आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है| इसी दिन
से कार्तिक माह का स्नान आरम्भ माना जाता है| प्रतिवर्ष कार्तिक माह आरम्भ
होते ही पवित्र स्नान का शुभारम्भ हो जाता है| इस बार कार्तिक मास का स्नान
इस बार 18 अक्टूबर से आरम्भ होकर 17 नवम्बर तक चलेगा| पुराणों में कार्तिक
मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया
है। इस माह में स्नान - दान तथा व्रत से पुण्य कर्मों के फलों में वृद्धि
होती है. इस माह में दीपदान का अपना विशेष महत्व है|
कार्तिक स्नान की विधि-
तिलामलकचूर्णेन गृही स्नानं समाचरेत्।
विधवास्त्रीयतीनां तु तुलसीमूलमृत्सया।।
सप्तमी दर्शनवमी द्वितीया दशमीषु च।
त्रयोदश्यां न च स्नायाद्धात्रीफलतिलैं सह।।
अर्थात कार्तिकव्रती को सर्वप्रथम गंगा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के जल में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद नाभिपर्यन्त (आधा शरीर पानी में डूबा हो) जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करना चाहिए परंतु विधवा तथा संन्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मृत्तिका(मिट्टी) को लगाकर स्नान करना चाहिए। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी को तिल एवं आंवले का प्रयोग वर्जित है। इसके बाद व्रती को जल से निकलकर शुद्ध वस्त्र धारणकर विधि-विधानपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वाले को केवल नरकचतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) को ही तेल लगाना चाहिए। शेष दिनों में तेल लगाना वर्जित है।
कार्तिक माह की कथा-
बहुत समय पहले एक इल्ली थी और एक घुण था| कार्तिक माह का आरम्भ होने पर इल्ली ने घुण से कहा कि चलो आओ कार्तिक नहा लें| तब घुण ने कहा कि तू ही नहा लें, मेरे तो मोठ तथा बाजरा पडे़ हैं मैं नहीं नहाउंगा| मैं तो हरे-हरे बाजरे का सीटा खाउंगा और ठण्डा-ठण्डा पानी पीऊंगा| यह सुनकर इल्ली राजा की लड़की के पल्ले से चिपकर चली गई, लेकिन घुण वहीं पडा़ रहा| वह नहीं नहाया| कार्तिक खतम होने के बाद दोनों मर गए, मरने के बाद इल्ली ने कार्तिक स्नान के कारण राजा के घर जन्म लिया, लेकिन घुण ने कार्तिक स्नान नहीं किया था इसलिए वह राजा के घर गधा बनकर रहने लगा|
बडे़ होने पर राजा की लड़की बनी इल्ली का विवाह तय हुआ और विवाह के बाद वह ससुराल जाने लगी तो उसकी बैलगाडी़ रुक गई| राजा-रानी ने कहा कि बैलगाडी़ क्यूं रुक गई! तुझे जो मांगना है, वह मांग ले| तब लड़की ने कहा कि यह गधा मुझे दे दो| राजा-रानी हैरान हुए, वह बोले कि यह तुम क्या माँग रही हो| तुम चाहो तो धन-दौलत ले जाओ| यह गधा कोई ले जाने की चीज है, लेकिन लड़की नहीं मानी| हारकर राजा-रानी ने वह गधा रथ के साथ बाँध दिया| गधा फुदक-फुदक कर चलने लगा| अपने ससुराल के महल में पहुंचने पर लड़की वह गधा महल की सीढी़ के नीचे बाँध दिया|
