मच्छरों में खून की गंध पहचानने की अद्भुत क्षमता होती है। दरअसल मच्छर अपने छोटे से दिमाग में मौजूद गंध पहचानने की रहस्यमयी क्षमता के चलते अपने शिकार को सूंघकर खोज लेते हैं।
नोट्रे डेम विश्वविद्यालय के वैश्विक स्वास्थ्य संस्थान के मच्छर विज्ञानी जैनुलाबेउद्दीन सईद के मुताबिक मादा मच्छर गंध से ही खून का पता कर लेती है और उसे चूसने पहुंच जाती है। इस खून का इस्तेमाल वह अपने अंडे देने के लिए करती है।
वेस्ट नाइल और उस जैसी अन्य घातक बीमारियों को फैलाने वाले क्यूलेक्स मच्छर अपने दिमाग में मौजूद न्यूरॉन की सहायता से महज एक मिनट के भीतर ही अपने शिकार को खोज निकालते हैं।
पक्षी इन मच्छरों के मुख्य शिकार होते हैं और इनमें वेस्ट नाइल बीमारी का वायरस भी होता है। जब इन पक्षियों को काटने के बाद ये मच्छर मनुष्यों को काटते हैं तो यह वायरस भी मनुष्यों में फैल जाता है। मनुष्य के रक्त की गंध मच्छरों को कैसे आकर्षित करती है अगर इस बात का पता चल जाए तो कई बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है।
गौरतलब है कि मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी मलेरिया से अफ्रीका में हर साल 30 सेकेंड में एक इंसान की जान चली जाती।
नोट्रे डेम विश्वविद्यालय के वैश्विक स्वास्थ्य संस्थान के मच्छर विज्ञानी जैनुलाबेउद्दीन सईद के मुताबिक मादा मच्छर गंध से ही खून का पता कर लेती है और उसे चूसने पहुंच जाती है। इस खून का इस्तेमाल वह अपने अंडे देने के लिए करती है।
वेस्ट नाइल और उस जैसी अन्य घातक बीमारियों को फैलाने वाले क्यूलेक्स मच्छर अपने दिमाग में मौजूद न्यूरॉन की सहायता से महज एक मिनट के भीतर ही अपने शिकार को खोज निकालते हैं।
पक्षी इन मच्छरों के मुख्य शिकार होते हैं और इनमें वेस्ट नाइल बीमारी का वायरस भी होता है। जब इन पक्षियों को काटने के बाद ये मच्छर मनुष्यों को काटते हैं तो यह वायरस भी मनुष्यों में फैल जाता है। मनुष्य के रक्त की गंध मच्छरों को कैसे आकर्षित करती है अगर इस बात का पता चल जाए तो कई बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है।
गौरतलब है कि मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी मलेरिया से अफ्रीका में हर साल 30 सेकेंड में एक इंसान की जान चली जाती।
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