आपदा से आहत हुए प्रसिद्ध तीर्थस्थल केदारनाथ अभी भी संपर्क विहीन स्थिति
में है। पहुंच मार्ग नहीं होने के साथ ही मलबों के नीचे अभी भी कई शव दबे
हुए हैं और डरे हुए ग्रामीण शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। पलायन करने
वालों में से कई ने 'देवभूमि' माने जाने वाले इस इलाके में दोबारा नहीं
लौटने का मन बना लिया है।
केदारनाथ मंदिर के कपाट हालांकि बुधवार को खोल दिए गए और 15 से 17 जून को हुई भारी वर्ष एवं उससे आई बाढ़ के तांडव के बाद पहली बार वहां पूजा-अर्चना हुई। उत्तराखंड में आई इस प्राकृतिक आपदा में सैकड़ों लोग मारे गए। उत्तराखंड सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती आपदा में केदारनाथ और इसके आसपास के इलाके में बेघर हो गए लोगों को राहत पहुंचाना और उनका पुनर्वास कराना है।
स्थानीय विधायक शैल रानी रावत ने बताया, "केदार घाटी में मौसम का मिजाज अभी भी बिगड़ैल ही बना हुआ है और क्षेत्र में केवल हेलीकॉप्टर के जरिए ही पहुंचा जा सकता है। वर्ष में यह सेवा भी प्रभावित होती है। सर्दियों में हालत और बुरी हो जाएगी।" उन्होंने कहा कि केदारनाथ मंदिर की सफाई हो चुकी है और पूजा के लिए तैयार है, लेकिन शेष इलाका अभी भी मलबे से ढका हुआ है।
रावत ने कहा, "बड़ी-बड़ी चट्टानें और भवनों के ध्वस्त ढांचे अभी तक वैसे ही पड़े हैं। इनको हटाने के लिए बड़ी मशीनों व अन्य उपकरणों की जरूरत होगी। चूंकि अभी तक सड़क संपर्क नहीं हो पाया है इसलिए मलबे को साफ करना कठिन है।"
इलाके में काम करने वाले कई एनजीओ का कहना है कि मंदिर के इर्दगिर्द सैकड़ों शव अभी भी मलबे के नीचे दबे हुए हैं। इलाके में काम कर रहे एक्शन एड नेटवर्क के समन्वयक दुर्गा प्रसाद के मुताबिक सितंबर के बाद जब बारिश रुक जाएगी तभी मारे गए लोगों की वास्तविक संख्या और प्रभावित हुए लोगों की सही जानकारी उपलब्ध हो सकेगी।
उन्होंने बताया कि अभी तक मानवीय श्रम से कुछ अस्थायी सड़कों का ही निर्माण हो पाया है ताकि मालवाहक वाहन क्षेत्र तक राहत सामग्री पहुंचा सकें। प्रसाद ने बताया, "ढेर सारी राहत सामग्री आ रही है, लेकिन प्रभावितों तक सभी नहीं पहुंच पा रही है। गांव तक पहुंचने का रास्ता नहीं होने के कारण ट्रक सामग्री को बीच में ही उतारकर लौटने के लिए मजबूर हैं।"
प्रसाद ने कहा, "अब तो कई लोगों ने राहत सामग्री लेने के लिए आना बंद कर दिया है, क्योंकि उन्हें 10 से 30 किलोमीटर खतरनाक पहाड़ी रास्तों और विपरीत मौसम को झेलते हुए आना पड़ता है। इसलिए हम वाहनों के जरिए उन तक राहत सामग्री पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।"
आपदा से डर कर पलायन कर रहे लोग उत्तराखंड सरकार के सामने एक और बड़ी समस्या खड़ी कर रहे हैं। पहाड़ से लोग रोजी-रोटी की तलाश और भयमुक्त होने के लिए देहरादून, ऋषिकेश, नैनीताल एवं अन्य शहरों की तरफ रुख कर रहे हैं। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने कहा, "मेरी याददाश्त में यह पहला मौका है जब पहाड़ लोगों को डरा रहे हैं और त्रासदी के बाद पर्वतीय क्षेत्र से मैदान की तरफ बड़े पैमाने पर लोग पलायन कर रहे हैं।"
