दुनिया के 7 अजूबों में एक है चीन की दीवार


आज से हजारों वर्ष पहले जब मान और माल की रक्षा का इतना उत्तम प्रबंध न था, मनुष्यों को हर समय चोर, डाकुओं तथा शत्रुओं का डर बना रहता था। इसलिए उन दिनों लोग अपने रहने के मकान मजबूत और ऊंचे बनाते थे और नगरों को रक्षा के लिए चहारदीवारी से घेर लेते थे। 

चहारदीवारी में आने-जाने के लिए खास-खास स्थानों पर मजबूत दरवाजे बनाते थे। इन दरवाजों की सुरक्षा के लिए सिपाहियों का कड़ा पहरा रहता था। ये दरवाजे रात के समय बंद कर दिए जाते थे।

आज भी भारत के बहुत-से नगरों के चारों ओर चहारदीवारी दिखाई देती है। प्राचीनकाल में क्रूर और अत्याचारी तातार लोग चीन के उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम से इस देश पर बहुधा आक्रमण करते रहते थे। ये लोग चीन में मनमानी लूट-मार मचाते थे। इन लोगों से तंग आकर चीन के निवासियों ने अपनी रक्षा के लिए यह अचरज में डालने वाली मजबूत तथा ऊंची दीवार बनाई थी।

यह दीवार ईसा के जन्म से 204 वर्ष पूर्व बननी आरंभ हुई थी। इसकी लंबाई 1500 मील है, किंतु सारी दीवार एक साथ नहीं, थोड़ी-थोड़ी करके बनी थी। इस दीवार की नींव 15 से 25 फुट चौड़ी है, लेकिर ऊपर आकर 12 फुट रह गई है। ऊंचाई 20 से 30 फुट तक है। दो-दो सौ गज की दूरी पर 40 फुट ऊंची मीनारें बनाई गई हैं। भिन्न-भिन्न ऊंचाइयां रखने का यही कारण है कि कहीं दीवार नीची घाटियों पर बनी है तो कहीं इसके नीचे पहाड़ आ गए हैं। कहीं-कहीं तो यह समुद्र के धरातल से 4000 फुट ऊंची है।

यह दीवार चीन और मंचूरिया की सीमा पर समुद्र के किनारे पेकिंग (आजकल का बीजिंग) नगर से आरंभ होकर दक्षिण-पश्चिम तक चली गई है। तिब्बत और तुर्किस्तान की सीमा पर इस दीवार को विशेष रूप से मजबूत बनाया गया है, क्योंकि चीन वालों को उस ओर से शत्रुओं का अधिक डर था। कालगन, पीनमन आदि दर्रो की ओर खास-खास दरवाजे बनाए गए थे और उन पर सेना तैनात रखी जाती थी। चीन में यह व्यवस्था आज भी है।

धीरे-धीरे यह बड़ी दीवार कहीं-कहीं पर टूटने लगी। सोलहवीं शताब्दी में इसकी मरम्मत हुई। ईंट और पत्थर की बनी हुई यह दीवार सचमुच एक आश्चर्य है।

पर्दाफाश से साभार 

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