उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में फंसे लोगों को सुरक्षित वापसी के लिए सुरक्षा बलों के संघर्ष के बीच साधु-संतों ने केदारनाथ जा कर पूजा-अर्चना करने की इच्छा जताई है। द्वारका के शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने पारंपरिक पूजा अर्चना के लिए उत्तराखंड सरकार से आपदा का शिकार हुए तीर्थ क्षेत्र में जाने देने की अनुमति मांगी है।
यहां कनखल में साधुओं की बैठक के बाद सरस्वती ने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से उन्हें केदारनाथ जाने देने की अनुमति मांगी है। उन्होंने केदारनाथ महादेव की उखीमठ में अर्चना शुरू किए जाने का विरोध जताया। उखीमठ सर्दियों में शिव का स्थान होता है। एक साधु ने कहा, "गर्मियों में भगवान शिव को किसी दूसरे स्थान पर ले जाने का कोई प्रावधान नहीं है।" बादल फटने के बाद तीर्थ क्षेत्र में मलबा और गाद भर जाने से कपाट बंद कर दिए गए। सोमवार को केदारनाथ से प्रतिमा पूजा अर्चना के लिए उखीमठ लाई गई।
नवंबर महीने में सर्दियां शुरू हो जाने के बाद भगवान शिव की पवित्र प्रतिमा केदारनाथ से उखीमठ लाई जाती है जहां उनकी इस अवधि में पूजा अर्चना की जाती है। मई के पहले सप्ताह में प्रतिमा फिर से केदारनाथ में स्थापित कर दी जाती है। यही समय होता है जब मंदिर के कपाट तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिए जाते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों लाखों की तादाद में श्रद्धालु तीर्थयात्रा के लिए यहां पहुंचते हैं।
हिंदू चंद्र पंचांग के मुताबिक हर वर्ष कार्तिक मास के पहले दिन तीर्थ का कपाट बंद कर दिया जाता है और वैशाख में कपाट खोला जाता है। बंद रहने के दौरान तीर्थस्थल बर्फ से ढंका होता है और भगवान की पूजा उखीमठ में होती है। इस वर्ष केदारनाथ यात्रा 14 मई से शुरू हुई थी।
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