चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद अध्यक्ष लालू यादव को सजा सुनाई जा चुकी है| लालू को 5 साल जेल की सजा के साथ 25 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है|
ऐसे में एक बार फिर चारा घोटाला चर्चा में है,हम में से कई ऐसे हैं जिनको इस घोटाले के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता ऐसे में हम आपको साल दर साल के हिसाब से बता रहे हैं इस चर्चित घोटाले के बारे में .....
27 जनवरी 1996: पशुओं के चारा घोटाले के रूप में सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की लूट सामने आयी। चाईबासा ट्रेजरी से इसके लिये गलत तरीके से 37.70 करोड़ रुपए निकाले गये थे।
11 मार्च, 1996: पटना उच्च न्यायालय ने चारा घोटाले की जाँच के लिये सीबीआई को निर्देश दिये।
19 मार्च, 1996: उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश की पुष्टि करते हुए हाईकोर्ट की बैंच को निगरानी करने को कहा।
27 जुलाई, 1997: सीबीआई ने मामले में राजद सुप्रीमो पर फंदा कसा।
30 जुलाई 1997: लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत के समक्ष समर्पण किया।
19 अगस्त 1998: लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की आय से अधिक की सम्पत्ति का मामला दर्ज कराया गया।
4 अप्रैल 2000: लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोप पत्र दर्ज हुआ और राबड़ी देवी को सह-आरोपी बनाया गया।
5 अप्रैल 2000: लालू प्रसाद और राबड़ी देवी का समर्पण, राबड़ी देवी को मिली जमानत।
9 जून, 2000: अदालत में लालू प्रसाद के खिलाफ आरोप तय किये।
अक्टूबर 2001: सुप्रीम कोर्ट ने झारखण्ड के अलग राज्य बनने के बाद मामले को नये राज्य में ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद लालू ने झारखण्ड में आत्मसमर्पण किया।
18 दिसम्बर 2006: लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में क्लीन चिट दी।
2000 से 2012 तक: मामले में करीब 350 लोगों की गवाही हुई। इस दौरान मामले के कई गवाहों की भी मौत हो गयी।
17 मई 2012: सीबीआई की विशेष अदालत में लालू यादव पर इस मामले में कुछ नये आरोप तय किये। इसमें दिसम्बर 1995 और जनवरी 1996 के बीच दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी पूर्ण निकासी भी शामिल है।
17 सितम्बर 2013: रांची की विशेष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा।
30 सितम्बर 2013: राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव दोषी करार।
3 अक्तूबर 2013 : लालू प्रसाद यादव को 5 साल जेल की सजा के साथ 25 लाख का जुर्माना|
बात जुलाई, 1997 की है जब लालू ने जनता दल से अलग अपनी राष्ट्रीय जनता दल खड़ी कर दी| गिरफ्तारी तय हो जाने के बाद लालू ने मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा दिया और पत्नी राबड़ी को मुख्यमन्त्री बनाने का निर्णय लिया। जब राबड़ी के विश्वास मत हासिल करने में समस्या आयी तो कांग्रेस और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने उनको अपना सहारा दिया।
वर्ष 1998 में केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग सरकार बनी। वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव हुआ तो राजद अल्पमत में आ गया। सात दिनों के लिये नीतीश कुमार की सरकार बनी। एक बार फिर राबड़ी बिहार की मुख्यमन्त्री बनीं। इस बार कांग्रेस के 22 विधायक सरकार में मन्त्री बने। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू किंग मेकर की भूमिका में आये और रेलमन्त्री बने। अगले ही वर्ष 2005 में बिहार से राजद सरकार की विदाई हो गयी और 2009 के लोकसभा चुनाव में राजद के सिर्फ चार सांसद जीत सके। इसका अंजाम यह हुआ कि लालू को केन्द्र सरकार में जगह नहीं मिली।
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