आधुनिकता के इस दौर में हिमाचल प्रदेश के कबायली क्षेत्र में आज भी महिलाएं वह तीन रातें बड़े कष्ट से गुजारती हैं जब वह मासिक धर्म से गुजर रही होती हैं| इन दिनों महिलाएं घर के बाहर गौशाला में घास के बिछौने व फटे-पुराने कम्बल में रातें काटती हैं अब चाहे बर्फबारी हो या फिर आंधी तूफ़ान ही क्यों न आए| यहाँ एक ऐसा भी गाँव है जहाँ माहवारी आने पर महिलाओं को गाँव से बाहर निकाल दिया जाता है और उन्हें इन दिनों बाहर ही रहना पड़ता है|
मिली जानकारी के मुताबिक, यहाँ के जिला मंडी की चौहारघाटी, स्नोर बदार, चच्योट, कमरूघाटी, जंजैहली, करसोग, कांगड़ा के छोटा व बड़ा भंगाल में आज भी महिलाएं अछूत होने का दंड भुगतती हैं|
बताते हैं कि यहाँ प्रथम रजस्वला से लेकर तृतीय रजस्वला तक महिलाएं घर के बर्तन से लेकर घर के चूल्हे चौके तक को हाथ नहीं लगा सकती हैं| इन दिनों उन्हें घर के बाहर ही अलग बर्तन में खाना दिया जाता है| मान्यता है कि माहवारी के दिनों में महिला किसी देव स्थल घर के चूल्हे व चौके से छू गई तो घर से देवताओं का वास उठ जाएगा कई प्रकार के क्लेश उत्पन्न होंगे। इसके अलावा उन्हें रात गुजारने के लिए घास के बनी दरी व फटा-पुराना कम्बल दिया जाता है| माहवारी के तीसरे दिन उस महिला को घर से बाहर ही एकांत स्थान पर नहलाकर पंचामृत, पिलाकर घर में प्रवेश दिया जाता है।
इन स्थानों पर इतना ही काफी है कि महिलाओं को गौशाला में रहना पड़ता है लेकिन कुल्लू के मलाणा में महिलाओं को गाँव से ही निकाल दिया जाता है| इतना ही नहीं किसी औरत की प्रसूति होने पर तो उसे तेरह दिनों तक गांव से बाहर रखा जाता है।
शास्त्रों में भी कहा गया है कि ब्रम्हा जी ने कहा, स्त्रियों के रजस्वला के प्रथम चार दिन तक ही उन पर यह दोष बना रहेगा। उन दिनों में स्त्रियां घर से बाहर रहेंगी। पांचवें दिन स्नान करके वे पवित्र बन जाएंगी। ये चार दिन वे पति के साथ संयोग नहीं कर सकेंगी।
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