एक दिन जब वह सीढी़ उतर रही थी तब वह गधा बोला कि ऎ सुन्दरी, थोडा़ पानी पिला दे, तब वह बोली आ अब पहले तू नहा ले| पहले जन्म में तूने कहा था कि मैं पहले बाजरा खाऊंगा और ठण्डा-ठण्डा जल पीऊंगा| उन दोनों के आपस की यह बात देवरानी तथा जेठानी सुन लेती हैं| दोनों जाकर लड़की के पति को सिखाती हैं कि तुम्हारी पत्नी जादूगरनी है वह जानवरों से बात करती है| तब उसके पति ने जवाब दिया - मैं आपकी बातें तभी मानूंगा जब मैं स्वयं अपने कानों से यह सब सुन लूंगा और अपनी आंखों से देख लूंगा|
अगले दिन राजकुमार छिपकर बैठ जाता है| उस दिन भी लड़की बनी इल्ली तथा गधा बना घुण वही बात करते हैं तो उसका पति तलवार निकालकर खडा़ हो जाता है और कहता है कि तुम जानवर से बात कर रही हो! तुम मुझे सच बताओ, क्या बात है? अन्यथा मैं तलवार से तुम्हें मार दूंगा| उसकी पत्नी उससे विनती करती है कि तुम औरत का भेद मत खोलो, लेकिन वह नहीं मानता| हारकर लड़की को सारी बात बतानी पड़ती है| वह कहती है कि पिछले जन्म में मैं इल्ली थी और यह गधा घुण था| मैने इसे कार्तिक नहाने के लिए बहुत कहा लेकिन यह नहीं माना| राजा की लड़की के पल्ले से लगकर नहाने से मैंने राजा की लड़की के रुप में जन्म लिया और यह घुण नहीं नहाया तो यह गधा बन गया इसलिए मैं इससे पिछली बात कर रही थी|
अपनी पत्नी की बात सुनकर वह बहुत हैरान हुआ और कहने लगा कि कार्तिक स्नान से इतना पुण्य मिलता है? तब उसकी पत्नी बोली कि मेरे कार्तिक स्नान के कारण ही तो मैं राजा के घर जन्मी हूँ और मेरा विवाह एक राजकुमार से हुआ है| मुझे सभी तरह का राजपाट मिला है| यह सुनकर पति बोला कि यदि कार्तिक स्नान का इतना अधिक महत्व है तब हम दोनों जोडे़ में यह स्नान करेंगें और जितना हो सकेगा उतना दान-पुण्य भी करेगें| इससे हमें भविष्य में भी शुभ फलों की प्राप्ति हो| उसके बाद दोनों पति-प्त्नी जोडे़ से कार्तिक स्नान करने लगे और उनके पास पहले से भी अधिक धन-सम्पदा एकत्रित हो जाती है|
कार्तिक स्नान की विधि-
तिलामलकचूर्णेन गृही स्नानं समाचरेत्।
विधवास्त्रीयतीनां तु तुलसीमूलमृत्सया।।
सप्तमी दर्शनवमी द्वितीया दशमीषु च।
त्रयोदश्यां न च स्नायाद्धात्रीफलतिलैं सह।।
अर्थात कार्तिकव्रती को सर्वप्रथम गंगा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के जल में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद नाभिपर्यन्त (आधा शरीर पानी में डूबा हो) जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करना चाहिए परंतु विधवा तथा संन्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मृत्तिका(मिट्टी) को लगाकर स्नान करना चाहिए। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी को तिल एवं आंवले का प्रयोग वर्जित है। इसके बाद व्रती को जल से निकलकर शुद्ध वस्त्र धारणकर विधि-विधानपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वाले को केवल नरकचतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) को ही तेल लगाना चाहिए। शेष दिनों में तेल लगाना वर्जित है।
कार्तिक माह की कथा-
