षेत्र के उत्थान में पूर्व के महंत स्व. शिवशंकर गिरि का बहुत बडा योगदान रहा है।
इस मंदिर में सावन माह के अलावा अन्य महीनों में भी श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। यहां वर्ष में मुख्यत: छह प्रसिद्ध मेले लगते हैं, इस दौरान एक दिन में लाख से अधिक कांवरिये जलाभिषेक करते हैं। आपको बता दें कि सोनेश्वरनाथ मंदिर की दक्षिण दिशा में निर्जन टीले पर बटुक भैरों स्थान, पश्चिम में जलपा भवानी व अकालदेव महादेव, उत्तर में मसान माई का स्थान है।
सोनेश्वरनाथ मंदिर के विषय में यह मान्यता है कि त्रेता युग में सूर्यवंशी राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम और महाभारत काल में कौरवों द्वारा दिए गए वनवास की पीड़ा झेल रहे कुंती पुत्र युद्धिष्ठिर ने भी अपने समस्त बंधु-बांधवों के साथ पंचमुखी शिवलिंग की पूजा की थी। इसी क्रम में भगवान राम ने महादेव मंदिर से माता पार्वती के मंदिर तक लाल वस्त्र की पगडी टंगवाई थी। तब से आज तक यहां परंपरा कायम है।
यहाँ के निवासियों का मानना है कि सोमेश्वरनाथ मंदिर का विकास व स्थानीय क्षेत्र के उत्थान में पूर्व के महंत स्व. शिवशंकर गिरि का बहुत बडा योगदान रहा है।
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