अब कम बनती हैं भाई-बहन पर आधारित फिल्में

एक दौर में हिंदी सिनेमा में भाई-बहन के रिश्ते और रक्षाबंधन के पर्व का महत्व हिंदी फिल्मों की कहानी और गानों में लगातार दिख जाता था। लेकिन अब इस रिश्ते के महत्व को दिखाती फिल्में और गाने कम ही देखने को मिलते हैं। 

हाल के वर्षो में 'भाग मिल्खा भाग'(फरहान अख्तर-दिव्या दत्ता) 'काई पो छे'(सुशांत सिंह राजपूत-अमृता पुरी) 'हाऊसफुल'(अर्जुन रामपाल-दीपिका पादुकोण) और 'जाने तू या जाने न' (जेनेलिया डिसूजा-प्रतीक बब्बर) में फिल्म की मुख्य कहानी के बीच भाई-बहन के रिश्ते की गरिमा जरूर देखने को मिली।

लेकिन फिल्म इतिहासकार एस. एम. एम. औसजा कहते हैं कि नब्बे के दशक की फिल्मों में भाई-बहन के रिश्ते की गरिमा, प्यार और नोंक झोंक सहज दिखलाई देती थी।

औसजा ने कहा, "पहले की तुलना में अब भाई-बहन के रिश्ते फिल्मों में कम ही दिखते हैं। वर्तमान फिल्मों में व्यावसायिक पक्ष सामाजिक उत्तरदायित्व से बढ़कर हो गया है।"

उन्होंने कहा कि पहले महबूब खान की 'बहन' (1941) और देव आनन्द की 'हरे रामा हरे कृष्णा' (1971) जैसी फिल्मों में किस तरह बहन का किरदार कहानी का प्रमुख हिस्सा हुआ करता था।

उन्होंने कहा कि पहले कितनी ही फिल्मों में भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित गीत हुआ करते थे, जिनमें प्रमुख हैं, 'फूलों का तारों का सबका कहना है एक हजारों में मेरी बहना है' 'मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां' 'भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना' 'रंग-बिरंगी राखी लेकर आई बहना' 'बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है' 'मेरे भईया मेरे चंदा मेरे अनमोल रत्न' 'ये राखी बंधन है ऐसा'।

अब भी हालांकि भाई-बहन के रिश्तों को दर्शाती फिल्में सिनेमा जगत में बन रही हैं। पिछले 15 सालों में 'हम साथ-साथ हैं' 'बड़े मियां छोटे मियां' 'जोश' 'प्यार किया तो डरना क्या' 'फिजा' 'माई ब्रदर निखिल' और 'गर्व' जैसी फिल्में बनी हैं, जिनमें भाई-बहन का प्यार और नोंक झोंक देखने को मिली है। लेकिन भाई-बहन के पावन रिश्ते के लिए हिंदी सिनेमा जगत और बेहतर प्रयास कर सकता है।

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