केदारनाथ मंदिर के कपाट हालांकि बुधवार को खोल दिए गए और 15 से 17 जून को हुई भारी वर्ष एवं उससे आई बाढ़ के तांडव के बाद पहली बार वहां पूजा-अर्चना हुई। उत्तराखंड में आई इस प्राकृतिक आपदा में सैकड़ों लोग मारे गए। उत्तराखंड सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती आपदा में केदारनाथ और इसके आसपास के इलाके में बेघर हो गए लोगों को राहत पहुंचाना और उनका पुनर्वास कराना है।
स्थानीय विधायक शैल रानी रावत ने बताया, "केदार घाटी में मौसम का मिजाज अभी भी बिगड़ैल ही बना हुआ है और क्षेत्र में केवल हेलीकॉप्टर के जरिए ही पहुंचा जा सकता है। वर्ष में यह सेवा भी प्रभावित होती है। सर्दियों में हालत और बुरी हो जाएगी।" उन्होंने कहा कि केदारनाथ मंदिर की सफाई हो चुकी है और पूजा के लिए तैयार है, लेकिन शेष इलाका अभी भी मलबे से ढका हुआ है।
रावत ने कहा, "बड़ी-बड़ी चट्टानें और भवनों के ध्वस्त ढांचे अभी तक वैसे ही पड़े हैं। इनको हटाने के लिए बड़ी मशीनों व अन्य उपकरणों की जरूरत होगी। चूंकि अभी तक सड़क संपर्क नहीं हो पाया है इसलिए मलबे को साफ करना कठिन है।"
इलाके में काम करने वाले कई एनजीओ का कहना है कि मंदिर के इर्दगिर्द सैकड़ों शव अभी भी मलबे के नीचे दबे हुए हैं। इलाके में काम कर रहे एक्शन एड नेटवर्क के समन्वयक दुर्गा प्रसाद के मुताबिक सितंबर के बाद जब बारिश रुक जाएगी तभी मारे गए लोगों की वास्तविक संख्या और प्रभावित हुए लोगों की सही जानकारी उपलब्ध हो सकेगी।
उन्होंने बताया कि अभी तक मानवीय श्रम से कुछ अस्थायी सड़कों का ही निर्माण हो पाया है ताकि मालवाहक वाहन क्षेत्र तक राहत सामग्री पहुंचा सकें। प्रसाद ने बताया, "ढेर सारी राहत सामग्री आ रही है, लेकिन प्रभावितों तक सभी नहीं पहुंच पा रही है। गांव तक पहुंचने का रास्ता नहीं होने के कारण ट्रक सामग्री को बीच में ही उतारकर लौटने के लिए मजबूर हैं।"
प्रसाद ने कहा, "अब तो कई लोगों ने राहत सामग्री लेने के लिए आना बंद कर दिया है, क्योंकि उन्हें 10 से 30 किलोमीटर खतरनाक पहाड़ी रास्तों और विपरीत मौसम को झेलते हुए आना पड़ता है। इसलिए हम वाहनों के जरिए उन तक राहत सामग्री पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।"
आपदा से डर कर पलायन कर रहे लोग उत्तराखंड सरकार के सामने एक और बड़ी समस्या खड़ी कर रहे हैं। पहाड़ से लोग रोजी-रोटी की तलाश और भयमुक्त होने के लिए देहरादून, ऋषिकेश, नैनीताल एवं अन्य शहरों की तरफ रुख कर रहे हैं। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने कहा, "मेरी याददाश्त में यह पहला मौका है जब पहाड़ लोगों को डरा रहे हैं और त्रासदी के बाद पर्वतीय क्षेत्र से मैदान की तरफ बड़े पैमाने पर लोग पलायन कर रहे हैं।"
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