धर्मराज-चित्रगुप्त के इस मंदिर में चढ़ता है कागज, कलम व दवात




कहते हैं कि विधाता ने जिसके भाग्य में जो लिख दिया उसे न तो कोई मिटा सकता है ना ही बदल सकता है, लेकिन उज्जैन में एक ऐसा मंदिर जिसमें चढ़ावा चढ़ाने मात्र से ही भक्तों के भाग्य बदल जाते है| इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि यहाँ प्रसाद व फल-फूल या जल नहीं चढ़ाया जाता है| अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस मंदिर में क्या चढ़ाया जाता है| तो आपको बता दे कि यहाँ प्रसाद व जल नहीं बल्कि कागज़, कलम और दवात चढ़ाई जाती है| यह सुनकर आपको आश्चर्य जरुर हो रहा होगा लेकिन यह सच है| आपको बता दें कि यह स्थान मध्य प्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन में है, जहां भगवान चित्रगुप्त और धर्मराज एक साथ मिलकर अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं|

उज्जैन नगरी के यमुना तलाई के किनारे एक मंदिर में चित्रगुप्त एवं धर्मराज एक साथ विराजमान हैं। इस मंदिर की यह मान्यता है कि यहाँ कागज़, कलम और दवात चढाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं| यही वजह है कि इस मंदिर में जो भी श्रद्धालु दर्शनों के लिए आता है तो उसके हाथ में फल, फूल, माला व मिठाई न होकर कागज़, कलम व दवात होती है|

इस मंदिर में विराजमान भगवान चित्रगुप्त और धर्मराज के बारे में अलग- अलग कथाएं प्रचलित हैं| चित्रगुप्त के बारे में यह मान्यता है कि इनकी उत्पत्ति स्वयं ब्रह्मा जी के हजारों साल के तप से हुई है। बात उस समय की है जब महाप्रलय के बाद सृष्टि की उत्पत्ति होने पर धर्मराज ने ब्रह्मा से कहा कि इतनी बड़ी सृष्टि का भार मैं संभाल नहीं सकता।

ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए कई हजार वर्षो तक तपस्या की और उसके फलस्वरूप ब्रह्मा जी के सामने एक हाथ में पुस्तक तथा दूसरे हाथ में कलम लिए दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। जिनका नाम ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त रखा।

ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त से कहा कि आपकी उत्पत्ति मनुष्य कल्याण और मनुष्य के कर्मो का लेखा जोखा रखने के लिए हुई है अत: मृत्युलोक के प्राणियों के कर्मो का लेखा जोखा रखने और पाप-पुण्य का निर्णय करने के लिए आपको बहुत शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए आप महाकाल की नगरी उज्जैन में जाकर तपस्या करें और मानव कल्याण के लिए शक्तियां अर्जित करे।

कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर चित्रगुप्त ने उज्जैन में हजारों साल तक तपस्या कर मानव कल्याण के लिए सिद्घियां एव शक्तियां प्राप्त की।

वहीँ, धर्मराज के बारे में एक कथा है किधर्मराज भैया दूज पर बहन यमुना से राखी बंधवाने के लिए मृत्युलोक आये थे| उसके बाद वह वापस न जाकर यहीं विराजमान हो गए| यह भी कहा जाता है कि धर्मराज के राखी बंधवाने के बाद से ही भैयादूज मनाया जाने लगा | आज भी यहाँ चित्रगुप्त और धर्मराज मंदिर के सामने यमुना सागर स्थित है| यमुना सागर के बारे में कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है|

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