जंगल में रहने वाली नील गाय के बारे में आपने जरूर सुना होगा। आपको यह भी
पता होगा कि शेर और बाघों का यह अच्छा आहार है। लेकिन क्या आपको पता है
नील गाय, गाय नहीं बल्कि घोड़े की प्रजाति की होती है।
जीहां वैज्ञानिकों के मुताबिक नील गाय उसी श्रेणी के जानवरों में गिनी जाती
है, जिसमें गधे व घोड़े और चित्तीदार घोड़े गिने जाते हैं। नील गाय 'गाय'
की नहीं यह घोड़े की श्रेणी में आती है। जन्तु विज्ञान ने इसे घोड़े के
पेरिसोडेक्टाइला गण में रखा है। इस गण के सदस्यों के पाद लम्बे होते हैं।
यह शाकाहारी और तेज दौड़ने वाले स्तनधारी होते हैं।
इनके पाद पर खुरदार विशम अंगुलियां होती हैं। जब ये चलते हैं तो इनकी एक ही
उंगली भूमि से स्पर्श करती है। इनके दांत पूर्णतया विकसित होते हैं। नील
गाय के केनाइन दांत अल्प विकसित होते हैं, जबकि बैल या गाय आदि के पूर्ण
विकसित होते हैं। नील गाय गाय और बैल की भांति जुगाली नहीं करती है। यह एक
दिवाचर प्राणी है जो दिन और रात दोनों समय भोजन की तलाष में रहती है।
उत्तर प्रदेश में इस समय नील गायों की संख्या लगभग 1 लाख 75 हजार के करीब
है। नील गाय संरक्षित पशु के अंतर्गत आती है। नील गायों के शिकार का
प्रतिबंध है इसको मारना कानूनन अपराध है। मारने वाला अपराधी की श्रेणी में
आता है। लेकिन वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 शासन के द्वारा राजपत्रित
अधिकारी, जिलाधिकारी, एसडीएम, तहसीलदार की आज्ञा से नील गाय को मारा जा
सकता है।
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