बहुत समय पहले एक इल्ली थी और एक घुण था| कार्तिक माह का आरम्भ होने पर इल्ली ने घुण से कहा कि चलो आओ कार्तिक नहा लें| तब घुण ने कहा कि तू ही नहा लें, मेरे तो मोठ तथा बाजरा पडे़ हैं मैं नहीं नहाउंगा| मैं तो हरे-हरे बाजरे का सीटा खाउंगा और ठण्डा-ठण्डा पानी पीऊंगा| यह सुनकर इल्ली राजा की लड़की के पल्ले से चिपकर चली गई, लेकिन घुण वहीं पडा़ रहा| वह नहीं नहाया| कार्तिक खतम होने के बाद दोनों मर गए, मरने के बाद इल्ली ने कार्तिक स्नान के कारण राजा के घर जन्म लिया, लेकिन घुण ने कार्तिक स्नान नहीं किया था इसलिए वह राजा के घर गधा बनकर रहने लगा|
बडे़ होने पर राजा की लड़की बनी इल्ली का विवाह तय हुआ और विवाह के बाद वह ससुराल जाने लगी तो उसकी बैलगाडी़ रुक गई| राजा-रानी ने कहा कि बैलगाडी़ क्यूं रुक गई! तुझे जो मांगना है, वह मांग ले| तब लड़की ने कहा कि यह गधा मुझे दे दो| राजा-रानी हैरान हुए, वह बोले कि यह तुम क्या माँग रही हो| तुम चाहो तो धन-दौलत ले जाओ| यह गधा कोई ले जाने की चीज है, लेकिन लड़की नहीं मानी| हारकर राजा-रानी ने वह गधा रथ के साथ बाँध दिया| गधा फुदक-फुदक कर चलने लगा| अपने ससुराल के महल में पहुंचने पर लड़की वह गधा महल की सीढी़ के नीचे बाँध दिया|
एक दिन जब वह सीढी़ उतर रही थी तब वह गधा बोला कि ऎ सुन्दरी, थोडा़ पानी पिला दे, तब वह बोली आ अब पहले तू नहा ले| पहले जन्म में तूने कहा था कि मैं पहले बाजरा खाऊंगा और ठण्डा-ठण्डा जल पीऊंगा| उन दोनों के आपस की यह बात देवरानी तथा जेठानी सुन लेती हैं| दोनों जाकर लड़की के पति को सिखाती हैं कि तुम्हारी पत्नी जादूगरनी है वह जानवरों से बात करती है| तब उसके पति ने जवाब दिया - मैं आपकी बातें तभी मानूंगा जब मैं स्वयं अपने कानों से यह सब सुन लूंगा और अपनी आंखों से देख लूंगा|
अगले दिन राजकुमार छिपकर बैठ जाता है| उस दिन भी लड़की बनी इल्ली तथा गधा बना घुण वही बात करते हैं तो उसका पति तलवार निकालकर खडा़ हो जाता है और कहता है कि तुम जानवर से बात कर रही हो! तुम मुझे सच बताओ, क्या बात है? अन्यथा मैं तलवार से तुम्हें मार दूंगा| उसकी पत्नी उससे विनती करती है कि तुम औरत का भेद मत खोलो, लेकिन वह नहीं मानता| हारकर लड़की को सारी बात बतानी पड़ती है| वह कहती है कि पिछले जन्म में मैं इल्ली थी और यह गधा घुण था| मैने इसे कार्तिक नहाने के लिए बहुत कहा लेकिन यह नहीं माना| राजा की लड़की के पल्ले से लगकर नहाने से मैंने राजा की लड़की के रुप में जन्म लिया और यह घुण नहीं नहाया तो यह गधा बन गया इसलिए मैं इससे पिछली बात कर रही थी|
अपनी पत्नी की बात सुनकर वह बहुत हैरान हुआ और कहने लगा कि कार्तिक स्नान से इतना पुण्य मिलता है? तब उसकी पत्नी बोली कि मेरे कार्तिक स्नान के कारण ही तो मैं राजा के घर जन्मी हूँ और मेरा विवाह एक राजकुमार से हुआ है| मुझे सभी तरह का राजपाट मिला है| यह सुनकर पति बोला कि यदि कार्तिक स्नान का इतना अधिक महत्व है तब हम दोनों जोडे़ में यह स्नान करेंगें और जितना हो सकेगा उतना दान-पुण्य भी करेगें| इससे हमें भविष्य में भी शुभ फलों की प्राप्ति हो| उसके बाद दोनों पति-प्त्नी जोडे़ से कार्तिक स्नान करने लगे और उनके पास पहले से भी अधिक धन-सम्पदा एकत्रित हो जाती है|
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